वैसे तो हमारा (मेरा और वाणी) का बुढ़ापा आने से रहा, अरे हम जैसों को बुढ़ापा कहाँ आता है, वो भी तो बेचारा घबराता होगा (मतलब हमें ऐसा लगता है...ये हमारी खुशफहमी भी हो सकती है :):))
फिर भी अगर भूले भटके...बुढ़ापे को हमारे बिना दिल ना लगा...और आ ही जाए तो ...परवा इल्ले:):)
कुछ सौन्दर्य प्रसाधन हम भी यूसिया लेंगे ...और नहीं तो का....
और तब जो हमारे मन में जज्बा होगा.....आपको बताते हैं हम....ये देखिये....
नोट :: एक बात और ये मत समझिये कि बायीं तरफ हम हैं और दाई तरफ वाणी ....जी नहीं, बिलकुल भी नहीं.....वैसे अगर सोच भी लिया तो कोई बात नहीं.....लेकिन ना ही सोचें तो बेहतर होगा....हाँ नहीं तो...:):)
दर्पण हिल उठे, घरवालों ने भृकुटी तानी थी
ब्यूटी क्वीन बनने की हमने अपने मन में ठानी थी
खोई हुई खूबसूरती की कीमत आज हमने पहचानी थी
दूर बुढ़ापा हो जाए इस सोच की मन में रवानी थी
चमकी डोल्लर सत्तावन में वो बिल्डिंग जो पुरानी थी
सौन्दर्य प्रसाधनों के मुख से हमने सुनी कहानी थी
टोटा-टोटा बन जाए कल तक वो जो नानी थी
कानपुर का झाँवा मिलाया और मिटटी मंगाई बरेली की
लखनऊ का नीम्बू निचोड़ा और रस मिलाई करेली की
फेस पैक स्वर्गीय बना है बस चूको मत छबीली जी
पाउडर, रूज, आईलाइनर, मसखरा बस यही हमारी सहेली जी
शहनाज़ के सारे नुस्ख़े हमको याद ज़बानी थी
सौन्दर्य प्रसाधनों के मुख से हमने सुनी कहानी थी
टोटा-टोटा बन जाए वो कल तक वो जो नानी थी
टोटा=खूबसूरत लड़की
हम अपना ख्याल रखेंगे.....:)
मालूम है आप सुन चुके है इस गीत को...तो क्या हुआ , रेडियो पर दिनभर में एक ही गीत को दस बार सुन लेते हैं आप...और हम सुना दें तो शिकायत ?? ना जी दोबारा सुनिए....प्लीज...
आवाज़ वही....क्या कहते हैं ...'अदा' की... और गीत भी वही ...'नैनों में बदरा छाये'', हाँ नहीं तो...
अदा जी , आज तो दर्पण दिखाकर आपने डरा ही दिया । वक्त के आगे किस की चली है ।
ReplyDeleteलेकिन आपकी रचना पढ़कर मज़ा आ गया । और गीत सुनकर तो और भी ज्यादा ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteमराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर कुसुमाग्रज से एक परिचय, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
अजी बुढापा क्या खा कर आएगा आप दोनों के पास? ऐसी तस्वीरें दिखाकर हम जैसों को डराओ मत। पेरोडी बढिया बनी है। गीत तो लाजवाब है ही।
ReplyDeleteक्या दी कितनी बार वाणी दी को भी झटके देंगी ......ये बुढ़ापा आपने हम सबको पहले भी दिखाया था न ! आज भी वैसे ही मज़ा आया खुबसूरत हसीनाओं का बुढ़ापा भी हसीं है .... :)
ReplyDeleteबेतिया और बहन दोनों की पोस्ट प्रतीक्षा कर रही है ...जल्दी आना
हम तो बूढ़े ही सही ....हा हा हा
ReplyDeleteआपने प्लास्टिक सर्जरी करवा ली है क्या ...:):)
और झाँसी वाली रानी खामखा 'मर्दानी' होने पर इतरा रहीं थी अब तक ...
ReplyDeleteआपने अपना और वाणी जी का जुगाड़ तो बता दिया पर उन मर्द बुड्ढों का क्या होगा जो मसखरा , रूज ,पाउडर, आईलाइनर वगैरह वगैरह नहीं वापरते :)
ReplyDeleteपुन: प्रस्तुती रोचक लगी...बिफोर आफ्टर वाले फोटो तो जोरदार लगे......आभार
ReplyDeleteओट्टावा में एक ब्यूटी पार्लर के बाहर साईन बोर्ड (विज्ञापन/सू्चना)
ReplyDeleteकृप्या यहां से बाहर निकलने वाली लडकियों पर सीटी ना बजायें। उनमें से कई आपकी दादी-नानी की उम्र की भी हैं। :)
प्रणाम
इस सुन्दर गीत के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteप्रणाम
फोटू गन्दा है :(
ReplyDeleteकविता अच्छी है :)
[गाना सुनना बाकी है ]
और ज्यादा बोल कर पिटाई नहीं खानी है :)
ओहो लोक भी लगा रखा है टेक्स्ट सेलेक्शन पर
दीदी , आप ऐसे तो ना थे :)
waah waah waah......... mast likha hai
ReplyDeleteकविता रोचक है.बड़ा मजा आया पढ़कर. अपना तो ऐसा ही टेस्ट है.हल्का फुल्का और मजेदार. ज्यादा भारी हजम नहीं होती.
ReplyDeleteवाह निराले अंदाज में व्यंग्य का रंग बिखेरा आपने...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...जबरदस्त !!!
वैसे शहनाज़ जी किसी दिन औचक से बिना मेकप धप्प कर के सामने प्रकट हो जाएँ तो हार्ट फेल पक्का है...
पैरोडी झकास, गीत लाजबाब!
ReplyDeleteबुढञापे से डर जिन्दगी का आनन्द न भूला जाये।
ReplyDeleteबुड्ढों की बात हम भला क्या जाने अली साहब...
ReplyDeleteउनके लिए भी कोई न कोई तो हल होगा ही...आपके सबल हाथों में ये रहस्योद्घाटन छोड़ती हूँ...ये मत समझिएगा मैं आपको बुड्ढा कह रही हूँ...ऐसा हरगिज़ नहीं है...
आज कल तो कुछ कहते हुए भी डरती हूँ....हाँ नहीं तो..!!
आयं ये थी फ़्यूचर फ़ोटो ..चलिए जी देख लिया ..हमारे मन पर तो आज बदरा छाए हुए हैं
ReplyDeleteपैरोडी मस्त लगी जी। सत्तावन डॉलर में डेंटिंग पेंटिंग करवा कर फ़ेसलिफ़्टिंग हो गई पुरानी ईमारत की, और क्या चाहिये?
ReplyDeleteपर ये मसखरा सहेली?
और अब समझ आई ये इस सीज़न में जो हर तरफ़ बाढ़ आ रही है, कनाडा के बदरा भी यहाँ छाये हैं। आँखें बंद करके सुनने में आनंद ही अलग आ रहा है।
गाना डाल दिया करें आप, फ़िर भला शिकायत करने की सुध किसे रहेगी?
आभार स्वीकार करें।
अब सफेदी के ड्रमों में मेकअप घोला जाए...पुताई वाली कूचियों से रंग-रोगन किया जाए...उसके बाद बारिश में कहीं मेकअप घुल जाए तो अपना ही बच्चा पूछ बैठता है...चुडै़ल आंटी, चुड़ैल आंटी हमारी मम्मी कहां गई...
ReplyDeleteजय हिंद...
हे राम!!
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