Sunday, April 29, 2012

ये कैसी नौकरी है जहाँ हर दिन की शुरुआत ही झूठ और फरेब से होती है....

कॉल सेण्टर में काम करने वाली एक नई युवा पीढ़ी की खेप की बाढ़ इन दिनों पूरे देश में आई हुई है ....पश्चिम के सुर में सुर मिलाते हुए और अंग्रेजियत का लबादा ओढ़े हुए कुछ ज्यादा ही अंग्रेज, ये नस्ल अपनी पहचान को खोने में कितनी आतुर नज़र आती  है, देख कर हैरानी होती है....किसी भी कॉल सेण्टर का माहौल बड़ा ही अजीब सा होता है ...जहाँ अंग्रेजियत की बनावटी हवा में देशी पसीने की गंध सब कुछ गडमड करती हुई लगती है....सीधी सी एक कहावत याद आती है ...न घर के न घाट के...ये कैसी नौकरी है जहाँ हर दिन की शुरुआत ही झूठ और फरेब से होती है....

Hello Sir...my name is Mark or Michell or Suzi or John,  calling from New york or Boston or Washington  ...you see sir we are a company giving you best rate for .....blah ..blah..blah...

बेशक नेपथ्य में देशी ठहाके चल रहे हों...कॉल सेण्टर की अपनी ही एक संस्कृति बनती जा रही है...नवजवानों का रात भर काम करना..और जो वो नहीं है...खुद को मान लेना, छद्म  जीवन जीना..
हैरानी की बात यह है कि कोई इस बात पर ध्यान नहीं दे रहा है, कि ये वेदेशी कंपनियां...अपने बिजनेस के लिए हमारी युवा पीढ़ी को एक ऐसा जीवन दे रही है जिसका कोई भविष्य नहीं है....
इस नौकरी में अच्छे पैसे मिलते हैं...इसलिए बच्चे १०-१२ वीं की पढ़ाई करके पैसा कमाने चले जाते हैं....२०,०००-३०,००० हज़ार रुपैये हर महीने कमाते देख माँ-बाप भी खुश और बच्चे भी खुश...आसान काम,
आसान पैसा...
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इस पीढ़ी का भविष्य क्या होगा ...जब इनकी उम्र ४०-५०-६० वर्ष की होगी तो ये क्या करेंगे ? कॉल सेण्टर इनको रखेगा नहीं....qualification इनके पास होगी नहीं ...और दूसरा काम ना जानते हैं, न ये कर पायेंगे...और तब एक दूसरी ही खेप तैयार हो जायेगी...
 
है न सोचने वाली बात ? तो सोचिये....ये विदेशी कंपनियां और कॉल सेंटर्स तो जम कर पैसा कमा रहीं है ...लेकिन साथ ही लगा रहीं हैं वाट हमारी भावी पीढ़ी को....इतनी तादाद में बच्चे इस आसान से फरेबी,  ग्लैमर और न जाने क्या-क्या से अटे से काम में लगे हुए हैं....कल देश में जब सही लोगों की और सही शिल्प की ज़रुरत होगी तो लोग कहाँ से आयेंगे ???... और उससे भी बड़ी बात ये कॉल सेण्टर आज हैं कल ये विदेशी कंपनी इसे उठा कर अपने देश में भी तो ले जा सकते हैं ..फिर का होगा बबुआ...!!!

हाँ नहीं तो..!!

कभी अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो...

कुछ नया नहीं लिख पाई हूँ...ये पुरानी पोस्ट है,  मुझे पसंद है...
कविताओं के साथ एक बड़ी समस्या है, लोग फटा-फट सोचने/पूछने लगते हैं..किस पर लिखा है :)
इससे पाहिले कि कोई सोचे/पूछे हम पहिले ही पाठकगणों को बताय देना चाहते हैं...कोई भी इसे अपने ऊपर चिपका कर खामखाह खुस होने की कोसिस न करे, न ही ये सोचे अरे ई ज़रूर फलनवा के लिए लिखा होगा....हाँ नहीं तो..!!

तुम्हें रस्म-ऐ-उल्फत निभानी पड़ेगी,
मुझे अपने दिल से मिटा कर तो देखो

तुम्हें लौट कर फिर से आना ही होगा
मेरे दर से इक बार जाकर तो देखो ।

ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,

चलो आईने से ज़रा मुँह को मोड़े ,
नज़र में मेरी समा कर तो देखो

तेरे गीत पल-पल मैं गाती रही हूँ,
मेरा गीत तुम गुनगुना कर तो देखो

मैं गुज़रा हुआ इक फ़साना नहीं हूँ
मुझे तुम हकीक़त बना कर तो देखो

तू तक़दीर की जब जगह ले चुका है
मुझे अपनी क़िस्मत बना कर तो देखो

तेरे-मेरे दिल में जो मसला हुआ है,
ये मसला कभी तुम मिटा कर तो देखो

बड़ी देर से तुझपे आँखें टिकी है,
कभी अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो

भरोसा दिलाया है जी भर के तुमको
खड़ी है 'अदा' आज़मा कर तो देखो

बस एक धुन ली और गाने की कोशिश की है....

Saturday, April 28, 2012

दुल्हन में वो दुल्हनियत नहीं थी...

एक शादी में जाना हुआ था इंडिया में, सब कुछ बहुत भव्य था, साज-सिंगार, खान-पान एक से बढ़ कर एक....शादी के कार्ड  से लेकर विवाह समारोह भव्यता का हर रंग लिए हुए...लेकिन एक कमी बहुत ज्यादा महसूस हुई.... दुल्हन में वो दुल्हनियत नहीं थी...
अब हम डिक्लेयर्ड बुजुर्ग हैं...इसलिए अब तो हम ई सब बात कह ही  सकते हैं...दुल्हन का चकर-मकर देखना , ठहाके लगा कर हँसना, दुल्हे से लिपटना-चिपटना...सबको आखें फाड़-फाड़ कर देखना ...अपनी ही शादी में सबसे ज्यादा नाचना....हमको तो अच्छा नहीं लगा...बाकी आप लोग जाने...

कांफिडेंस (आत्मविश्वास) और बिंदासपने में फर्क तो होता ही होगा...
अगर हम दूल्हा होते तो, हमको छुई-मुई, लजाई सी दुल्हन ही पसंद आती, हंटरवाली दुल्हन हमको नहीं भाती...
आस पास देखने से भी अब लगने लगा है, लड़कियों में भी लड़कियों के गुण कम होने लगे हैं, पुरुषों से टक्कर लेते-लेते नारी सुलभ गुण ही कहीं गायब न हो जाए बालिकाओं में, लेकिन हमरे बोलने से का होता है...जो होना है ऊ तो होगा ही...बाकी आपलोग हो जाइए शुरू....हम तैयार हैं झेलने के लिए...अभी तक नारी ही जो हैं हम...

हाँ नहीं तो...!!

तेरी आँखों के सिवा दुनिया में..

Friday, April 27, 2012

फ्लर्टियालोजी.... हाँ....नहीं.......तो !!

अगर ऑफिस में कोई पुरुष, आपसे फ्लर्ट कर रहा है, तो इस बात की पक्की गारंटी है कि, वो महाशय या तो अपना काम ही नहीं जानते, या वो अपने काम से संतुष्ट नहीं हैं, या फिर वो अपने काम से बहुत बोर हो चुके हैं....जिनको अपना काम ही नहीं आता, फ्लर्ट करना ऐसे लोगों की चाल होती है, जिससे सहकर्मियों का ध्यान कहीं और ही लगा रहे,  उनके परफोर्मेंस पर न जाए...जो अपने काम से असंतुष्ट या बोर हो चुके होते हैं, वो अपनी बोरियत दूर करने के लिए, फ्लर्ट करते हैं...
ब्रिटेन के सर्रे विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों की एक टीम ने करीब 200 लोगों का सर्वेक्षण करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है...
फॉलोअप शोध से यह भी पता चला है कि, ऑफिस में फ्लर्ट करने वाले पुरुषों में ‘इमोशनल इंटेलिजेंस’ की बहुत कमी होती है और वे दूसरों की भावनाओं को भी बहुत कम समझते हैं.

उसी शोध के मुताबिक़, जो महिलाएं ऑफिस में काम के वक्त फ्लर्ट करती हैं,  वो अपने काम से बहुत खुश होती हैं...
तो लगे हाथों खुद पर या अपने आस-पास एक नज़र डाल ही लीजिये...
कौन सी कटेगोरी नज़र आई आपको...???? :):)
हाँ....नहीं.......तो !!



इत्थे 'अदा' दी आवाज़ है जी...:)

Thursday, April 26, 2012

पाकिस्तान में प्राथमिक स्कूल के सिलेबस....

चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं, पाकिस्तान में प्राथमिक स्कूल के सिलेबस में, भारत, हिन्दुओं और गैर मुसलामानों के खिलाफ शिक्षा देने की बात सामने आई है, जो धीरे-धीरे पाकिस्तानी बच्चों में भारत, हिन्दुओं और गैर मुसलामानों के खिलाफ नफ़रत में बदल रही है...इस तथ्य का पता अमेरिकी सरकार आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट से चला है...

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, देश के स्कूल पाठ्यक्रम में हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ स्कूली बच्चों के बीच असहिष्णुता और घृणा को बढ़ावा देने वाले आलेख हैं..

रिपोर्ट
में इस बात की भी पुष्टि की गयी है, जो अमेरिकी आयोग द्वारा एक अध्ययन पर आधारित और तैयार किया गया हैं, कि पाकिस्तान के ज्यादातर शिक्षकों का मानना ​​है, गैर-मुसलमान  इस्लाम के दुश्मन हैं.

लियोनार्ड लियो, अमेरिकी आयोग के अध्यक्ष ने कहा.", शिक्षण में इस तरह के भेदभाव के होने से, पाकिस्तान में हिंसक, धार्मिक अतिवाद के और बढ़ने की संभावना है, जिससे पकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता कमज़ोर पड़ेगी और जो आगे चल कर क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक सुरक्षा को अस्थिर कर सकती है"

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पकिस्तान की यह नीति
अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में, पाकिस्तान की छवि पर भारी खरोंच लगा सकती है...


यशवंतराव होलकर...इतिहास के पन्नों में वो कहीं खोया हुआ है...(लगता है, पिछली पोस्ट में गलती से मिश्टेक हो गया है... गलत गाना लग गया था...ये रहा..जब से तेरे नयना मेरे नयनों से लागे रे... आवाज़ 'अदा' की... )


एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजों में साफ-साफ दिखता था। एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। एक ऐसा शासक, जिसे अपनों ने ही बार-बार धोखा दिया, फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नहीं हारी।

इतना महान था वो भारतीय शासक, फिर भी इतिहास के पन्नों में वो कहीं खोया हुआ है। उसके बारे में आज भी बहुत लोगों को जानकारी नहीं है। उसका नाम आज भी लोगों के लिए अनजान है। उस महान शासक का नाम है - यशवंतराव होलकर। यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है, जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन एस इनामदार ने 'नेपोलियन' से की है।

पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासत के महाराज यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान महाराणा प्रताप और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कहीं कम नहीं है। यशवतंराव होलकर का जन्म 1776 ई. में हुआ। इनके पिता थे - तुकोजीराव होलकर। होलकर साम्राज्य के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्वालियर के शासक दौलतराव सिंधिया ने यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मौत की नींद सुला दिया।

इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था। उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया। इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया। ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1802 ई. में इन्होंने पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गए।

इस दौरान अंग्रेज भारत में तेजी से अपने पांव पसार रहे थे। यशवंत राव के सामने एक नई चुनौती सामने आ चुकी थी। भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना। इसके लिए उन्हें अन्य भारतीय शासकों की सहायता की जरूरत थी। वे अंग्रेजों के बढ़ते साम्राज्य को रोक देना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने नागपुर के भोंसले और ग्वालियर के सिंधिया से एकबार फिर हाथ मिलाया और अंग्रेजों को खदेड़ने की ठानी। लेकिन पुरानी दुश्मनी के कारण भोंसले और सिंधिया ने उन्हें फिर धोखा दिया और यशवंतराव एक बार फिर अकेले पड़ गए।

उन्होंने अन्य शासकों से एकबार फिर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजों को छठी का दूध याद दिलाने की ठानी। 8 जून 1804 ई. को उन्होंने अंग्रेजों की सेना को धूल चटाई। फिर 8 जुलाई, 1804 ई. में कोटा से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया।

11 सितंबर, 1804 ई. को अंग्रेज जनरल वेलेस्ले ने लॉर्ड ल्युक को लिखा कि यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो वे अन्य शासकों के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देंगे। इसी मद्देनजर नवंबर, 1804 ई. में अंग्रेजों ने दिग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराज रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को उनकी नानी याद दिलाई। यही नहीं इतिहास के मुताबिक उन्होंने 300 अंग्रेजों की नाक ही काट डाली थी।

अचानक रंजित सिंह ने भी यशवंतराव का साथ छोड़ दिया और अंग्रजों से हाथ मिला लिया। इसके बाद सिंधिया ने यशवंतराव की बहादुरी देखते हुए उनसे हाथ मिलाया। अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। लॉर्ड ल्युक ने लिखा कि यशवंतराव की सेना अंग्रेजों को मारने में बहुत आनंद लेती है। इसके बाद अंग्रेजों ने यह फैसला किया कि यशवंतराव के साथ संधि से ही बात संभल सकती है। इसलिए उनके साथ बिना शर्त संधि की जाए। उन्हें जो चाहिए, दे दिया जाए। उनका जितना साम्राज्य है, सब लौटा दिया जाए। इसके बावजूद यशवंतराव ने संधि से इंकार कर दिया।

वे सभी शासकों को एकजुट करने में जुटे हुए थे। अंत में जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने दूसरी चाल से अंग्रेजों को मात देने की सोची। इस मद्देनजर उन्होंने 1805 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली। अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र शासक माना और उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए। इसके बाद उन्होंने सिंधिया के साथ मिलकर अंग्रेजों को खदेड़ने का एक और प्लान बनाया। उन्होंने सिंधिया को खत लिखा, लेकिन सिंधिया दगेबाज निकले और वह खत अंग्रेजों को दिखा दिया।

इसके बाद पूरा मामला फिर से बिगड़ गया। यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजों को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गए। इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला। इसबार उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ने की ठान ली थी। इसलिए दिन-रात मेहनत करने में जुट गए थे। लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और 28 अक्टूबर 1806 ई. में सिर्फ 30 साल की उम्र में वे स्वर्ग सिधार गए।

इस तरह से एक महान शासक का अंत हो गया। एक ऐसे शासक का जिसपर अंग्रेज कभी अधिकार नहीं जमा सके। एक ऐसे शासक का जिन्होंने अपनी छोटी उम्र को जंग के मैदान में झोंक दिया। यदि भारतीय शासकों ने उनका साथ दिया होता तो शायद तस्वीर कुछ और होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक महान शासक यशवंतराव होलकर इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया और खो गई उनकी बहादुरी, जो आज अनजान बनी हुई है।


आलेख नवभारत टाइम्स से लिया गया है....

लगता है, पिछली पोस्ट में गलती से मिश्टेक हो गया है...
गलत गाना लग गया था...ये रहा..जब से तेरे नयना मेरे नयनों से लागे रे...
आवाज़ 'अदा' की...







जबसे तेरे नयना मेरे नयनों से लागे रे.....गाये तो हमहीं हैं न...!




इक दिन में हम कई बार, देखो ना ! मर जाते हैं
क़ब्र के अन्दर, कफ़न ओढ़ कर, काहे को डर जाते हैं

राह में तेरे संग चलते हैं, और दामन भी बचाते हैं
आँखों में फ़िर धूल झोंक कर, अपने घर आ जाते हैं

साजों की हिम्मत तो देखो, बिन पूछे बज जाते हैं
पर उनपर कोई थाप पड़े तो, गुम-सुम से हो जाते हैं

चुल्लू चुल्लू पानी लेकर, हम कश्ती से हटाते हैं
वो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं

देखें तुझको या ना देखें, दूर कहाँ रह पाते हैं 
हवा भी ग़र छू कर गुज़रे, हम वहीं तर जाते हैं

लगता है, पिछली पोस्ट में गलती से मिश्टेक हो गया है...
गलत गाना लग गया था...ये रहा..जब से तेरे नयना मेरे नयनों से लागे रे...
आवाज़ 'अदा' की...







Tuesday, April 24, 2012

कुरआन का आदेश पढ़ें....हिन्दुस्तान के हिन्दुओं के नाम सन्देश...विडियो ज़रूर देखें....


पूरी पोस्ट निम्नलिखित पते से ली गयी है...


कुरआन का आदेश, नीचे क्लिक करके आप पढ़ सकते हैं आप ..

कुरआन का आदेश

इससे पहले की आप आगे पढ़ें हिन्दुस्तान के हिन्दुओं के नाम पकिस्तान के सच्चे मुसलमान का सन्देश...ये विडियो ज़रूर देखें और अपने ज़हन में सोचें...





Monday, April 23, 2012

आप क्यूँ रोये....आवाज़ 'अदा' की...

आप क्यूँ रोये....आवाज़ 'अदा' की

फिल्म -वो कौन थी
आवाज़-लता मंगेशकर
गीत-राजा मेहँदी अली खान
संगीत-मदनमोहन 
जो हमने दास्तां अपनी सुनाई, आप क्यों रोए
तबाही तो हमारे दिल पे आई, आप क्यों रोए

हमारा दर्द-ओ-ग़म है ये, इसे क्यों आप सहते हैं
ये क्यों आँसू हमारे, आपकी आँखों से बहते हैं
ग़मों की आग हमने खुद लगाई, आप क्यों रोए

बहुत रोए मगर अब आपकी खातिर न रोएंगे
न अपना चैन खोकर आपका हम चैन खोएंगे
कयामत आपके अश्कों ने ढाई, आप क्यों रोए

न ये आँसू रुके तो देखिये, हम भी रो देंगे
हम अपने आँसुओं में चाँद तारों को डुबो देंगे
फ़ना हो जाएगी सारी खुदाई, आप क्यों रोए
आप क्यूँ रोये....आवाज़ 'अदा' की

Sunday, April 22, 2012

'शायद बेटे की असाधारण प्रतिभा मौत का कारण बनी...'


लिंक:
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/04/120421_boston_killing_va.shtml

अमरीका में मारे गए बोस्टन यूनिवर्सिटी के एमबीए छात्र के शेषाद्री राव के पिता के सुधाकर राव को ओडिशा में अपने बेटे के शव का बेसब्री से इंतज़ार है. इस 24 वर्षीय भारतीय छात्र की गुरुवार को अमरीका में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने हत्या की कड़ी निंदा की है. उन्होंने भुवनेश्वर में पत्रकारों से कहा कि वे विदेश मंत्रालय के साथ इस मुद्दे को उठाएँगे. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा है कि वो छात्र के शव को भारत लाने का बंदोबस्त करें.

बीबीसी से बातचीत में अपने जवान बेटे के अकाल निधन से टूट चुके पिता के सुधाकर राव ने कहा, "पता नहीं हमारे दूतावास वाले क्या कर रहें हैं. अब वे कह रहे हैं कि मेरे बेटे का शव बुधवार को ही पाएगा. जरा सोचिए, गुरुवार की रात को उसकी मृत्यु हो चुकी है. अगर बुधवार को शव आया, तब तक सात दिन हो चुके होंगे. इतने दिनों बाद हम उसका क्या क्रियाकर्म करेंगे?”

अमरीका में भारतीय दूतावास और भारत सरकार के विदेश विभाग से बेहद झल्लाए हुए राव ने कहा, "आज के ज़माने में एक शव पहुँचाने के लिए क्या सात दिन लगने चाहिए? अगर यही बात है तो फिर हमारा दूतावास और विदेश मंत्रालय किस काम के? बीबीसी के जरिए मैं सरकार से अपील करता हूँ कि मेरे बेटे का शव जल्द से जल्द पहुँचाने का बंदोबस्त करें."

एक बैंक में वरिष्ठ अधिकारी राव इस बात से भी नाराज़ हैं कि राज्य सरकार उनके बेटे के शव को मुंबई से विशाखापत्तनम ले जाने की बात कर रही है.
उन्होंने कहा, "मुझे समझ में नहीं आता कि कोई मुझसे क्यों नहीं पूछता? मैं चाहता हूँ कि मेरे बेटे का शव भुवनेश्वर लाया जाए ताकि मैं उसे यहाँ से पुरी ले जाकर वहीं उसका अंतिम संस्कार कर सकूँ. मैंने तेलूगु एसोसिएशन ऑफ़ नार्थ अमेरिका यानि ताना से भी यही अनुरोध किया है."

क्यों हुई हत्या
"हो सकता है कि शेषाद्री की असाधारण प्रतिभा ही उसकी मौत का कारण बनी हो मेरा बेटा बहुत ही होनहार लड़का था. स्कूल से लेकर बोस्टन यूनिवर्सिटी तक वह हमेशा अव्वल नंबरों से पास हुआ. अभी हाल ही में ख़त्म हुए सेमेस्टर में उसने इतना अच्छा प्रदर्शन किया था कि उसे एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के लिए चुना गया था. उसे एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप भी मिल गई थी और जल्द ही उसे अच्छी नौकरी भी मिलने वाली थी."

क्या यह 'हेट क्राइम' हो सकता है? इस प्रश्न के उत्तर में राव ने कहा,"अगर ऐसी कुछ बात होती तो वह हमें ज़रूर बताता. उसने कभी इस तरह की कोई शिकायत नहीं की. वह बहुत ही मिलनसार और हर परिस्थिति में अपने आप को ढाल लेने वाला लड़का था.'

मई में शेषाद्री का डिग्री कोर्स ख़त्म होने वाला था. बचपन से मेधावी छात्र रहे शेषाद्री ने अपनी दसवीं तक की शिक्षा जयपुर में पूरी की और फिर 12वीं कटक के स्टुअर्ट साइंस कालेज से. शेषाद्री ने अपना बीटेक एनआईटी कर्नाटक से किया था.