काश इतनी नकारात्मकता से हम अपना दिल भी टटोलें कि हम खुद कितने गंदे हैं ...कितना आसान है किसी अच्छे कार्य में बुराई निकलना अगर यह देखना हो इस समय ब्लाग जगत की काँव काँव देखिये ! अपने नाम को चमकाने में लगे यह तथाकथित लेखक किस प्रकार देश को नंगा करने में लगे हुए हैं !
क्या बात कही गई है ...आपको नहीं लगता कि उद्धृत पंक्ति उनपर भी लागू हो सकती...जो ऐसा लिख रहे हैं...क्या ये नहीं हो सकता कि अपना नाम चमकाने की फ़िक्र उन्हें भी है ....
ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि ब्लॉग में सब कुछ अच्छा-अच्छा ही लिखना वाजिब है ....जो ग़लत हम देख रहे हैं, वो हम नहीं लिखें क्या...हम भी बीबीसी की रिपोर्टिंग देख रहे हैं...अपनी कमियों से इतना डर क्यों, क्या सारे विदेशी खिलाड़ी हमारे ही ब्लोग्स को पढ़ने के लिए आ रहे हैं... जो हमने यहाँ लिख दिया है उसे सारे विदेशी खिलाड़ी पढेंगे आज ही बोरिया बिस्तर बाँध कर रवानगी की राय लेंगे ....
विदेशों में हम रहते हैं ..इसका अर्थ यह नहीं कि हम भारतीय नहीं है...और भारत की बिगड़ी छवि देख कर हमें दुःख नहीं होता है...न तो हमने कभी सोचा है कि 'देखों भारतीयों तुम कितने गन्दे हो। हम बड़े अच्छे हैं कि देश छोड़कर चले आए नहीं तो हमें भी इसी नरक में रहना पड़ता'(एक कमेन्ट ऐसा भी है)...अगर ऐसा होता तो हम कुछ नहीं कहते ...आराम से ज़िन्दगी बीत ही रही है...कोई कमी नहीं है...लेकिन मन से हम सच्चे भारतीय है...हर हिन्दुस्तानी की तरह हम भी रोजी-रोटी ही कमाने आए हैं...पहले बिहार से दिल्ली गए और अब दिल्ली से यहाँ....हम यहाँ रहते हैं तो क्या हुआ, हमारे प्रियजन वहीँ रहते हैं...और भारत की सरकार को पूरा टैक्स देते हैं...इसलिए उनकी सुविधा पर हमारा हक़ है और ये जानने का अधिकार भी कि आख़िर उनके टैक्स के पैसे कहाँ खर्च हो रहे हैं...
पुल गिरने के बारे में कह दिया गया कि हर देश में ऐसा होता है.... तो सिर्फ बुरी बातों में तुलना क्यों ..अच्छी बातों में भी तुलना की जानी चाहिए ...दूसरे देशों की ईमानदारी, समय की पाबंदी ..मंत्रियों की सच्ची देश भक्ति ....इनकी भी बात की जानी चाहिए...
भ्रष्टाचार के बारे में कहा गया कि निर्ममता से चोट करनी चाहिए...तो कब करनी चाहिए ये भी बताया जाए ...आपको नहीं लगता ६३ साल कुछ ज्यादा हैं ,चोट के बारे में सोचते हुए....और फिर ऐसा भी नहीं है कि विदेशियों को मालूम नहीं भारत के बारे ...बहुत ही अच्छे तरीके से मालूम है...आज दुनिया बहुत छोटी हो चुकी है...कहीं कुछ भी बात नहीं छुपती...
अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनना बहुत आसन है...हिम्मत तो तब है जब अपनी कमियों को स्वीकार करें....ऐसी वाह वाही की पोस्ट लिखने में कितनी देर लगेगी किसी को भी....ब्लाग पढ़े-लिखे लोगों का समूह है, एक स्वस्थ परिचर्चा होनी चाहिए....सिर्फ़ यह कह देना की १५ दिनों तक चुप रहें क्योंकि मेहमान आए हुए हैं...बहुत बचपने की बात है....हमारे मेहमान खेलने आए हैं..ब्लॉग पढ़ने नहीं आए हैं..और फिर १५ दिनों बाद कोई हादसा होता है तो क्या वो सही होगा ? मेहमानों की जान, जान है और हमारे लोगों की जान नहीं है क्या ?
फिर ये क्या बात हुई कि मेहमान आयें हैं तो उनको दिखाने के लिए अपने घर के कूड़े पर चादर ढँक दें...कि बाद में देखा जाएगा...वो 'बाद' कभी न आया है न आएगा....दिखावे में रहना हम हिन्दुस्तानियों की फ़ितरत है....इतना ही नहीं जो कमियाँ बताये उनके लिए ही ग़लत बात कही जाए...अगर पढ़े-लिखे सक्षम लोगों की सोच ये है जो फिर अनपढ़ों के क्या शिकायत....पीतल पर सोने का पानी बहुत दिनों तक नहीं चलता है...बहुत चढ़ा लिए पानी...अब कुछ सकारात्मक बात होनी चाहिए, लोलीपोप के दिन अब गए..अपने विवेक से काम लेने का दिन है....नींद से जागिये, और सोचिये....ऐसी ही सोच सबसे बड़ा कारण है देश में भ्रष्टाचार का, जब भी किसी ने कुछ कहने की कोशिश की है लोगों ने मुँह बंद करने की उससे ज्यादा कोशिश की है...आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा इसे ही कहते हैं....
होना यह चाहिए कि जो भी खर्च हुआ है उसका सारा लेखा जोखा पब्लिक किया जाए....कहाँ कितना और कैसे खर्चा हुआ है...पूरी बैलेंस शीट...जनता के सामने रखी जाए, ये पैसा जनता का है, जनता को पूरा हक़ है इसके बारे में जानने का...
हाँ नहीं तो...!!
जी,
ReplyDeleteजनता बखूबी जानती है कि पैसा कहाँ गया, लेकिन जवाब नहीं चाहती। क्योंकि उसमें श्रम लगेगा।
हम तो अभी सोये पडे हैं और आप हो कि झिंझोड रहे हो। प्लीज हमारी नींद खराब ना करो। ये सपनों भरी नींद में बहुत मजा आ रहा है।
प्रणाम
अच्छॆ और सच्चे होते तो स्विज़ बैंक की चर्चा ही न होती :)
ReplyDeletesarkari tantr mae paesaa kehaa gayaa iska sabko pataa haen kayii sarkari gharo mae saat pushto kae liyae paesaa haen
ReplyDeletehar mahkame mae kisi naa kisi mantri kaa beta beti bahun naati pota lagaa haen so
paesa sahii channel sae kharch hua haen
70000 crore inr has been spent on these games
the roads will buckle in a year
the bridges will be ready for repair in a year
the stadiums will be useless as we have not buld the culture to breed sportsman
man vachan kay aur lekhan sabhee se koot koot kar bharee bhartiyta tapak rahee hai jee ..............
ReplyDelete:-)
...अगर पढ़े-लिखे सक्षम लोगों की सोच ये है जो फिर अनपढ़ों से क्या शिकायत....पीतल पर सोने का पानी बहुत दिनों तक नहीं चलता है...बहुत चढ़ा लिए पानी...अब कुछ सकारात्मक बात होनी चाहिए, लोलीपोप के दिन अब गए.. ..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका बेबाक आलेख ....आपसे पूरी तरह सहमत हूँ.....
aapka yah lekh bahut achchha laga.
ReplyDeletesamasyaa yah hai ki hum bhoolne me itne awwal hain ki kuchh bhi phataphat bhool jaate hain...
रचना जी,
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूँ...इन मंत्रियों ने और उनके पिट्ठुओं ने ही सारा गड़बड़ किया हुआ है...
हमारे यहाँ भी इलेक्शन हो रहे हैं...और कल ही मेरे घर पर एक candidate आया, बिलकुल अकेला..उसकी शक्ल से मुझे लगा मैंने इसे कहीं देखा है...पता चला वो वर्तमान में ही पार्षद के पद पर काम कर रहा है...उसने अपनी बात कही और मेरे लान में अपना sign लगाने की इजाज़त मांगी...जब मैंने हां किया तो आज सुबह वो खुद ही अकेला आकर sign लगा कर गया है...क्या इस तरह की बातें भारत में संभव है...
अगर मैं ये बातें बताती हूँ तो सिर्फ इसलिए कि हम कुछ सीखें इनसे...
नमस्कार.....
ReplyDeleteअनुराग शर्मा जी के ब्लॉग पर आप ही की चर्चा को आगे बढ़ाते हुये उन्होंने कुछ उदाहरण दिया है। पढ़कर फ़र्क साफ़ पता चलता है कि हम कितने बड़े हिप्पोक्रेट्स हैं।
ReplyDeleteऔर पन्द्रह दिन के बाद भी वाहवाही ही होनी है, सफ़ल आयोजन और देश का मस्तक ऊँचा होने के नाम पर।
शांति दूतों की मानें तो सबको कबूतर की तरह आँखें बन्द कर लेनी चाहियें, न बिल्ली दिखेगी और न कोई डर रहेगा।
ऐसे मुद्दों पर आपकी कलम की प्रखरता देखते ही बनती है। आँख बन्द करके अन्याय सहने की अपेक्षा आवाज उठाने में ज्यादा हिम्मत चाहिये।
आप देश से दूर रहकर भी हम जैसों से ज्यादा भारतीय हैं।
हैट औफ़ अदा जी ! कुछ इसी सोच के बुद्धिजीवियों ने १९४७ मे कहा था "क्या हो गया अगर अग्रेजों ने इस देश के टुकडे कर दिये तो, हम आजाद भी तो हो गये है!"
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियों पर जिस दिन अमल होगा उस दिन से देश का काय कल्प हो जायेगा ...सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteआपको हक़ है कहने का !
ReplyDelete( देखो भारतीयों ... नरक में रहना पड़ता )
उल्लिखित कमेन्ट से असहमत !
भ्रष्टाचार के बारे में कहा गया कि निर्ममता से चोट करनी चाहिए...तो कब करनी चाहिए ये भी बताया जाए ...आपको नहीं लगता ६३ साल कुछ ज्यादा हैं ,चोट के बारे में सोचते हुए....और फिर ऐसा भी नहीं है कि विदेशियों को मालूम नहीं भारत के बारे ...बहुत ही अच्छे तरीके से मालूम है...आज दुनिया बहुत छोटी हो चुकी है...कहीं कुछ भी बात नहीं छुपती...
ReplyDeleteअच्छा लगा देख कर
यह देश बैलगाड़ी की तरह ही चलता है ।
ReplyDeleteये जो पब्लिक है सब जानती है,
ReplyDeleteअजी अंदर क्या है,
अजी बाहर क्या है,
ये सब पहचानती है,
ये जो पब्लिक है...
जय हिंद...
@ sarita ji..
ReplyDeleteaapka aabhaar, hausla badjaya hai aapne..
@ गोदियाल साहब,
ReplyDeleteआज एक खबर सुनने को मिली है कि खिलाड़ियों के कमरों से उनका सामन चोरी हो गया है..ये भी सुनने को मिला है कि उनसे कहा गया है अपने सामन कि जिम्मेवारी वो खुद लें...क्या ये सच है ?
आपका आभार..
अली साहब,
ReplyDeleteइस कमेन्ट से मन बहुत उद्विग्न हुआ है ...ये सरासर गलत बात है...
हम प्रव्सियों की निष्ठां पर प्रहार है ये...जहाँ तक हो सके ऐसी टिपण्णी करने से बचना चाहिए लोगों को....
आपका धन्यवाद आपने हमारा मान बढाया है...
गिरीश जी..
ReplyDeleteआपका धन्यवाद...
@ शरद जी,
ReplyDeleteबैलगाड़ी से कोई परहेज नहीं है मुझे....
कम से कम वो चलती तो है...मुझे ये मंज़ूर नहीं...की हवाई जहाज में बैतू और वो रनवे पर बस खड़ा रहे...
शुक्रिया आपका..
@ संगीता जी...सच में अगर ऐसा हो जाए तो फिर क्या बात होगी...!
ReplyDeleteशुक्रिया आपका..
@ कविता जी...हौसलाफजाई के लिए आभारी हूँ ..
ReplyDeleteखुशदीप जी...
ReplyDeleteये गीत सचमुच सही बैठता है..सब सबकुछ जानते समझते हैं...लेकिन अगर कोई कहेगा नहीं तो, इन्कलाब कैसे आएगा...किसी को तो कहना होगा न..!
आभार...
@ संजय जी...
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद...मेरी बहुत हिम्मत आपने बढाई है...
@ फणी मणि जी...
ReplyDeleteहमें अपने भूलने की आदत पर काबू पाना ही होगा...वर्ना हमारे काबू में कुछ भी नहीं होगा...
@ कृष्ण मुरारी जी...
ReplyDeleteनमस्कार...!
@ अंतर सोहेल जी..
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी अपना आशय बखूबी कह रही है...
शुक्रिया..!
@ चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी ...
ReplyDeleteआपने तो दुखती रग पर ही हाथ रखा है...हमेशा की तरह :):)
हाँ नहीं तो..!
जरुरी और सार्थक आलेख.
ReplyDeleteदीदी,
ReplyDeleteफोटू अच्छा है :)
मैं तो लेट हो गया :(
पारदर्शिता तो पहली पाई खर्च करने के दिन से होनी चाहिये थी।
ReplyDeleteअदा जी, जहां तक चोरी का सवाल है, मैं समझता हूँ कि अभी तक ऐसी कोई मेजर घटना नहीं घटी , हाँ एक अफ्रीकी खिलाड़ी का कुछ सामन सुर के दिन गुम हो गया था ! लेकिन बातें अपनी जगह है , आज की ताजा खबर यह है जो स्वयमसेवक ( स्कूल कालेजों के छात्र -छात्राए ) में से करीब २००० ने वोलेन्टियर का अपना दावा वापस कर दिया है और करीब दस हजार ऐसे ही लोग छोड़ने के मूड में है क्योंकि इन वोलेन्टियर के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं है, दिन-भर भूखे-प्यासे ये छात्र-छात्राएं अपने जेब से खर्च कर पानी पी रहे है, खाना तो दूर की बात है, जो फंड थे उसे तो ये बेचारे हरामखोर पहले ही खा-पी चुके !
ReplyDeleteसारी दुनिया हम जबरन कतार तोड़ने के लिए इतने कुख्यात हैं की जिस विमान में भारतीय यात्री होते हैं उसके प्रस्थान और गंतव्य एयरपोर्ट पर अतिरिक्त स्टाफ लगाया जाता है, ताकि लाइन न टूटे. तब विदेशियों के सामने देश की इज्ज़त का ख्याल नहीं आता? वह भी तब जब विदेश यात्रा पढ़ा लिखा और समृद्ध वर्ग ही कर पाता है, पढ़ लिख कर भी भारतीय इतने जाहिल क्यों हैं?
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