मैं नहीं !
अंतिम वृक्ष,
इस प्रीत के मरुस्थल में,
आयेंगे अनेक
चिर अजातरिपु,
कर्मयोगी,
इस कुरुक्षेत्र में,
परन्तु...
इस अनंत पथ के
एक किनारे,
एक किनारे,
मेरी छाँव तक
तुम आ पहुँचे हो,
तनिक ले लो विश्राम,
तत्पश्चात,
संचित कर लो हृदय में
पारिजात सी छवि,
और चन्दन सी स्मृति
आगे...
नूतन लक्ष्य का
प्रथम दिवस दे रहा
आह्वान ...
तुम्हें जाना है, पथिक,
स्वीकार करो प्रणाम...!!
अब एक गीत...