आज का माहौल...और मेरा एक सवाल उनके लिए जो अपने प्रोफेशन में दक्ष हैं...प्लीज आपलोग इसे अन्यथा मत लीजियेगा...
जहाँ तक मैं जानती हूँ ...डाक्टर और मरीज के बीच एक अनुबंध होता है ..जिसे protection of privacy , या फिर confidentiality agreement कहते हैं...हो सकता है कि इस तरह की बंदिश सिर्फ़ उनके बीच हो जिनके बीच सचमुच 'डाक्टर-मरीज' का रिश्ता हो...अर्थात जिस डाक्टर ने उस मरीज को अपनी प्रोफेशनल राय दी है और जिसकी निगरानी में वो मरीज है.....लेकिन क्या उस डाक्टर की कोई नैतिक जिम्मेवारी नहीं होती जिसने उस मरीज का इलाज नहीं किया है लेकिन उस मरीज की निजी बातों की पूरी जानकारी हो गई हो....क्या नैतिकता की कोई सीमा निर्धारित है..?
हालांकि Hippocratic Oath के अनुसार, डोक्टोर्स को हर हाल में चिकित्सा की जिसे ज़रुरत है उसकी मदद करनी है, किसी भी कीमत में जान बचानी है...और जहाँ एक बार किसी डाक्टर ने किसी को अपनी राय दे दी..मेरी नज़र में यह अनुबंध स्थापित हो गया ऐसा मैं सोचती हूँ....
बहुत हैरान हुई हूँ ...देख कर कि..किसी की बहुत ही निजी जानकारी किसी पोस्ट पर लिखी गई है...और वो भी एक डाक्टर द्वारा...मानवीय मूल्यों का ऐसा हनन किसी भी हाल में उचित नहीं है...
मेरा प्रश्न ये है....क्या इस तरह एक डाक्टर का सरे आम किसी मरीज की पर्सनल बातें ब्लॉग पर लिखना privacy act के विरुद्ध नहीं है....? क्या वह मरीज इस बात से हताहत नहीं होता है ? और सबसे अहम् सवाल क्या यह कदम क़ानून की लपेट में आ सकता है ? क्योंकि एक आम इन्सान के डिक्लेर करने और एक डाक्टर के डिक्लेर में फर्क तो होना ही चाहिए....
मेरी नज़र में जब किसी को यह पता चलता है कि सामने वाला इन्सान एक डाक्टर है, रवैये में एक फर्क तो हो ही जाता है...वो अपनी समस्याएं और खुल कर डाक्टर को बताता है...अब ये उस डाक्टर पर निर्भर है कि वो उस मरीज को किस तरह और किस हद्द तक खुलने देना चाहता है...और जब बात हो ही गई है तो एक अनलिखा अनुबंध बन ही जाता है...क्योंकि डाक्टरी प्रोफेशन की यह एक ज़रुरत है....
यह एक बहुत ही नोबल पेशा है...और इस पेशे की सबसे बड़ी बात है विश्वास...
मैं यहाँ अपने निजी सम्बन्ध की बात बिल्कुल नहीं कर रही हूँ, मैं बात कर रही हूँ व्यक्तिविशेष के स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी को सार्वजनिक करने की...
कहते हैं...किसी ने धन खो दिया तो कुछ नहीं खोया, किसी ने मित्र खो दिया तो बहुत कुछ खो दिया लेकिन अगर किसी ने विश्वास खो दिया तो उसका सर्वस्व खो गया...
हाँ नहीं तो..!!
कृपा करके जवाब दीजिये...
विचारणीय लेख के लिए बधाई
ReplyDeleteकृष्ण जन्माष्टमी के मंगलमय पावन पर्व अवसर पर ढेरों बधाई और शुभकामनाये ...
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteस्वप्न मंजूषा जी, privacy का मतलब ही होता है निजी , अगर कोई किसी की निजी बातो को सार्वजानिक करता है तो ये वाकई शर्मनाक है ........
कृपया एक बार पढ़कर टिपण्णी अवश्य दे
(आकाश से उत्पन्न किया जा सकता है गेहू ?!!)
http://oshotheone.blogspot.com/
अपन तो उत्तर देंगे अपने फेवरेट विषय "मानवता " के अनुसार.... आराम से .. थोडा सा अंत में
ReplyDeleteअदा जी वैसे तो मैंने ऐसे पचड़ों में पढ़ना करीब डेड साल पहले छोड़ दिया, मगर आपकी बात को समझ रहा हूँ , बस यही कहूंगा की बदले जमाने के हिसांब से डाक्टर और मरीज दोनों ही शातिर नजर आते है !
ReplyDeleteअदा जी ! ये डॉक्टरस के मूल्यों का ही नहीं ..मानवीय मूल्यों का भी हनन है .
ReplyDeleteऔर ये ओअथ ...डॉ और मरीज़ पर ही नहीं हर इंसान पर लागू होनी चाहिए मेरे ख्याल से .
विचारणीय पोस्ट
बात तो आप सही कह रही हैं ।
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
ये विषय मित्रता का एंगल लिए हुए है इसलिए इसे भी पढ़ा जाये (मेरे अंतिम विचार अभी बाकी है )
ReplyDeletehttp://my2010ideas.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html?showComment=1282797754098#c6616624972730555629
मैंने इन विचारों के लिए बड़ा विरोध झेला है अब देखिये मैं कहाँ गलत था
दीदी ,
कमेन्ट विषय से जुड़ा न लगे तो हटा दीजियेगा
किसी की बहुत ही निजी जानकारी किसी पोस्ट पर लिखी गई है...और वो भी एक डाक्टर द्वारा.
ReplyDeleteऐसा भी होता है क्या हिन्दी ब्लॉगजगत में ?? मैं तो अभी नया हू भाई ब्लॉगजगत में:)
सदैव की तरह बहुत अच्छा लिखा है आपने अदा जी, पर कानूनी बातें अधूरी है.
संजीव जी...
ReplyDeleteआप यहाँ पढ़ सकते हैं वो बातें...
http://zealzen.blogspot.com/2010/08/blog-post_3917.html
शिखा,
ReplyDeleteमुझे इस बात से कोई मतलब नहीं कि किसके बीच में विचारों का मतभेद हो रहा है...यह अपना व्यक्तिगत निर्णय होता है ...
लेकिन एक चिकित्सक अगर किसी मरीज कि निजी जानकारी कि सुरख्षा नहीं कर सकता है तो यह एक चिंता का विषय है...कल को अगर मुझे ही उस चिकित्सक के पास जाना पड़ा तो मैं कैसे उस पर यकीन करुँगी...
मेरे कहने का सिर्फ़ इतना ही तात्पर्य है...और निसंदेह यह उस व्यक्ति के मानवीय मूल्यों का हनन है...
गौरव.... मुझे थोड़ी देर के लिए कहीं जाना है...
ReplyDeleteलौट कर पढ़ती हूँ...
ख़ुश रहो..
कोई मरीज नहीं है, सब डॉक्टर ही डाक्टर हैं कौन से मरीज का गुरदा काटकर बेंचा जाए विमर्श हो रहा है शायद :)
ReplyDeleteकान्हा, वह भी सूरदास का,
ReplyDeleteउत्तर देगा हर विवाद का।
जी नहीं नैतिकता की कोई सीमा नहीं है...जितना अधिक चाहे नैतिक हुआ जा सकता है :)
ReplyDelete.
ReplyDeleteअदा जी,
बिना दोनों पक्षों का सच जाने आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। आपने अमरेन्द्र से तो दोस्ती निभाई , लेकिन मेरा पक्ष जानना जरूरी नहीं समझा आपने।
मैंने हमेशा अमरेन्द्र से सहानुभूति राखी, वो मुझसे प्यार करने लगा , इसलिए उससे दुरी बनाये राखी, वो इस दुरी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है, बहुत सी पोस्ट्स पर जाकर मेरे खिलाफ लिखता है। मैं उसकी मानसिक अवस्था का ख़याल कर चुप रहती थी।
जब हद हो गयी तो एक पोस्ट लगाई, जिस पर कमेंट्स बंद रखे , ताकि उसकी बेईज्ज़ती न होने पाए।
अदा जी जब मैंने पोस्ट अरविन्द मिश्र जी के बारे में लगाई थी तब तो आपको बहुत ख़ुशी हुई थी, लेकिन क्या अरविन्द के सिवा कोई दूसरा पुरुष भी अरविन्द जैसा नहीं हो सकता ?
एक बार मुझसे बात तो कर ली होती , मुझ पर लांछन लगाने से पहले ।
कृपया इस पोस्ट पर आकर अमरेन्द्र का सच जानिये।
.
zealzen.blogspot.com
ReplyDeleteसमाज में सच और झूठ को अलग करने तथा झूठे को सजा देने जैसी व्यवस्था लगभग ख़त्म हो चुकी है ,भ्रष्टाचार के गंदे पैसे ने लोगों के दिमाग को गन्दा कर दिया है ,ज्यादातर लोगों की नैतिकता अब कुछ रुपयों में खरीदी जाने वाली चीज बन गयी है ,जीने के लिए लोग रोज सैकरों बार मरने को तैयार रहते हैं और मरते हैं ,झूठी जिन्दगी सच्ची जिन्दगी को बरी बेदर्दी से कुचल रही है ,ऐसे हालात में किसी व्यक्ति में इंसानियत का जिन्दा रहना चमत्कार से कम नहीं ..इसलिए जरूरत है की आज अपने साये की भी जाँच परख कर ही विश्वास करें ...वैसे मानवता के नाते मदद हर किसी की यथासंभव जरूर करें ...
ReplyDeleteमुस्टण्डों को दूध-मखाने,
ReplyDeleteबालक भूखों मरते,
जोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी,
दौलत से घर भरते,
भोग रहे सुख आजादी का, बेईमान मक्कार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
--
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्!"
--
योगीराज श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई!
नैतिकता ही क्यों ? सीमायें तो हर मुद्दे से वाबस्ता हैं !
ReplyDelete
ReplyDeleteयदि आप वापस आ चुकी हो, तो मैं अपनी टिप्पणी डालूँ ?
ख़्वामख़ाह ही बेचारा आपकी प्रतीक्षा में लटका रहेगा ।
क्या ई-मेल से की गयी टिप्पणियाँ स्वीकार की जाती हैं ?
सादर आपका - दिवास्वप्नभँगुर
ReplyDeleteक्षमा करें, नामुराद, बेसरम अधूरी टिप्पणी अनायास ही मेरे हाथों से फिसल गयी ।
अदा जी नमस्कार,
ReplyDeleteएक डाक्टर द्वारा लिखे गए जिस ब्लॉग पर आपने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है मैंने उसे नहीं पढ़ा है इसलिए उस सन्दर्भ से बीलकुल अनभिज्ञ हूँ जिसमे वह लिखा गया है और इसलिए उस पर टिपण्णी करना मेरे लिए सही नहीं होगा. हालांकि, एक डाक्टर हूँ और इसलिए आपसे यूँही एक जानकारी बांटना चाह रहा हूँ, जिसका इस मामले को सही या गलत ठहराने से कोई लेना देने नहीं है.
आप डाक्टर और मरीज के बिच जिस अनुबंध की बात कर रही हैं, उसे हम भारत में "Professional Secrecy" के नाम से जानते हैं जिसके तहत अपने डाक्टरी के दौरान मालूम चले मरीजों की निजी बातों की निजता बनाये रखने के लिए डाक्टर का आभार होता है. अंग्रेजी में, "The doctor is obliged to keep secret all that he comes to know concerning the patient in the course of his professional work." मगर इसके कुछ अपवाद भी हमारे कानून में दिए गए हैं, जिन्हें हम "Privileged Communication" के नाम से जानते हैं. इसके बारे में कहाँ गया है, "It is a statement made bonafide upon any subject matter by a doctor to the concerned authority, due to his duty to protect the interests of the community or of the state." उदाहरण के तौर पर अगर मुझे किसी के बारे में पता चले कि उसे AIDS हो गया है तो ये मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं सरकार की AIDS रोधी संस्था को और उस मरीज के परिवार को इस बात की जानकारी दे दूं ताकि उसका इलाज हो सके और ये बीमारी आगे न फ़ैल सके.
जैसा मैंने पहले भी कहाँ है कि मेरी बात को उस ब्लॉग को सही या गलत ठहराने के रूप में न लिया जाए.
एक डाक्टर द्वारा लिखे गए जिस ब्लॉग पर आपने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है मैंने उसे नहीं पढ़ा है इसलिए उस सन्दर्भ से बीलकुल अनभिज्ञ हूँ जिसमे वह लिखा गया है और इसलिए उस पर टिपण्णी करना मेरे लिए सही नहीं होगा. हालांकि, एक डाक्टर हूँ और इसलिए आपसे यूँही एक जानकारी बांटना चाह रहा हूँ, जिसका इस मामले को सही या गलत ठहराने से कोई लेना देने नहीं है.
ReplyDeleteआप डाक्टर और मरीज के बिच जिस अनुबंध की बात कर रही हैं, उसे हम भारत में "Professional Secrecy" के नाम से जानते हैं जिसके तहत, "The doctor is obliged to keep secret all that he comes to know concerning the patient in the course of his professional work." मगर इसके कुछ अपवाद भी हमारे कानून में दिए गए हैं, जिन्हें हम "Privileged Communication" के नाम से जानते हैं. इसके बारे में कहाँ गया है, "It is a statement made bonafide upon any subject matter by a doctor to the concerned authority, due to his duty to protect the interests of the community or of the state." उदाहरण के तौर पर अगर मुझे किसी के बारे में पता चले कि उसे AIDS हो गया है तो ये मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं सरकार की AIDS रोधी संस्था को और उस मरीज के परिवार को इस बात की जानकारी दे दूं ताकि उसका इलाज हो सके और ये बीमारी आगे न फ़ैल सके.
जैसा मैंने पहले भी कहाँ है कि मेरी बात को उस ब्लॉग को सही या गलत ठहराने के रूप में न लिया जाए.
एक डाक्टर द्वारा लिखे गए जिस ब्लॉग पर आपने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है मैंने उसे नहीं पढ़ा है इसलिए उस सन्दर्भ से बीलकुल अनभिज्ञ हूँ जिसमे वह लिखा गया है और इसलिए उस पर टिपण्णी करना मेरे लिए सही नहीं होगा. हालांकि, एक डाक्टर हूँ और इसलिए आपसे यूँही एक जानकारी बांटना चाह रहा हूँ, जिसका इस मामले को सही या गलत ठहराने से कोई लेना देने नहीं है.
ReplyDeleteआप डाक्टर और मरीज के बिच जिस अनुबंध की बात कर रही हैं, उसे हम भारत में "Professional Secrecy" के नाम से जानते हैं जिसके तहत, "The doctor is obliged to keep secret all that he comes to know concerning the patient in the course of his professional work." मगर इसके कुछ अपवाद भी हमारे कानून में दिए गए हैं, जिन्हें हम "Privileged Communication" के नाम से जानते हैं. इसके बारे में कहाँ गया है, "It is a statement made bonafide upon any subject matter by a doctor to the concerned authority, due to his duty to protect the interests of the community or of the state." उदाहरण के तौर पर अगर मुझे किसी के बारे में पता चले कि उसे AIDS हो गया है तो ये मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं सरकार की AIDS रोधी संस्था को और उस मरीज के परिवार को इस बात की जानकारी दे दूं ताकि उसका इलाज हो सके और ये बीमारी आगे न फ़ैल सके.
जैसा मैंने पहले भी कहाँ है कि मेरी बात को उस ब्लॉग को सही या गलत ठहराने के रूप में न लिया जाए.
@ दिव्या जी...
ReplyDeleteसबसे पहले..मैंने आप पर कोई लांछन नहीं लगाया है...जो भी आपने अपनी पोस्ट पर लिखा है...मैंने उसे ही पढ़ कर, समझ कर बात कही है.....यह मात्र आपको आपके profession में जो नैतिकता निहित है उसकी बात याद दिलाने के लिए लिखी है...आपको पूरा अधिकार है..इस बात को सार्वजानिक करने का कि किसने आपने प्रेम निवेदन किया और आपको क्या बात पसंद नहीं आई....मुझे इस बात में कोई इंटेरेस्ट नहीं ....लेकिन आपको इस बात का को सार्वजनिक करने का कोई अधिकार नहीं है..कि फलाना व्यक्ति मानसिक रोगी है और वो इतने सालों तक मानसिक चिकित्सालय में भरती हुआ था...अगर आप सचमुच एक चिकित्सक हैं तो आपको इस बात का पूरा अहसास होना चाहिए...और अगर आप विदेश में प्रक्टिस करती हैं और फिर भी आपने ऐसा कदम उठाया है फिर तो संदेह कि सूई आपके डाक्टर होने पर भी टिक सकती है....
आप जिन दूसरे व्यक्ति कि बात कर रही हैं...अगर आप उनके स्वास्थ्य सम्बन्धी किसी भी जानकारी को सार्वजनिक करती तो मेरा बिल्कुल यही कदम होता जो अभी हुआ है....
मैं 'अमरेन्द्र' व्यक्ति के लिए नहीं लिख रही हूँ...मैं 'अमरेन्द्र' मरीज के लिए लिख रही हूँ....
आशा है आप समझ गई होंगी...
कान्हा आओ ब्लॉगर्स को कुछ सिखाओ..... अपने रुप दिखाओ... पर अपने गुन यहीं छोड़ जाओ...
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभकामनाएँ।
पेशा कोई भी हो, नैतिकता और इन्सानियत का तकाजा उन सब से उपर है और वो भी आपसी विश्वास को कायम रखने की मांग करता है.
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteबिना किसी की असली बात जाने सीधे उसे मरीज कहना भी ठीक नहीं है।
आपने यहा स्पष्ट लिखा है कि अमरेन्द्र के लिए मरीज शब्द का इस्तेमाल कर रही हूँ। जो कि उचित नहीं लग रहा।
भले ही आपने किसी की पोस्ट पढ़ कर ही क्यों न अपने जहन में यह बात बैठाई हो लेकिन एक बार उस विवादित पोस्ट के लेखक की हालिया प्रविष्टियों और टिप्पणियों पर भी ध्यान देना चाहिए कि हाल फिलहाल किस स्तर की और किस मानसिकता से उसकी टिप्पणियां या पोस्ट आदि लिखे जा रहे हैं।
पिछले दो चार दिनों के हुए तमाम विवादों को जहन में रखकर यदि सोचें तो पता चल सकता है टाप फ्लोर किधरको खाली है :)
जहां तक अमरेन्द्र की बात है तो उनकी पोस्टें और तमाम बहस मुबाहिसे आदि पढ़ने से तो लगता है कि फिलहाल उनका टॉप फ्लोर भरा हुआ है कोई मानसिक बीमारी नहीं हैं उन्हें, इसलिए बिना वजह उन्हें मरीज न कहा जाय।
जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteस्वप्न मंजूषा जी,
ReplyDeleteआप ने जो कहा वह सही है और आपके शब्दों का समर्थन करना भी नैतिकता वाली बात है अत मै आपसे सहमत होते हुए समीर भाई की बातो को भी मानी करता हु ! और ये दो शब्द देश के ब्लोगरो के नाम देना चाहता हु ! ग्रहण करे !
विद्यार्थी या शिक्षक हो,डाक्टर और व्यापारी
नर हो नारी बने नीतिमय जीवनचर्या सारी
कथनी-करनी की समानता में गतिशील चरण हो
संयममय जीवन हो ॥
प्रभु बनकर ही हम प्रभु की पूजा कर सकते हैं
प्रामाणिक बनकर ही संकट सागर तर सकते हैं
शौर्य-वीर्य-बलपती अहिंसा ही जीवन दर्शन हो
संयममय जीवन हो ॥
सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा
महावीर-सिंह नाथ सारे जग में पसरेंगा
मानवीय आचार संहिता में अर्पित तन-मन हो
संयममय जीवन हो !!
हर रामा
ReplyDeleteहरे कृष्णा,
कृष्णा...कृष्णा,
हरे हरे !
कृष्ण जन्माष्टमी के मंगलमय पावन पर्व अवसर पर ढेरों बधाई और शुभकामनाये ..
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDelete'मरीज' शब्द इतना भी बुरा नहीं है..जितना आप सोच रहे हैं...हम सभी कभी न कभी 'मरीज' रहे ही हैं...और आगे भी होते ही रहेंगे...अमरेन्द्र को आशीर्वाद हैं , चिरायु हो दीर्घायु हो...
इस सन्दर्भ में जब मुझे 'मरीज' शब्द का इस्तेमाल करना पड़ा है वह सिर्फ़ एक डाक्टरी प्रोफेशनल में संलग्न व्यक्ति को अपनी बात समझाने के लिए ही करना पड़ा है....आपने इस एक शब्द को ही तूल दिया है...परन्तु मैं अपनी बात पर कायम हूँ...और इस शब्द के उपयोग को भी सही मान रही हूँ...
इससे किसी को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए...मेरा ऐसा मानना है...
अमरेन्द्र,
ReplyDeleteअगर तुम्हें 'मरीज' शब्द से दुःख पहुँचा है तो मुझे कोई हैरानी भी नहीं है...लेकिन तुम्हें यह भी सोचना चाहिए कि कुछ मंद बुद्धि लोगों को समझाने के लिए ही मुझे इस शब्द का प्रयोग तुम्हारे नाम के साथ मजबूरन करना पड़ा है...तुम इस बात को दिल से लगा कर मत बैठो...
हाँ एक बात तो मुझे समझ में आ ही गई है...कि समझदारी की सीमा होती है ...लेकिन मूर्खता की कोई सीमा नहीं होती...तुम भी अपनी मूर्खता पर काबू रखो और इत्मीनान से अपने लक्ष्य की ओर चलो, ऐसी बातें जीवन में होती ही रहतीं हैं...इनके लिए अपना जीवन नष्ट करना महामूर्खता है...और कम से कम इस पूरे प्रकरण में एक तुम ही हो जो मूर्ख नहीं हो....
शुभाशीष ...
सतीश पंचम जी को शायद ये पता नहीं कि आयुर्वेद के अनुसार कोई भी मनुष्य पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं.. यानि हर कोई मरीज़ ही है..
ReplyDeleteदीदी ,
ReplyDeleteये पेशे की मर्यादा का उल्लंघन है लेकिन एक बात और
दोस्ती दुनिया में सबसे ज्यादा अविश्वसनीय बेनामी रिश्ता है [जैसे ऊपर दिया लिंक कह रहा है,प्रेम की नहीं दोस्ती की बात कही है]
बेसिकली इस दोस्ती(बेनामी)रिश्ते के कन्फ्यूजन कारण ही हर मर्यादा का उल्लंघन होता है
(ये एक ग्लोबल वाक्य है सब पर फिट होता है )
ऊपर दिया मेरे द्वारा दिया कमेन्ट वाला लिंक निरस्त मानें पूरा लेख और कमेन्ट ही पढ़ डालें
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html
ना .. ... ... ना , मैं किसी की तरफ नहीं हूँ
मानवता अमर रहे, मानवता और देशभक्ति से ऊपर नहीं होते रिश्ते
अदा जी, दीपक जी,
ReplyDeleteशायद अभी भी आपने मेरा आशय नहीं समझा है।
मुझे पता है कि हम सभी किसी न किसी समय मरीज रहे हैं। कोई अमरत्व लेकर नहीं आता, महीने में साल में कई बार सब लोग मरीज होन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं लेकिन यहां जिस संदर्भ में मरीज शब्द लिखा गया है उससे मुझे आपत्ति है।
Anyway, आप अपने शब्द पर कायम रहें।
जाकी रही भावना जैसी।
इस पर मुझे और कुछ नहीं कहना है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्ठमी की सभी साथियों को बहुत-बहुत बधाई, ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteनैतिकता और विश्वास ये दोनों ही बातें किसी भी रिश्ते में बहुत महत्वपूर्ण है ...
ReplyDeleteबात व्यवसायिक समबन्धों की हो या मानसिक ...
विश्वास में लेकर कही गयी किसी के भी विचार को सार्वजानिक करना अनुचित है ...तब तक जबतक कि उसे छिपाने से मानवता को हानि नहीं पहुँचती हो ...
यह पोस्ट कैसे फिसल गयी ...आजकल अनियमित हूँ शायद इसलिए ...!
ठीक यही विचार मेरे मन में भी उठे थे कि एक कथित डॉक्टर द्वारा किसी की भी चिकित्सीय जानकारी को जग-जाहिर किया जाना क्या उस डॉक्टर के लिए नैतिक रूप से जायज है?
ReplyDeleteआम बोल-चाल व सामाजिक दायरों में डॉक्टर को भगवान माना जाता है। हालांकि व्यवसायिकता के दौर में किसी की नैतिकता पर बात करना बेमानी है फिर भी 'डॉक्टर' शब्द की गरिमा आज भी अपने स्थान पर अटल है। अब अगर कोई खुद ही उस गरिमा/ नैतिकता को स्थानापन्न करना चाहे तो सिवाय उस पर तरस खाने के क्या किया जाए।
इस 'डॉक्टर' शब्द के संदर्भ में यह बिल्कुल ठीक है कि किसी ने विश्वास खो दिया तो उसका सर्वस्व खो गया...
मैं नहीं समझता कि किसी निष्पक्ष मानवीय संवेदनाओं वाले किसी डॉक्टर द्वारा इस तरह की हरकतों का समर्थन किया गया है या किया जायेगा।
अब यदि मेरे अन्यत्र विचारों का उल्लेख करते हुए प्रतिकार हो तो यही बात होगी कि 'मीठा मीठा हा-कड़वा कड़वा थू!'
बी एस पाबला