Tuesday, February 28, 2012

सभ्यता, संस्कृति और सुरुचि....



मनुष्य की आधारभूत,
भावनाओं पर, 
चढ़ते-उतरते,
नित्य नए, 
पर्दों का नाम ही,
'संस्कृति' है,
समाज के, एक वर्ग के लिए, 
दूसरा वर्ग,
सदैव ही 'असभ्य' और 'असंस्कृत',
रहेगा...
फिर क्यों भागना 
इस 'सभ्यता और संस्कृति',
के पीछे...?
जहाँ तक 'सुरुचि' का प्रश्न है..
वो अभिजात वर्ग की,
'असभ्यता' का... 
दूसरा नाम है..!! 
और उसे अपनाना,
हमारी 'सभ्यता'...!!


हाँ नहीं तो..!!    

Saturday, February 25, 2012

बच्चों के साथ खिलवाड़...

अंधविश्वास की पराकाष्ठा, किस हद तक होती है जो अपने ही बच्चों के जीवन को दाँव पर लगा देती है...

Friday, February 24, 2012

उदर की क्षुधापूर्ति यूँ भी होती है क्या....???





इन तस्वीरों को आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिए, मुझे मानसिक यातना से ही गुजरना पड़ा है....लेकिन सच्चाई से अवगत कराना भी मैंने आवश्यक समझा....
नरभक्षण आज भी चीन और एशिया के अन्य देशों में मौजूद है...
तथाकथित सभ्य समाज की असंवेदनशीलता और अमानुषिक प्रवृति दिखाती हुई ये तसवीरें, जघन्यता का वो प्रमाण पत्र हैं, जिसे देख कर मनुष्यता तार-तार हो गयी है...
उदर की क्षुधापूर्ति यूँ भी होती है क्या....??? 
कौन कहता है हम मनुष्य हैं....?? यह सिर्फ और सिर्फ राक्षसी प्रवृति है और कुछ नहीं....
कितना वीभत्स है यह संसार ..और हम कितने अज्ञानी....!!!!

छूछून्दर के सिर पर चमेली का तेल ....(पुनर्प्रकाशित)



कहाँ से शुरू करूँ  ये समझ नहीं आ रहा है...
बाबा की तबियत यहाँ ठीक नहीं हो रही थी...तबियत से ज्यादा उन्हें अपने परिवेश कि याद आ रही थी ,शेर को अपने मांद में ही सुकून मिलता है ..तो हमलोगों ने फैसला किया कि वापिस भेजना ही ठीक होगा...ख़ैर माँ-बाबा की फ्लाईट टोरोंटो से थी ९ तारीख़ को ...जाहिर सी बात है, मैं ही जाऊँगी न उनको छोड़ने टोरोंटो तक...फ्लाईट उनकी सुबह ११ बजे थी हमलोगों ने सोचा आराम से रात २ बजे चलते हैं ४-५ घंटे में टोरोंटो पहुँच जायेंगे...रास्ते में रुकते हुए जायेंगे...हमारी वैन वैसे भी बहुत सुविधा जनक है माँ-बाबा आराम से सो जायेंगे और हम पहुँच जायेंगे...७ बजे के क़रीब एअरपोर्ट पर होंगे ..नाश्ता-पानी करेंगे और उनको बोर्डिंग पास वैगरह दिलवा कर ..हम वापिस आ जायेंगे ...कितना सहज था सबकुछ...लेकिन सहज कैसे हो सकता है भला..!

ख़ैर जी हम पहुँच गए एयरपोर्ट अभी गाड़ी खड़ी भी नहीं हुई थी की 'एयर इंडिया' का एक बंदा आया और बड़े इत्मीनान से कहने लगा 'एयर इंडिया' की फ्लाईट  कैंसिल हो गई है...मेरा तो गुस्सा आसमान पहुँच  गया...मैंने कहा आपको कैसे पता ? कहने लगा कि मैं एयर इंडिया का कर्मचारी हूँ, इसलिए मुझे पता है...मैंने पूछा आपको कब पता चला...उसने बात टालते हुए कहा कि तकनिकी ख़राबी है...मैंने उससे फिर पूछा मेरा सवाल यह नहीं था...सवाल ये हैं कि आपको कब पता चला...कहने लगा जी अभी पता चला है...इसीलिए आपको बता रहा हूँ....मैंने उससे पूछा उसका मतलब है कि 'एयर इंडिया' का एयर क्राफ्ट यहाँ होना चाहिए...एयर पोर्ट पर...वो सकपकाने लगा...अगर एयर क्राफ्ट यहाँ नहीं होगा तो 'यू आर गोइंग टु बी इन बिग ट्रबल' ..और मैं ये पता लगा कर रहूँगी...और अगर हवाई जहाज टोरोंटो में नहीं है, तो इसका मतलब है, वो इंडिया से चला ही नहीं है...क्योंकि भारत से टोरोंटो तक का सफ़र आधे घंटे का नहीं है...और अगर वो वहाँ से नहीं चला है, तो आपको इसकी ख़बर अब से कम से कम २० घंटे पहले होनी चाहिए....और आपके पास हमारा फ़ोन नंबर, ईमेल एड्रेस सब कुछ है..आपने हमें पहले ख़बर नहीं किया  है...इसलिए अपना मुँह खोलने से पहले सोच लो...वर्ना आज यहाँ वो हंगामा होगा कि 'एयर इंडिया' के माँ-बाप सबकी ऐसी-तैसी करुँगी...वो हाथ जोड़ने लगा मैं तो अदना सा आदमी हूँ...आप हमारे मैनेजर से बात कीजिये...मैंने कहा मैनेजर को अभी इसी वक्त बुलाओ..मेरे पास बिजिनेस क्लास के पैसेंजर्स और उनको कोई भी असुविधा हुई तो आज तुम्हारी ख़ैर नहीं...

ख़ैर जी, मैनेजर आई...आते ही कहने लगी 'वाट सीम्स टू बी योर प्रॉब्लम मैम' मैंने कहा 'प्रॉब्लम इज नोट विथ मी,  लुक्स लईक यू हैव प्रॉब्लम विथ योर एयर क्राफ्ट, एंड यू हव कान्सिल्ड योर फ्लाईट....आई हैव ओनली वन क्वेशचन, इस योर एयर क्राफ्ट ऑन दी हैन्गेर ? इफ नॉट देन व्हाई वी वेर नॉट टोल्ड अर्लियर,  नॉव यू विल अरेंज फॉर आवर स्टे इमीडियेट्ली ....वी हव बीन ट्रावेलिंग तो कैच दिस फ्लाईट फॉर पास्ट ५ आवर्स...इदर यू गिव अस अनदर फ्लाईट ओर अरेंज फॉर आवर स्टे...उसे समझ में आ गया कि उसने साँप के बिल में हाथ डाल दिया है...उसे ये भी धमकी दे दी कि आधे  घंटे के अंदर हमलोगों के ठहरने का इंतज़ाम हो जाना चाहिए...और वही हुआ..५ स्टार होटल के दो कमरे हमें मिल गए...खाने-पीने के साथ...


याद है मुझे, पहले अगर दो कनेक्टिंग फ्लाईट के बीच में सिर्फ़ ५ घंटे की भी प्रतीक्षा होती थी तो इकोनोमी क्लास को भी रहने की जगह दी जाती थी...हम कितनी बार ठहर चुके हैं...लेकिन अब सब कुछ बदल गया है..लोग पूरी-पूरी रात एयरपोर्ट में ही गुजारते हैं, बिना किसी सुविधा के...

अब बताती हूँ मुझे गुस्सा क्यों आया...एयर इंडिया आज कल हर दूसरे दिन अपनी फ्लाईट कैंसिल कर देती है...मुसाफिरों की परेशानियों से इनलोगों को कोई सरोकार नहीं है...किसी की दिवाली छूट जाए तो छूट जाए, कोई शादी में नहीं शामिल हो पाया इनकी बला से.. ..कोई बीमार है इनको कोई फर्क नहीं पड़ता...इनकी साख वैसे भी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कौड़ी की भी नहीं रह गई है...एक ज़माना था कि एयर इंडिया भारत की शान था...अब यह एक बदनुमा धब्बा है...हम जैसे लोग जो सिर्फ़ राष्ट्रीयता की भावना की वजह से, बहुत छोटे तरीके से ही सही, इनका साथ देना चाहते हैं...टिकट लेने के बाद ख़ुद को ही लात मारना शुरू कर देते हैं...कि छूछून्दर के सिर पर कितना भी चमेली का तेल लगाओ ... उसकी दुर्गन्ध नहीं जायेगी...

ख़ैर हम ठहर गए पाँच सितारा होटल में और दूसरे दिन पहुँच गए एयरपोर्ट..मुझे देखते ही सबने पहचान लिया..कि आ गई मुसीबत...लेकिन ये मेरे माँ-बाबा का सवाल था...उनको कुछ कमी हो , वो भी मेरे रहते ..अजी ऐसा हो ही नहीं सकता...अब जी हम कतार में लग गए...लेकिन मुझे चैन कहाँ ..बिजिनेस क्लास में बहुत बार सफ़र किया है...कभी भी हम २ किलोमीटर लम्बी कतार में नहीं लगे...वैसे भी लाइन लम्बी होनी ही थी  आख़िर दो दिन के पैसेंजर जो लगे थे लाइन में, मैं पहुँच गई, काउंटर पर टिकट दिखाया तो फ़ौरन लोग लग गए सेवा में, और सबसे पहले हमारी 'चेक इन' होने लगी...

मैंने काउंटर पर भी सुना ही दिया की हर बार इस एयर क्राफ्ट में ख़राबी होती है, ये एयर क्राफ्ट बदलो , और अगर ये बहाना है जिसका ज्यादा चान्स है..हर बार अपनी फ्लाईट कैंसिल करने की जगह और दो दिन के पैसेंजर इकट्ठे करके ले जाने की जगह...जो साफ़-साफ़ बनियागीरी नज़र आती है, अपनी फ्लाईट हफ्ते में ३ दिन रखो...कम से कम लोग उसी अनुसार अपना प्लान तो कर सकते हैं...इस तरह अपनी कोई घटिया सी गेम खेलना और मुसाफिरों के साथ खिलवाड़ करने के पीछे क्या  मक़सद है...सब चुप थे, और यही उनके दोषी होने का परिचायक था...

बात टोरोंटो तक ही ख़त्म नहीं हुई...दिल्ली का महान एयर पोर्ट जो अभी भारत का अभिमान बना है...वहाँ पूरे एयर पोर्ट में सिर्फ़ ४१ व्हील चेयर हैं....बुजुर्गों को छिना-झपटी करनी पड़ती है....ये व्हील चेयर हमारे बुजुर्गों का हक़ हैं...लेकिन हैं कहाँ ये ? मेरे बाबा को ही सिर्फ़ एक व्हील चेयर मिला, वो भी छिन कर लाना पड़ा और उसके भी पैसे देने पड़े ३०० रुपये...मेरी माँ को पैदल चलना पड़ा...जबकि ये सारी सुविधायें टिकेट में दर्ज थीं और उनकी पेमेंट भी हो चुकी थी....वाह रे मेरा भारत महान....!!

अभी रुकिए...कहाँ जा रहे हैं बात अभी भी ख़त्म नहीं हुई है....आपको मैंने कहा था कि एयर इंडिया ने ख़ुद ही फ्लाईट कैंसिल कर दी थी...अब आप मुझे ये बताइए, फ्लाईट कैंसिल करें वो और उसका खामियाज़ा भरें हम ...क्यों भला..? 

दिल्ली से राँची की फ्लाईट भी एयर इंडिया की थी, अब क्योंकि टोरोंटो से फ्लाईट कैंसिल थी और दूसरे दिन फ्लाईट मिली, तो ज़ाहिर है दिल्ली से राँची की फ्लाईट भी एक दिन बाद ही लेनी होगी...अब तमाशा दिल्ली एयर पोर्ट में हुआ...कहा गया कि क्योंकि माँ-बाबा एक दिन बाद फ्लाईट ले रहे हमें बिना अपनी ग़लती के..प्रति टिकेट १५०० रुपैये देने होंगे...हैं न गज़ब बात...ये तो अच्छा हुआ कि मेरी दोस्त माधुरी राँची एयरपोर्ट की मैनेजर है..उसने सब सम्हाल लिया...वर्ना होता क्या, दे ही दिए जाते ३००० रुपये...लेकिन मैं उनलोगों के बारे में सोच कर चिंतित हूँ...जो सीधे-सीधे सफ़र करते हैं...जिनकी कहीं कोई पहुँच नहीं है, या फिर जो बस चुप रह जाते हैं..वो कैसे इन कमीनों को झेल पाते होंगे...? हर बिजनेस का एक पहलू, इंसानियत भी होता है...और एयर इंडिया भारत की पहचान है ...भारतीयता का प्रतीक है ..क्या हम मान लें कि हम भारतीयों में इंसानियत वाकई ख़त्म हो गई है..? मुझे मालूम है इसे पढ़ कर बहुतों को मिर्ची लगेगी ...लेकिन भारत और भारतीयता की पुंगी बजाने से सिर्फ़ काम नहीं चलेगा...ये तो हमलोग हैं जो हर हाल में साथ ही खड़े रहते हैं...सोचने वाली बात ये है..कि जहाँ हर दिन इतने भारतीय, विदेशों में सफ़र करते हैं...टोरोंटो की आधी आबादी अब भारतीयों की है...जहाँ लाखों लोग हर दिन सफ़र कर रहे हैं...कोई तो वजह है कि २४० टिकट भी एयर इंडिया नहीं बेच पाता...और अपनी इस तरह की हरकत से, हम सबकी आँखों से उतरता जा रहा है...क्या यह एक सोची समझी साज़िश के तहत हो रहा है...कि इस एयर लाइन की कीमत गिरा कर सस्ते में कोई अम्बानी ख़रीदना चाहता है...या फिर सचमुच भारत की सरकार में अब दम नहीं कि वो इसे चला सके...? 
जवाब कुछ तो है...लेकिन क्या है ....!!

Thursday, February 23, 2012

ये कैसा बचपन ?......भाग-२


ये कैसा बचपन ?
भारत में विचित्र अनुष्ठानों की कमी तो है नहीं...
ये एक महा-विचित्र अनुष्ठान है..जिसमें निरीह रोगी बच्चे के ऊपर एक वयस्क व्यक्ति, यूँ खड़ा हो जाता है...और यह माना जाता है कि बच्चा स्वस्थ हो जाएगा.....देख कर मन वितृष्णा से भर उठा है...
इस बच्चे के ऊपर खड़े व्यक्ति का नाम है..जामुन यादव...जिसे पुलिस ने ऐसे ही क्रिया- कलापों के लिए गिरफ्तार किया था...हालांकि जामुन यादव तो पुलिस की गिरफ्त से छूट भी गया है...लेकिन क्या हमारे देश का बचपन, ऐसे अनुष्ठानों से बच पायेगा....???

आगे भी मैं बच्चों से सम्बंधित बातों का ज़िक्र करुँगी...
देखते रहिएगा...!!

ये कैसा बचपन है....???

 ये कैसा बचपन है....???

Tuesday, February 21, 2012

श्मशान में रहते हैं हम...!!


यहाँ  शक्ति की चिता,
दिन रात जल रही है,
और,
आदत इस दुर्गन्ध की,
हमारे नथुनों को भी हो गयी है,
हम चाहते हैं कि,
कोई और आये,
यहाँ परिवर्तन लाये,
क्योंकि...
हम आलसी, कामचोर, मक्कार हैं,
हम भ्रष्टाचार की संतान हैं ,
या.. 
शायद नपुंसकता की पैदावार हैं,
अब हमसे कुछ नहीं होता,
बस....सोचते रहते हैं हम,
गर कहीं कुछ हो जाए,
तो ख़ामोशी से तकते हैं हम,
हमारी बला से जहाँ जो होना है,
वो हो जाए...
बस हमपर कोई आँच आये.,
क्योंकि...
अपनी ही राख़ समेटे हुए,
इक श्मशान में रहते हैं हम...!!

 और अब मेरी पसंद का तडकता-फडकता गीत...हा हा हा ...

Monday, February 20, 2012

हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास...कितना सच कितना झूठ..

काफी पहले सुना था कि इंदिरा गाँधी 'काल पात्र' ज़मीन में दबवा रहीं हैं....उन काल पात्रों में भारत के ऐतिहासिक तथ्य होंगे....उन्होंने उन पात्रों में कौन से ऐतिहासिक तथ्य डाले होंगे..ये सर्व-विदित है...या फिर अनुमान तो लगाया ही जा सकता है....ठीक उसी तरह सुना है लोग ‘हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास’ लिख रहे हैं....उन इतिहासकारों से मेरा प्रश्न यह है कि क्या इस तथाकथित 'इतिहास' को लिखने से पहले, ब्लोगरों को अवसर दिया गया है कि वो उसे देखें-पढ़ें और जाने कि उसमें जो बातें कही गयीं हैं वो सब सच है ? क्योंकि अब वो ज़माना तो रहा नहीं कि 'आईने अकबरी' और 'अकबरनामा' लिख दिया और कोई चूँ भी नहीं कर पाया...आखिर ये दस्तावेज़ है आने वाली पीढ़ियों के लिए...इसलिए इनका सत्यापन होना ही चाहिए.....

जब भी ऐसी किताब लिखी जाए तो, छपने से पूर्व ही इसके तथ्यों को सार्वजनिक करना चाहिए, ये किसी की जागीर नहीं कि कुछ भी लिख दिया और छाप दिया..पूरी ब्लोगर बिरादरी को पूरा हक है, कि वो जाने इसमें क्या लिखा जा रहा है...क्योंकि कुछ हद तक, हम सभी ब्लोगर चश्मदीद गवाह तो हैं ही ....वरना ये तो अपनी डफली अपना राग भी हो सकता है...और किसी को पता ही न चले, कि सच क्या था/है ...और आने वाली पीढ़ी गलत तथ्यों को सही समझ बैठे...मैं नहीं कहती कि इस पुस्तक में कुछ गलत ही होगा...लेकिन सब सही ही होगा ये भी नहीं मानती मैं...ये किसी की कविता या कहानी की किताब नहीं है..हम बात कर रहे हैं 'ब्लागिंग के इतिहास' की, इसलिए इसमें व्यक्तिगत परिपेक्ष से ज्यादा सार्वजानिक मंतव्य मायने रखता है...और अभी तो हिंदी ब्लोगिग अपने चार पैरों पर भी नहीं चल पायी है...

छपने से पूर्व इसे सार्वजनिक करने में कोई असुविधा भी नहीं होनी चाहिए....ख़ास करके जब आज इलेक्ट्रोनिक का ज़माना है...बड़ी आसानी से इसे सार्वजनिक करके लोगों का मंतव्य लिया जा सकता है ....इस तरह की पुस्तकों को अपनी मर्ज़ी से छपवा देना उचित नहीं है...आखिर यह पुस्तक एक दस्तावेज़ तो है ही...जो कई सालों तक बरकरार रहेगी.....जिसके तथ्य लेखक ने अपनी समझ और वातावरण के हिसाब से लिखा होगा और उनकी नज़र में वो सब सही ही होगा परन्तु यह भी ज़रूरी नहीं कि वो तथ्यों के मामले में सही हो...इस तरह की पहल को अगर सबसे साझा किया जाए, तो एक बात और अच्छी होगी...कोई कभी किसी पर उंगली नहीं उठा पायेगा कि, किसी ने अपनी मनमानी कर ली...और सबसे अच्छी बात ये होगी, जब ऐसी पुस्तक, कई आँखों से होकर गुजरेगी, तो पुस्तक की प्रमाणिकता बढ़ जायेगी, .. वर्ना यहाँ तो हर बात में, फिर चाहे वो पुरस्कार हो या समीक्षा, तू मेरी पीठ ठोक, मैं तेरी ठोकता हूँ...का चलन चल ही रहा है...और ये बात किसी से छुपी भी नहीं है...

दूसरी बात, क्या इस पुस्तक में उन काले अध्यायों का जिक्र है...जैसे अनामी, बेनामी, किल्लर झपटा, जलजला इत्यादि ..क्योंकि यहाँ सब कुछ सफ़ेद नहीं है ...इनका भी ज़िक्र होना ही चाहिए ताकि आने वाले लोग जान सकें...ब्लॉग जगत में ऐसे घटिया लोग भी थे....जिन्होंने ब्लॉग की ज़मीन को ना सिर्फ गन्दा किया,  अपितु गंदगी की हर सीमा  पार कर दी थी....इनका ज़िक्र होना ही चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी उनको लानत भेजती रहे...

कोई कह सकता है कि आप इस पुस्तक को खरीदें और पढ़ें....लेकिन मैं ऐसा क्यों करुँगी....इस इतिहास का मैं ख़ुद एक हिस्सा हूँ..और हर वो ब्लाग्गर हिस्सा है इस इतिहास का, जिसने कभी भी, कुछ भी सार्थक या निरर्थक लिखा है ...हर ब्लोगार इस इतिहास का अभिन्न अंग है...इसलिए इस इतिहास को लिखने से पूर्व ही ब्लॉग जगत से इसे साझा करना चाहिए था.... साझा नहीं करना उचित नहीं हुआ...
आज के ज़माने में इतिहास एक व्यक्ति नहीं लिख सकता...हम सब मिल कर लिख ही रहे हैं...क्योंकि अभी तक हम इतिहास नहीं बने हैं....सबकुछ सामयिक है...
अतः कोई भी लेखक 'ब्लॉग का इतिहास' लिखने से पूर्व...ब्लोगरों को उसके तथ्य से ज़रूर अवगत कराये...वर्ना सब अपना-अपना इतिहास लिख जायेंगे...और सच्चाई कभी किसी को पता नहीं चल पाएगी और ये हमारी आने वाली कई पीढ़ियों के साथ छल ही माना जाएगा....जिसपर एक पुस्तक और लिखी जा सकती है....:)

हाँ नहीं तो..!!

Sunday, February 19, 2012

बुनियाद...!!



छी-छी..!
कितनी गन्दगी है...!
कितनी बदबू..!
कितनी बीमारियाँ..?
पूछते हो, ये कहाँ ले आई हूँ तुम्हें ?


अरे..!
ये है तुम्हारे देश का ही हिस्सा,
जहाँ..
काली बस्तियां हैं...
यहाँ, हर दिन,
ज़िन्दगी, आखें खोलती है,
कीड़े-मकोड़ों सी रेंगती है,
फिर खड़ी हो जाती है,
घुप्प अंधेरों में..


और..
बन जाती है,
बुनियाद,
तुम्हारे शहर की...


यहाँ की औरतों से ही चलता है,
तुम्हारे घर का,
चूल्हा-चौका...


इनके बेटे-बेटियों ने ही,
खड़ी कर दीं हैं , 
आलिशान इमारतें,
तुम्हारे शहर की...


यही तो चलाते हैं, 
कल-कारखाने,
तुम्हारे शहर के...


यहीं क्यूँ रुकते हो ?
इन लोगों ने ही दे दिए हैं,
तुम्हारे देश को,
अजीब से नेता और 
करिश्माई अभिनेता,
जिन्होंने, 
तुम सबको दिया है,
सिर्फ...
ख़्वाबों का समंदर 
और बातों के,
ख़ाली आसमान....


क्यों दे दिया तुमने इतना बोझ,
इनके कमज़ोर कन्धों पर..?
तभी तो, 
तुम्हारा पूरा शहर,
हो गया है...
इतना कमज़ोर, गन्दा, बीमार,
और बदबू भरा....!


और अब एक गीत...

Friday, February 17, 2012

मकड़ा...!!



(कल एक परेशान ज़िन्दगी से मुलाक़ात हुई..जिससे मिल कर खुद को रोक नहीं पायी...ये कविता उसी के नाम )


हर बार..!
मेरे सामने ख़ामोशी का,
एक कुआँ खुद जाता है...
और हो जातें हैं,
चेहरे में कई सूराख़, 
जिनमें तुम, 
कुछ भी भर देते हो, 
और दे देते हो, 
एक शक्ल, मनमानी सी...
मैं सह जाती हूँ सब कुछ,
ये सोच कर, 
कि शायद तुम, इंसान बन जाओ,
क्योंकि सुना है...
सहनशीलता, सभ्यता लाती है ।
इसीलिए तो उम्मीद करती हूँ,
कि तुम अपना ये जंगल बदल लोगे....
वैसे, 
इस जंगल की कहानी
बड़ी दिलचस्प है,
यहाँ...
हाथी की पीठ पर शेर बैठा है,
और शेर के कंधे पर बकरी,
लेकिन बकरी के ऊपर 
बैठा है, 
एक नामुराद,
आठ पैरों वाला मकड़ा,
जिसके बुने जाल में,
सब फँस जाते हैं.....!

सफ़े से हाशिया उड़ा देंगे...



माहौल बड़ा गरम है..
चुनाव का मौसम है
नेता थोड़ा नरम है
पर ये जनता का भरम है 
पार्टी की छवि सुधारेंगे 
कुछ छापे, थोड़ी धड पकड़,
कुछ हत्याएं करवाएँगे
विरोधी पार्टी की रैली पर 
डंडे बरसवाएंगे    
६५ वर्षों की गलतियों पर 
खूब परदे डलवायेंगे
बात से गर जीत ना पाए
बतकही से जीत जायेंगे 
ये हथकंडा गर काम न आया 
खुद पर हमला करवा देंगे 
और इल्जाम विपक्ष पर लगा
नानी याद दिलवा देंगे 
तब भी गर बात न बनी
दो-चार दुर्घटना करवा देंगे 
मेरी कुर्सी बचनी चाहिए 
सबको हाशिये पे ला देंगे
और जीत कर हम जब संसद आयें
सफ़े से हाशिया उड़ा देंगे...



Thursday, February 16, 2012

उम्र की चाय....

मैं..!!
अब अंधेरों से नहीं डरती..
क्योंकि 
विश्वास का इक दीया ;
जल रहा है मन में,
यक़ीन का सिन्दूर है मेरी मांग में,
और सिर पे भरोसे का आँचल ।
पाँव में उम्मीद की पायल  ,
हाथों में सजीं हैं कुछ पूजा सी चूड़ियाँ ,
हमारा घर....
शान्ति से बना है,
दीवारें समर्थन की हैं 
और...
तथ्यों की नींव है,
जो वास्तविकता के गारे से जुड़ीं हैं,
गरिमा के परदे लगे हुए हैं....
प्रार्थना मेरी पूँजी है
और मनोबल मेरी जागीर 
येSSSSS सामने प्रीत का आँगन है
यहीं बैठ कर हम,
अब उम्र की चाय संग पी लेंगे,
क्योंकि
तुम्हें खोने का कोई विकल्प मैंने रखा ही नहीं है...

  
एक गीत...

Tuesday, February 14, 2012

तुझे मैला न कर दें..!

    
ओ....!!

श्वेतवसना 
ओ..!!
स्फटिक प्रतिमा,
गंगोत्री मुख सी,
तू लाज में सिमटी,
ओ दूधिया दीप्ती, 
तू गाँठ सुगंध की ,
तारों की चाँदी,  
यौवन तेरी बाँदी,     
ओ....!!
रूपगर्विता,
कहता हूँ तुमसे,
इक लौ प्रेम की 
जल रही है कब से 
सब धुआँ-धुआँ है, 
मन भरा है तम से ,
आकुल हृदय है 
कितने जन्मों से,
सुन मेरी चंदा..!
मन मेरा काला
तन भी है काला  
तुझे देखना चाहूँ
और ख़ुद डर जाऊं 
आखें मेरी काली,
तुझे मैला न कर दें..!
  
अब एक गीत....

Monday, February 13, 2012

उसकी प्रतिभा ..


जानते हो..!!
उसकी प्रतिभा 
दीवार से टेक लगा
ऊँघती रहती है,
कभी  
लुढ़क वो सो भी
जाती है,
लेकिन उसकी तक़दीर 
किसी की मोहताज़ नहीं,
एक दिन 
अँधेरे से निकल
खुशनसीबी आएगी,
तब उसे दलित, पीड़ित, उपेक्षित
नहीं कह पाओगे 
उसे, उसके अधिकारों से
वंचित नहीं रख पाओगे 
उपहास-परिहास 
से हो गया विषाक्त मन उसका 
लेकिन ग़नीमत समझो 
अभी दाँतों में
विष नहीं उतरा है,
मन का विष भी
एक दिन उतर जाएगा
और फिर 
मधुर मन से,
फूट जायेगी एक कविता,
या फिर एक गीत,
या शायद एक कहानी,
या एक पेंटिंग,
या फिर कुछ और...
और तब मिल जाएगा,
उसकी प्रतिभा को
उसका पुरस्कार.....
   
और अब एक ग़ज़ल ..मुझे बहुत पसंद है...

Friday, February 10, 2012

'अभिन्न मित्र'...????


पिछले एपिसोड के लिए नीचे दिए गए लिंक पर  क्लिक करें...
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2012/02/blog-post_09.html
 
ये लो जी..
इसमें कौन सी वड्डी बात हो गयी...खुशदीप जी दुसमन तो हैं नहीं हमरे ...लेकिन ई 'अभिन्न' का तमगा विशेषण काहे को...

यहाँ देखिये http://shabdkosh.raftaar.in/Hindi-Dictionary/Meaning.aspx?lang=Hi&Tshabd=%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8

हमारे हिन्दी - अंग्रेजी शब्दकोश से हिन्दी शब्द अभिन्न (abhinn) के लिए अंग्रेजी अर्थ
1) 
one  (adjective) 
2) 
inseparable  (adjective) 
3) 
Identical  (adj) 
4) 
Integral  (n) 

हमारे हिन्दी - अंग्रेजी शब्दकोश से हिन्दी शब्द मित्र (mitr) के लिए अंग्रेजी अर्थ
1) 
comrade  (noun) 
2) 
ally  (noun) 
3) 
confederate  (noun) 
4) 
chum  (noun) 
5) 
pal  (noun) 
6) 
associate  (noun) 
7) 
lover  (noun) 
8) 
Kith  (n) 
9) 
friend  (noun) 
10) 
familiar  (noun)



खुशदीप जी मेरे मित्र हो सकते हैं क्योंकि familiar हूँ उनसे ...लेकिन 'अभिन्न मित्र' नहीं....और सिर्फ वही काहे, इस हिसाब से पूरा ब्लॉग जगत मेरा 'मित्र' है लेकिन कोई भी 'अभिन्न मित्र' नहीं....Inseparable, one, Identical और Integral तो जी हम सिर्फ अपने पति से हैं, जिनकी हम चिरसंगिनी हैं ...और सिर्फ उनको ही अधिकार है हमारा 'अभिन्न मित्र' होने का....लेकिन ई बात हर कोई थोड़े ही समझ सकता है...और फिर आपको का लेना देना है..कि हम किसके मित्र हैं और किसके नहीं....आपके कितने दोस्त हैं (अगर हैं तो :))  हम न जानते हैं न ही जानना चाहते हैं.....ये आपका, हम पर बहुत व्यक्तिगत कमेन्ट है.....आईंदा जब भी आप अपनी बात कहें....मुझे एक ब्लागर के नाम से संबोधित करें....किसी की भी 'अभिन्न मित्र-वित्र' कहने की जुर्रत न करें....मेरी अपनी दुनिया है ...उसमें कौन लोग हैं, इससे किसी का कोई लेना-देना नहीं....और आपका तो बिलकुल भी हक नहीं है...हाँ जितना मैं अपने बारे में ब्लॉग पर शेअर कर सकती हूँ किया है....और अपनी ख़ुशी से किया है...अपने बारे में..अपने बच्चों के बारे में अपने परिवार के बारे में....लेकिन हमने कभी भी किसी के बारे में जानने की कोशिश नहीं की...आपके बारे में तो बिलकुल नहीं की,  कि आप हैं क्या चीज़ !!!...इसलिए आप अपने दायरे में रहे उसका बेजा इस्तेमाल ना करें....

फिर परिवर्तन दुनिया का नियम है...दुनिया में क्या है जो फिक्स्ड है...हम आप फिक्स्ड नहीं हैं....धरती फिक्स्ड नहीं है...चाँद भी घूमता है..हाँ कहते हैं सूरज फिक्स्ड है...तो हम सूरज नहीं हूँ...

और फिर बदलने में तो हम उस्ताद हूँ...काहे नहीं बदलेंगे....हम तो बदलेंगे...आज से २० साल पहले हम जो थी अब नहीं हूँ....हम बदल गयी हूँ जी, पहले से बहुत बेहतर हो गयी हूँ....पहले हम चाय पीती थी, ..फिर काफी पसंद आने लगी...और अब बस लेमन टी पीती हूँ... बचपन में कोला  नहीं पी पाती थी...गले में अटकता था...अब गटागट पी लेती हूँ....तो बदलते परिवेश के साथ हमहूँ बदले हैं... दुनिया बदली है....और जो लोग बदलते नहीं, वो बिखर जाते हैं....हाँ नहीं तो...!

एक शेर लिखा था जी हमने अभी कुछ दिनों पहले...

असर मौसम के बदलने का कुछ ऐसा है हमपर
के हर मौसम में थोडा सा हम और बदल जाते हैं.....

आज फिर किलिअर कर देते हैं...ई मेरा ब्लॉग है...जो भी हमको ठीक लगा है,  और लगेगा हम वही लिखेंगे...वो सिर्फ और सिर्फ मेरे विचार और अनुभव हैं...एक ही परिस्थिति के अनुभव अलग-अलग व्यक्ति के अलग-अलग हो सकते हैं....अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी हम सबको है...न हम किसी पर अपने विचार लादते हैं ना कोई हम पर लादे...मेरे पति तक नहीं करते ई काम, तो आप किस खेत की मूली हैं. (मुहावरा है जी...स्कूल में पढ़े थे ) आपको मेरी रचनाएँ पसंद आये, तो पढ़िए नहीं पसंद आये मत पढ़िए...समाज को बदल डालो का झंडा लेकर हम नहीं आये थे यहाँ...हाँ ,उसमें  हम कुछ काम जरूर कर रहे हैं और उसकी शुरुआत हम अपने घर से ही किये हैं....क्योंकि मेरे पास मेरा घर है...फिलहाल तो हम अपने बच्चों को ही एक अच्छा नागरिक बनाने में जुटे हैं...और उसमें सफल भी हैं..

महिला होने का अर्थ नहीं है...कि महिला सही ही होती है...अब यहीं देखिये..रचना जी के हिसाब से मैं महिला होते हुए भी उनकी कसौटी पर खरी नहीं उतरती...उसी तरह एक महिला के गुण मुझे रचना जी में कम ही नज़र आते हैं...क्या कहें....पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना-अपना..

अभी हाल में...जैसा आपलोगों को विदित है...मेरा जीमेल अकाउंट हैक हो गया था...और अफवाह ये थी कि मैं स्पेन में अटक गयी हूँ...कुछ पैसों की ज़रुरत है मुझे....इसी सन्दर्भ में, मुझे एक ईमेल प्राप्त हुआ 'वंदना अवस्थी दुबे जी' का उस ईमेल में लिखा हुआ था...'अदा जी आप बिलकुल चिंता मत करें...बस इतना बताइए कि पैसे कहाँ भेजने हैं...वंदना जी ने जिस अपनत्व से ये बातें लिखीं...मैं भूल नहीं पाती हूँ...जबकि उनसे मेरी कभी बात नहीं हुई है...संवेदना एक मानवीय गुण है....कोई ज़रूरी नहीं कि आप अभिन्न मित्र हों तभी ऐसे भाव आपके मन में आयेंगे ....सच में, वंदना जी का दिल सोने का है....


इस ब्लॉग जगत में बहुत कम लोग हैं जो कह सकते हैं कि मैं फलाने विषय में ऑथोरिटी रखता हूँ. जैसे अजित वडनेकर जी बहुत गर्व से कह सकते हैं, कि वो शब्दों के उद्भव की वृहद् जानकारी रखते हैं....उनकी आभारी हूँ कि उन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया...वर्ना हम जैसे ब्लोगर तो बस दरमियाने दर्जे के लिखनेवाले हैं...अपने सीमित शब्द  संसार को लेकर जो भी लिख पाते हैं, लिख रहे हैं और लोग उसे पढ़ रहे हैं...पढनेवाले सिर्फ सहमती-असहमति जता सकते  हैं...व्यक्तिगत आक्षेप नहीं कर सकते....किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि मुझे बताये, मैं क्या लिखूं और क्या न लिखूं....रचना जी, सबसे अच्छी बात तो जी ये होवेगी...आप मेरा ब्लॉग ही न पढ़ें....वड्डी शांति होवेगी जी...

एक बार फिर कहे देती हूँ, रचना जी....आज के बाद जब भी आप मेरे बारे में बात करें....तमीज से अपनी बात कहें...अगर बात करनी नहीं आती तो मेरे बारे में तो बिलकुल बात न करें...वर्ना ठीक नहीं होगा..आज तक हम (एकवचन) आपकी बहुत सारी बातें बर्दाश्त करते रहे हैं...और अब पानी सर के ऊपर से जा चुका है...

रही बात तारीफ की तो तारीफ की अपेक्षा रचना जी को है .... मुझे नहीं....न ही इसकी मुझे ज़रुरत है..

तारीफ  के खजाने से दूर रहने के लिए मैंने बहुत पहले ही अपना टिपण्णी बॉक्स बंद कर दिया है....'न उधो का लेना न माधो का देना'.... सच पूछिए तो अब मैं सचमुच स्वान्तः सुखाय के लिए लिखती हूँ ..जो भी करना है, मैं अपने छोटे से दायरे में रह कर कर लेती हूँ...किसी दिन इसकी भी चर्चा करुँगी...लेकिन सही समय आने पर...

बाकी रही सिलिअल की बात, तो हम सिरिअल देखते नहीं हैं...ज़रूर हमरी नक़ल मारी होगी ससुरों ने...काहे कि सिरिअल तो अब बनी है...और ई हमरी बचपन की आदत है...हाँ नहीं तो..!! कोई बात नहीं इत्ता वड्डा कलेजा है जी हमारा...माफ़ कर देते हैं उनको...वैसे किसी ने कहा था हमको , हमरी ये 'हाँ नहीं तो' एक दिन ग़दर करवा के छोड़ेगी...तो ये लो जी क़यामत का दिन आ ही गया....और हम बहुते खुस हूँ....हा हा हा ..

उम्मीद है यह पोस्ट इस धारावाहिक का आखरी एपिसोड होगा...वर्ना चल-चल रे नौजवान...रुकना तेरा काम नहीं चलना है तेरी शान...
हाँ नहीं तो..!!

p.s. इस पोस्ट में 'हम' का प्रयोग कुछ ज्यादा ही हो गया है....काहे कि हम बिहारिन कम झारखंडी हूँ न...इसलिए इस 'हम' को एकवचन समझें...

Thursday, February 9, 2012

हम ठहरे थोड़े उज्जड किसिम के इंसान...


रचना said... आप की एक अभिन्न ब्लॉग मित्र हैं जो आज कल ब्लॉग लेखन में उतना सक्रिय नहीं हैं उनकी एक पोस्ट आयी थी
जिस पर मैने कमेन्ट दिया था जो मैने अपने ब्लॉग पर सहेज दिया हैं क्युकी उनकी पोस्ट पर कमेन्ट दिखने बंद है .
here is the link
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2010/10/blog-post_26.html
उस पोस्ट पर
here is the link
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/10/blog-post_26.html#comment-form
आप की क़ोई आपत्ति नहीं याद पड़ती ????? ना ही मेरे कमेन्ट की तारीफ में आप का क़ोई कमेन्ट .
ख़ैर आते हैं अन्ना की बात पर और ब्लॉग जगत की "नारी " की चुप्पी पर कारण सहज हैं ये वक्तव्य एक पुरुष का हैं और सारे पुरुष जैसे राज भाटिया एक स्वर में इसके समर्थन में खड़े हैं और रहेगे जैसे उस पोस्ट पर थे जो आप की मित्र की थी , वो महिला हो कर ये सब कह सकती थी और इस ब्लॉग जगत में समर्थन भी पा सकती थी . तारीफ़ भी और नारी ब्लॉग पर अगर सही भी लिख दिया जाये तो मुझे आप जैसे सहज ब्लॉगर भी "विघ्नसंतोषी" की उपाधि से नवाजते हैं .

युंकी ई तो जी बस कमाल ही हो गया ...हमको ही नहीं मालूम कि हमरी और खुशदीप जी में इतनी 'गाढ़ी छनती है' ...  देशनामा http://www.deshnama.com/2011/12/blog-post_31.html  पर  ये पोस्ट हम  रांची में ही देख लिए थे...प्लान तो था हमरा कि लौटते वक्त..कुछ लोगों से मिलें...लेकिन बिना मिले-जुले जब हमरे नाम के इतने पोस्टर छप चुके हैं...तो मिलने पर का होगा  ;)..अपन तो रिमोट से ही रिश्ता रखने में यकीन करते हैं..

जब हम वापिस आये तो हमको लगा 'रचना जी' की बात का जवाब नहीं देंगे तो उनको कहीं बुरा ना लग जाए...बस इसीलिए ई पोस्ट लिख मारे हैं..... टिपण्णी में दो बातें हैं..
पहली बात 'आपकी एक अभिन्न ब्लॉग मित्र '.... वैसे तो हमको किसी को भी सफाई देने की कौनो जलूरत नाही है...लेकिन अफवाह फैलाने वाले देश के दुसमन हैं..कभी ई सुने तो सोचे काहे बेफजूल की बात होवे.. ..जहाँ आग न धुआं ..ऐसी बात कही जावे...सो हम किलिअर कर देते हैं...जहाँ तक हमको याद है.. खुशदीप जी से हमरी फ़ोन पर ५-६ बार सामान्य सी बात-चीत हुई है...मिलना आज तक नहीं हुआ है...हम कभी उनके लेखन की प्रशंसा कीये हैं और कभी नापसंद भी कीये हैं...उनसे जितनी बात हुई है और जिस तरह की बात हुई है...उससे कहीं ज्यादा अन्तरंग बात तो हम 'रचना जी' से चैट पर कीये हैं ..फिर भी हम और रचना जी मित्र नहीं हैं....फिन कौन  हिसाब से 'रचना जी' हमको, 'खुशदीप जी' की 'अभिन्न मित्र' होने की पदवी दै डारी  ?? एक बार ऐसे ही कोई , खुशदीप जी आउर हमरी ड्रामा कंपनी खोल दिए...खाम-ख्वाह ...!!

और जहाँ तक रहा लेखन का सवाल....तो रचना जी हम तो वही लिखते हैं जो हमको सही लगता है और जो रुचता है...अब ई भी जलूरी नहीं कि जो हमको सही लगता है ऊ सबको सही लगे.....नहीं लगता तो ना लगे...हम कहाँ पड़ जाते हैं सबके पीछे डंडा-दोइया लेकर कि आप हमरी बात मानबे कीजिये....हम अपनी आपत्ति-सहमती दर्ज कर सकते हैं...उसको मनवा नहीं सकते हैं....अब आज ही देखिये हमरा मन किया कि हाँ खूब सारी वर्तनी की गलती करें...तो हम कर रहे हैं...जिसको जो बोलना है बोले...का फरक पड़ता है...हम तो भई जैसे हैं वैसे रहेंगे...हाँ नहीं तो..!

अब अगर सारे लोग आपकी तरह बुद्धिमान हो जायें आउर सब आपके जैसा ही सोचने आउर वैसा ही लिखने लगें तो आपकी बुद्धिमता का लोहा कौन मानेगा ? फिर आप ठहरीं इतनी सशक्त, क़ाबिल महिला...आप तो सम्हाल रही हैं न समाज में नारी की अवस्था को ...!! मदर टेरेसा तो एक ही हुई...इसी लिए ऊ मदर टेरसा हुई...अब थोक के भाव में मदर टेरेसा होतीं तो का मदर टेरेसा, मदर टेरेसा बन पातीं ? आप अपना काम बहुत मनोयोग से कर रहीं हैं...अब आपके काम में हम टांग अडावें ..कुछ ठीक नहीं लगता है...आप लिखिए ना जो आप को बुझाता है...और हम वही लिखते हैं जो हमको बुझाता है...आप हमसे इत्तेफाक मत रखिये, कोई ज़रूरी नहीं है....लेकिन आप जबरदस्ती खुद से इत्तेफाक रखवाने की काहे कोसिस करतीं हैं...जब हमको लगेगा हम आपकी बात से इत्तेफाक रखते हैं तब रख लूँगी न...भला बताइये पाँचों उन्गरी जब बराबर नहीं है...हिरन्यक्सिपू का बेटा जब प्रहलाद पैदा हो सकता है तो एक न एक ठो बिलागर तो ब्लैक सीप होगा न ई परफेक्ट ब्लॉग फैमिली में...तो हम ऊ ही ब्लैक शीप हूँ... वैसे भी हमको लिखने से ज्यादा काम करने में बिस्वास है....जब मौका मिलता है कर भी जाते हैं..आगे भी येही ईरादा रखते हैं हम...

हम ठहरे थोड़े उज्जड  किसिम के इंसान...आसानी से बात नहीं मानते हैं हम..और हमरा दीमाग थोड़ा दूसरा टाइप से सोचता है...हो सकता है धीरे-धीरे हम भी आपके जैसे सोचने लगे.. लेकिन उसमें अभी टाइम लगेगा...फिलहाल तो हम अपनी सोच से बहुते खुस भी हैं और संतुस्ट भी...आउर आगे भी हमरा पिलान अपने दीमग्वा के हिसाब से लिखने का है...

बाकि यही कहेंगे..बमकियेगा मत...म्यूजिक सुनाती हैं तो सुनने का भी मादा रखिये....

बाकी रहा, खुशदीप बाबू आपके कमेन्ट की तारीफ नहीं किये...तो भाई ई तो आप दोनों का आपसी मामला है..इसमें हम का कह सकते हैं...

है कि नहीं...!!

अच्छा अब छोडिये ई गाना सुनिए...

Wednesday, February 8, 2012

मैं तो हूँ कुछ भी नहीं...


झकझोर दिया मन ने आज,
और मुझे उठा दिया,
श्वाँस और निश्वांस में
न नाद है, न तान है
न समर्पण गान है ।
शेष स्मृति पास है,
संवेदना का ज्वार अब
उतर गया मन से कहीं ।
वस्त्रहीन भावना,
विचर रही यहीं कहीं।
अस्थियाँ सिहर उठीं, 
थीं दधिची जो कभी ।
चन्द्रमा की चांदनी
गाँठ-गाँठ हो गयी ।
मैं कामिनी, मैं दामिनी,
मैं शालिनी, संजीवनी,
प्रतिबिम्ब लिए हूँ खड़ी,
और दर्पण दरक गया ।
रश्मियाँ मेरे सूर्य की,
श्याम-श्याम हो गयीं । 
करुण हृदय-गात है,
बस 
एक सत्य ज्ञात है,
मैं तो हूँ कहीं नहीं,
मैं तो हूँ कुछ भी नहीं.... 
 
 

  

Monday, February 6, 2012

मेरा जीमेल अकाउंट हैक हो गया है...

कल मेरा जीमेल अकाउंट हैक हो गया है...
यह ईमेल अगर किसी को भी मिला हो तो कृपा करके...कोई कार्यवाही ना करें...
धन्यवाद
'अदा'  

Dear Friend,

Hope you get this on time,sorry I didn't inform you about my trip in Spain for a program, I'm presently in Madrid and am having some difficulties here because i misplaced my wallet on my way to the hotel where my money and other valuable things were kept.I want  you to assist me with a loan of 2950 Euros to sort-out my hotel bills and  to get myself back home.I have spoken to the embassy here but they are not responding to the matter effectively,I will appreciate whatever you can afford to assist me with,I'll Refund the money back to you as soon as i return, let me know if you can be of any help. I don't have a phone where i can be reached. Please let me know immediately.
   
    
Thanks And regards,

Swapna Manjusha 'ada'
CANADA, OTTAWA
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Thursday, February 2, 2012

धर्म के नाम पर...?????

मोहमद शाफिया, पत्नी तूबा याह्या और बेटा हमीद
पिछले दिनों कनाडा में शाफिया केस की सरगर्मी बनी रही...
बीते रविवार मोंट्रियल में रहने वाले, अफ़गानी शाफिया दम्पति और उनके बेटे  पर ४ खून करने का, जो ३० जून २००९ को हुआ था, इल्जाम साबित हो चुका और उन्हें फर्स्ट डिग्री मर्डर करने का गुनाहगार पाया गया तथा बिना किसी पैरोल के २५ साल की सज़ा सुना दी गयी...चारों मक्तूलों की लाश रीदो नहर में पारिवारिक कार में डूबी हुई पायी गयी थी...

ये चारों क़त्ल मुजरिमों ने 'ओनर किल्लिंग' के तहत किया...
मोहमद शाफिया, पत्नी तूबा याह्या और बेटे हमीद ने मिलकर, हमीद की ३ बहनें, १९ वर्षीय जैनब, १७ वर्षीय सहर, १३ वर्षीय गीती शाफिया और ५० वर्षीय मोहम्मद शाफिया की पहली पत्नी, जो निसंतान थीं, रोना मोहम्मद अमीर की हत्या कर दी....हत्या का कारण, इन लड़कियों का पाश्चात्य तरीके से रहना साबित हुआ है...दंग हूँ देख कर, पुरुष कहीं भी रहे, नारी को अपनी संपत्ति ही मानता है...इन नारियों ने सर उठाने की कोशिश की तो, अपनी जान से हाथ धो बैठीं...सोचती हूँ नारियों का जीवन अफगानिस्तान में कैसा होगा...जहाँ नेल-पोलिश तक लगाने के लिए पुरुषों की आज्ञा चाहिए...कौन कहता है हमने तरक्की कर ली है...?


कहने को तो हम सभ्य-समाज में रहते हैं...लेकिन आज भी लगता है पुरुष की अपनी कोई इज्ज़त नहीं होती, उसकी इज्ज़त घर की नारी से ही होती है...तभी तो हर वक्त इज्ज़त का ठीकरा नारी के सर पर ही फूटता है...मानो नारी न हुई सम्मान का 'प्रशस्ति पत्र' हुई...पुरुष जो जी में आये करे...लेकिन नारी को इंची-टेप लेकर हर कदम रखना चाहिए...वो क्या पहनेगी, वो कैसे सजेगी, वो क्या खाएगी, वो क्या सोचेगी...हर बात उसे पुरुष से पूछ कर या उसकी अनुमति से करना चाहिए....वाह रे हमारा सभ्य-समाज...!!!

५० वर्षीय रोना मोहम्मद अमीर , १९ वर्षीय जैनब, १७ वर्षीय सहर, १३ वर्षीय गीती शाफिया
मोहम्मद शाफिया ने दावा किया कि उसकी बेटियों ने 'इस्लाम के साथ धोखा किया' और परिवार के सम्मान के साथ खिलवाड़....और उसे इस बात का कोई दुःख नहीं कि उसने यह दुष्कर्म किया..जहाँ तक इस्लामिक संस्थाओं का सवाल है उन्होंने जम कर इस कृत्य की भर्त्सना तो की है..लेकिन क्या सचमुच उनकी सोच बदल गयी है..?

कोई भी सही दिमाग वाला इंसान यही कहेगा कि, जिसे भी अपने धर्म और तथाकथित संस्कृति से प्रेम है, वह अपना देश छोड़ कर किसी और देश को अपना बसेरा ना बनाए...क्योंकि किसी भी देश का कानून, उनके धर्म और संस्कृति से बहुत ऊपर होता है....अगर शाफिया परिवार यहाँ के समाज में नहीं रम नहीं पा रहा था, तो उसे बहुत पहले ही यहाँ से चले जाना चाहिए था....और अफगानिस्तान की तालिबानी संस्कृति को अफगानिस्तान में ही प्रयोग करना चाहिए था...फिर शायद उन्हें वहाँ 'इस्लाम का प्यारा ' माना जाता...परन्तु अब तो बाज़ी उलटी पड़ी है...५८ वर्षीय शाफिया, ४२ वर्षीय उसकी पत्नी और २१ वर्षीय हमीद अपने जीवन का बहुत लम्बा वक्त बिताने वाले हैं,  सलाखों के पीछे...

हैरानी होती है देख कर...अईपैड, मोबाइल, BMW , डोल्लर की ख्वाहिश रखने वाले, ये धर्म के ठेकेदार ,किस तरह दोहरी ज़िन्दगी जी लेते हैं...गौरतलब बात ये भी है कि कनाडा के क़ानून में दो शादी की आज्ञा नहीं है...जबकि शाफिया ने अपनी पहली पत्नी को यहाँ के दस्त्वेजों में अपनी पत्नी नहीं, अपनी कजिन बताया है...वो पहले कजिन रही होगी, बाद में पत्नी तो बन ही गयी थी...क्या इस तरह के झूठ की आज्ञा इस्लाम में है ? अपने स्वार्थ के लिए धर्म को तोडना-मरोड़ना क्या सही माना जाएगा...और ऐसे लोग कैसे सम्मान और संस्कृति की बात करते हैं...??
ये कैसा धर्म है तो लड़कियों के कपड़ों की लम्बाई-चौडाई से दरक जाता है...और उनकी जान लेकर ही सही कहलाता है...

इन चार निर्दोष लोगों की, शर्मनाक हत्याओं के पीछे हाथ है....जाहिल और तुड़ी-मुड़ी तथाकथित 'सम्मान' जैसी अवधारणा....जो आज भी समाज में धूम-धाम से मौजूद है...और उसी थोथे सम्मान को बचाने के लिए तथा अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न और अपना वर्चस्व साबित करने के लिए शाफिया जैसे काहिल, और इंसानियत के नाम पर धब्बे लोग, अपनी ही निरीह बेटियों का शिकार कर, अपने पुरुषत्व का प्रमाण-पत्र देते हैं... क्योंकि नारी पर अपना पुरुषत्व दिखाने से बेहतर विकल्प और क्या हो सकता है भला  !!...लेकिन वो भूलते हैं कि ऐसा करके वो सिर्फ अपनी नपुंसकता ही दिखा जाते हैं...और कुछ नहीं...!!

मैं कनाडियन जस्टिस सिस्टम की आभारी हूँ जिसने ऐसे हैवानों को उनकी सही जगह दिखा दी...मौत की सज़ा तो इनके लिए बहुत आसन सज़ा होती...अब हर दिन का हर पल ये अपने होने पर पछतायेंगे और कोसेंगे कि ये जिंदा क्यूँ हैं....तब उन्हें किसी के जीवन का सही मूल्य पता चलेगा...ईश्वर उन्हें कभी भी शांति ना दे...

हाँ नहीं तो..!!



Wednesday, February 1, 2012

चरमराती अर्थ-व्यवस्था और 'विवाह संस्था'



कल एक समाचार पर नज़र पड़ी...ईजिप्ट में कुँवारों की भरमार होती जा रही है...जो विवाह योग्य तो हैं लेकिन विवाह कर नहीं सकते...कारण है उनकी माली हालत...पैसे की इतनी तंगी हो गई है कि लड़के अब सिर्फ प्रेम कर सकते हैं विवाह नहीं....

भारत में भी आज का युवा वर्ग ' विवाह ' करने को उतना इच्छुक नज़र नहीं आता...और कनाडा-अमेरिका में तो पहले से ही इस 'बंधन' को बंधन ही माना जाता है....'लिव-इन रिलेशन' जिस तरह भारतीय समाज में सहजता से अपना अधिपत्य जमाता जा रहा है...लगता है एक दिन 'विवाह' नाम की संस्था हमारे समाज से लुप्त हो जायेगी.... 'विवाह' जैसी संस्था का अंजाम अब जो भी हो लेकिन ग़ौरतलब बात ये है कि बात आकर रूकती है पैसे पर ही....लड़की और उसके माँ-बाप पैसेवाला वाला घर और वर चाहते हैं ..और लड़के नौकरीवाली लड़की...
शादी अब जोड़ों के लिए, अपना भविष्य सुरक्षित करने का साधन बनने लगा है...
जोड़े बेशक ऊपर से बन कर आते हैं परन्तु, उनका जुड़ना या ना जुड़ना दुनिया की अर्थ-व्यवस्था पर भी अब निर्भर करने लगा है...
ईजिप्ट इस बात का ज्वलंत उदाहरण बन चुका है कि उसकी डूबती अर्थ-व्यवस्था ने 'विवाह' जैसी बुनियादी ज़रुरत पर अपना अंकुश रख दिया है...तो क्या सचमुच दुनिया की चरमराती अर्थ-व्यवस्था 'विवाह' जैसी संस्था को निगल जाने को आतुर है या फिर आज की युवा पीढ़ी अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है  ?
इस बात पर ज़रा गौर फरमाएं...!!