Tuesday, December 20, 2011

सचमुच काली बन जाऊँगी...!




क्या फर्क पड़ता है 
आज फिर कौन आया है;
किसके हाथों ने उसे
कहाँ कहाँ सहलाया है,
उसे सिर्फ़ याद आते हैं
वो छोटे-छोटे हाथ-पाँव;
जिनकी छुवन से
वो तृप्त हो जाती है,
स्वयं को सम्पूर्ण पाती है|
उसे तो बस जल्दी घर जाना है 
अच्छा सा खाना पकाना है,
सामने बिठा कर उनको आज  
भर पेट खिलाना है ,
और फिर गोद में लेकर
छाती से चिपका कर 
लोरी सुनाना है ,
फिलहाल....
यह जो लदी हुई लाश है,
ये हटे तो,
वो निजात पाएगी,
पैसे मिल जायेंगे तो
साबुन खरीद कर लाएगी 
और खूब 
रगड़-रगड़ कर नहाएगी,
अपनी अपवित्रता को 
नाली में बहाएगी,
फिर सामने जो देवी का मंदिर है
वहाँ जायेगी,
माँ से आँखें मिलाएगी 
कहेगी माँ से ...
तुम तो बस यूँ हीं ...
देखती रहो यहीं से बैठ कर !
कुछ मत करो....
शुक्र है !
मैं... तुम नहीं हूँ 
लेकिन तुमसे अच्छी ही हूँ
जिन्हें जन्म दिया है 
उन्हें पाल कर दिखाउंगी
देह है मेरे पास 
वही बेच कर लाऊँगी,   
मेरे बच्चों को किसी ने
आँख उठा कर भी देखा 
तो ... 
बिना एक पल गँवाए 
सचमुच काली बन जाऊँगी...!




Sunday, December 18, 2011

हम नहीं सुधरेंगे..





इतिहास भारत का बहुत पुराना
हुए ५००० वर्ष पूरे हम जाना
सभ्यता के जनक हमको तुम मानो
सिन्धु घाटी सभ्यता महाना
आये आर्य ईसा पूर्व १५००
वैदिक सभ्यता का फ़ैल जाना
आर्यों की भाषा संस्कृत थी जानो
और धर्म 'हिन्दू' हुआ महाना
सदी पांचवी फिर गौतम आये
'बौद्ध' धर्म की पौध लगाये





मौर्य साम्राज्य 
हुए सम्राट अशोक जग जाना
शौक़ उन्हें साम्राज्य फैलाना
अफगानिस्तान से गए मणिपुर
और तक्षिला से कर्णाटक तक ताना
दक्षिण में कुछ छूट गया था
बहुत कठिन था 'चोल' हराना




सोमनाथ का मंदिर 
सदी आठवीं फिर अरब पधारे
संग अपने इस्लाम वो लाये
बारहवीं सदी दिल्ली का शासन
हड़प लिए थे तुर्की दासन
१५२६ को फिर बाबर आया
मुग़ल वंश की पौध लगाया
३०० साल यह राज चलाया
पोता अकबर सबको भाया
दीन-ए-इलाही धरम चलाया
ज़ज़िया का भी टैक्स हटाया


१६५९ में औरंगजेब की बारी
ज़ज़िया टैक्स हुई फिर जारी
बढ़ गया जुल्म जब बहुत ही ज्यादा
तब शिवाजी जी कर लिया इरादा
१७०७ में औरंगजेब मर गुज़रा
मुग़ल सल्तनत हुआ बिखरा-बिखरा

जेम्स लैंकास्टर जिसने 1601 में ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से भारत की पहली यात्रा  की थी 
फिर देश में फिरंगी आये
डच, पुर्तगाल फ़्रांसिसी भगाए
किया बहाना व्यापार करन का
और बन बैठे मुख्तार देश का
१८५७ विद्रोह उभारा
गोरे उसको दबाय दे मारा
१९४७ हम आज़ादी पाए
अंग्रेजों को बस दिए भगाए

लम्बी बहुत है हमरी गुलामी
नहीं छूटती आदत ये पुरानी
सदियों चोर थे घर हथियाए
कुछ तो असर हम ज़रूर हैं पाए
सचमुच बचा है का शुद्ध रक्त भईया
कौन पूछे पुरखन से मईया
तब ही तो हम ई लछन पावें
फट दनी कहीं भी गुलाम बन जावें....

आउर तारीफ की है बात जानों ..
गुलाम बन कर भी इतरावें.. 

Saturday, December 10, 2011

वेदों में गौमांस...


यहाँ प्रस्तुत पूरा आलेख श्री अग्निवीर जी के ब्लॉग से लिया गया है...
http://agniveer.com/4387/there-is-no-beef-in-vedas-hi/

हो सकता है आपने इसे पढ़ा भी हो... यूँ तो उन्हें पढने वाले पढ़ते ही हैं...परन्तु अच्छी बात दोबारा पढने में कोई बुराई नहीं है... 
मैंने उनसे अपने ब्लॉग में उनके द्वारा लिखित पोस्ट्स को छापने की अनुमति ले भी ली है..और उन्होंने सहर्ष अनुमति दे दी है...
वेदों के मन्त्रों का सही और सरल अनुवाद करना उनकी खासियत रही है...और यह एक बहुत बड़ा कारण है कि मुझ जैसे पाठक उनकी पोस्ट्स की ओर आकर्षित होते हैं...
श्लोकों तथा मन्त्रों के अर्थ का अनर्थ होते अक्सर हम देखते ही रहते हैं...अतः ये हमारी जिम्मेदारी होती है कि उनके सही अर्थ ज्यादा से ज्यादा लोगों के सामने लेकर आयें....
मैं अग्निवीर जी की आभारी हूँ... 


यहां प्रस्तुत सामग्री वैदिक शब्दों के आद्योपांत और वस्तुनिष्ठ विश्लेषण पर आधारित है, जिस संदर्भ में वे वैदिक शब्दकोष, शब्दशास्त्र, व्याकरण तथा वैदिक मंत्रों के यथार्थ निरूपण के लिए अति आवश्यक अन्य साधनों में प्रयुक्त हुए हैं |  अतः यह शोध श्रृंखला मैक्समूलर, ग्रिफ़िथ, विल्सन, विलियम्स् तथा अन्य भारतीय विचारकों के वेद और वैदिक भाषा के कार्य  का अन्धानुकरण नहीं है | यद्यपि, पश्चिम के वर्तमान शिक्षा जगत में वे काफ़ी प्रचलित हैं, किंतु हमारे पास यह प्रमाणित करने  के पर्याप्त कारण हैं कि उनका कार्य सच्चाई से कोसों दूर है | उनके इस पहलू पर हम यहां विस्तार से प्रकाश डालेंगे |  विश्व की प्राचीनतम पुस्तक – वेद के प्रति गलत अवधारणाओं के विस्तृत विवेचन की श्रृंखला में यह प्रथम कड़ी है |
हिंदूओं के प्राथमिक पवित्र धर्म-ग्रंथ वेदों में अपवित्र बातों के भरे होने का लांछन सदियों से लगाया जा रहा है | यदि इन आक्षेपों को सही मान लिया जाए तो सम्पूर्ण हिन्दू संस्कृति, परंपराएं, मान्यताएं सिवाय वहशीपन, जंगलीयत और क्रूरता के और कुछ नहीं रह जाएंगी | वेद पृथ्वी पर ज्ञान के प्रथम स्रोत होने के अतिरिक्त हिन्दू धर्म के मूलाधार भी हैं, जो मानव मात्र के कल्याणमय जीवन जीने के लिए मार्गदर्शक हैं |
वेदों की झूठी निंदा करने की यह मुहीम उन विभिन्न तत्वों ने चला रखी है जिनके निहित स्वार्थ वेदों से कुछ चुनिंदा सन्दर्भों का हवाला देकर हिन्दुओं  को दुनिया के समक्ष नीचा दिखाना चाहते हैं | यह सब गरीब और अशिक्षित भारतियों से अपनी मान्यताओं को छुड़वाने में काफ़ी कारगर साबित होता है कि उनके मूलाधार वेदों में नारी की अवमानना, मांस- भक्षण, बहुविवाह, जातिवाद और यहां तक की गौ- मांस भक्षण जैसे सभी अमानवीय तत्व विद्यमान हैं |

वेदों में आए त्याग या दान के अनुष्ठान के सन्दर्भों में जिसे यज्ञ भी कहा गया है, लोगों ने पशुबलिदान को आरोपित कर दिया है | आश्चर्य की बात है कि भारत में जन्में, पले- बढे बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जो प्राचीन भारत के गहन अध्ययन का दावा करता है, वेदों में इन अपवित्र तत्वों को सिद्ध करने के लिए पाश्चात्य विद्वानों का सहारा लेता है |

वेदों द्वारा गौ हत्या और गौ मांस को स्वीकृत बताना हिन्दुओं की आत्मा पर मर्मान्तक प्रहार है | गाय का सम्मान हिन्दू धर्म का केंद्र बिंदू है | जब कोई हिन्दू को उसकी मान्यताओं और मूल सिद्धांतों में दोष या खोट दिखाने में सफल हो जाए, तो उस में हीन भावना जागृत होती है और फिर वह आसानी से मार्गभ्रष्ट किया जा सकता है |  ऐसे लाखों नादान हिन्दू हैं जो इन बातों से अनजान हैं, इसलिए प्रति उत्तर देने में नाकाम होने के कारण अन्य मतावलंबियों के सामने समर्पण कर देते हैं |

जितने भी स्थापित हित – जो वेदों को बदनाम कर रहे हैं वे केवल पाश्चात्य और भारतीय विशेषज्ञों तक ही सीमित नहीं हैं | हिन्दुओं में एक खास जमात ऐसी है जो जनसंख्या के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ें तबकों का शोषण कर अपनी बात मानने और उस पर अमल करने को बाध्य करती है  अन्यथा दुष्परिणाम भुगतने की धमकी देती है |

वेदों के नाम पर थोपी गई इन सारी मिथ्या बातों का उत्तरदायित्व मुख्यतः मध्यकालीन वेदभाष्यकार महीधर, उव्वट और सायण द्वारा की गई व्याख्याओं पर है तथा वाम मार्गियों या तंत्र मार्गियों द्वारा वेदों के नाम से अपनी पुस्तकों में चलायी गई कुप्रथाओं पर है | एक अवधि के दौरान यह असत्यता सर्वत्र फ़ैल गई और अपनी जड़ें गहराई तक ज़माने में सफल रही, जब पाश्चात्य विद्वानों ने संस्कृत की अधकचरी जानकारी  से वेदों के अनुवाद के नाम पर सायण और महीधर के वेद- भाष्य की व्याख्याओं का वैसा का वैसा अपनी लिपि में रूपांतरण कर लिया | जबकि वे वेदों के मूल अभिप्राय को समुचित रूप समझने के लिए अति आवश्यक शिक्षा (स्वर विज्ञान), व्याकरण, निरुक्त (शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र), निघण्टु (वैदिक कोष), छंद , ज्योतिष तथा कल्प इत्यादि के ज्ञान से सर्वथा शून्य थे |

अग्निवीर के आन्दोलन का उद्देश्य वेदों के बारे में ऐसी मिथ्या धारणाओं का वास्तविक मूल्यांकन कर उनकी पवित्रता,शुद्धता,महान संकल्पना तथा मान्यता की स्थापना करना है | जो सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही नहीं बल्कि मानव मात्र के लिए बिना किसी बंधन,पक्षपात या भेदभाव के समान रूप से उपलब्ध हैं |

.पशु-हिंसा का विरोध
यस्मिन्त्सर्वाणि  भूतान्यात्मैवाभूद्विजानत:
तत्र  को  मोहः  कः  शोक   एकत्वमनुपश्यत:
यजुर्वेद  ४०। ७
जो सभी भूतों में अपनी ही आत्मा को देखते हैं, उन्हें कहीं पर भी शोक या मोह नहीं रह जाता क्योंकि वे उनके साथ अपनेपन की अनुभूति करते हैं | जो आत्मा के नष्ट न होने में और पुनर्जन्म में विश्वास रखते हों, वे कैसे यज्ञों में पशुओं का वध करने की सोच भी सकते हैं ? वे तो अपने पिछले दिनों के प्रिय और निकटस्थ लोगों को उन जिन्दा प्राणियों में देखते हैं |

अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी
संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः
मनुस्मृति ५।५१
मारने की आज्ञा देने वाला, पशु को मारने के लिए लेने वाला, बेचने वाला, पशु को मारने वाला,
मांस को खरीदने और बेचने वाला, मांस को पकाने वाला और मांस खाने वाला यह सभी हत्यारे हैं |

ब्रीहिमत्तं यवमत्तमथो माषमथो तिलम्
एष वां भागो निहितो रत्नधेयाय दान्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च
अथर्ववेद ६।१४०।२
हे दांतों की दोनों पंक्तियों ! चावल खाओ, जौ खाओ, उड़द खाओ और तिल खाओ |
यह अनाज तुम्हारे लिए ही बनाये गए हैं | उन्हें मत मारो जो माता – पिता बनने की योग्यता रखते हैं |

य आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च ये क्रविः
गर्भान् खादन्ति केशवास्तानितो नाशयामसि
अथर्ववेद ८। ६।२३
वह लोग जो नर और मादा, भ्रूण और अंड़ों के नाश से उपलब्ध हुए मांस को कच्चा या पकाकर खातें हैं, हमें उन्हें नष्ट कर देना चाहिए |

अनागोहत्या वै भीमा कृत्ये
मा नो गामश्वं पुरुषं वधीः
अथर्ववेद १०।१।२९
निर्दोषों को मारना निश्चित ही महा पाप है | हमारे गाय, घोड़े और पुरुषों को मत मार | वेदों में गाय और अन्य पशुओं के वध का स्पष्टतया निषेध होते हुए, इसे वेदों के नाम पर कैसे उचित ठहराया जा सकता है?

अघ्न्या यजमानस्य पशून्पाहि
यजुर्वेद १।१
हे मनुष्यों ! पशु अघ्न्य हैं – कभी न मारने योग्य, पशुओं की रक्षा करो |

पशूंस्त्रायेथां
यजुर्वेद ६।११
पशुओं का पालन करो |

द्विपादव चतुष्पात् पाहि
यजुर्वेद १४।८
हे मनुष्य ! दो पैर वाले की रक्षा कर और चार पैर वाले की भी रक्षा कर |

क्रव्य दा – क्रव्य (वध से प्राप्त मांस ) + अदा (खानेवाला) = मांस भक्षक |
पिशाच — पिशित (मांस) +अस (खानेवाला) = मांस खाने वाला |
असुत्रपा –  असू (प्राण )+त्रपा(पर तृप्त होने वाला) =   अपने भोजन के लिए दूसरों के प्राण हरने वाला |  |
गर्भ दा  और अंड़ दा = भूर्ण और अंड़े खाने वाले |
मांस दा = मांस खाने वाले |
वैदिक साहित्य में मांस भक्षकों को अत्यंत तिरस्कृत किया गया है | उन्हें राक्षस, पिशाच आदि की संज्ञा दी गई है जो दरिन्दे और हैवान माने गए हैं तथा जिन्हें सभ्य मानव समाज से बहिष्कृत समझा गया है |

ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे
यजुर्वेद ११।८३
सभी दो पाए और चौपाए प्राणियों को बल और पोषण प्राप्त हो |  हिन्दुओं द्वारा भोजन ग्रहण करने से पूर्व बोले जाने वाले इस मंत्र में प्रत्येक जीव के लिए पोषण उपलब्ध होने की कामना की गई है | जो दर्शन प्रत्येक प्राणी के लिए जीवन के हर क्षण में कल्याण ही चाहता हो, वह पशुओं के वध को मान्यता कैसे देगा ?

२.यज्ञ में हिंसा का विरोध
जैसी कुछ लोगों की प्रचलित मान्यता है कि यज्ञ में पशु वध किया जाता है, वैसा बिलकुल नहीं है | वेदों में यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म या एक ऐसी क्रिया कहा गया है जो वातावरण को अत्यंत शुद्ध करती है |

अध्वर इति यज्ञानाम  – ध्वरतिहिंसा कर्मा तत्प्रतिषेधः
निरुक्त २।७
निरुक्त या वैदिक शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र में यास्काचार्य के अनुसार यज्ञ का एक नाम अध्वर भी है | ध्वर का मतलब है हिंसा सहित किया गया कर्म, अतः अध्वर का अर्थ हिंसा रहित कर्म है | वेदों में अध्वर के ऐसे प्रयोग प्रचुरता से पाए जाते हैं |

महाभारत के परवर्ती काल में वेदों के गलत अर्थ किए गए तथा अन्य कई धर्म – ग्रंथों के विविध तथ्यों को  भी प्रक्षिप्त किया गया | आचार्य शंकर वैदिक मूल्यों की पुनः स्थापना में एक सीमा तक सफल रहे | वर्तमान समय में स्वामी दयानंद सरस्वती – आधुनिक भारत के पितामह ने वेदों की व्याख्या वैदिक भाषा के सही नियमों तथा यथार्थ प्रमाणों के आधार पर की | उन्होंने वेद-भाष्य, सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा अन्य ग्रंथों की रचना की | उनके इस साहित्य से वैदिक मान्यताओं पर आधारित व्यापक सामाजिक सुधारणा हुई तथा वेदों के बारे में फैली हुई भ्रांतियों का निराकरण हुआ |

आइए,यज्ञ के बारे में वेदों के मंतव्य को जानें -
अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वत: परि भूरसि
स इद देवेषु गच्छति
ऋग्वेद   १ ।१।४
हे दैदीप्यमान प्रभु ! आप के द्वारा व्याप्त हिंसा रहित यज्ञ सभी के लिए लाभप्रद दिव्य गुणों से युक्त है तथा विद्वान मनुष्यों द्वारा स्वीकार किया गया है | ऋग्वेद में सर्वत्र यज्ञ को हिंसा रहित कहा गया है इसी तरह अन्य तीनों वेद भी वर्णित करते हैं | फिर यह कैसे माना जा सकता है कि वेदों में हिंसा या पशु वध की आज्ञा है ?

यज्ञों में पशु वध की अवधारणा  उनके (यज्ञों ) के विविध प्रकार के नामों के कारण आई है जैसे अश्वमेध  यज्ञ, गौमेध यज्ञ तथा नरमेध यज्ञ | किसी अतिरंजित कल्पना से भी इस संदर्भ में मेध का अर्थ वध संभव नहीं हो सकता |

यजुर्वेद अश्व का वर्णन करते हुए कहता  है -
इमं मा हिंसीरेकशफं पशुं कनिक्रदं वाजिनं वाजिनेषु
यजुर्वेद  १३।४८
इस एक खुर वाले, हिनहिनाने वाले तथा बहुत से पशुओं में अत्यंत वेगवान प्राणी का वध मत कर |अश्वमेध से अश्व को यज्ञ में बलि देने का तात्पर्य नहीं है इसके विपरीत यजुर्वेद में अश्व को नही मारने का स्पष्ट उल्लेख है | शतपथ में अश्व शब्द राष्ट्र या साम्राज्य के लिए आया है | मेध अर्थ वध नहीं होता | मेध शब्द बुद्धिपूर्वक किये गए कर्म को व्यक्त करता है | प्रकारांतर से उसका अर्थ मनुष्यों में संगतीकरण का भी है |  जैसा कि मेध शब्द के धातु (मूल ) मेधृ -सं -ग -मे के अर्थ से स्पष्ट होता है |

राष्ट्रं  वा  अश्वमेध:
अन्नं  हि  गौ:
अग्निर्वा  अश्व:
आज्यं  मेधा:
(शतपथ १३।१।६।३)
स्वामी  दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं :-
राष्ट्र या साम्राज्य के वैभव, कल्याण और समृद्धि के लिए समर्पित यज्ञ ही अश्वमेध यज्ञ है |  गौ शब्द का अर्थ पृथ्वी भी है | पृथ्वी तथा पर्यावरण की शुद्धता के लिए समर्पित यज्ञ गौमेध कहलाता है | ” अन्न, इन्द्रियाँ,किरण,पृथ्वी, आदि को पवित्र रखना गोमेध |”  ” जब मनुष्य मर जाय, तब उसके शरीर का विधिपूर्वक दाह करना नरमेध कहाता है | ”

३. गौ – मांस का निषेध
वेदों  में पशुओं की हत्या का  विरोध तो है ही बल्कि गौ- हत्या पर तो तीव्र आपत्ति करते हुए उसे निषिद्ध माना गया है | यजुर्वेद में गाय को जीवनदायी पोषण दाता मानते हुए गौ हत्या को वर्जित किया गया है |
घृतं दुहानामदितिं जनायाग्ने  मा हिंसी:
यजुर्वेद १३।४९
सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल को मत मार |

आरे  गोहा नृहा  वधो  वो  अस्तु
ऋग्वेद  ७ ।५६।१७
ऋग्वेद गौ- हत्या को जघन्य अपराध घोषित करते हुए मनुष्य हत्या के तुल्य मानता है और ऐसा महापाप करने वाले के लिये दण्ड का विधान करता है |

सूयवसाद  भगवती  हि  भूया  अथो  वयं  भगवन्तः  स्याम
अद्धि  तर्णमघ्न्ये  विश्वदानीं  पिब  शुद्धमुदकमाचरन्ती
ऋग्वेद १।१६४।४०
अघ्न्या गौ- जो किसी भी अवस्था में नहीं मारने योग्य हैं, हरी घास और शुद्ध जल के सेवन से स्वस्थ  रहें जिससे कि हम उत्तम सद् गुण,ज्ञान और ऐश्वर्य से युक्त हों |वैदिक कोष निघण्टु में गौ या गाय के पर्यायवाची शब्दों में अघ्न्या, अहि- और अदिति का भी समावेश है | निघण्टु के भाष्यकार यास्क इनकी व्याख्या में कहते हैं -अघ्न्या – जिसे कभी न मारना चाहिए | अहि – जिसका कदापि वध नहीं होना चाहिए | अदिति – जिसके खंड नहीं करने चाहिए | इन तीन शब्दों से यह भलीभांति विदित होता है कि गाय को किसी भी प्रकार से पीड़ित नहीं करना चाहिए | प्रायवेदों में गाय इन्हीं नामों से पुकारी गई है |

अघ्न्येयं  सा  वर्द्धतां  महते  सौभगाय
ऋग्वेद १ ।१६४।२७
अघ्न्या गौ-  हमारे लिये आरोग्य एवं सौभाग्य लाती हैं |

सुप्रपाणं  भवत्वघ्न्याभ्य:
ऋग्वेद ५।८३।८
अघ्न्या गौ के लिए शुद्ध जल अति उत्तमता से उपलब्ध हो |

यः  पौरुषेयेण  क्रविषा  समङ्क्ते  यो  अश्व्येन  पशुना  यातुधानः
यो  अघ्न्याया  भरति  क्षीरमग्ने  तेषां  शीर्षाणि  हरसापि  वृश्च
ऋग्वेद १०।८७।१६
मनुष्य, अश्व या अन्य पशुओं के मांस से पेट भरने वाले तथा दूध देने वाली अघ्न्या गायों का विनाश करने वालों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए |

विमुच्यध्वमघ्न्या देवयाना अगन्म
यजुर्वेद १२।७३
अघ्न्या गाय और बैल तुम्हें समृद्धि प्रदान करते हैं |

मा गामनागामदितिं  वधिष्ट
ऋग्वेद  ८।१०१।१५
गाय को मत मारो | गाय निष्पाप और अदिति – अखंडनीया है  |

अन्तकाय  गोघातं
यजुर्वेद ३०।१८
गौ हत्यारे का संहार किया जाये |

यदि  नो  गां हंसि यद्यश्वम् यदि  पूरुषं
तं  त्वा  सीसेन  विध्यामो  यथा  नो  सो  अवीरहा
अर्थववेद १।१६।४
यदि कोई हमारे गाय,घोड़े और पुरुषों की हत्या करता है, तो उसे सीसे की गोली से उड़ा दो |

वत्सं  जातमिवाघ्न्या
अथर्ववेद ३।३०।१
आपस में उसी प्रकार प्रेम करो, जैसे अघ्न्या – कभी न मारने योग्य गाय – अपने बछड़े से करती है |

धेनुं  सदनं  रयीणाम्
अथर्ववेद ११।१।४
गाय सभी ऐश्वर्यों का उद्गम है |

ऋग्वेद के ६ वें मंडल का सम्पूर्ण २८ वां सूक्त गाय की महिमा बखान रहा है –
१.आ  गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु
प्रत्येक जन यह सुनिश्चित करें कि गौएँ यातनाओं से दूर तथा स्वस्थ रहें |

२.भूयोभूयो  रयिमिदस्य  वर्धयन्नभिन्ने
गाय की  देख-भाल करने वाले को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है |


३.न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति
गाय पर शत्रु भी शस्त्र  का प्रयोग न करें |

४. न ता अर्वा रेनुककाटो अश्नुते न संस्कृत्रमुप यन्ति ता अभि
कोइ भी गाय का वध न करे  |

५.गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन्
गाय बल और समृद्धि  लातीं  हैं |

६. यूयं गावो मेदयथा
गाय यदि स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगी  तो पुरुष और स्त्रियाँ भी निरोग और समृद्ध होंगे |

७. मा वः स्तेन ईशत माघशंस:
गाय हरी घास और शुद्ध जल क सेवन करें | वे मारी न जाएं और हमारे लिए समृद्धि लायें |

वेदों में मात्र गाय ही नहीं  बल्कि प्रत्येक प्राणी के लिए प्रद्रर्शित उच्च भावना को समझने  के लिए और  कितने प्रमाण दिएं जाएं ? प्रस्तुत प्रमाणों से सुविज्ञ पाठक स्वयं यह निर्णय कर सकते हैं कि वेद किसी भी प्रकार कि  अमानवीयता के सर्वथा ख़िलाफ़ हैं और जिस में गौ – वध तथा गौ- मांस का तो पूर्णत: निषेध है |

वेदों में गौ मांस का कहीं कोई विधान नहीं  है |


संदर्भ ग्रंथ सूची -
१.ऋग्वेद भाष्य – स्वामी दयानंद सरस्वती
२.यजुर्वेद भाष्य -स्वामी दयानंद सरस्वती
३.No Beef in Vedas -B D Ukhul
४.वेदों का यथार्थ स्वरुप – पंडित धर्मदेव विद्यावाचस्पति
५.चारों वेद संहिता – पंडित दामोदर सातवलेकर
६. प्राचीन भारत में गौ मांस – एक समीक्षा – गीता प्रेस,गोरखपुर
७.The Myth of Holy Cow – D N Jha
८. Hymns of Atharvaveda – Griffith
९.Scared Book of the East – Max Muller
१०.Rigved Translations – Williams\ Jones
११.Sanskrit – English Dictionary – Moniar Williams
१२.वेद – भाष्य – दयानंद संस्थान
१३.Western Indologists – A Study of Motives – Pt.Bhagavadutt
१४.सत्यार्थ प्रकाश – स्वामी दयानंद सरस्वती
१५.ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका – स्वामी दयानंद सरस्वती
१६.Cloud over Understanding of Vedas – B D Ukhul
१७.शतपथ ब्राहमण
१८.निरुक्त – यास्काचार्य
१९. धातुपाठ – पाणिनि

परिशिष्ट, १४ अप्रैल २०१०
इस लेख के पश्चात् उन विभिन्न स्रोतों से तीखी प्रतिक्रिया हुई जिनके गले से यह सच्चाई नहीं उतर सकती कि हमारे वेद और राष्ट्र की प्राचीन संस्कृति अधिक आदर्शस्वरूप हैं बनिस्पत उनकी आधुनिक साम्यवादी विचारधारा के | मुझे कई मेल प्राप्त हुए जिनमें इस लेख को झुठलाने के प्रयास में अतिरिक्त हवाले देकर गोमांस का समर्थन दिखाया गया है | जिनमें ऋग्वेद से २ मंत्र ,मनुस्मृति के कुछ श्लोक तथा कुछ अन्य उद्धरण दिए गए हैं | जिसका एक उदाहरण यहाँ अवतार गिल की टिप्पणी है | इस बारे में मैं निम्न बातें कहना चाहूंगा –
a. लेख में प्रस्तुत मनुस्मृति के साक्ष्य में वध की अनुमति देने वाले तक को हत्यारा कहा गया है | अतः यह सभी अतिरिक्त श्लोक मनुस्मृति में प्रक्षेपित ( मिलावट किये गए) हैं या इनके अर्थ को बिगाड़ कर गलत रूप में प्रस्तुत किया गया है | मैं उन्हें डा. सुरेन्द्र कुमार द्वारा भाष्य की गयी मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दूंगा | जो http : // vedicbooks.com पर उपलब्ध है |

b. प्राचीन साहित्य में गोमांस को सिद्ध करने के उनके अड़ियल रवैये के कपट का एक प्रतीक यह है कि वह मांस शब्द का अर्थ हमेशा मीट (गोश्त) के संदर्भ में ही लेते हैं | दरअसल, मांस शब्द की परिभाषा किसी भी गूदेदार वस्तु के रूप में की जाती है | मीट को मांस कहा जाता है क्योंकि वह गूदेदार होता है | इसी से, केवल मांस शब्द के प्रयोग को देखकर ही मीट नहीं समझा जा सकता |

c. उनके द्वारा प्रस्तुत अन्य उद्धरण संदेहास्पद एवं लचर हैं जो प्रमाण नहीं माने जा सकते | उनका तरीका बहुत आसान है – संस्कृत में लिखित किसी भी वचन को धर्म के रूप में प्रतिपादित करके मन माफ़िक अर्थ किये जाएं | इसी तरह, वे हमारी पाठ्य पुस्तकों में अनर्गल अपमानजनक दावों को भरकर मूर्ख बनाते आ रहें हैं |वेदों से संबंधित जिन दो मंत्रों को प्रस्तुत कर वे गोमांस भक्षण को सिद्ध मान रहे हैं, आइए उनकी पड़ताल करें

दावा:- ऋग्वेद (१०/८५/१३) कहता है -” कन्या के विवाह अवसर पर गाय और बैल का वध किया जाए | ”

तथ्य : – मंत्र में बताया गया है कि शीत ऋतु में मद्धिम हो चुकी सूर्य किरणें पुनः वसंत ऋतु में प्रखर हो जाती हैं | यहां सूर्य -किरणों के लिए प्रयुक्त शब्द  ’गो’ है, जिसका एक अर्थ ‘गाय’ भी होता है | और इसीलिए मंत्र का अर्थ करते समय सूर्य – किरणों के बजाये गाय को विषय रूप में लेकर भी किया जा सकता है | ‘मद्धिम’ को सूचित करने के लिए ‘हन्यते’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका मतलब हत्या भी हो सकता है | परन्तु यदि ऐसा मान भी लें, तब भी मंत्र की अगली पंक्ति (जिसका अनुवाद जानबूझ कर छोड़ा गया है)  कहती है कि  -वसंत ऋतु में वे अपने वास्तविक स्वरुप को पुनः प्राप्त होती हैं | भला सर्दियों में मारी गई गाय दोबारा वसंत ऋतु में पुष्ट कैसे हो सकती है ? इस से भली प्रकार सिद्ध हो रहा है कि ज्ञान से कोरे कम्युनिस्ट किस प्रकार वेदों के साथ पक्षपात कर कलंकित करते हैं |

दावा :- ऋग्वेद (६/१७/१) का कथन है, ” इन्द्र गाय, बछड़े, घोड़े और भैंस का मांस खाया करते थे |”

तथ्य :- मंत्र में वर्णन है कि प्रतिभाशाली विद्वान, यज्ञ की अग्नि को प्रज्वलित करने वाली समिधा की भांति विश्व को दीप्तिमान कर देते हैं | अवतार गिल और उनके मित्रों को इस में इन्द्र,गाय,बछड़ा, घोड़ा और भैंस कहां से मिल गए,यह मेरी समझ से बाहर है | संक्षेप में, मैं अपनी इस प्रतिज्ञा पर दृढ़ हूँ कि वेदों में गोमांस भक्षण का समर्थक एक भी मंत्र प्रमाणित करने पर मैं हर उस मार्ग को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ जो मेरे लिए नियत किया जाएगा अन्यथा वे वेदों की ओर वापिस लौटें |

Friday, December 9, 2011

हम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी





एक पुरानी कविता :


हम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी  
अजी रहने दो बातें बिन बात की


सहर ने शफक  से ठिठोली करी है
शिकायत अंधेरों को इस बात की


खयालों के तूफाँ तो थमने लगे हैं
लहर कोई डूबी थी जज़्बात की


उजालों से ऊँचे हम उड़ने लगे थे 
कहाँ थी ख़बर अपनी औक़ात की


मन सोया जहाँ था वहीँ उठ गया है
शिकन न थी बिस्तर पे कल रात की


मुसलसल वो आया गली में हमारी 
पर नदी बह रही थी इक हालात की


गुबारों से कितने परेशाँ हुए तुम
क्यूँ भूले वो ताज़ी हवा साथ की


'न जी भर के देखा न कुछ बात की'
इसी धुन पर इसे गाने की कोशिश की है..सुन लीजियेगा...



मुसलसल= लगातार
गुबारों=धूल भरी आँधी
सहर=सुबह
शफक =सवेरे की लालिमा


Wednesday, December 7, 2011

तन्हाई, रात, बिस्तर, चादर और कुछ चेहरे.....






तन्हाई, रात, 
बिस्तर, चादर
और कुछ चेहरे,
खींच कर चादर
अपनी आँखों पर
ख़ुद को बुला लेती हूँ
ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी 
और ख्यालों से 
दोस्ती 
जिनके हाथ थामते ही 
तैर जाते हैं
कागज़ी पैरहन में 
भीगे हुए से, कुछ रिश्ते
रंग उनके
बिलकुल साफ़ नज़र 
आते हैं,
तब मैं औंधे मुँह 
तकिये पर न जाने कितने 
हर्फ़ उकेर देती हूँ
जो सुबह की 
रौशनी में
धब्बे से बन जाते हैं....

Thursday, December 1, 2011

वेदों में नारी....

प्रस्तुत आलेख निम्नलिखित ब्लॉग से लिया गया है....

http://agniveer.com/6001/women-in-vedas-hi/

वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं| वेदों में स्त्रियों की शिक्षा- दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य किसी धर्मग्रंथ में नहीं है| वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं|
वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय| वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख – समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं|
वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है – उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है| वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी| जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी| कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं|
अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं – अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि |
तथापि, जिन्होनें वेदों के दर्शन भी नहीं किए, ऐसे कुछ रीढ़ की हड्डी विहीन बुद्धिवादियों ने इस देश की सभ्यता, संस्कृति को नष्ट – भ्रष्ट करने का जो अभियान चला रखा है – उसके तहत वेदों में नारी की अवमानना का ढ़ोल पीटते रहते हैं |
आइए, वेदों में नारी के स्वरुप की झलक इन मंत्रों में देखें -

अथर्ववेद ११.५.१८
ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है |  यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है |
कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें |

अथर्ववेद १४.१.६
माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें | वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें |
जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने – कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे |

अथर्ववेद १४.१.२०
हे पत्नी !  हमें ज्ञान का उपदेश कर |
वधू अपनी विद्वत्ता और शुभ गुणों से पति के घर में सब को प्रसन्न कर दे |

अथर्ववेद ७.४६.३
पति को संपत्ति कमाने के तरीके बता |
संतानों को पालने वाली, निश्चित ज्ञान वाली, सह्त्रों स्तुति वाली और चारों ओर प्रभाव डालने वाली स्त्री, तुम ऐश्वर्य पाती हो | हे सुयोग्य पति की पत्नी, अपने पति को संपत्ति के लिए आगे बढ़ाओ |

अथर्ववेद ७.४७.१
हे स्त्री ! तुम सभी कर्मों को जानती हो |
हे स्त्री !  तुम हमें ऐश्वर्य और समृद्धि दो |

अथर्ववेद ७.४७.२
तुम सब कुछ जानने वाली हमें धन – धान्य से समर्थ कर दो |
हे स्त्री ! तुम हमारे धन और समृद्धि को बढ़ाओ |

अथर्ववेद ७.४८.२
तुम हमें बुद्धि से धन दो |
विदुषी, सम्माननीय, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी संपत्ति की रक्षा और वृद्धि करती है और घर में सुख़ लाती है |

अथर्ववेद १४.१.६४
हे स्त्री ! तुम हमारे घर की प्रत्येक दिशा में ब्रह्म अर्थात् वैदिक ज्ञान का प्रयोग करो |
हे वधू ! विद्वानों के घर में पहुंच कर कल्याणकारिणी और सुखदायिनी होकर तुम विराजमान हो |

अथर्ववेद २.३६.५
हे वधू ! तुम ऐश्वर्य की नौका पर चढ़ो और अपने पति को जो कि तुमने स्वयं पसंद किया है, संसार – सागर के पार पहुंचा दो |
हे वधू ! ऐश्वर्य कि अटूट नाव पर चढ़ और अपने पति को सफ़लता के तट पर ले चल |

अथर्ववेद १.१४.३
हे वर ! यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है |
हे वर !  यह कन्या तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है | यह बहुत काल तक तुम्हारे घर में निवास करे और बुद्धिमत्ता के बीज बोये |

अथर्ववेद २.३६.३
यह वधू पति के घर जा कर रानी बने और वहां प्रकाशित हो |

अथर्ववेद ११.१.१७
ये स्त्रियां शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय ( यज्ञ समान पूजनीय ) हैं, ये प्रजा, पशु और अन्न देतीं हैं |
यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र आचरण वाली, पूजनीय, सेवा योग्य, शुभ चरित्र वाली और विद्वत्तापूर्ण हैं | यह समाज को प्रजा, पशु और सुख़ पहुँचाती हैं |

अथर्ववेद १२.१.२५
हे मातृभूमि ! कन्याओं में जो तेज होता है, वह हमें दो |
स्त्रियों में जो सेवनीय ऐश्वर्य और कांति है, हे भूमि ! उस के साथ हमें भी मिला |

अथर्ववेद  १२.२.३१
स्त्रियां कभी दुख से रोयें नहीं, इन्हें निरोग रखा जाए और रत्न, आभूषण इत्यादि पहनने को दिए जाएं |

अथर्ववेद १४.१.२०
हे वधू ! तुम पति के घर में जा कर गृहपत्नी और सब को वश में रखने वाली बनों |

अथर्ववेद १४.१.५०
हे पत्नी ! अपने सौभाग्य के लिए मैं तेरा हाथ पकड़ता हूं |

अथर्ववेद १४.२ .२६
हे वधू ! तुम कल्याण करने वाली हो और घरों को उद्देश्य तक पहुंचाने वाली हो |

अथर्ववेद  १४.२.७१
हे पत्नी ! मैं ज्ञानवान हूं तू भी ज्ञानवती है, मैं सामवेद हूं तो तू ऋग्वेद है |

अथर्ववेद १४.२.७४
यह वधू विराट अर्थात् चमकने वाली है, इस ने सब को जीत लिया है |
यह वधू बड़े ऐश्वर्य वाली और पुरुषार्थिनी हो |

अथर्ववेद  ७.३८.४ और १२.३.५२
सभा और समिति में जा कर स्त्रियां भाग लें और अपने विचार प्रकट करें |

ऋग्वेद १०.८५.७
माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल उपहार में दें | माता- पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो |

ऋग्वेद ३.३१.१
पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है |

ऋग्वेद   १० .१ .५९
एक गृहपत्नी प्रात :  काल उठते ही अपने उद् गार  कहती है -
” यह सूर्य उदय हुआ है, इस के साथ ही मेरा सौभाग्य भी ऊँचा चढ़ निकला है |  मैं अपने घर और समाज की ध्वजा हूं , उस की मस्तक हूं  | मैं भारी व्यख्यात्री हूं | मेरे पुत्र  शत्रु -विजयी हैं | मेरी पुत्री संसार में चमकती है | मैं स्वयं दुश्मनों को जीतने वाली हूं | मेरे पति का असीम यश है |  मैंने  वह  त्याग किया है जिससे इन्द्र (सम्राट ) विजय पता है |  मुझेभी विजय मिली है | मैंने अपने शत्रु  नि:शेष कर दिए हैं | ”
वह सूर्य ऊपर आ गया है और मेरा सौभाग्य भी ऊँचा हो गया है  | मैं जानती हूं , अपने प्रतिस्पर्धियों को जीतकर  मैंने पति के प्रेम को फ़िर से पा लिया है |
मैं प्रतीक हूं , मैं शिर हूं , मैं सबसे प्रमुख  हूं और अब मैं कहती हूं कि  मेरी इच्छा के अनुसार ही मेरा पति आचरण करे |   प्रतिस्पर्धी मेरा कोई नहीं है |
मेरे पुत्र मेरे शत्रुओं को नष्ट करने वाले हैं , मेरी पुत्री रानी है , मैं विजयशील हूं  | मेरे और मेरे पति के प्रेम की व्यापक प्रसिद्धि है |
ओ प्रबुद्ध  ! मैंने उस अर्ध्य को अर्पण किया है , जो सबसे अधिक उदाहरणीय है और इस तरह मैं सबसे अधिक प्रसिद्ध और सामर्थ्यवान हो गई हूं  | मैंने स्वयं को  अपने प्रतिस्पर्धियों से मुक्त कर लिया है |
मैं प्रतिस्पर्धियों से मुक्त हो कर, अब प्रतिस्पर्धियों की विध्वंसक हूं और विजेता हूं  | मैंने दूसरों का वैभव ऐसे हर लिया है जैसे की वह न टिक पाने वाले कमजोर बांध हों | मैंने मेरे प्रतिस्पर्धियों पर विजय प्राप्त कर ली है | जिससे मैं इस नायक और उस की प्रजा पर यथेष्ट शासन चला सकती हूं  |
इस मंत्र की ऋषिका और देवता दोनों हो शची हैं  | शची  इन्द्राणी है, शची  स्वयं में राज्य की सम्राज्ञी है ( जैसे कि कोई महिला प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष हो ) | उस के पुत्र – पुत्री भी राज्य के लिए समर्पित हैं |

ऋग्वेद  १.१६४.४१
ऐसे निर्मल मन वाली स्त्री जिसका मन एक पारदर्शी स्फटिक जैसे परिशुद्ध जल की तरह हो वह एक वेद,  दो वेद या चार वेद , आयुर्वेद, धनुर्वेद, गांधर्ववेद , अर्थवेद इत्यादि के साथ ही छ वेदांगों – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छंद : को प्राप्त करे और इस वैविध्यपूर्ण  ज्ञान को अन्यों को भी दे |
हे स्त्री पुरुषों ! जो एक वेद का अभ्यास करने वाली वा दो वेद जिसने अभ्यास किए वा चार वेदों  की पढ़ने वाली वा चार वेद  और चार उपवेदों की शिक्षा से युक्त वा चार वेद, चार उपवेद और व्याकरण आदि  शिक्षा युक्त, अतिशय कर के  विद्याओं  में प्रसिद्ध होती और असंख्यात अक्षरों वाली होती हुई सब से उत्तम, आकाश के समान व्याप्त निश्चल परमात्मा के निमित्त प्रयत्न करती है और गौ स्वर्ण  युक्त विदुषी स्त्रियों को शब्द कराती अर्थात् जल के समान निर्मल वचनों को छांटती अर्थात् अविद्यादी दोषों को अलग करती हुई वह संसार के लिए अत्यंत सुख करने वाली होती है |

ऋग्वेद     १०.८५.४६
स्त्री को परिवार और पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका में चित्रित किया गया है | इसी तरह, वेद स्त्री की सामाजिक, प्रशासकीय और राष्ट्र की सम्राज्ञी के रूप का वर्णन भी करते हैं |
ऋग्वेद  के कई सूक्त उषा का देवता के रूप में वर्णन करते हैं और इस उषा को एक आदर्श स्त्री के रूप में माना गया है | कृपया पं श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा लिखित  ” उषा देवता “,  ऋग्वेद का सुबोध भाष्य  देखें |
सारांश   (पृ १२१ – १४७ ) -
१. स्त्रियां  वीर हों | (  पृ १२२, १२८)
२. स्त्रियां सुविज्ञ हों | ( पृ १२२)
३. स्त्रियां यशस्वी हों | (पृ   १२३)
४. स्त्रियां रथ पर सवारी करें |  ( पृ  १२३)
५. स्त्रियां विदुषी हों | (  पृ १२३)
६. स्त्रियां संपदा शाली  और धनाढ्य हों | ( पृ  १२५)
७.स्त्रियां बुद्धिमती और ज्ञानवती हों |  ( पृ  १२६)
८. स्त्रियां परिवार ,समाज की रक्षक हों और सेना में जाएं | (पृ   १३४, १३६ )
९. स्त्रियां तेजोमयी हों |  ( पृ  १३७)
१०.स्त्रियां धन-धान्य और वैभव देने वाली हों |  ( पृ   १४१-१४६)

यजुर्वेद २०.९
स्त्री  और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है |

यजुर्वेद १७.४५
स्त्रियों की भी सेना हो | स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें |

यजुर्वेद १०.२६
शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें | जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं  वैसे ही रानी भी  न्याय करने वाली हों |

संदर्भ सूची :  
  1. मेरा धर्म,  प्रियव्रत वेदवाचस्पतिप्रकाशन  मंदिर , गुरुकुल  कांगड़ी विश्विद्यालय , हरिद्वार 
  2. Book: Rgveda Samhita, Vol XIII, Swami Satya Prakash Saraswati & Satyakam Vidyalankar,Ved Pratishthana, New Delhi
  3. उषा  देवता ”  ऋग्वेद  का  सुबोध  भाष्यपं  श्री पाद दामोदर सातवलेकरस्वाध्याय मंडल, औंध 
  4. अथर्ववेद-हिंदी भाष्य भाग १ – २, क्षेमकरणदास त्रिवेदी, सार्वदेशिक आर्य  प्रतिनिधि  सभा, दिल्ली 
  5. अथर्ववेद का सुबोध  भाष्य  ( अध्याय ७ -१०) श्रीपाद दामोदर सातवलेकर
  6. ऋग्वेद भाष्यम, भाग III , स्वामी दयानंद सरस्वती , वैदिक यन्त्रालय
  7. वागंभृणीय, डा. प्रियंवदा वेदभार

अनुवादक- आर्यबाला