Tuesday, September 21, 2010

पुराना सामान नई पैकिंग....हर्ज़ क्या है...!




कुछ दिनों पहले किसी से मेरी बात हो रही थी आज के रिमिक्स गानों के विषय में  ...मेरी परिचिता को बहुत बुरा लगता है कि आज कल पुराने गानों को नया रूप देकर गाया जा रहा है...उनका कहना था , इस तरह से इन गानों की गंभीरता और गरिमा को ठेस लगती है...यही नहीं यह चोरी भी है...परन्तु मैं उनकी बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ ...

हमें ख़ुश होना चाहिए कि पुराने गानों को नया रूप देकर आज की पीढ़ी कम से कम गा तो रही है..वर्ना इन गानों को लुप्त होने में कोई समय नहीं लगता ...इन सुरीले गानों को जिंदा रखने का इससे बेहतर और कोई विकल्प नहीं हो सकता है...इन गानों को नयी तकनिकी से सजा कर नए लोगों के लिए आकर्षक बना कर एक तरह से देखा जाए तो, हमारी धरोहर को बचाया जा रहा है...इसलिए इसमें मुझे कोई बुराई नज़र नहीं आती है...हम सिर्फ़ अपनी पीढ़ी तक की बात न सोचें..आनेवाली पीढ़ी भी इन गानों को बचाने में प्रयत्नशील है...जितने भी संगीत की प्रतियोगिता होती है, आज के बच्चे भी इन्हीं गानों को गाते हैं...जिन्हें सुनकर मन आह्लादित होता है...
आप के क्या विचार हैं इस बारे में ज़रा बताइयेगा..

रही बात चोरी की तो, बड़े कलाकारों की कृतियों की कभी भी चोरी नहीं होती...ये कृतियाँ अजेय हैं ...जिस रूप में भी होंगी रचेता की पहचान बनी रहेगी....

हिंदी साहित्य में भी बहुत दिग्गज कवि हुए हैं, उनकी कवितायें हमने, आपने, सबने पढ़ी हैं..लेकिन समय के साथ हम सभी उनको भूल रहे हैं...एक समय ऐसा भी आएगा जब ये कवितायें आम जनों के जीवन से विलुप्त हो जायेंगी, यदा कदा ही कभी उनका ज़िक्र होगा...और यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा...क्यों नहीं हम उन कवियों की कृतियों से प्रेरणा लेकर कुछ नया करने की कोशिश करें,  एक नया दृष्टिकोण देने की कोशिश करें...और फिर इसमें बुराई भी क्या है....जब उन्होंने इन कविताओं को लिखा था तो उनका माहौल अलग था, वो समय अलग था, वो मनस्थिति अलग थी, वो परिवेश अलग था, अब समय बदल गया है, लोग बदल गए हैं, सोच बदल गई है....बेशक विषय वही हैं...अगर इन कविताओं को एक नया प्रारूप दिया जाए तो हर्ज क्या है...इन रचनाओं को सरलता प्रदान की जाए उससे लोगों का शब्द ज्ञान बढेगा और तब शायद ये आज की नयी पीढ़ी और जन मानस तक अपनी पहुँच बना सकेंगे...और इस कोशिश में लोग नया सीख भी सकेँगे......आप क्या कहते हैं..?


20 comments:

  1. मेरा मानना है गाने खाने [भोजन/डिश] की तरह होते हैं

    माना आप एक ख़ास डिश जो आपने बहुत पहले खाई थी को आप पसंद करते हैं पर अब उसी के नाम पर उसके मसाले में [म्यूजिक में ] गड़बड़ करके आपको परोसा जाता है तो धीरे धीरे उस डिश के असली स्वाद आप भूल जाते हैं [या संतुष्ट नहीं हो पाते ] जिसने पहली बार आपके साथ इस नयी डिश को चखा है वो तो समझ ही नहीं पायेगा/पायेगी की इसमें इतना ख़ास क्या है ??

    ये भी सच है गानों के मामले में ऐसा पूरी तरह नहीं होता लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता इससे गानों की गरिमा को ठेस लगती है

    खासतौर से उनके फिल्माकन के जरिये .....
    जैसे एक रीमिक्स आया था " सैयां दिल में आना रे " अब ज्यादा क्या बोलूं ये देख कर आत्मा को "काँटा लगा " :))

    [इसे चोरी तो नहीं कहा जा सकता]

    हाँ अगर इन्हें जीवित रखना है तो प्रयास कुछ इस तरह के होने चाहिए

    http://www.youtube.com/watch?v=k-Ck3bgG6jM

    अभी कमेन्ट बाकी है .. बाद में आ कर पूरा करता हूँ

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  2. दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल तो अच्छा है, एक आद sample भी दे दें आप , तो शायद ज्यादा लोगों को प्रोत्साहन मिलें ... दूसरी भाषाओँ से भी अनुवाद तो होता ही है, तब सारा दामोदार अनुवादक पर ही होता है, की वो कितना अच्छा भावार्थ कर पाता है, यहाँ हिंदी से हिंदी ही सहीं... आईडिया तो दिलचस्प है.. आप बिस्मिल्लाह तो करें ...

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  3. नए रूप में प्रस्तुत करने में कोई हर्ज नहीं है... रोचकता बनी रहना चाहिए .... आभार

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  4. दीदी ,

    कविताओं के मामले में आपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूँ

    गाना सुनना बाकी है
    [कमेन्ट पूरा हुआ ]

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  5. मजाल साहब...
    मैं बिस्मिल्लाह कर चुकी हूँ...

    हृदय करुणा कलित,
    विकल वेदना असीम,
    बिन पूछे,
    लहर गयी....
    भाव सागर की लहरें,
    मानस पट के तट पर,
    ज्यूँ आकर,
    ठहर गईं...
    हृदय कमल में,
    तेरी अलकें,
    अलि सम उलझ गई,
    प्रेम मकरंद निर्झर,
    झर झर,
    झर गयी...
    श्री जयशंकर पसाद जी की कविता 'आँसू' से प्रेरणा लेकर...कुछ प्रयास किया था...बात उतनी नहीं बनी किन्तु ब्लॉग जगत में प्रज्ञं जन हैं जो बेहतर काम कर सकते हैं..

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  6. may b but mei aapse jyada sahmat nhi hu....

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  7. हम्म.. मेरे ख्याल से तो जो आप का अनुवाद (या कहें प्रेरणा) समझ लेगा, उसे जयशंकर जी की मूल रचना का भाव समझाने में भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, और जिसमे कविता समझने का भाव ही नहीं है, उसे न तो मूल रचना में स्वाद आएगा और न आपके adaptation में ..
    जैसे ग़ालिब का शेर है :
    हमने माना कि तगाफुल ना करोगे लेकिन‌
    ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!
    अब यहाँ हम 'तागाफुल' की जगह 'देर' शब्द लिख सकते है, तो ज्यादा लोग बात समझेंगे, पर अब कुछ लोग होंगे जो 'ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक' का ही भाव नहीं समझते, उनको समझाना तो लगभग असंभव ही है....
    जैसा की मैंने कहा, ये बस मेरा ख़याल है .. वैसे मुझे लगता है अगर किसी को यदि किसी बात में रस आता है, तो उसे करना जरूर चाहिए.... बाकी बातें ज्यादा मायने नहीं रखती ...

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  8. रिमिक्स गानों की आत्मा पर आवरण है।

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  9. पुराना समान खुद का हो तो हम जैसा मन चाहे वैसी पेकिंग करें क्या फर्क पड़ता है पर हाँ अगर समान किसी दुसरे का है तो नयी पैकिंग के साथ हमें बड़े बड़े शब्दों में स्पष्ट कर देना चाहिए कि भीतर माल किसका है. ईमानदारी तो बनाये रखनी ही चाहिए.

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  10. आपसे सहमत।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    पोस्टर!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!

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  11. रिमिक्सिंग कापीराईट्स की काट करने के लिये ही की जाती है। और इनका उद्देश्य सुरीले गानों की धरोहर बचाना नहीं, बल्कि बिना ज्यादा सर खपाये एक आलरेडी हिट चीज को encash करने से है। इसके बावजूद इस काम के लिये भी रचनात्मकता तो चाहिये ही।
    हमें तो पुराने गीत अपने ओरिजिनल स्वरूप में ही अच्छे लगते हैं, सुनने में भी और देखने में भी।
    कविताओं वाले मामले में आपकी बात से पूरी तरह सहमत हैं, क्योंकि यहाँ आपने बात कविताओं से प्रेरणा लेकर उनका सरलीकरण करने के बारे में की है। समझने में जो सुग्राह्य होगा, वही जुबान पर चढ़ेगा।
    आभार।

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  12. आपकी पोस्ट-
    लता मंगेशकर ने गाया...कांटा लगा, हाय लगा, बेरी के पीछे, हाय रे पिया...
    इसी गाने को शेफाली ज़रीवाला ने रीमिक्स के ज़रिए गाया...गाया सो गाया...जो वीडियो में लटके-झटके दिखाए...उसे देखकर लता जी को लगा होगा कि सीता की तरह धरती में ही क्यों न गढ़ जाएं...
    गाने का कवर वर्जन बुरी बात नहीं है लेकिन उनके वल्गर वीडियो बनाना बर्दाश्त से बाहर हैं...

    हमारी पोस्ट-
    आना है तो आओ, बुलाएंगे नहीं,
    नखरे किसी के उठाएंगे नहीं...(सिर्फ गीत है, सच नहीं)

    जय हिंद...

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  13. हमारे अवचेतन मे केवल गीत नही होते उन पुराने गीतों के साथ जुड़े दृश्यों व स्मृतियों को उनके रीमिक्स समाप्त कर देते हैं इसलिये मैं इन रीमिक्स का विरोध करता हूँ ।

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  14. बहुत हद तक आप सही कह रही हैं दी.. लेकिन अधिकाँश लोग मिक्सिंग के नाम पर सिर्फ पुराने गानों के बोल लेकर उनका भुर्ता बना देते हैं जो कर्णप्रिय लगने के बजाए कर्कश लगने लगता है.. इससे कहीं नई पीढ़ी में ये सन्देश ना जाए कि पुराने गाने स्वादहीन होते थे..

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  15. मुझे रीमिक्स बिलकुल पसंद नहीं ...
    मौलिकता का कोई सानी नहीं होता ...!

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  16. आज तो अपना वोट वाणी जी के साथ है :)

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  17. रीमिक्‍स उन्‍हीं गानों का हो रहा है जो बहुत अधिक प्रचलित हैं। ये ऐसे गाने हैं कि हमेशा ही मनभावन बने रहेंगे। हाँ रिमिक्‍स कर देने से उन्‍हें भूलने में सरलता होगी। इसलिए मैं तो आपकी बात से इत्तेफाक नहीं रखती।

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