Thursday, December 31, 2009

कोई है वो अपना सा जो कानों में कुछ कह जाता है


जब ख़्वाब उठ कर हक़ीकत की दीवार में ख़ुद चुन जाता है
तब सात समंदर पार का सपना, सपना ही बस रह जाता है

हर दिन आईने के सामने, अब और ठहरना मुश्किल है
अक्स देखते ही ख़्वाबों का, ताजमहल ही ढह जाता है

मुड़ कर देखा जब ख़ुद को, तो खालीपन था चेहरे पर
पाने से ज्यादा खोने की कितनी कहानी कह जाता है

रिमझिम की फुहार है छाई, भीज रहे अंगना,अंगनाई
देखो न सब भीज गए हैं बस इक मेरा मन रह जाता है

तू ऐसे मत देख मुझे, हैं कई सवाल तेरी आँखों में
रुख की शिकन ठहर गयी है, न माथे से ये बल जाता है

तेरे बस में कहाँ 'अदा', जो तू कोई ग़ज़ल कहे
कोई है वो अपना सा जो कानों में कुछ कह जाता है

Monday, December 28, 2009

ज़रा अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो...


पिछले कई पोस्ट्स में मैंने अपने बच्चों के साथ हुई गुफ्तगू को शामिल किया...वजह कई थे मसलन, मुझे समय नहीं मिल रहा था कुछ नया सोचने का ....उनसे बात-चीत में ही कुछ विषय निकल आते थे ...जिन्हें मैं आप सबसे बाँट कर सुख का अनुभव करती हूँ....साथ ही अपने बच्चों से आपका तार्रुफ़ कराना,

आपके समक्ष नई पीढ़ी के कुछ खयालातों को लाना, बच्चों को हिंदी ब्लॉग की दुनिया से मिलवाना, और उनकी अपनी सोच में कुछ इजाफा या फिर कुछ बदलाव लाना....बढ़ते बच्चे कच्ची मिटटी के घड़े होते हैं....अभी ही उन्हें सही दिशा मिल सकती है...इतने सारे अंकल-आंटीज कहाँ मिलेंगे उन्हें....वो भी खालिस हिन्दुस्तानी.....आप लोगों का हृदय से आभार कि आपने उनकी बातें सुनी और अपने विचार दिए.....मुझे पूरा विश्वास है आपकी बातों से मेरे बच्चे लाभान्वित होंगे....

आज एक बात फिर एक पुरानी ग़ज़ल आपको समर्पित..
मैंने धुन भी दी है इसे कामचलाऊ सा सुनियेगा..


तुम्हें रस्म-ए-उल्फत निभानी पड़ेगी,
मुझे अपने दिल से मिटा कर तो देखो

तुम्हें लौट कर फिर से आना ही होगा
मेरे दर से इक बार जाकर तो देखो ।

ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,

चलो आईने से ज़रा मुँह तो मोड़े ,
नज़र में मेरी तुम समा कर तो देखो

तेरे गीत पल-पल मैं गाती रही हूँ,
मेरा गीत तुम गुनगुना कर तो देखो

मैं गुज़रा हुआ इक फ़साना नहीं हूँ
मुझे तुम हकीक़त बना कर तो देखो

तू तक़दीर की जब जगह ले चुका है
मुझे अपनी क़िस्मत बना कर तो देखो

तेरे-मेरे दिल में जो मसला हुआ है,
ये मसला कभी तुम मिटा कर तो देखो

बड़ी देर से तुमपे आँखें टिकी है,
कभी अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो

भरोसा दिलाया है जी भर के तुमको
खड़ी है 'अदा' आज़मा कर तो देखो


Sunday, December 27, 2009

दहेज़ बनाम स्त्रीधन....


दराल साहब की एक पोस्ट पढ़ी.....http://tsdaral.blogspot.com/2009/12/blog-post_26.html प्रभावित हुए बिना नहीं रह पायी, अफ़सोस कि मैं इस चर्चा में शामिल नहीं हो पायी...लेकिन मुद्दा तो हमारे ही काम का था, तो सोचा उनका शुक्रया भी अदा कर दूँ और अपनी बात भी कह दूँ...क्यूंकि मुझे मालूम था इस टोपिक पर मुझे इतना कुछ कहना है कि वही बोलेंगे इसकी टिप्पणी मेरी पोस्ट से लम्बी कैसे भला ?? इसलिए सोचा चलो आम के आम और गुठलियों के दाम, टिप्पणी की टिप्पणी और पोस्ट की पोस्ट। बात है जी बहुत प्यारी, रोमांटिक और सनसनीखेज़ भी अर्थात ये बात चंद्रमुखी सरीखी भी है, सूर्यमुखी सरीखी भी और ज्वालामुखी सरीखी भी, अरे बाबा ये सारे गुण एक ही रिश्ते में होते हैं......शादी में ...


खैर, हमरी भी शादी हुई थी, हमरे बाबा को चप्पल घिसने की ज़रूरत ही नहीं हुई (भले बाद में हमरी चप्पल तो छोडो एडी घिस गयी) लड़का(उस समय तो यही कहा जाता है) का मालूम कहाँ हमको देखा और सीधा बाबा के पास पहुँच गया और हिम्मत देखिये...बोलिए दिया हिंदी फ़िल्मी का इश्टाइल में मैं आपकी लड़की का हाथ माँगने आया हूँ जब की अपना हाथ गोड़ का कौनो ठेकाना नहीं था...हाँ नहीं तो हमरे बाबा कौन से कम थे हिंदी फिल्म उ भी खूब देखते हैं, सामने हीरो सरीखा लड़का देखे...खूब गोर नार.....बस रीझ गए .....और सबसे बड़ी बात.....जो उन्खा लुभा गयी....अरे बाप रे !! लड़का हमसे बात किया है ..बहुत बहादुर है......मूंछ में ताव देकर फ़िल्मी ठाकुर जैसन बोल दिए ......बच्चा दिया......

बस जी शादी हो गयी हमरी अब ई लीगल है कि इललीगल ई हमको नहीं मालूम ...पर हुई थी और हाँ शादी बाकायदा चंदा करके हुई थी.....हा हा हा....घबडाईए नहीं सौंसे परिवार भिक्षाटन पर नहीं निकला था जब भी कि हमरा हक है ब्राह्मण जो ठहरे हुआ यूँ कि मेरे ५ मामा और ३ चाचा, ३ मौसी और ५ फूफू, और हम ठहरे सबकी लाडली (अब अपने मुंह से अपनी का तारीफ करें :))....बस होड़ लग गयी सबमें हम इ देंगे और हम उ देंगे.....कोई अलमारी दे गया तो कोई पलंग.....कोई गगरा...तो कोई डनलप......इसलिए ड्रेसिंग टेबुल का मुंह इधर है और पलंग का मुंह उधर अरे उनके बीच मेल-मिलाप कभी नहीं हुआ ही नहीं न ! साफ़-साफ़ दीखते हैं......एक ठो गम्हार हैं तो एक ठो टीक ......हाँ नहीं तो ! इहाँ तक कि खस्सी भी चंदा में ही आया जब भी कि शादी में नॉन-वेज नहीं बनता है लेकिन लड़के वाले पूरे खाधुड निकले बोल दिए कि भैया हम तो खैबे करेंगे.....तो जी बारात दूसरे दिन भी आई....अब ई अलग बात है कि सबलोग ख़ुशी-ख़ुशी खिलाने को तैयार थे..... माँ-बाबू जी का भला का जाता था ...थे ना सुदर्शन मामू.....सब समहार लिए....

काफी कम उम्र थी हमरी भी और इनकी भी नौकरी चाकरी की बात छोडिये पढाई भी पूरी नहीं हुई थी हमदोनो की हमरी शादी बस हो गयी थी। बिना नौकरी के शादी होना हम तो तब लिपस्टिक भी नहीं लगाते थे। अगर जो कहीं लगाते होते तो उहो खरीदने का औकात नहीं था। कुछ दिन बहुत कठिन रहा पढाई और बच्चे साथ-साथ, जीवन कुरुक्षेत्र बन गया था ऐसे में अगर स्त्रीधन होता तो मनोबल ऊँचा होता और अगर पति भी काम ना करे तो ससुराल में जो वाट लगती है सुबह-दोपहरिया और शाम ;);) लेकिन कुल मिला कर सब निपट गया रोते-गाते सब लोग साथ दिया.....

भाई !!! एक बात हम बता देते हैं ...नौकरीशुदा लड़कियों की समस्या कम होती है ...लेकिन अगर लड़की नौकरी नहीं कर रही है तो उसे परेशानी ज्यादा होती है.... इसीलिए नौकरी बहुत ज़रूरी है...

कोई हमको ई बतावे कि दहेज़ और स्त्री-धन एक ही बात है का ?? काहे कि हम हर हाल में स्त्री-धन के पक्ष में हैं। हम दहेज़ के डिमांड के विरोधी हैं लेकिन इस बात से हम पूरा समर्थन करते हैं कि लड़की को स्त्रीधन मिलना चाहिए। माँ-बाप को यह ज़रूर सोचना चाहिए कि चाहे कुछ भी हो लड़की पराये घर जा रही है। उस घर को अपनाते-अपनाते उसे समय लगता है और ससुरालवालों को उसे भी अपनाने में समय लगता है। नए लोग नया परिवेश लेकिन नित-प्रतिदिन कि ज़रूरतें तो नहीं रूकती हैं। कहीं कोई आदत ही हो किसी को कभी कुछ खाने कि ही इच्छा हो। कभी कुछ शौक हो, मुंह खोल कर नहीं कह पाती है। यहाँ तक की अपने पति तक से नहीं कह पाती है। अपनी छोटी से छोटी ज़रुरत के लिए ऐसे में कम से कम अपने पैसों से अपनी चीज़ें तो ले सकती है। उसकी अपनी ज़रुरत की चीज़ें अगर उसकी अपनी हों तो ससुराल में मान बना रहता है। सबके साथ नहीं तो ज्यादातर लड़कियों के साथ टीका-टिप्पणी ज़रूर होती है, अगर वो कुछ लेकर ना जाए तो। फिर यह तो लड़की का हक भी है और माँ-बाप का फ़र्ज़ भी कि वो अपनी सुविधा और हैसियत के हिसाब से बेटी की मदद करें। बेटा तो घर में माँ-बाप के साथ ही रह जाता है। माँ-बाप बेटेके हर सुख-दुःख में साथ होते हैं। लेकिन बेटी ?? उसे तो ना जाने क्या-क्या और कितना adjust करना पड़ता है। माँ-बाप की तरफ से की गयी थोड़ी सी भी मदद कितना सम्मान, कितना धैर्य और कितना आत्मविश्वास देती है यह एक स्त्री ही समझ पाएगी और अपने माँ-बाप से इस मदद की अपेक्षा करने में कैसी शर्म ??? ....

फांसी या उम्र क़ैद that is the question ???

आज यहाँ कनाडा/अमेरिका में बोक्सिंग डे है...कहने पर ऐसे लगता है जैसे कहीं अखाड़े में मल्ल युद्ध या कुश्ती होने वाली हो....लेकिन ऐसा कुछ नहीं है....दरअसल क्रिसमस इन देशों का एकमात्र सबसे बड़ा त्यौहार है....जाहिर सी बात है सबसे ज्यादा खरीदारी भी इसी उपलक्ष में लोग करते हैं...इसलिए सारी दुकानें नए सामानों से खचा-खच भरी होती है....लोग आखरी समय तक खरीदारी करते हैं यानी २४ दिसम्बर तक...२५ दिसम्बर को सभी कुछ बंद होता है....और २६ दिसम्बर से सारे दूकानदार सीजनल सामानों को समेटना शुरू कर देते हैं...लेकिन उसके पहले वो चाहते हैं की ज्यादा से ज्यादा इन्वेंटरी से छुट्टी पा लें...इसलिए सेल पर सामानों को निकालने की होड़ शुरू हो जाती है....तो बोक्सिंग डे का अर्थ हुआ...समानों को बोक्स में डालने से पहले की सेल......इस समय कुछ अच्छी डील मिल जाती इसलिए हम भी निकल लिए शौपिंग स्प्री में....वैसे भी मृगांक को अपने लिए कुछ न कुछ खरीदना था ५ जनवरी को वापिस जो जा रहा है हॉस्टल.....


खैर....हम सभी गाड़ी में लदे हुए चले जा रहे थे...रात हम सबने 'कुर्बान' फिल्म देखी थी और उसी की विवेचना भी करते जा रहे थे....'कुर्बान' फिल्म अपने आप में technicaly बहुत ही अच्छी फिल्म लगी हम सबको.....हमलोग फिल्म के शाट्स और कैमरा मूवमेंट्स, सेट्स इत्यादि से बहुत प्रभावित हुए थे....कुछ शूटिंग्स पब्लिक जगहों पर भी हुई थी और बहुत अच्छी हुई....कुल मिला कर पूरी फिल्म काबिल-ए-तारीफ है...

क्योंकि यह फिल्म आतंकवाद और आतंकवादियों पर बनी है ..बातों का रुख मुंबई हादसे की तरफ मुड़ गया और आतंकवादी 'कसाब' पर आकर बात ठहर गयी.....कसाब का ज़िक्र होते ही....मेरा मन आंदोलित होगया गुस्से के अतिरेक में मैंने कहा कि 'कसाब' को तुरंत फांसी दे दी जानी चाहिए.... परन्तु मेरे बच्चों की सोच बिलकुल ही अलग है.....दोनों लड़के.....मयंक और मृगांक फाँसी जैसी सजा के बिलकुल विरुद्ध हैं....
मृगांक का कहना है....अगर कसाब ने लोगों की हत्या की और आप उस गुनाह की सजा उसे, उसकी हत्या करके दे रहे हैं तो आप भी वही गलती कर रहे हैं, फिर आपका गुनाह कैसे कम हो जाता है....हत्या के बदले हत्या ?? किसी भी दृष्टि से यह न्याय नहीं हो सकता है....

न्यायपालिका का काम है अनुशासन बनाए रखना ना कि दहशत फैलाना....अगर कानून को अपना काम सही तरीके से करने दिया जाए और कानून का सही मायने में पालन हो तो....तो समाज को अनुशासित होने में बिलकुल भी समय नहीं लगेगा ..हां लेकिन शर्त यह है की कानून का पालन सभी करें....मसलन.....सड़क पर अगर सभी गाड़ियां ट्राफिक के नियम का पालन करतीं हुई चलें तो क्या आपको लगता है कि लाल बत्ती की भी ज़रुरत है ??? उसका सवाल सही था......और मेरा जवाब.....नहीं अगर सचमुच सभी ट्राफिक के नियमों का पालन करेंगे तो भला लाल बत्ती कि क्या जरूरत !!!! बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है...जैसे यहाँ कनाडा में...कभी-कभी कहीं ट्राफिक लाईट ख़राब हो जाती है तो ट्राफिक खुद-ब-खुद automatic अनुशासित हो जाती है और सभी गाड़ियां नियम का पालन करती हुई चलने लगतीं हैं...

बात भटक कर ट्राफिक पर चक्कर काट रही थी...मैंने बात का रुख फिर से कसाब की ओर और 'फांसी' की सजा की ओर किया ...मयंक का कहना था अगर कसाब को फांसी दे दी गयी तो बात एक ही झटके में ख़तम ही हो जायेगी....और ऐसा नहीं होना चाहिए.....दरअसल अगर हम उसे फांसी देते हैं तो हम उसपर अहसान कर रहे हैं, हम उसकी मदद कर रहे हैं....उसे कभी भी महसूस नहीं हो पायेगा कि उसने क्या गलती की है.....वो कभी भी इंसानी जीवन का मूल्य समझ नहीं पायेगा.....इसलिए फांसी की सजा उसके इतने बड़े गुनाह के लिए बहुत कम है....

कसाब ने जघन्य कृत्य किया है...और वो कठोर से कठोर सजा का हक़दार है.....ऐसी सजा जो अमानवीय ना हो लेकिन कठोरतम हो.... मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी कौन सी सजा होगी जो इतनी कठोर होगी ...और कसाब के घोर पाप के लायक होगी.....आखिर मैंने पूछ ही लिया तो तुम्हें क्या लगता है कैसी सजा होने चाहिए.....मृगांक का कहना था 'उम्र' क़ैद'.....मैंने मुस्कुरा कर उसे देखा और कहा ये तो कुछ भी नहीं है.....उम्र क़ैद कि सज़ा १४ साल होती है.....जेल में हर सुविधा के साथ १४ साल आराम से रहेगा...और फिर १४ साल बाद बाहर आ जाएगा ...और अपने देश लौट जाइएगा ...या तो बात ख़त्म हो जायेगी या फिर उसे इंडिया का terrorism specialist बना कर फिर किसी हमले में लगा दिया जाएगा......ये कोई सज़ा नहीं हुई ...

मृगांक ने कहा नहीं ये उम्र क़ैद वैसी नहीं होने चाहिए...उसे पूरे solitary में रखा जाए पूरे १४ साल...नितांत अकेला....इतना अकेला कि अकेलेपन को भी घबडाहट हो.....इन १४ सालों में उसे किसी एक इंसान से मिलने की आज्ञा नहीं मिलनी चाहिये.....बस वो और ८ x ८ का कमरा ....यहाँ तक कि उसे जेल के कार्यकर्ताओं के भी बस दूर से ही झलक दिखे......तब उसे इंसान और इंसानी रिश्तों का मूल्य समझ में आएगा......इंसान की क्या कीमत है इसको समझाने के लिए इससे अच्छी सजा कोई नहीं हो सकती और मम्मी एक गुमराह नौजवान के लिए ये सजा फांसी से बहुत बड़ी होगी.....और यही सज़ा उसे मिलनी चाहिए......उसके बाद जब वो बाहर आएगा......तो एक मक्खी भी मारने के लायक नहीं रहेगा....मैं सच कहता हूँ....!!!
आप क्या सोचते हैं....मृगांक क्या सही कहता है ????

Friday, December 25, 2009

अरेंज्ड मैरेज vs लव मैरेज




तीनों बच्चों की छुट्टियां, बाहर बर्फ ही बर्फ...त्यौहार और जन्मदिन का माहौल ..और रोज-रोज नए व्यंजनों की फरमाइश....अब आप सोचिये की हमारी क्या दशा है....बसंती होती तो कहती 'खा खा कर घोड़ी हो गयी हो'...खैर ऐसे माहौल में जो सबसे अच्छी बात होती है..बच्चों से घुलने-मिलने का मौका....बात-बात में उनसे कुछ-कुछ उगलवा लेने में भी भलाई होती है....सब कुछ ठीक तो चल रहा है न....कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है.....मेरे बच्चे वैसे भी मुझसे बहुत घुले-मिले हुए हैं.....अपनी सारी बातें मुझसे बताते हैं......हम चारों किसी भी विषय पर बात कर लेते हैं.....मौका निकाल कर मैंने यही काम करना शुरू किया है......यूँ ही हलके से अक्सर पूछ लेती हूँ कहीं कोई लड़की/लड़का पसंद तो नहीं आई/ आया है....वैसे छोटे तो हैं...लेकिन इतने भी छोटे नहीं....और फिर प्रेम की कोई उम्र ही कहाँ होती है....कभी भी कहीं भी हो जाता है ...

बड़े बेटे मयंक को हम सब 'भोला बाबा ' कहते हैं.....लड़कियों से ऐसे भागता है जैसे वो कोई संक्रामक बिमारी हों....लेकिन उसकी वजह जो उसने बताई सुनने लायक है...इसके लिए एक घटना जो इन्ही-दिनों घटी है बताती हूँ...

यहाँ क्रिसमस की शौपिंग की सेल लगी है हर जगह...मैं, संतोष जी और प्रज्ञा भी कहाँ संवरण कर पाए शौपिंग का लोभ ...perfumes और कॉस्मेटिक्स की ज़बरदस्त सेल लगी थी लोरियाल की..हम भी जा ही पहुंचे वहां.....अन्दर पहुँच कर देखा तो मयंक और उसका काला दोस्त गेब्रियल और गोरा दोस्त मथ्यु भी वहीँ हैं....मुझे थोड़ी हैरानी हुई मयंक को वहां देख कर ....मयंक ने जैसे ही हमलोगों को देखा.....फटाफट वो आ गया हमारे पास .....मैंने पुछा अरे तुम यहाँ क्या कर रहे हो...बोला मेरे दोस्त अपनी गर्ल फ्रेंड्स के लिए गिफ्ट खरीद रहे हैं........ मम्मी मेरे दोस्त कह रहे हैं आप ज़रा उनकी हेल्प करा दो .......ये लोग समझ नहीं पा रहे है उनकी गर्ल फ्रेंड्स के लिए क्या खरीदना चाहिए ....खैर मैंने उन दोनों लड़कों की मदद की और जो समझ में आया बता दिया....इसी चक्कर में मैंने मयंक से पूछा... तुम कुछ नहीं ले रहे हो कुछ किसी के लिए.....तो उसने जो कहा मुझे हैरान कर गयी बात...

कहने लगा मम्मी गर्ल फ्रेंड रखना बहुत मंहगा पड़ता है..और मैं ठहरा गरीब इंसान...मेरे पास इतने पैसे नहीं होते कि मैं ये सब अफोर्ड कर सकूँ.......अब मेरे दोस्तों ने अपने फीस के पैसे से ये खरीदा है और मुझे मालूम है उन दोनों लड़कियों को ये गिफ्ट पसंद नहीं आएगा....हर बार यही करतीं हैं वो.....इसलिए ये सब मेरे बस की बात नहीं.....आपलोग मेरी फीस देते हो वही बहुत बड़ी बात है मम्मी....मैं आपसे इन बातों के लिए पैसे नहीं ले सकता.....और फिलहाल मुझे अपनी पढाई पर ध्यान देना है.......हालांकि जिस तरीके से मेरे बेटे ने खुद को गरीब कहा.....दिल भर आया मेरा .....लेकिन इस बात का भी गर्व हुआ की उसने अपने अन्दर कोई बे-वजह की भ्रान्ति नहीं पाल रखी है....मुझे वास्तव में उसकी सोच से बहुत ही ज्यादा ख़ुशी हुई ....मैंने भी कहा.... हाँ बाबा पढ़-लिख लो नौकरी पकड़ लो फिर सब आसन है...तो खैर मयंक का यही प्लान है....

अब सुनते हैं मृगांक के विचार......मृगांक ने बताया कि ..उसके क्लास में 'डेटिंग' पर विचार -विमर्श हो रहा था ........जब उससे पूछा गया डेटिंग के बारे में.....उसने क्लास में कह दिया कि मैं तो कर ही नहीं सकता 'डेटिंग' क्यूंकि मेरी शादी तो 'arranged' होगी....सारा क्लास सन्न रह गया था सुन कर...are you kidding ??? इस ज़माने में तुम अमेरिका में बैठ कर अरेंज्ड मैरेज की बात भी कैसे कर सकते हो...?? इस बात पर मृगांक ने जो दलील दी आपके सामने रखती हूँ....याद रखियेगा ये सिर्फ १९ साल का है और अपनी बुद्धि से कह रहा है कुछ...गलतियाँ भी हो सकती हैं.. आप सबसे निवेदन है गलतियों को नज़र अंदाज़ कीजियेगा...ये सारी दलील उसने क्लास के सामने रखी थी....

अरेंज्ड
मैरेज और लव मैरेज में फर्क निम्लिखित हैं.....(यहाँ लड़के की तरफ से लिखा जा रहा है, लेकिन ये सारी बातें लड़की पर भी लागू होंगीं)

अरेंज्ड मैरेज में माँ-बाप लड़का या लड़की ढूंढते हैं....माँ-बाप अपने बच्चे के लिए बेस्ट ही चाहते हैं......इस खोज में उनके अपने अनुभव बहुत काम आते हैं.....वो हर पसंद को मद्दे नज़र रखते हुए सही साथी की तलाश करते हैं...साथ ही वो हर गलती को भी सामने रखते हैं जो उन्होंने ख़ुदकिये थे.....फलस्वरूप, कुछ गलतियों से अपने बच्चों को साफ़ बचा ले जाते हैं... .....साथ ही कई गलतियों से बचने की तरकीब भी उनसे पता चल जाता है .....जो लव मैरेज करते हैं उन्हें जीवन का और उसकी जटिलता का कोई अनुभव तो होता नहीं है ....इसलिए गलतियाँ होतीं ही होतीं हैं जीवन साथी के चुनाव में......और यह तो जग-जाहिर है ही की प्यार अँधा भी होता है......और इस कहावत का बहुत बड़ा योगदान भी होता है इस निर्णय में ....

२.
अरेंज्ड मैरेज में शादी का सारा खर्चा माँ-बाप का होता है...खर्चे के बारे में सोचना नहीं पड़ता है.......लेकिन लव मैरेज में लड़का अपराध भाव से इतना घिरा होता है कि माँ-बाप की तरफ से किया गया हर काम उसे अहसान लगता है.... वो माँ-बाप से कम से कम खर्चा करवाने की जुगत में रहता है, शादी की रस्मों को एन्जॉय नहीं कर पाता मन से ....क्यूंकि वो हर वक्त compromise करता है.....इसी चिंता में रहता है.... कहीं किसी को बुरा न लगे........शुरू में ही लड़का बँट जाता है ....अपने माँ-बाप और लड़की तथा लड़की के माँ-बाप के बीच .....

. अरेंज्ड मैरेज करने वालों को घर छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं पड़ता है.....आराम से घर में रहो......और अगर जो कहीं जाना भी पड़ा तो .....घर बसाने में माँ-बाप पूरी मदद करते हैं....दिल से..जबकि लव मैरेज में..माँ-बाप का घर सबसे पहिले छोड़ना पड़ता है.....ज्यादातर लडकियां रहतीं ही नहीं हैं लड़के के माँ-बाप के साथ.....क्यूंकि लड़की already लड़के पर हावी होती है.....इसलिए घर छोड़ना ही पड़ता है और दूसरा घर बसाना ही पड़ता है ...इस काम में लड़के के माँ-बाप दूर रह कर ही बात करते हैं .....कोई भी सलाह देने में भी कतराते हैं .....कहेंगे...जैसा तुम्हें ठीक लगे करो....तुम्हारी अपनी पसंद है......हम क्या कह सकते हैं...

. अरेंज्ड मैरेज में लड़की का स्वाभाव अगर लड़के की माँ से नहीं मिल पता, अर्थात सास-बहु में नहीं बनती है तो लड़का आराम से अपने माँ-बाप पर इलज़ाम लगा सकता है ...आपने पसंद किया है आप ही समझो...मुझे बीच में मत घसीटो ...मुझसे मत कहो कुछ.....लेकिन अगर लव मैरेज में ऐसा हुआ तो ...लड़के की खैर नहीं.....उसे सुबह शाम बस इसी युद्ध से गुजरना होगा....लड़का ना हुआ फ़ुटबाल हुआ...कभी इधर कभी उधर....जीना मुश्किल हो जाता है...

. अरेंज्ड मैरेज के जब बच्चे होंगे तो माँ-बाप के घर पर ही होंगे....हॉस्पिटल कि जिम्मेवारी माँ-बाप पर .....अगर जो कहीं बाहर रह रहा है लड़का तो अपने माँ-बाप के घर लड़की को छोड़ कर आ सकता है या फिर माँ-बाप ही आ जायेंगे माँ-बाप आयेंगे ही आयेंगे...कोई बहाना नहीं कर सकते हैं...क्यूंकि बहु रुपी मुसीबत वो खुद लेकर आये हैं ....लेकिन लव मैरेज में मियाँ-बीवी को अकेले सब भुगतना पड़ता है......माँ-बाप से कोई भी उम्मीद नहीं की जा सकती है.....अगर उनसे कहा भी मदद करने को या आने को तो .... आयेंगे और अहसान जताएंगे या फिर आयेंगे ही नहीं वो कहेंगे ॥खुद ही भुगतो....जब अपनी पसंद की लड़की ला सकते हो तो बच्चे के समय हमारी क्या ज़रुरत ??? जब लड़की पसंद की तब तो हमसे पूछा नहीं अब क्यूँ ???

६. अरेंज्ड मैरेज में अगर कभी पत्नी से झगडा हो जाए तो माँ-बाप को जम कर सुनाया जा सकता है ....आप लोगों ने ...मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी...और माँ-बाप इतने ज्यादा अपराध बोध से ग्रस्त हो जायेंगे और सहानुभूति करेंगे की सारी जायदाद लड़के के नाम कर देंगे...हा हा हा

७. अरेंज्ड मैरेज में समय बहुत आसानी से बीत जाता है.....शुरू के कुछ साल तो एक-दूसरे को समझने में बीत जायेगे ....प्रेम धीरे-धीरे पनपता है ....और परिपक्व होता है...बच्चों के होने के बाद या फिर बिना बच्चो के भी ...बाद में एक-दूसरे की आदत हो जाती है....
जबकि लव मैरेज में शादी ही तब होती है जब प्यार ख़तम होने लगता है....शुरू के साल बस एक-दूसरे कि कमियाँ निकालने में बीत जाते हैं ....और बाद में यह याद दिलाया जाता है कि तुमने ये वादा किया था वो पूरा नहीं किया.....तुम मेरे पीछे पड़े थे...मैं तो शादी ही नहीं करना चाहती/चाहता था इत्यादि .... शादी सिर्फ लड़ने के लिए ही रह जाती है......

तो ये थी मृगांक की दलील उसके क्लास में और विश्वास कीजिये....सारा क्लास convinced हो गया की अरेंज्ड मैरेज बेहतर है लव मैरेज से ....अब उसके दोस्त हिन्दुस्तानी लड़की ढूंढ़ रहे हैं....और सबने कहा है मृगांक से अपनी मम्मी से कहो हमारे लिए भी रिश्ता ढूंढे ......

कहते हैं जोड़े ऊपर से ही बन कर आते हैं....मयंक-मृगांक के जीवन में क्या है ये तो ईश्वर ही जाने लेकिन बिलकुल नई पीढी से ऐसी बातें सुनकर मन बहुत खुश हुआ....बेशक दलील बहुत पुख्ता न हो....लेकिन दलील में दम ज़रूर है....आप क्या कहते हैं ???

Thursday, December 24, 2009

बात से बतंगड़ तक..


मेरे पूरे परिवार की तरफ से आप सबको क्रिसमस की हार्दिक शुभकामना !!!!!



बात से बात निकली थी
और बात कहाँ तक आ पहुंची !
बातों बातों में ही,
बात का बतंगड़ बन गया
बेबात ही बात बनती गयी
और बस बात बढ़ती गयी
बात इतनी बढ़ गयी
कि बातें बाकी न रहीं
और फ़िर बस
बात ही बंद हो गयी...!!




हम ..तुम..!!

तुम !
कभी मंज़िल तो कभी डगर हो
ऐसी ख़बर मिली है
कभी मौन तो कभी मुखर हो
ऐसी खबर मिली हैं
कभी गायब तो कभी हद्द-ए-नज़र हो
ऐसी ख़बर मिली है
कभी गुम-सुम तो कभी गजर हो
ऐसी ख़बर मिली है

मैं !
इक बंजारा राह भटका सा,
गर्दिश-ए-शाम के माफ़िक
अब तो तुम ही, मेरा घर हो
बस, यही ख़बर मिली है

पुनर्जन्म....



(थोड़ी पुरानी कविता है)

सारी उम्र बड़े बुजुर्ग हमका येही बताये हैं
भारी पुण्य करला पर ही, मनुख जनम हम पाए हैं
येही बात भेजा में अपने, खूब बढ़िया से बैठाये हैं
कभी पुण्य हम नाही करेंगे, भारी कसम उठाये हैं

जे खाता में पुण्य ना होवे, तो प्रभु बहुत गुसियाते हैं
कभी कुत्ता तो कभी बिल्ली बना धरती पर धकियाते हैं
पूरा अटेंशन अब हम अपने खाता पर ही लगाये हैं
एक भी पुण्य का एंट्री, हम दाखिल नहीं करवाए हैं

राम राम करके बस बीत जाए ये जिंदगानी
पुनर्जनम में ना होई, कोई किसिम की परेशानी
मानुस जनम से छुट्टी मिलिहैं, ना होई शिकन पेशानी
डागी पुसी कि जात होई और जीवन होई आसमानी

सुबह सवेरे गौरवर्णा हमें टहलाने ले जाई
ठुमकत लचकत हम आगे, उनका पीछे पीछे दौड़ायी
हाथ में प्लास्टिक लेके मेनका, कदम से कदम मिलाई
जहाँ मर्जी हम विष्ठा त्यागे, और सुंदरी लपक ले उठाई

हनी डार्लिंग कि टेर फिर हर पल देवे सुनाई
नयन से नयन उलझ जैहें, ज्यूँ प्रेम सागर लहराई
बात बात में हम उनका गलबहियाँ भी लगाई
गोड़ हाथ के बात ही छोडो, नाक मुंह भी चटवाई

मर्सितिज़ कि अगली सीट पर मज़े में हवा हम खावें
सुबह शाम क्रिस्टल बोल में, प्युरीना ब्रांड पचावें
किंग साइज़ के बेड में सोवें, और रम्भा पीठ खुजावें
सुबह सवेरे आँख खुले तब, जब अप्सरा प्रभाती गावें

येही जीवन कि आस में भगवन, एको पुण्य नहीं कमाए
कनाडा, इंग्लैंड, अमेरिका में बस श्वान योनी ही हम पायें

Tuesday, December 22, 2009

महिलाओं में गाली, शराब और सिगरेट....!!!


आज बस यूँ ही कुछ लिख दिया है...
कहीं पढ़ा था... कि नारी, पुरुष के साथ नीचे गिरने में कितना competition करेगी.....तो यही कहूँगी ...नारी हो या नर गिरने में भला क्या competition कोई इंची-टेप लेकर तो गिरता नहीं है....जिसे भी गिरना हो नर या नारी बस गिर जाता है....

आज यहाँ वही लिख रही हूँ ...जो मैंने पहले कभी देखा था और अब जो देख रही हूँ.....

'गाली' शब्द से परिचय सबको है.....मन में जब भी गुस्से का धुआं भर जाता है तो वह 'गाली' के रूप में बाहर निकलता है.....कुछ लोग इस frustration को 'बेवकूफ' 'गधा' बोल कर निकाल देते हैं और कुछ लोग अपनी इस कला में शब्द कोष के अनेकोअनेक शब्दों के अलावा, उपमा-उपमेय, छंद, अलंकार, अन्योक्ति, यहाँ तक कि भौतिकी और जीव-विज्ञानं का भी भरपूर उपयोग करते हैं..... किसी भी तरह की गाली देना...बिलकुल व्यक्तिगत बात है.....व्यक्ति के व्यक्तित्व की बात है....वह इस बात पर पूर्णतः निर्भर करता है कि उसका पालन पोषण कैसा हुआ है...या फिर वो कैसे लोगों के साथ रहता है..अगर परिवार में गाली देना आम बात है ...बच्चे ने माता-पिता को गाली देते हुआ सुना है तो वह भी कभी न कभी दे ही देगा....बच्चों को नक़ल करने कि आदत जो है....(मेरे भाई मुझे दीदी कहते थे...तो मेरे बच्चे भी मुझे दीदी ही कहने लगे.....बड़ी मुश्किल से 'मम्मी' कह पाए थे).....हमारे घर में मैंने आज तक अपने पिता को एक भी अपशब्द कहते नहीं सुना....इसलिए हमने कभी भी गाली नहीं दी...न ही मेरे भाइयों ने...ठीक वैसे ही मेरे बच्चों ने कभी हमें नहीं सुना तो वो भी इससे दूर हैं.....

महिलाएं भी गालियाँ देतीं हैं...लेकिन ज्यादातर....या तो वो बहुत हाई क्लास औरतें होतीं हैं जो हाई क्लास गलियाँ देतीं हैं....अंग्रेजी में......या फिर नीचे तबके कि महिलाओं को सुना है चीख-पुकार मचाते....मध्यमवर्ग कि महिलाएं यहाँ भी मार खा जातीं हैं....न तो वो उगल पातीं हैं न हीं निगल पातीं हैं फलस्वरुप...idiot , गधे से काम चला लेतीं हैं....हाँ idiot , गधे का प्रयोग ही हम भी करते हैं....और बाकि जो भी 'अभीष्ट' गालियाँ हैं....उनमें कोई रूचि नहीं है...

महिलाओं का शराब पीना, सिगरेट पीना ...चरित्रहीनता के लक्षण बताये गए हैं .....
यहाँ इसपर कुछ कहना चाहूंगी...

महिलाओं का मदिरापान और धुम्रपान...समय, परिस्थिति और परिवेश कर निर्भर करता है.....
यहाँ कनाडा में वाइन (मैं हार्ड ड्रिंक्स कि बात नहीं कर रही हूँ ) बच्चे तक पीते है और बुरा नहीं माना जाता है...आप चर्च में जाएँ तो वहां वाइन प्रसाद के रूप में दिया जाता है....कोई आपके घर आये तो वो उपहार में वाइन ही लेकर आता है...फलस्वरूप हिन्दुस्तानी घरों में भी इसका उपयोग होने लगा है....औरतें भी अब इसका स्वाद लेती हैं...इसका अर्थ यह नहीं की वो चरित्रहीन हैं...in rome do as the romans do

मैं रांची की रहने वाली हूँ...यहाँ का आदिवासी समुदाय हर ख़ुशी या गम में, अर्थात हर मौके पर 'हंडिया' (चावल से बना पेय) बनाता है और छक कर इसे आदमी, औरतें बच्चे सभी पीते हैं....तो आप उन औरतों को क्या कहेंगे ?? चरित्रहीन ..?? यह तो इनकी संस्कृति का हिस्सा है....एक रिवाज़ है ..
यहाँ मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं इस आदत का समर्थन नहीं कर रही हूँ ...यह बहुत बुरी आदत है.....परन्तु चरित्रहीनता नहीं....

जब मैं मरिशिअस में थी तो वहां भारतीय मूल के हिन्दू हर महीने की पहली तारिख को अपने पूर्वजो को कुछ अर्पित रहते हैं... इस अर्पण में ..सार्डीन मछली सिगरेट और वाइन होती है ..यह अर्पण पूर्वजों के लिए होता है और पूर्वजों में तो दादी, माँ, या चाची की आत्मा भी शामिल होती है ....अब आप बताइए उनके पुरखों ने कब वाइन पी थी या सार्डीन खाया था......लेकिन यहाँ यही उबलब्ध है ...और इसे ही वो अपना अर्पण मानते हैं.....और श्रद्धा से समर्पित करते हैं....और मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती है...

आज समय बदल रहा है....महिलाएं multinational companies में काम करती हैं...और नौकरी का परिवेश भी बदल रहा है...कभी अगर हाथ में ग्लास ले भी लिया तो उससे उसके चरित्र को आंकना गलत बात होगी....

अब बात कीजिये सिगरेट-बीडी की ...
कुछ समय पहले मैं एक फिल्म बना रही थी.....'नूर-ए-जहां', यह फिल्म हिन्दुस्तानी मुस्लिम महिलाओं की उपलब्धियों पर थी...इसी फिल्म के research के सिलसिले में ..कई म्यूजियम्स में जाना हुआ...वहाँ कुछ miniature तस्वीरों को भी देखने का मौका मिला.....मुझे याद है कुछ मुग़ल कालीन पेंटिंग में महिलाओं को हुक्का पीते हुए दिखाया गया है....इसका अर्थ यह हुआ की धुम्रपान महिलायें बहुत पहले से कर रहीं है....यह एक आदत हो सकती है...जिसे आप बुरी आदत कह सकते हैं लेकिन चरित्र का certificate नहीं....

मैंने अपनी नानी सास को बीडी पीते देखा है...वो सिगरेट भी पीती थी और हमलोग बहुत मज़े लेते थे....मैं खुद खरीद कर लाती थी, उनके लिए...क्यूंकि बीडी सिगरेट हमारे घर में कोई नहीं पीता था.....अब नानी सास को ये आदत कहाँ से लगी ये मत पूछियेगा...क्यूंकि मुझे नहीं मालूम...

मैंने अपनी नानी को हुक्का पीते देखा है...मेरी नानी के घर कई बार दूसरी नानियाँ आतीं (नानी की सहेलियां ) मिलने....तो हुक्का जलाया जाता था....नानी और उनकी सहेलियां...बारी बारी से हुक्का पीती थी....यहाँ तक की जब गाँव में कोई पंचायत होती थी तब भी वहां हुक्का चलता था....तो क्या मेरी नानी चरित्रहीन थी...???
हाँ... मेरी माँ ने कभी भी हुक्का बीडी सिगरेट नहीं पिया.....

मेरी दादी को मैंने पान, तम्बाखू खाते हुए भी देखा है....उनके पास तो पान-दान ही हुआ करता था...हर वक्त कचर-कचर पान ही खाती थी......और विश्वास कीजिये ..इन सभी महिलाओं के चरित्र की ऊँचाइयों तक पहुँच पाने के बारे में आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं....
आज जब अपने आस पास देखती हूँ तो पाती हूँ...पहले कि अपेक्षा बहुत कम महिलाएं पान, बीडी, सिगरेट का उपयोग करती हैं....महिलाएं अब अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा जागरूक हैं....

फिर भी, किसी महिला का सिगरेट पीना, शराब पीना या गाली देना बहुत बुरी आदत मानी जायेगी लेकिन इस कारण से उसे चरित्रहीन नहीं कहा सकता .....इन आदतों और चरित्र में कोई सम्बन्ध नहीं है....हाँ, इन आदतों से उसके मनोबल/आत्मबल को आँका जा सकता है....लेकिन सम्मान को नहीं.....

जन जन के धूमिल प्राणों में...मंगल दीप जले..!!


मैं अपने सभी मित्रों से, पाठकों से और मेरे अपनों से एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ...
मैं किसी भी 'वाद' के पक्ष में नहीं हूँ...'जियो और जीने दो' जैसी बात का ही समर्थन करती हूँ...

हम बहुत भाग्यवान हैं...जो अंतरजाल जैसी सुविधा मिली है....दूर होते हुए भी आपस में निकटता बढ़ी है....कम से कम मन से तो बहुत पास हैं हम सभी....इस निजता को और निखारते हुए कुछ बहुत ही अच्छा कर जायेंगे तो आने वाली पीढ़ी कृतज्ञं रहेगी हमारी.....तो आज से ही शुरुआत करते हैं....आइये न...!!

इसी भावना को सामने रखते हुए मेरी यह कविता समर्पित है....आपको..आपको...और आपको भी...

स्वीकार कीजिये ...!!!!



जन जन के धूमिल प्राणों में
मंगल दीप जले

तन का मंगल,मन का मंगल
विकल प्राण जीवन का मंगल
आकुल जन-तन के अंतर में
जीवन ज्योत जले
मंगल दीप जले

विष का पंक ह्रदय से धो ले
मानव पहले मानव हो ले
दर्प की छाया मानवता को
और ना व्यर्थ छले
मंगल दीप जले

आज अहम् तू तज दे प्राणी
झूठा मान तेरा अभिमानी
आत्मा तेरी अमर हो जाए
काया धूल मिले
मंगल दीप जले

Monday, December 21, 2009

उसी गली में एक अदद दिल पागल छोड़ आये हैं


मत पूछ तेरी महफ़िल में हम क्या क्या छोड़ आये हैं
कुछ लम्हें तो आज के थे कुछ बीता कल छोड़ आये हैं

तेरी चौखट पर आँखों ने सजदे में झुकना सीख लिया
आज वहीँ चंद सांसें और इक आँचल छोड़ आये हैं

बरसी तो थी घटा बहुत पर भीग नहीं पाया था मन
इस खातिर उस बादल में हम काजल छोड़ आये हैं

रक्स किये हैं धड़कन ने जब भी तुमसे नयन मिले
तीरे नज़र से घायल सा दिल घायल छोड़ आये हैं

जाग गयी है यादों की गलयारी जो अलसाई थी
उसी गली में एक अदद दिल पागल छोड़ आये हैं

Sunday, December 20, 2009

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी....


रात के तीन बजे हैं यहाँ Canada में...नींद खुल गयी मेरी...मेरा लैपटॉप बगल में था...अब तो आँख खुलती है तो भगवान् भी बाद में याद आते हैं पहले अपनी पोस्ट याद आती हैं..रश्मि का मेल था उसको जवाब दे दिया....रश्मि ने जागने के लिए फटकार लगाईं और विवेक जी का लिंक भेज दिया....कल से कुछ पढ़ नहीं पाई थी....पढ़ा तो माथा ही फिर गया...हमारे देहात में कभी एक कहावत सुनते थे बाबा कहा करते थे.....'तुमलोगों ने बन्दर के घाव कि तरह गींज कर रख दिया है'... मुझे भी लगा कि 'नारी' और 'नारी सम्बन्धी' बातों को ब्लॉग जगत ने भी गींज कर रख दिया है..... जिसका जो जी में आ रहा है कहता ही चला जा रहा है...हम नारी न हुए पंचिंग बैग हो गए....यूँ लग रहा है....पूरा ब्लॉग जगत ही भड़ासियों का कोना हो गया है....नारियों का अपमान खुले दिल से लोग कर रहे हैं.....टिपण्णी करने वालों से गुजारिश है...कृपया भद्र भाषा का प्रयोग करें.....किसी भी तरह का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा...अगर आपको यह आलेख नहीं पसंद है तो टिपण्णी ही मत कीजियेगा....

विवेक जी,

http://kalptaru.blogspot.com/2009/12/blog-post_2095.html


आपकी पोस्ट को पढने के बाद ...यह समझ में आया कि 'नारी' की खुदाई अभी भी जारी है....
आपने प्रगतिशील महिलाओं से यह सवाल पूछा है .... क्या वो...जीवन में नारी-पुरुष के रोल में अदला-बदली करेंगी....अर्थात क्या स्त्री बाहर जाकर काम करेगी और पुरुष घर सम्हालेगा...??? और क्या यह बात स्त्री को पसंद आएगी...???
सबसे पहली बात कि आज की हर नारी प्रगतिशील है.....चाहे वो शहर की हो....गाँव की या..विदेश में रहने वाली.....बल्कि पूरा समाज ही प्रगतिशील है ...फिर नारी अपवाद कैसे हो सकती है....??
स्त्री ने तो पिछली पीढ़ी से ही अपना रोल बदल लिया है....मैंने अपनी माँ को सारी उम्र नौकरी करते हुए देखा है और घर का काम भी करते हुए देखा है....आज ज्यादातर नारियां बाहर जाकर काम कर ही रही है.....हाल ये हैं कि शादी से पहले ही लड़के वाले स्वयं पूछते हैं लड़की नौकरी कर रही है या नहीं...अगर कर रही है तो कितना कमाती है...मतलब लड़की, लड़के के घर मैं जाने से पहले ही अपने खाने-पीने का खुद ही इंतज़ाम करके जाती है...और आश्चर्य यह कि फिर भी वो लड़के के घर जाती है....उसके बाद पूरा घर भी सम्हालती है....सबके ताने भी सहती है.....और अब हम ये पूछते हैं आपलोगों से इतनी बढ़िया नौकरानी कहाँ मिलेगी जो कमा कर पैसा भी लाये और घर का काम भी करे...वो भी फ्री....न हींग लगे न फिटकरी और रंग भी आये चोखा..!!



स्त्री-विमर्श की हद्दें अब पार होने लगीं हैं....आप लोगों ने ब्लॉग को अखाडा बनाया हुआ है.....स्वस्थ विमर्श और समस्याओं पर कभी बात नहीं होती है....या तो छींटा-कस्सी होती है या फिर चुहलबाजी..
इसलिए आज कुछ कहने की इच्छा हुई है....
आगे सुनिए अगर पुरुषों ने रोल सचमुच बदल लिया .....जैसा आपने कहा है...और पुरुषों ने घर में रहने कि और घर सम्हालने की ठान ली..तो मुझे नहीं लगता किसी भी प्रगतिशील नारी को कोई आपत्ति होगी.....लेकिन बात यही पर ख़तम नहीं होती......अगर ऐसा होता है तो फिर बात दूर तलक जायेगी.......

आपने मातृप्रधान परिवार का नाम सुना ही होगा.... एक समय था जब समाज में मातृप्रधान परिवार हुआ करते थे...घर की मुखिया माता होती थी.....बच्चों के नाम के साथ ...माँ का नाम जुड़ेगा पिता का नहीं....(कुंती के पुत्र कौन्तेय कहाते थे , सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण, सौमित्र भी कहाते हैं ), क्यूंकि एक बात तो तय तब भी थी और अब भी है ..पिता कोई भी हो माँ वही होती है जिसने जन्म दिया है.....पुरुष किसी भी बच्चे को उसका अपना बच्चा मान लेता है क्यूंकि स्त्री ऐसा कहती है...और पुरुष इस बात पर विश्वास करता है.....वर्ना......आप स्वयं समझदार हैं...

अगर यह रोल सही मायने में बदलता है जैसा आपने इंगित किया है तो लड़की का ससुराल जाने का कोई औचित्य नहीं बनता है फिर....बरात लड़के के घर आएगी और लड़का विदा होकर लड़की के घर आएगा.......मैं स्वयं यही सोच रही हूँ कि अगर..मेरी बेटी अपने साथ-साथ अपने पति को भी पालने का जिम्मा ले रही है तो फिर उसे मैं उसके घर क्यूँ भेजूंगी...लड़का मेरे घर आएगा...कम से कम मेरे घर का काम तो करेगा...फ्री में...उसे खाना-कपडा दिया जाएगा...



कितनी अजीब बात है....स्त्री ने कब का अपना रोल बदल दिया है...आज ज्यादातर औरतें काम-काजी हैं....पुरुष के साथ कंधे के कन्धा मिला कर चल रही है बिना हील-हुज्जत किये हुए...और किसी को उसका महत्त्व नहीं समझ में आया...शायद हम स्त्रियाँ चुप-चाप सब कुछ इतनी आसानी से गटक जातीं हैं कि पता ही नहीं चलता है किसी को.... क्या कुछ बदल गया है.....कभी-कभी सोचती हूँ एक शिव ने ज़हर क्या पी लिया हंगामा हो गया.....यहाँ हम स्त्रियाँ रोज ही हलाहल पी रही हैं इसी ब्लॉग पर....घर बाहर भी और ऐसे पचा लेतीं हैं कि सामने वाले को अमृत का भान हो जाता है....आप सबसे अनुरोध है. ..हम स्त्रियों को आप अपनी किस्मत समझिये और किस्मत को लात मत मारिये....वर्ना पछतावे के अलावा कुछ भी हाथ नहीं आएगा ....!!!

KENNY ROGER'S SONG...LUCILLE.....संतोष शैल की आवाज़ में...


Kenny Rogers — Lucille lyrics
Songwriters: Bowling, Roger;Bynum, Hal


संतोष शैल की आवाज़ में...


In a bar in Toledo across from the depot
On a bar stool she took off her ring
I thought I'd get closer so I walked on over
I sat down and asked her name
When the drinks finally hit her
She said I'm no quitter
but I finally quit livin on dreams
I'm hungry for laughter and here ever after
I'm after whatever the other life brings

टोलेडो (जगह का नाम ) में डिपो के सामने वाले बार में
वो स्टूल पर बैठी थी और उसने वहीँ अपनी अंगूठी उतार दी..
मैंने उसे ऐसा करते हुए देखा और सोचा थोड़ा उसके करीब आ जाऊं
मैं उठ कर उसके पास चला गया, फिर उससे उसका नाम पूछा..
हम दोनों में जाम का एक दौर चला..और जब उसे शराब थोड़ी चढ़ गयी
उसने कहा ..यूँ तो मैं हारने वालों में से नहीं हूँ, लेकिन मैं सिर्फ सपनो के साथ अब नहीं जी सकती
मैं हंसी की भूखी हूँ और आज के बाद ज़िन्दगी से जो भी मुझे मिलेगा वो मंज़ूर होगा..

In the mirror I saw him and I closely watched him
I thought how he looked out of place
He came to the woman who sat there be-side me
He had a strange look on his face
The big hands were calloused he looked like a mountain
For a minute I thought I was dead
But he started shaking his big heart was breaking
He turned to the woman and said

तभी मैंने आईने में उसे देखा और मैंने गौर किया
मैंने देखा वो उस माहौल से परे था.
वो उस औरत के पास आया जो मेरे पास बैठी थी
उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे
उसके हाथ खुरदुरे थे और शरीर पर्वत सा विशाल था
एक पल के लिए मुझे लगा की वो मुझे मार ही डालेगा
पर वो कांपने लगा उसका दिल टूट रहा था
और उसने उस महिला से कहा

You picked a fine time to leave me Lucille
With four hungry children and a crop in the field
I've had some bad times lived through some sad times
this time your hurting won't heal
You picked a fine time to leave me Lucille.

लुसिल तुमने मुझे छोड़ने का अच्छा समय चुना
चार भूखे बच्चों और खेत में खड़ी फसल के साथ
मैंने बुरे दिन देखे हैं, दुःख भरे दिन भी गुज़ारे हैं
लेकिन इस बार का दर्द नहीं झेला जाएगा
लुसिल तुमने मुझे छोड़ने का अच्छा समय चुना

After he left us I ordered more whisky
I thought how she'd made him look small
From the lights of the bar room
To a rented hotel room
We walked without talking at all
She was a beauty but when she came to me
She must have thought I'd lost my mind
I could'nt hold her 'cos the words that told her
Kept coming back time after time

उसके जाने के बाद मैंने और विस्की आर्डर किया
मैंने सोचा उस महिला ने उस आदमी को कितना छोटा महसूस करा दिया
बार रूम की रौशनी से किराए के कमरे तक
हम दोनों बिना बात किये चलते गए
वो खूबसूरत थी और जब वो मेरे पास आई
तो उसने सोचा होगा की मैंने अपना होशो हवास खो दिया होगा
मैं उसे थाम न सका क्यूंकि
उस आदमी की बातें बारबार मुझे याद आतें रहीं

You picked a fine time to leave me Lucille
With four hungry children and a crop in the field
I've had some bad times lived through some sad times
this time your hurting won't heal
You picked a fine time to leave me Lucille.

लुसिल तुमने मुझे छोड़ने का अच्छा समय चुना
चार भूखे बच्चों और खेत में खड़ी फसल के साथ
मैंने बुरे दिन देखे हैं, दुःख भरे दिन भी गुज़ारे हैं
लेकिन इस बार का दर्द नहीं झेला जाएगा
लुसिल तुमने मुझे छोड़ने का अच्छा समय चुना

You picked a fine time to leave me Lucille
With four hungry children and a crop in the field
I've had some bad times lived through some sad times
But this time your hurting won't heal
You picked a fine time to leave me Lucille.

लुसिल तुमने मुझे छोड़ने का अच्छा समय चुना
चार भूखे बच्चों और खेत में खड़ी फसल के साथ
मैंने बुरे दिन देखे हैं, दुःख भरे दिन भी गुज़ारे हैं
लेकिन इस बार का दर्द नहीं झेला जाएगा
लुसिल तुमने मुझे छोड़ने का अच्छा समय चुना

You picked a fine time to leave me Lucille
लुसिल तुमने मुझे छोड़ने का अच्छा समय चुना
You picked a fine time to leave me Lucille
लुसिल तुमने मुझे छोड़ने का अच्छा समय चुना

Thursday, December 17, 2009

मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ


मुझे ख़ुद पे क्यूँ न गुरूर हो
मैं एक मुश्ते गुबार हूँ

समझूँगा मैं तेरी बात क्या
पत्थर की इक मैं दीवार हूँ

आया हूँ बच के ख़ुशी से मैं
मैं सोगो ग़म का बज़ार हूँ

उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ

मुझसे मिलीं रहमतें खुल के
और ज़ुल्मतों का मैं प्यार हूँ

हर दर्द का हूँ मैं देनदार
और ग़मों का मैं खरीददार हूँ

इतराऊं खुद पे न क्यूँ 'अदा'
पर कैसे चलूँ ? लाचार हूँ

मेरा घर मेरे बच्चे...



इन दिनों कुछ भी नया लिखने के लिए समय ही नहीं मिल पा रहा है...कारण मेरा छोटा बेटा मृगांक शेखर हॉस्टल से आया है....
और जैसा की आप जानते हैं बच्चे हॉस्टल से आयें तो सबसे ज्यादा खाने की ही बात होती है...कि क्या-क्या खिलाया जाए.... इसलिए ज्यादातर समय खाना बनाने और खिलाने में ही जा रहा है....हर दिन नई नई फरमाईश .... अपने खाने-पीने के मामले में मृगांक बहुत ही संयत है...लेकिन घर आते साथ ही सारा अनुशासन धरा का धरा रह जाता है...कहाँ मिल पता है उसे घर जैसा खाना ?

मृगांक तो वैसे भी खाने का शौक़ीन है....जब मैंने उसे उसकी फ्लाईट समय से लेने के लिए उसे उठाने के लिए फोन किया तो वो उठ चुका था....छूटते ही बोला खाना क्या बना रही हो मम्मी मेरे लिए...मैंने कहा जो तुम कहो बेटा...बोला बहुत बढ़िया सा गोट मीट और पूड़ी, साथ में रायता और सलाद ज़रूर....वो भी आपका अपना स्टाइल वाला रायता जिसमें आप कुछ डालते हो.....रेड कलर के जो छोटे-छोटे दाने होते हैं.....जो मीठे होते हैं.....मेरा दिमाग तेजी से चल रहा था...ये किसकी बात कर रहा है .....मैंने पूछा क्या बेटा....अरे मम्मी जो सभी लोग कहते हैं कि आपका ये रेसेपी बहुत बढ़िया है....रेड कलर के छोटे-छोटे होते हैं उनमें बीज भी होता है.....तुम अनार की बात तो नहीं कर रहे हो......येस येस.....मम्मी thank god याद आगया नहीं तो पूरे फ्लाईट में मेरा दीमाग ख़राब रहता...... जाहिर सी बात है... ये इतना बड़ा डिमांड तो था नहीं कि पूरा नहीं होता....

मृगांक शेखर की उम्र १९ साल है और वो USA में मेडिकल स्टुडेंट है.....हमेशा हर चीज़ में अव्वल रहा है चाहे वो खेल का मैदान हो....debate , dramma drawing पेंटिंग , फिल्म making या फिर लीडरशिप ...उसके लिए सबकुछ आसन है.... कनाडियन गवर्मेंट से मेलेनिअम स्कॉलरशिप का भी रेसिपियंत है मृगांक...

जब वो आया तो देख कर हैरान हो गई ..... कितना बदल गया है....बॉडी-शोदी बना ली है ...तभी तो जब भी फोन करो ...फोन नहीं उठाता....बाद में वापिस फोन करके कहता ...जिम में था ...फोन जिम बैग में था.... पता नहीं सच या झूठ ...लेकिन बॉडी देख कर तो यही लगता है....उसके जिम कोच से भी बात हुई...कहने लगे ...कि आज से एक साल पहले जब मृगांक आया था मेरे पास तब वो इतना दुबला पतला था कि मुझे नहीं लगता था ये कुछ कर पायेगा.....लेकिन मैं हैरान हूँ खुद इसे देखकर ....मेरे पास जितने भी बच्चे आये हैं ....ये सबसे ज्यादा अनुशासन का जीवन जीता है....मतलब ये की जिम में भी अव्वल.....उसका बड़ा भाई मयंक जो सिर्फ एक साल बड़ा है उससे.....उसके सामने पिद्दी लगने लगा है....और नाराज़ भी है.....वो भी अब जिम ज्वाइन करने की सोच रहा है...मुझे यकीन है वो भी पहलवान बन ही जाएगा....हा हा हा ...

मृगांक अपने अंदाज़ में और अपने जोक्स कहता है...वो शब्दों के साथ खेल कर जोक्स करता है....उन जोक्स को मृगांक जोक्स कहा जाता है उसके जोक्स ओट्टावा के schools में मशहूर हैं और अब मेडिकल colleges में भी लोग उसके जोक्स को जानने लगे हैं......वो बहुत ही हंसमुख और मिलनसार लड़का है....उसकी बहुत इच्छा थी पोलिटिक्स में जाने की लोग उसे मज़ाक में कनाडा का भावी प्रधान मंत्री कहते भी हैं....अब वो बने कि न बने ईश्वर कि मर्ज़ी लेकिन ...उसने मेरी इच्छा का मान रखते हुए मेडिकल में जाना स्वीकार किया......और अब अच्छे नंबर ला रहा है....देखने में भी ठीक-ठाक है इसलिए, लडकियां भी मंडराती नज़र आतीं हैं इनदिनों .... अच्छी किताबें पढना..अच्छी फिल्म्स देखना....दुनिया की हर गतिविधि पर नज़र रखना ....जिम जाना बॉडी बनाना, खूब पढना, अच्छा खाना खाना और स्टाइल से रहना...यही शौक है उसके....बस एक बात में वो हम सबसे कम है....वो गाना उतना अच्छा नहीं गाता है....

अभी कुछ समय पहले की ही तो बात थी....सुबह उठते ही 'मम्मी गोदी' कहता हुआ हाथ फैला देता था.....और मैं गोद में उठा लेती थी...अब भी यही कहता है जब भी मैं उठाने जाती हूँ...फर्क सिर्फ इतना है,की अब वो मेरी गोद में कहाँ समाएगा भला ....

अब मेरे घर में लड़कियों के फ़ोन आने लगे हैं....hello...yes ,who is this ??? Julie ?? crystal ?? sandra ??? whom do you want to speak to??? Mrigank ??? ये सुनते ही ...दूर से ही नहीं नहीं बात करनी है ....करता हुआ जोर जोर से वो हाथ हिलाता है.....मुझे झूठ कहना पड़ता है...वो घर पर नहीं है.....मैंने पुछा भी अरे बात क्यूँ नहीं करते......कहने लगा मम्मी...नानी ने मना किया है...वही देखेगी मेरे लिए लड़की....बेकार में क्यूँ अपना टाइम वेस्ट करना.... अब जो भी चिट्ठियाँ आतीं हैं ऊपर डॉ. मृगांक देख कर बहुत ख़ुशी होती है..

अभी कुछ दिनों पहले कि बात है......मेरी गाडी हमारे ड्राइववे से चोरी हो गई....मुझे बस से आना-जाना करना पड़ा एक-दो दिन .....उस दिन भी मैं बस से आ रही थी ...मेरी सामने वाली सीट पर दो खूबसूरत गोरी लडकियां बैठी हुई बात कर रही थी.....'मृगांक' नाम सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए.....वो रटती जा रहीं थी...he is so cool....he is so smart....अब मृगांक नाम इतनी आसानी से उबलब्ध हो नहीं सकता ओट्टावा में...वो भी मेरे ही घर के पास.....जब मैं उतरने लगी अपने घर के पास .....उनमें से एक लड़की को कहते सुना ....'You see ... that is his house ' और बस बात पक्की हो गयी कि ये अपने ही छोरे की बात कर रहीं थीं....मृगांक को कई गोरियों ने dateing के लिए आमंत्रित किया ...उसने हर किसी से यही कह दिया मेरी माँ से पूछो....अब लडकियां उसे 'मम्मी का pet ' कहने लगीं हैं...और उससे नाराज़ भी हैं....ये कैसा लड़का है हर काम अपनी माँ से पूछ कर करता है...??

इसबार हमलोग बहुत नर्वस थे.....वार्षिक परीक्षा का रिसल्ट आ गया है...मृगांक के क्लास में १२ स्टुडेंट्स थे और सिर्फ ४ ही पास कर पाए हैं....जो अगली कक्षा में जायेंगे ....बाकि ८ उसी क्लास को दोहराएंगे...मृगांक अपनी कक्षा में सेकेंड आया है ..उसे ९६% मिले हैं .....पहले स्थान पाने से सिर्फ १% पीछे रह गया...लेकिन मैं खुश हूँ... आप सबका आशीर्वाद चाहिए मृगांक को.....अभी उसे बहुत मेहनत करनी है...

(दोनों भाई...मृगांक और मयंक )

Wednesday, December 16, 2009

नैनों में बदरा छाये....गीत गाता हूँ मैं गुनगुनाता हूँ मैं...


फिल्म : मेरा साया
संगीतकार : मदन मोहन
गीतकार : राजा मेहँदी अली खान
आवाज़ : लता

यहाँ आवाज़ मेरी है यानि स्वप्न मंजूषा 'अदा' की......


नैनों में बदरा छाए, बिजली सी चमके हाए
ऐसे में बलम मोहे, गरवा लगा ले
नैनों में...

मदिरा में डूबी अँखियाँ
चंचल हैं दोनों सखियाँ
ढलती रहेंगी तोहे
पलकों की प्यारी पखियाँ
शरमा के देंगी तोहे
मदिरा के प्याले
नैनों में...

प्रेम दीवानी हूँ में
सपनों की रानी हूँ मैं
पिछले जनम से तेरी
प्रेम कहानी हूँ मैं
आ इस जनम में भी तू
अपना बना ले
नैनों में...






चित्रपट : लाल पत्थर
संगीतकार : शंकर-जयकिशन
गीतकार : देव कोहली
गायक : किशोर कुमार

आवाज़ : संतोष शैल

गीत गाता हूँ मैं गुनगुनाता हूँ मैं
मैं ने हँसने का वादा किया था कभी
इसलिये अब सदा मुस्कुराता हूँ मैं

ये मुहब्बत के पल कितने अनमोल हैं
कितने फूलों से नाज़ुक मेरे बोल हैं
सब को फूलों की माला पहनाता हूँ मैं
मुस्कुराता हूँ मैं
गीत गाता हूँ मैं ...

रोशनी होगी इतनी किसे थी खबर
मेरे मन का ये दर्पण गया है निखर
साफ़ है अब ये दर्पण दिखाता हूँ मैं
मुस्कुराता हूँ मैं
गीत गाता हूँ मैं ...



Tuesday, December 15, 2009

चले जैसे हवाएं सनन सनन ....तो फ़िर रिमझिम क्यूँ न गिरे सावन.....



फ़िल्म : मैं हूँ ना
संगीतकार : अनु मल्लिक
गीतकार : जावेद अख्तर
गायक : के के और वसुंधरा दास

लेकिन आज सुनिए इसी गीत को प्रज्ञा शैल और और उसके पापा की आवाज़ में...
प्रज्ञा हमारी बिटिया है और आपका आशीर्वाद चाहिए उसे ...



whats up?

चलें जैसे हवायें सनन सनन
उड़ें जैसे परिंदे गगन गगन
जायें तितलियां जैसे चमन चमन
यूंही घूमूं मैं भी मगन मगन

मैं दीवानी दिल की रानी ग़म से अन्जानी
कब डरती हूँ वो करती हूं जो है ठानी

चलें जैसे हवायें सनन सनन
उड़ें जैसे परिंदे गगन गगन

whats up?
say what?

कोई रोके कोई आये
कितना भी मुझको समझाए
मैं ना सुनूंगी कभी
अपनी ही धुन में रहती हूँ
मैं पगली हूँ मैं जिद्दी हूँ
कह्ते हैं ये तो सभी
कोई नहीं जाना
के अरमान क्या है मेरा

चलें जैसे हवायें सनन सनन
उड़ें जैसे परिंदे गगन गगन
जायें तितलियां जैसे चमन चमन
यूंही घूमूं मैं भी मगन मगन

मैं दीवानी दिल की रानी ग़म से अन्जानी
कब डरती हूँ वो करती हूं जो है ठानी

चलें जैसे हवायें सनन सनन
उड़ें जैसे परिंदे गगन गगन

आये हसीना ये तो आये
मुझ को दिखाने अपनी अदायें
मैं भी कुछ कम नहीं, यह
आंखों में आंखें जो डालूं
दिल मैं चुरालूं होश चुरालूं
कोई हो कितना हसीं
मेरा हो गया वो
जो इक बार मुझ से मिला

चलें जैसे हवायें सनन सनन
उड़ें जैसे परिंदे गगन गगन
जायें भँवरे जैसे चमन चमन
यूंही घूमूं मैं भी मगन मगन

मैं दीवाना मैं अन्जाना ग़म से बेगाना
हूं आवारा लेकिन प्यारा सब ने माना

चलें जैसे हवायें सनन सनन
उड़ें जैसे परिंदे गगन गगन
जायें भँवरे जैसे चमन चमन
यूंही घूमूं मैं भी मगन मगन

चलें जैसे हवायें सनन सनन
उड़ें जैसे परिंदे गगन गगन





फ़िल्म : मंज़िल
संगीतकार : राहुल देव बर्मन
गीतकार : योगेश
आवाज़ : लता

लेकिन आज सुनिए स्वप्न मंजूषा 'अदा' की आवाज़ में यही गीत..

रिमझिम गिरे सावन
सुलग सुलग जाए मन्
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी ये अगन

रिमझिम गिरे सावन
सुलग सुलग जाए मन्
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी ये अगन
रिमझिम गिरे सावन

पहले भी यूँ तो बरसे थे बदल
पहले भी यूँ तो भीगा था आँचल
अबके बरस क्यूँ सजन
सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी ये अगन
रिमझिम गिरे सावन

इस बार मौसम दहका हुआ है
इस बार सावान बहका हुआ है
जाने पीके चली क्या पवन
सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी ये अगन
रिमझिम गिरे सावन

रिमझिम गिरे सावन
सुलग सुलग जाए मन्
भीगे आज इस मौसम में
लगी कैसी ये अगन
रिमझिम गिरे सावन



Saturday, December 12, 2009

जिक्र हो फूलों का बहारों की कोई बात हो


रात का मंजर हो सितारों की कोई बात हो
जिक्र हो फूलों का बहारों की कोई बात हो

रेत पर चल कर गए जो पाँव कुछ हलके से थे
गुम निशानी है तो इशारों की कोई बात हो

नाखुदा गर भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
मोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो

आ ही जाते हैं कभी बदनाम से साए यूँ हीं
बच ही जायेंगे जो दिवारों की कोई बात हो

बुझ रही शरर मेरी आँखों की सुन ले 'अदा'
देखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो

Friday, December 11, 2009

तिल तिल मरती वो ....



भारत में स्त्रियों की दशा में अभी बहुत ज्यादा सुधार की आवश्यकता है, यह वक्तव्य उतना ही सच है जितना सूरज हर रोज निकालता है......

स्त्रियों का शरीर से निर्बल होना ही उनकी सबसे बड़ी कमी है और इस कमी का भरपूर फायदा कुछ पुरुष उठाते ही हैं..इस बात को कोई इनकार नही कर सकता...

इसका सबसे बड़ा सच है आये दिन बलात्कार की शिकार हुई लडकियां, इस तरह के हादसों की शिकार लडकियां, शहरों में तो कोट-कचहरी में अपनी चप्पल घिस कर और वकीलों की बेहूदी दलीलों सुन कर ही जीवन निकाल देतीं है...और न्याय उस लाटरी की टिकट की तरह हो जाता है जो हर डेट पर उम्मीद तो बंधाता है मगर निकलने का नाम नहीं लेता हैं.....

कुछ गाँव में जातिगत पंचायतें होती हैं जिनका अपना कानून होता है....जिसमें या तो बलात्कारी से विवाह कर लो या फिर उसे दस जूते मार दो, ऐसी ही किसी बात पर बात ख़त्म हो जाती है....स्त्री जिस नरक से गुजरती है ता-उम्र उसे न तो कभी किसी ने समझा है न ही समझेगा....

दूसरी तरफ अगर घर में कोई अपना शील या चरित्र बचा कर रख भी ले तो आत्मसम्मान बचाना मुश्किल हो जाता है...कितने ही घरों में बहुओं को सासों द्वारा ठोकर मारना, दिन भर ताने देना, घरेलू काम-काजों को लेकर मीन-मेख निकालना , बेटे को बहू के खिलाफ भड़काना, खाने-कपड़े से महरूम रखना, बात-बात में अपमानित करना जैसे बातें होती ही रहतीं हैं..

इन सारे क्रिया-कलापों से स्त्री का मन और आत्मबल क्षत-विक्षत होता ही रहता है...लेकिन अजीब बात यह है.. की इस तरह का उत्पीडन किसी कानून के शिकंजे में नहीं आ सकता क्योंकि यह क्रूरता की श्रेणी में आता ही नहीं है ...इसके आधार पर किसी को दहेज उत्पीड़न का दोषी करार नहीं दिया जा सकता..

सच तो यह है कि किसी स्त्री कि हत्या अपराध है लेकिन क्या किसी स्त्री को हर दिन तिल-तिल मारना अपराध नहीं है...??
आप क्या कहते हैं??

Thursday, December 10, 2009

वो आँचल !!!..


हमारे पड़ोस में रहते थे धनपति रामसिंहासन पाण्डेय ...दो बेटियाँ ..एक बेटा....संजय...

बेटियों कि शादी हो चुकी थी बड़े-बड़े घरों में....कभी कभार आती थी वो दोनों...उनकी पत्नी का भी स्वर्गवास हुए कुछ वर्ष हो चुके थे...

बात हम करते हैं संजय की....संजय हमसे उम्र में बहुत बड़े थे हमलोग भईया कहते थे उन्हें...उनकी शादी हो चुकी थी शीला भाभी से और उनका भी एक बेटा था विशाल.....शीला भाभी को मैंने कभी भी जोर से बोलते नहीं सुना था...हर वक्त उनके सर पर आँचल हुआ करता था...हम लोग दौड़ कर उनसे लिपट जाते तो अपने हाथ से हमेशा मेरे बाल सहलाया करती थी....वो शाही टुकड़ा बहुत अच्छा बनाती थी....जिस दिन भी उनके घर बनता था एक कटोरी में मेरे लिए ज़रूर भेज देतीं थीं....

संजय भईया..अच्छे खासी पर्सनालिटी के मालिक थे ..६ फीट उंचाई, गोरा रंग, भूरी आँखें और रोबदार चेहरा.... एक तो अकेले बेटे उसपर से अपार संपत्ति....कभी कुछ न पढ़े-लिखे नही कभी...ना ही कभी कुछ काम किया...ज़रुरत ही नहीं पड़ी.....बस दिन भर दारू पीना और और महफ़िल सजाये रखना घर पर दोस्तों की या फिर तन्देली करना....

कहते हैं न शुरू में आप शराब पीते हैं फिर शराब आपको पीती है...संजय भईया भी कहाँ अपवाद थे....होते-होते शराब ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया...उनको लीवर सिरोसिस हो गया और ६ फीट का आदमी ४ फीट का कैसे हो जाता है यह मैंने तभी देखा था....खूबसूरत बदन हड्डियों का ठठरी हो गया था.....शीला भाभी ने अपनी आँखों की नींद को अपने पास महीनों नहीं फटकने दिया....आँचल पसार-पसार कर सारे व्रत कर गयी थी वो....लेकिन भगवान् को तो अपना काम करना था .....एक दिन संजय भईया को इस दुनिया से जाना ही पड़ा...शीला भाभी और विशाल को छोड़ कर....अब घर में मात्र शीला भाभी, विशाल जिसकी उम्र २-३ वर्ष कि थी और पाण्डेय जी रह गए.....

एक दिन की बात हैं शीला भाभी हमारे घर सर पर आँचल रख कर धड-फड करतीं हुई आई और भण्डार घर में छिप गयीं...मैं बहुत छोटी थी मुझे बात समझ नहीं आई.....मैंने सिर्फ इतना देखा कि वो बहुत रो रहीं थी और मेरी माँ से कहती थी कि हम नहीं जायेगे ..आपलोग हमको कैसे भी करके यहीं से मेरे मायके भेज दीजिये.....बाहर पाण्डेय जी ने हाहाकार मचाया हुआ था कि उसको भेजो बाहर.....पाण्डेय जी का वर्चस्व और यह उनकी बहु की बात...कौन भला इसमें टांग अडाता.....आखीर में शीला भाभी को जाना ही पड़ा ...कोई कुछ भी नहीं कर पाया ....

इस बात को गुजरे शायद २५-२६ साल भी हो गए होंगे....और मुझे इस बात को समझने में इतने ही वर्ष लग गए .. मैं जब भी भारत जाती हूँ ..ज्यादा से ज्यादा ५ हफ्ते ही रह पाती हूँ...तो कभी भी शीला भाभी से मिलना नहीं हुआ....पिछले वर्ष किसी कारणवश मुझे पूरे ६ महीने रहना पड़ा....

एक दिन मैं किसी होटल से माँ-बाबा के लिए कुछ खाना बंधवा रही थी..काउंटर पर खड़ी थी की अचानक किसी ने मेरे पाऊँ छुए....खूबसूरत सा नौजवान था...कहने लगा बुआ आप हमको नहीं पहचान रहे हैं लेकिन हम आपको पहचान गए....मैंने वास्तव में उसे नहीं पहचाना ....कहने लगा हम विशाल हैं बुआ...संजय पाण्डेय के बेटे.....मुझे फिर भी वक्त लगा.....आपकी शीला भाभी...वो मेरे दादा रामसिंहासन पाण्डेय....एकबारगी मैं ख़ुशी के अतिरेक में चिल्लाने लगी...ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्यूंकि लगभग सब मुझे वहां जानते ही थे....मैंने कहा अरे विशाल !! तुम इतना बड़ा और इतना हैंडसम हो गया है......माँ कैसी है तुम्हारी ?? अच्छी है बुआ ...आपके बारे में अक्सर बात करती है....चलिए न बुआ घर...माँ से मिल लीजिये.... बहुत खुश हो जायेगी.....मेरा मन भी एकदम से शीला भाभी से मिलने को हो गया.....अरे विशाल घर पर माँ-बाबा को इ खाना पहुँचाना है...आज उलोगों को बाहर का खाना खाने का मन हुआ है.....उ लोग आसरा में बैठे होंगे.....वो बोला ..हाँ तो कोई बात नहीं बुआ....चलिए उनको खाना खिला देते हैं फिर हम आपके साथ अपने घर चलेंगे ...हम भी मिल लेंगे दादा-दादी से.....चलो ठीक है.....उसके पास मोटर साईकिल थी उसी पर बैठ कर हम अपने घर आगये...माँ-बाबा को खाना खिलाते खिलाते ये भी पता चल चल गया की अब रामसिंहासन पाण्डेय जी भी नहीं रहे.....विशाल ने MBA किया है और किसी अच्छी सी कंपनी में अब नौकरी भी कर रहा है...माँ के हर सुख का ख्याल रखता है...

माँ-बाबा को खाना खिला कर हम विशाल के साथ शीला भाभी से मिलने उनके घर गए.....घर बिलकुल साफ़ सुथरा...हर चीज़ करीने से लगी हुई...संजय भईया की तस्वीर टंगी हुई थी दीवार पर ...चन्दन की माला से सजी हुई....देख कर मन अनायास ही बचपन में कूद गया...माँ !! माँ !! देखो न कौन आया है..?? देखो न !! अरे कौन आया है ?? बोलती हुई एक गरिमा की प्रतिमा बाहर आई...मेरी शीला भाभी बाहर आयीं ...सफ़ेद साडी में लिपटी....सर पर आँचल लिए हुए शीला भाभी ...उम्र की हर छाप को खुद में समेटे हुए ...शीला भाभी खड़ी थी मेरे सामने....मुझे देखते ही...थरथराते हुए होंठों से कहा...मुना बउवा अभी याद आया अपना भाभी का...?? .मैं भाग कर उनसे यूँ लिपटी जैसे ...दो युग आपस में मिल रहे हों....आँखों से अश्रु की अविरल धारा रुक ही नहीं पा रही थी...मैं उनसे ऐसे चिपकी थी जैसे उनका सारा दर्द सोख लेना चाहती थी.....संजय भईया की आँखें मुझे देख रहीं थीं और मेरी आँखें उनसे यही कह रहीं थीं....भईया कुछ आँचल तार-तार हो जाते हैं लेकिन मैला कभी नहीं होते ..कभी नहीं !!!.

लटकता विश्वास ...


हजारों बार अपने खून से
तुमने मेरी माँग भरी
पर आज तलक माँग में
कोई लाली नहीं आ पाई
शायद तुम्हारे खून में
सफेदी कुछ ज्यादा थी
या फिर यह खून
मेरी आँखों में
समा गया है
क्योंकि मेरे आँसुओं
का रँग अब
लाल हो चला है

एक मंगलसूत्र भी,
पहना गए थे तुम
मेरे गले में
उस फंदे से मेरा
विश्वास अब तक
लटक रहा है

एक अँगूठी भी
पहनाई थी तुमने
जिसका सिरा मुझे
आज तक नहीं मिला
अब भी मेरी ज़िन्दगी
उस अँगूठी में
वो सिरा ढूंढ रही है
और गोल गोल
घूम रही है !!




(यह कविता मैंने अपनी बहुत प्रिय सहेली पुष्पा के लिए लिखी है.....जिसके विवाह सम्बन्ध में कुछ पेचीदगियां आ गयी हैं, ईश्वर उसे सबकुछ झेलने की क्षमता दे ..!! )

Wednesday, December 9, 2009

दिल आज फिर भूला कि वो पराये हैं....


कितनी ही बार मैंने ख़्वाब जलाये हैं
हाल-ए-दिल पूछने वो लौट आये हैं

उन फिजाओं की रौनक अब क्या कहिये
जहाँ प्यार के नगमें हमने गुनगुनाये हैं

सदियों की थी दूरियाँ हम नाप आये हैं
नजदीकियों के भी वहाँ पर चंद साए हैं

ज़ख़्म की उम्मीद थी गुलों से उलझ गए
इन फूलों ने फिर मेरे हौसले बढ़ाये हैं

दिल टूटा था और नुमाइश लग गयी
आँखों ने फ़िर वही कहकहे लगाये हैं

नज़रें झुकीं 'अदा' की हया से भरीं हुईं
दिल आज फिर भूला कि वो पराये हैं

Tuesday, December 8, 2009

एक सवाल ...



माँ का फ़ोन आया.....
हेल्लो, हाँ माँ .....आज कैसे फ़ोन कर रही हो?? आज तो बुधवार है....सब ठीक तो है ...?

हाँ ....अब क्या ठीक होना है...बुढ़ापा है...कभी ठीक हैं तो कभी ना ठीक....

माँ क्या हुआ तुम ठीक तो हो ??? और बाबा कैसे हैं ?? बहुत ज्यादा चिंता रहती है तुमलोगों की ...अब ठंडा गया है अपना ध्यान रखना ...

हाँ वो भी ठीक हैं बस खाँसी अब बढ़ गयी है.... ठण्ड जो बढ़ रही है...

अच्छा वो दवा मंगवा ली जो हम लाये थे और बाबा एकदम ठीक हो गए थे ....

नहीं कहाँ मंगवा पाए हैं....

माँ हमको इसी बात से गुस्सा आता है ....हर बार तुमसे कहते हैं और तुम सुनती नहीं हो.....हम जानते थे तुम दवा नहीं मंगवाई होगी ......एक साल हो गया अभी तक तुम नहीं मंगवाई हो.....सच में माँ तुम भी ...सिर्फ जगदीश (ड्राईवर) से कहना ही तो होता है.... वो भी नही करती हो...

अरे बाबा कल जगदीश आएगा तो मंगवा लेंगे.....

खैर ये तो हम पिछले एक साल से सुनते रहे हैं..और हर बार मेरा मूड ऑफ़ हो जाता है..... जगदीश के पास भी एक फोन नहीं है.....दुनिया रखती है फोन क्यूँ नहीं रखता है....खैर अब बताओ फ़ोन कुछ बोलने के लिए की ....की ऐसे ही की हो ???

बेटा तुम चिंता मत करो कल ज़रूर मंगवा लेंगे दवा......हाँ बताना था कि तुम्हारे सचिन चाचा अब नहीं रहे ....

कौन सचिन चाचा ??

वही तुम्हारे बाबा के चचेरे भाई.....जो वकील थे....

अच्छा वो जो बहुत अंग्रेजी बोलते थे...

हाँ हाँ वही.....

अच्छा तो बहुत बुरा हुआ....क्या हुआ था...?

शायद हार्ट फेल हुआ है ...हमलोग ठीक से नहीं जानते हैं....पता नहीं शायद - साल से तो मुलाक़ात भी नहीं थी....

अच्छा...फिर कैसे पता चला कि ऐसा हुआ है.....?

गाँव से जया (मेरी चचेरी बहन) का फोन आया कि ऐसा दुःख का खबर है....सो घर में छुतका हो गया है...

घर में छुतका का माने ?

अरे अब दस दिन तक हल्दी-तेल नहीं बनेगा ....

अरे काहे....? काहे नहीं बनेगा ??? माँ तुम भी इतनी पढ़ी लिखी होकर ऐसी बात करती हो.....उनलोगों से कभी मिलना जुलना... बात ना चीत फिर आप रांची में काहे छुतका मानेंगी....?

अरे तुमको नहीं करना है सब....सलिल (भाई) करेगा..उसको भी बोल दिए हैं.....तुमसे पाहिले उसी से बात किये कनाडा में...

अरे माँ......सलिल काहे करेगा दस दिन इसका पारण बताओ तो.... तो सचिन चाचा से बार से ज्यादा मिला भी नहीं होगा... और कनाडा में इसका पारण करने का माने... तो बेवकूफी हैं ?? हम
रांची में इसका पारण बेवकूफी सोचते हैं और तुम कनाडा में करवा रही हो.....??

लोग गोतिया हैं अपना खून हैं.....तो मानना तो पड़ेगा ....और तुम काहे परेशान हो तुमको नहीं करना है....

हाँ ..जानते हैं....अगर करना भी होता तो नहीं करते...
हम फिर से कहते हैं...जीते जी तो कभी भर मुंह बात नहीं कि हो और अब छुतका मान रही हो...... बात हम नहीं समझे......चलो तुमलोगों की जैसी मर्जी....
अच्छा माँ बताओ...अगर हमको कुछ हो गया..... हम नहीं रहे तो तुम दस दिन का हल्दी-तेल बर्जोगी कि नहीं ..??

....................

माँ !!!

माँ !!!
अरे सुन रही हो की नहीं ??? हम का पूछ रहे हैं ...अगर हमको कुछ हो गया तो तुम दस दिन का तेल-हल्दी बर्जोगी कि नहीं.....कि खैईते रहोगी......बोलो ???

का बेहूदा सवाल है...ऐसे कोई बात करता है.....

माँ जवाब दो.....

हम फालतू बात का जवाब नहीं देते हैं...तुम हमेशा उल्टा-पुल्टा बात करती हो....लो
अपने बाबा से बात करो....

माँ बोलो माँ ...बताओ ना... हम सिर्फ़ जानना चाहते हैं...कुछ हो थोड़े ही रहा है...


ाँ हल्लो.....मुन्ना (मैं लड़की हूँ लेकिन
,मेरा
घर में पुकारू नाम)....
हल्लो..!!
मुन्ना....???
मुन्ना....???

हां बाबा प्रणाम....कैसे हैं.?.......
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ठीक है बाबा अब रखते हैं.....अच्छा बाबा प्रणाम....
टिन...


मैं कौन हूँ ??????