Tuesday, December 31, 2013

नव वर्ष....!!

आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

नव वर्ष में नयी दिशाएँ 
जाग गयीं नई आशाएं 
घुली फ़िज़ा में शोख़ी कितनी   
अब गूँजेंगी नई गीतिकाएं 
उत्सव के नए अर्थ बनेंगे 
साकार होंगी नई कल्पनाएं 
जनमन अब ना शापित होगा 
मिल-जुल सबकी व्यथा भगाएं
नव युग का नव-सृजन करेंगे  
आओ मिल हम संघर्ष गुनगुनाएँ 
होगी फिर एक और नई सुबह 
चलो एक नया सूरज बनाएँ ! 

Friday, December 27, 2013

'देवयानी-संगीता' घोटाला.....

इन दिनों 'देवयानी-संगीता' का मामला ज़ोरों पर है । कई ब्लॉग्स पर इसके बारे में पढ़ने को मिला । Anurag Sharma जी की पोस्ट बहुत ही संतुलित और सही पक्ष रखती है । मैं भी अपनी कुछ बातें रखना चाहती हूँ ।  

किसी भी दूसरे देश के कानून को अधिकतर भारतीय, बस भारतीय संस्कृति या भारतीय क़ानून के चश्मे से ही देखते हैं  ? अमेरिका का अपना कानून है और अगर आप अमेरिका में हैं तो आपको अमेरिका की कानून-व्यवस्था को मानना होगा, अगर नहीं मानने की इच्छा है तो अमेरिका नहीं जाना बेहतर होगा ।  

देवयानी डिप्लोमैट है, उसने अपने घरेलू काम के लिए एक कामवाली जिसका नाम संगीता है, भारत से अमेरिका ले जाने की सोची । देवयानी को अगर अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए मेड चाहिए तो वो मेड अमेरिकन कानून के हिसाब से ही लायी जा सकती है । मेड लाने के लिए एक प्रोसेस है, अखबार में ऐड देना, ये साबित करना कि जैसी मेड देवयानी को चाहिए वैसी मेड अमेरिका में मिलेगी ही नहीं वो सिर्फ और सिर्फ भारत में उपलब्ध है, और वो सिर्फ संगीता ही है (जो अपने आप में ही एक झूठ है, फिर भी चलिए मान लिया )  बाक़ायदा ह्यूमन रिसोर्स डिपार्टमेंट से अप्रूव कराना पड़ता है, मेड का इमिग्रेशन डिपार्मेंट में इंटरव्यू होता है, उसे सेलेक्शन क्राईटेरिया में पूरा उतरना होता है, मसलन स्पोकन एंड रिटन इंग्लिश, आपातकाल को हैंडल करना इत्यादि। उसके बाद मेड का अपना मेडिकल चेकप होता है कि वो शारीरिक रूप से स्वस्थ है उसके बाद कॉन्ट्रैक्ट बनता है, और तब जा कर ही वीज़ा मिलता है । बाद में अगर उस कॉन्ट्रैक्ट में कोई बदलाव होता है तो फिर HRD को इन्फोर्म किया जाता है । सारी शर्तें मानव संसाधन विभाग के अनुसार होना चाहिए। 

संगीता भारतीय दूतावास की कर्मचारी नहीं थी, वो देवयानी की घरेलू नौकरानी थी, इसलिए उसे देवयानी से ही तनखा मिलनी थी और वो तनखा अमेरिका के  वेतनमान के नियम के अनुसार ही मिलना होगा जो $९.७५ / hr है, सप्ताह में सिर्फ ४० घंटे ही काम लिया जा सकता है, सप्ताह में एक  छुट्टी अनिवार्य है, मेड के किये अलग कमरा का इंतेज़ाम, किचन, बाथरूम और लॉन्डरी के साथ करना होगा। मेड  की डाक्टरी सुविधा, डेंटल के साथ,  की भी जिम्मेदारी एम्प्लॉयर की होती है, साथ ही एम्प्लॉयर के हिस्से का सी.पी.एफ/जी. पी. एफ़. का भुगतान भी करना पड़ता है । संगीता जैसे एम्लोई सही तरीके से अपना टैक्स भी भरते हैं । ये क़ानून है और इसमें किसी भी तरह का कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए। हमारे क़ाबिल राजनयिक जिनके लायक हाथों में भारत की धवल छवि को दिखाने, बताने, समझाने का सारा दारोमदार होता है, उनसे इतनी तो उम्मीद की ही जा सकती है कि वो इन नियमों का पालन ईमानदारी से करें। लेकिन क्या ऐसा होता है या फिर इस बार भी ऐसा हुआ क्या ?? भारतीय राजनयिक द्वारा क़ानून का उलंघन करना, फ्रॉड करना क्या अच्छी बात हुई ?? 

संगीता को देवयानी का अपने व्यक्तिगत काम के लिए hire करना देवयानी का व्यक्तिगत मामला है और इस मामले में घाल-मेल करना उसका व्यक्तिगत अपराध है इसमें डिप्लोमेटिक इम्युनिटी की बात ही नहीं आती, यह सीधा-सीधा सिविल केस बनता है और सिविल केस में जिस तरह किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है उससे बहुत ज्यादा नरमी के साथ देवयानी को गिरफ्तार किया गया, और जैसी स्ट्रिप चेकिंग होती है वैसा ही किया गया । कानून सबके लिए बराबर है । इस तरह की चेकिंग के पीछे सुरक्षा ही कारण होता है, कहीं किसी ने कुछ छुपाया न हो, जो किसी के लिए भी घातक हो सकता है, यहाँ तक कि गिरफ्तार व्यक्ति के लिए भी, जो स्वयं को भी नुक्सान पहुंचा सकता है। 

हो सकता है भारत में फ्रॉड-उराड करना बहुत बड़ा अपराध ना माना जाता हो, लेकिन ये उम्मीद करना कि दुनिया के सारे देश इन बातों को हलके से लेंगे, ग़लत है । क्या भारत के सरकारी नुमाईन्दे दुसरे देश में आकर कानून उल्लंघन करने के जोखिम से वाकिफ नहीं हैं ? क्या भारत की सरकार का यह कर्तव्य नहीं है कि वो सुनिश्चित करे कि भारत के राजनयिक जिस भी देश में भेजे जाते हैं वो उस देश के कानून का अवश्य पालन करें। क्या देवयानी ने वीज़ा फ्रॉड करने की हिम्मत इसलिए की, कि उसे डिप्लोमेटिक इम्युनिटी का भान था ? आज कल कुछ ज्यादा ही सुनने/देखने में आता है ये सब ।डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी का दुरुपयोग करने की आदत बन गयी है अधिकतर डिप्लोमेट्स को । जैसे किराया नहीं देना, बिल नहीं पे करना, ड्रंक ड्राईविंग, सेक्स क्राईम, डोमेस्टिक स्लेवरी, अवैध शराब, अवैध रूप से इमिग्रेशन करवाना और न जाने क्या क्या ।  ये सब वो तब कर रहे हैं जबकि इनलोगों को इतनी ज्यादा सुविधाएं एवं सुरक्षा प्राप्त है । जब इनलोगों को इतनी सुविधा और फ्रीडम दी जाती है तो इन पर बहुत भरोसा भी किया जाता है इसलिए और भी बड़ा कारण होता है कि ये अपने देश, अपने पद और जिस देश में ये जाते हैं, इन सबकी गरिमा और विश्वास का पूरा ख्याल रखें।    

हैरानी होती है देख कर कि एक गलत काम करने वाले को बिना कुछ जाने-समझे, बेमतलब इस तरह शह दिया जा रहा है और ज्यादा हैरानी इस बात की है कि इस घटना को अमेरिका की दादागिरी, हिन्दू विरोधी, दलितवर्ग-उच्चवर्ग और न जाने क्या-क्या रंग दिया जा रहा है।  ज़रा सोचिये जो बाहर के लोग अमेरिका काम करने आते हैं, उनको यहाँ की सरकार ये सारी की सारी सुविधाएं अमेरिकन एम्प्लॉयर द्वारा मुहैय्या करवाती है,  किसी भी तरह का कोई डिस्क्रिमिनेशन नहीं होता, तभी तो लोग यहाँ खुश होकर आते हैं :) लेकिन अपने ही लोगों को इन सुविधाओं से महरूम करने की कोशिश अपने ही लोग, अपने ही एम्बेसी के छाँव तले करते हैं, फिर भी उनको डंके की चोट पर सही करार दिया जा रहा है आखिर क्यों ? हाँ इतना ज़रूर कहा जा सकता है, कुछ लोग ऐसे हैं जो कहीं भी चले जाएँ इनकी सामंतवादी अवधारणाएँ नहीं छूटतीं हैं तो नहीं ही छूटतीं हैं । 

हाँ नहीं तो !!!


Saturday, December 21, 2013

बेचारा एक आम आदमी !!!

हमारे यहाँ एक कहावत है " हारो तो हूरो और जीतो तो थूरो "
अर्थात 'चित भी मेरी पट भी मेरी और अंटा मेरे बाप का "
बेचारा एक आम आदमी !!!

फेसबुक पर एक स्टेटस पढ़ा, काफी सही लगा, बिलकुल मेरे मन की बात ..... :)

कमाल जनता है मेरे देश की

जब आन्दोलन कर रहे थे तो कहने लगे अनशन आन्दोलन से कुछ नही होगा पार्टी बनाइये चुनाव लड़िये!

चुनाव लड़ने लगे तो कहने लगे, नौसिखिये हैं, बुरी तरह हारेंगे!

चुनाव जीत गये तो कहते हैं, सत्ता के भूखे हैं!

सत्ता छोड़ के विपक्ष मे बैठने लगे तो कहते हैं, के जनता को किये वादे पूरे नहीं कर सकते इसलिये डर गये!

जनता को किये वादे पूरे करने के लिये सरकार बनाने लगे तो कहते हैं के जनता को धोखा दे कर कांग्रेस से हाथ मिला लिया! 

जनता से पूछने गये की क्या कांग्रेस से समर्थन लेके सरकार सरकार बना सकते हैं, तो कहते है की क्या हर काम अब जनता से पूछ के होगा!



मेरे भाई आखिर चाहते क्या हो? 

इतने सवाल 50 सालों मे कांग्रेस भाजपा से कर लेते तो आज आम आदमी पार्टी की ज़ुरूरत ही नही पैदा होती!!


कमाल जनता है मेरे देश की जब आन्दोलन कर रहे थे तो कहने लगे अनशन आन्दोलन से कुछ नही होगा पार्टी बनाइये चुनाव लड़िये! चुनाव लड़ने लगे तो कहने लगे, नौसिखिये हैं, बुरी तरह हारेंगे! चुनाव जीत गये तो कहते हैं, सत्ता के भूखे हैं! सत्ता छोड़ के विपक्ष मे बैठने लगे तो कहते हैं, के जनता को किये वादे पूरे नहीं कर सकते इसलिये डर गये! जनता को किये वादे पूरे करने के लिये सरकार बनाने लगे तो कहते हैं के जनता को धोखा दे कर कांग्रेस से हाथ मिला लिया! जनता से पूछने गये की क्या कांग्रेस से समर्थन लेके सरकार सरकार बना सकते हैं, तो कहते है की क्या हर काम अब जनता से पूछ के होगा! मेरे भाई आखिर चाहते क्या हो? इतने सवाल 50 सालों मे कांग्रेस भाजपा से कर लेते तो आज आम आदमी पार्टी की ज़ुरूरत ही नही पैदा होती!!

Thursday, December 12, 2013

नामालूम सी ज़िन्दगी की, तन्हाई पिए जाते हैं.....


मुतमा-इन ज़िन्दगी से, कुछ ऐसे हुए जाते हैं
क़िस्मत के फटे चीथड़े, बेबस हो सीये जाते हैं

तेरा वजूद होगा, मेरे लिए भी लाज़िम 
नामालूम सी ज़िन्दगी से, तन्हाई पिए जाते हैं

बर्क-ए-नज़र कितनी, गिरतीं रहीं हैं सर पर
बेअसर सर को अब तो, बा-असर किये जाते हैं

इक आरज़ू तो है ही, इक बहार खुल के आये  
इस एक ऐतमाद पर, हम गुज़र किये जाते हैं

ग़र दुआ भी देंगे तुमको, तो कितनी दुआयें देंगे
साँसों के साथ उम्र भी, अब नज़र किये जाते हैं

हम वो नदी हैं जिसके, किनारे ग़ुमगश्ता हो गए 
उन किनारों की ख़ोज में हम लहर लिए जाते हैं 

हमको क्या पड़ी 'अदा', बहारें आये-जाएँ
मौसम-ए-रूह की हम, बस क़दर किये जाते हैं 


मुतमा-इन = संतुष्ट 
बर्क़-ए-नज़र = नज़रों की बिजलियाँ  
ऐतमाद = विश्वास 
लाज़िम = महत्वपूर्ण, आवश्यक 
ग़ुमगश्ता=खोया हुआ 





Wednesday, December 11, 2013

'Thousand Islands'.....

हमारे घर से लगभग डेढ़ घंटे की दूरी पर एक निहायत ही ख़ूबसूरत सी जगह है 'Thousand Islands'जहाँ हज़ारों छोटे-बड़े द्वीप हैं और उन द्वीपों पर बेइन्तेहाँ खूबसूरत घर । आपको ९० मिनट की बोट क्रूस लेनी होगी और आप यह स्वर्गीय नज़ारा देख सकते हैं 
ये सारे द्वीप सेन्ट लॉरेंस नदी में हैं ।  इस नदी पर कैनेडा और अमेरिका दोनों का अधिकार है 
कैनेडियन वॉटर में जाने के लिए हमें पासपोर्ट नहीं चाहिए लेकिन अमेरिकन वॉटर में जाने के लिए हमारे पास पहचान पत्र का होना आवश्यक है 
यहीं आपको 'बोल्ट का किला' भी देखने को मिलेगा। इस किला का निर्माण सन १९०० में मशहूर उद्योगपति जॉर्ज बोल्ट ने अपनी पत्नी लुईस के लिए करवाना शुरू किया था, लेकिन किला के पूरे होने से कुछ ही महीने पहले लुईस का निधन हो गया । इस घटना से श्री बोल्ट इतने आहत हुए कि उन्होंने किले का काम तुरंत बंद करवा दिया। किला पूरे ७० सालों तक बंद रहा, बाद में इसे पब्लिक वियूईंग के लिए खोल दिया गया । 
आपलोगों को उस जगह की एक झलक दिखाना चाहती हूँ 
हम गर्मियों में अक्सर वहाँ घूमने जाते रहते हैं । लेकिन वहाँ की तसवीरें जो हमने खींचीं हैं, वो सारी तसवीरें, तस्वीरों को अम्बार से निकाल नहीं पाय़ी, फिलहाल ये तसवीरें 'गूगल के सौजन्य से' :)
तसवीरें थोड़ी बेतरतीब से लगी हुईं हैं, कुछ तसवीरें बोल्ट कैसेल की हैं और कुछ दूसरे घरों की जो छोटे-छोटे द्वीपों पर हैं । कुछ द्वीप इतने बड़े हैं कि वहाँ अस्पताल, बच्चों के स्कूल, दुकानें इत्यादि सभी कुछ हैं, बाकायदा वहाँ शहर बसा हुआ है और हर तरह की सुविधा के साथ लोग रहते हैं ।  


यह पुल कनेडियन वॉटर और अमेरिकन वॉटर को अलग करता है 





बोल्ट किला 


बोल्ट किला 

बोल्ट किला 

बोल्ट किला 


बोल्ट किला  का बोट हाऊस 





बोल्ट किला 

















बोल्ट किला 
















बोल्ट किला