मिस्टर डान एंड मिसिज डान..हाल-फिलहाल |
आज माँ-बाबा पहुँच रहे हैं कनाडा, पूरे तीन साल बाद उनको देखना होगा और मेरी बिटिया मिलेगी उनसे पूरे १५ (१५ नहीं ५ साल बाद ग़लती से मिश्टेक हो गया है, ५ साल पहले तो वो लोग ख़ुद ही ईहाँ आए थे, हाँ चिन्नी को भारत गए हुए १५ साल हो गया है, जब ऊ एक साल कि थी तब ईहाँ कनाडा आई और तब से गई ही नहीं है...रोज सुनाती है...सईद उसी का झोंक में १५ लिखा गया ...वैसे भी डान का असर बहुत ज़बरदस्त है...एको ठो काम ढंग से नहीं हो रहा है ..हाँ नहीं तो ...!) साल बाद, देखना चाहती हूँ क्या दृश्य होगा, एक हफ्ते से ही डर रही हूँ, सब कुछ व्यवस्थित होना चाहिए, उनके आराम में कोई कमी न हो, हफ्ते भर से ही लग रहा है जैसे अब आवाज़ दे देंगे...'मुन्ना ये कहाँ है, मुन्ना वो काम क्यूँ नहीं हुआ....?
माँ-बाबा अकेले रहते हैं राँची में..लेकिन अकेले कहाँ हैं...हमेशा मेरे दोस्तों ने उनका साथ दिया...हर बात के लिए...
हुआ यूँ कि अचानक माँ को लगा कि कनाडा बच्चों से मिल आना चाहिए...मैंने कहा भी अगले साल आओ माँ, अब तो ठण्ड शुरू हो जायेगी...लेकिन माँ तो माँ है..वो कहाँ मानती है ..
ख़ैर माँ-बाबा का हुक्म सर-आँखों पर..मैंने फटाफट अपने दोस्तों को गोहार लगायी, उर्सुला, परिमल और माधुरी...
परिमल मुझसे ६ महीने बड़ा है, हमारा बचपन एक साथ गुज़रा है, अपने सात भईयों में सबसे छोटा, हमरा पडोसी भी था और सारे बड़े भईया मेरे पिता जी के विद्यार्थी...हमने साथ-साथ पढाई शुरू की ...के.जी. से.........ये मेरा पहला दोस्त बना...और आज तक है...
उर्सुला...मुझसे दो साल बड़ी है...जब सेंट. जेवियर्स में फर्स्ट इयर में जब मैं गई..तो मेरे क्लास में एक लड़की को देखा...बहुत चुपचाप अकेली रहती थी...सिर्फ बाहरी रंग-रूप देखने वाली दुनिया की नज़रें उस मन की खूबसूरत परी पर नहीं जाती थीं....मैंने उससे दोस्ती कर ली और उस दिन से आज तक ..हम कभी अलग नहीं हुए हैं...यहाँ तक कि मेरी शादी के बाद जो कपल की तस्वीर होती है...उसमें दो नहीं ३ लोग हैं...मैं, उर्सुला और संतोष (कुछ और सोचने कि ज़हमत मत कीजियेगा)..उर्सुला इलाहाबाद बैंक में ब्रांच मेनेजर है...
माधुरी...रिश्ते में मेरी मौसी लगती है लेकिन है मुझसे एक साल छोटी...हमलोग एक साथ हॉस्टल में थे..जब मैं क्लास ६ में थी और ये क्लास ५ में...वो दिन और आज का दिन...कभी भी दूर नहीं हुए...माधुरी कोलकाता एअरपोर्ट की मैनेजर थी...फिलहाल रांची एअरपोर्ट में है..अब क्या position है उसकी नहीं बता सकती....लेकिन मालकिन तो है इतना मुझे पता है ...
ये तो था मेरे दोस्तों का इंट्रो.....हाँ तो, परिमल के जिम्मे वीजा का सारा काम करना, बेशक डोकुमेंट मैंने भेजे, टिकट का इंतज़ाम और माँ-पिताजी को एअरपोर्ट तक पहुँचाने का जिम्मा, माधुरी के जिम्मे एयर क्राफ्ट के अन्दर उनकी सुविधा का जिम्मा और उर्सुला के जिम्मे सारी शाप्पिंग और पैकिंग...
परिमल कटक में रहता है, उसकी अपनी कंपनी है, बहुत ही सफल बिजिनेस मैन है, उसने वहीँ से सारा इंतज़ाम किया...वीजा, टिकेट, होटल इत्यादि ..
फिर ८ तारीख को परिमल राँची आ गया ..मेरे सारे दोस्तों ने मिलकर माँ-बाबा की सारी शाप्पिंग और पैकिंग कर दी ...उनको कुछ भी नहीं सोचना पड़ा..
९ तारीख को सारे हाज़िर थे राँची के घर पर, सब साथ ही एयर पोर्ट गए...और मैं हाज़िर थी फ़ोन द्वारा...'जेड सिक्युरिटी' की तरह मुझे हर पल की ख़बर मिलती रही...
माधुरी और उसके पति सतीश, दोनों ही राँची एअरपोर्ट में कार्यरत हैं, सतीश जी राँची एयर पोर्ट के मैनेजर हैं ...दोनों ने माँ-बाबा को एयर क्राफ्ट के अन्दर सुरक्षित बिठाया...फिलहाल माँ-बाबा ट्रवेल कर रहे हैं...
आज मुझे जाना है उनको लेने के लिए ...टोरोंटो..बस अब निकल ही रही हूँ...
इसलिए आपलोगों से थोड़ी देर के लिए दूर ही रहूँगी...लगभग १०-१२ घंटे.....
मेरी ख़ुशी में आप भी शामिल हो जाइए...तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी...
मिलते हैं जी आप सब से एक छोटे से ब्रेक के बाद...
हाँ नहीं तो..!!
माता पिता का आना मुबारक ।
ReplyDeleteईद मुबारक !
bhn ji mubark ho maan paapa ka sath nsib vaalon ko miltaa he fir aap to jitne dinon me mil rhi hen aapki to bs id ho gyi bdhaayi ho allaah sbhi ko tndrust rkhe . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteकहते हैं कि खुशिय़ां बांटने से बढ़ती हैं। पेरेंट्स से मिलने की खुशी आपने हम सब से शेयर की है तो ये खुशी बढ़ेगी ही।
ReplyDeleteमां बाबूजी के सुखद कनाडा प्रवास की कामना करते हैं, happy family union.
प्रज्ञा बिटिया तो फ़िर होश संभालने के बाद पहली बार अपने नाना-नानी से मिलेगी, आपकी पूछ कम होने वाली है जी, आखिर मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता है न? हा हा हा।
१५ साल बाद ! यह तो वास्तव में ही बहुत लंबा समय है. ख़ैर, ढेरों शुभकामनाएं.
ReplyDeleteकितने बजे फ्लाईट है भई??
ReplyDeleteअरे वाह ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई आपने ..मजे कीजिये जी भर के प्यार बटोरिये और बेटी से मिलने का दृश्य भी हमें सुनाइए ...
ReplyDeleteएन्जॉय ...
जी हाँ समझ सकती हूँ आज आपके पैर ज़मीन पर ना होंगे दी ......माता पिता का सानिध्य बड़ा अमूल्य है इस सौभाग्य के आनंद लीजिये .अंकलजी आंटीजी का अभिवादन हम भी करते है आपके साथ ...
ReplyDeleteयह भी देखिएगा समय निकलकर अनुष्का का ब्लॉग है
मैं अनुष्का .....नन्ही परी
माँ तो माँ है..वो कहाँ मानती है ..
ReplyDeleteबाकी पोस्ट तो बहुत ही अच्छी है। दो पंक्तियां याद आ गई।
स्नेह. शांति, सुख, सदा ही करते वहां निवास
निष्ठा जिस घर मां बने, पिता बने विश्वास। ---
अंक-8: स्वरोदय विज्ञान का, “मनोज” पर, परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!
बहुत सुंदर लगी आज की आप की पोस्ट अब मां बाप के संग खुब सेर करे, यह मोका किसी किसी को ही मिलता है सिर्फ़ खुश किशमत बालो को, हमारा प्रणाम कहे दोनो को. धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके दोस्तों से मिलकर। आपके माता जी व पिता जी को प्रणाम।
ReplyDeleteWish they have nice journey!!
ReplyDeleteहो गए हैं जी आपकी खुशी में शामिल और देख लिया है श्रीमान और श्रीमती डान जी के आने का असर आप पर और आपके दोस्तों पर...और अब एक गाना याद आ रहा है...
ReplyDeleteआप का क्या होगा ....जनाबेआली ????? हा.हा.हा.
ओके एन्जोये .
हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए
मैं भी आपकी ख़ुशी में शामिल हूँ !!
ReplyDeleteआपके दोस्त अच्छे लगे ! आपके माता पिता को हमारी तरफ से भी खुशआमदीद कहियेगा ! अंदाज़ तो है कि सब बेहतरीन गुजरेगा :)
ReplyDeleteमाँ-पिताजी को मेरा प्रणाम कहियेगा...
ReplyDeleteबहुत बढिया-मिलिए मां पिताजी से।
हमारा भी प्रणाम कहिएगा।
सभी को गणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई
हमीरपुर की सुबह-कैसी हो्गी?
ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
बहुत बहुत बधाई हो...आपके मित्रों का परिचय भी अच्छा लगा|
ReplyDeleteमां बाबा से तीन साल बाद मिलने की खुशी महसूस की जा सकती है. उनको सादर प्रणाम. गणेश चतुर्थी एवम ईद की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
इससे अच्छी क्या बात हो सकती है ईद पर और गणेशत्सव पर
ReplyDeleteपता नहीं क्यों आज की आपकी यह पोस्ट पढकर मुझे बहुत खुशी सी महसूस हो रही है।
ReplyDeleteसब अच्छा-अच्छा सा लगने लगा है। सचमें!
प्रणाम स्वीकार करें
आज तो रश्क हो रहा है ऐसे अच्छे दोस्तो से परिचय पाकर। माँ-बाबूजी को हमारा भी प्रणाम कहिएगा और साथ ही उन्हें अपनी पोस्ट भी पढा देना। बता देना कि देखो उनकी बेटी उन्हें डॉन लिख रही है। हा हा हा हा। अब तो माँ के हाथ का हलुवा खाने को मिलेगा। ऐसा करो कि कनाडा में ब्लोगर मीट रख लो, हमारे भी मजे हो जाएंगे।
ReplyDeleteSabhi Pathakjan ke liye..
ReplyDelete(१५ नहीं ५ साल बाद ग़लती से मिश्टेक हो गया है, ५ साल पहले तो वो लोग ख़ुद ही ईहाँ आए थे, हाँ चिन्नी को भारत गए हुए १५ साल हो गया है, जब ऊ एक साल कि थी तब ईहाँ कनाडा आई और तब से गई ही नहीं है...रोज सुनाती है...सईद उसी का झोंक में १५ लिखा गया ...वैसे भी डान का असर बहुत ज़बरदस्त है...एको ठो काम ढंग से नहीं हो रहा है ..हाँ नहीं तो ...!)
डान से डान का मिलन ...क्या खूब नजारा रहा होगा ..
ReplyDeleteमन की खूबसूरती देखकर मित्र बना लेती हैं आप ...क्या बात है ..ओर हम तो तन -मन दिखे बिना ही ...:):)
परिमल , माधुरी ओर उर्सुला का परिचय प्राप्त हुआ ...खुशकिस्मत होते हैं वे लोंग जिनके दोस्त समय के साथ बदलते नहीं ...
माँ -बाबूजी को हमारा प्रणाम कहियेगा ...!