आज मेरी आँख से तू, उतर जाए तो अच्छा है
इस दिल से निकल अपने घर, जाए तो अच्छा है
नाज़ुक है बड़ा ख्वाब जो, मैंने छुपा रखा है
छूटे वो हाथों से, बिखर जाए तो अच्छा है
माना ग़ज़लगोई, पेचीदगियों का मसला है
इक शेर हमसे भी, अब सँवर जाए तो अच्छा है
बिठाया है दरबान, इस दिल के दरोदाम पर
तू इनकी नज़र बचा, गुज़र जाए तो अच्छा है
घटाएँ घटाटोप 'अदा', रेत की घिर आई हैं
इक ज़रा मेरी भी नज़र, भर जाए तो अच्छा है
दुनिया की निगाहों में,
ReplyDeleteभला क्या है, बुरा क्या है,
ये बोझ अगर दिल से,
उतर जाए तो अच्छा,
ये जुल्फ अगर खुल के,
बिखर जाए तो अच्छा...
जय हिंद...
रिपीट ब्लॉग्कास्ट है न ये?
ReplyDeleteलेकिन कहा बहुत खूब है। और चित्र...आपका चित्र संयोजन भी बहुत उम्दा है।
एक शेर अब हमसे भी संवर जाए तो अच्छा ...
ReplyDeleteक्या बात है ...
चित्रों का आपका कलेक्शन और सलेक्शन शानदार है ...!
बेहतरीन, हर एक छन्द।
ReplyDeleteघटाएँ घटाटोप 'अदा', रेत की घिर आई हैं
ReplyDeleteइक ज़रा मेरी भी नज़र, भर जाए तो अच्छा है
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है.... हर एक शेर खूबसूरत है.
एक नज़र यहाँ भी डालें:
राष्ट्रमंडल खेल
अच्छेपन के साथ इतनी सारी उम्मीदें ! अच्छाई के लिए इतनी सारी दुआएं ...अच्छी लगीं :)
ReplyDeleteवाह .....
ReplyDeleteकुछ एकाद दिन की खोमोशी के बाद,
ReplyDeleteतेंदुलकर यूँ फोर्म में आए तो अच्छा है.
बढ़िया ग़ज़ल, लिखते रहिये ....
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteनमस्कार....
ReplyDeleteलाजवाब !
ReplyDeleteवाह वाह बहुत ख़ूब ग़ज़ल..........
आपको बाँच कर मुझे भी मेरी इसी ज़मीन पर लिखी गई एक पुरानी ग़ज़ल याद आ गई
बधाई हो !
`नाज़ुक है बड़ा ख्वाब जो, मैंने छुपा रखा है’
ReplyDeleteमुझ से मत पूछ मेरे इश्क में क्या रखा है :)
सब कुछ बहुत अच्छा है ।
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