ये थका-थका सा है जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है
तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है
ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीं तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली
तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है
ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने
है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है
ये दिल कभी तो धड़क गया, कभी बिखर गया गुलाब सा
है ख़ुमार तारी क्यूँ 'अदा', क्या जगा हुआ कोई ख़्वाब है ?
है ख़ुमार तारी क्यूँ 'अदा', क्या जगा हुआ कोई ख़्वाब है ?
है बसा हुआ कोई शऊर है, मेरे ज़ह्न के किसी कोने में
है चमक गौहर की कोई, या नज़र में मेरी आब है