@ आशीष जी... बहुत सही पहचाना.... वैसे मैं @ अविनाश जी se भी उम्मीद कर रही थी ...:):) महाकवि श्री जयशंकर प्रकाश की कविता चुनने का मकसद भी यही था....देखना चाहती थी, इतने बड़े कवि की इतनी प्रख्यात कविता, लोगों को याद भी है या नहीं.... आपका आभार.....
देखिये जी, कविता अब तक हमने सिर्फ़ वही पढ़ी थीं जो पाठ्यक्र्म में रहीं। आपके ब्लॉग से ही अच्छी लगनी शुरू हुईं और दिलीप और अविनाश जी तक पहुंचे। हमने प्रसाद जी की संदर्भित कविता नहीं पढ़ी थी, हमें तो आपकी यह कविता ऐसी लगी कि बस बता नहीं सकते। आज तीज, गणेश चतुर्थी और ईद एक साथ हैं, आपको इन सभी पर्वों पर हार्दिक शुभकामनायें।
हृदय करुणा कलित,
ReplyDeleteविकल वेदना असीम,
बिन पूछे,
लहर गयी....
भाव सागर की लहरें,
मानस पट के तट पर,
ज्यूँ आकर,
ठहर गईं...
आपकी एक एक पंक्ति में छुपे आपकी ख़ूबसूरती कला को नमन
:):)
ReplyDeletekhubsurat.....aaj bahut shukriya
"बिन पूछे,
ReplyDeleteलहर गयी..."
अतुकांत का ज़माना है भई, बहर गई :)
बहुत ही सुन्दर शब्द लहरी।
ReplyDeleteवाह वाह , क्या कविता है , जयशंकर प्रसाद की "आंसू " की निम्न पंक्तियों से प्रभावित एवं मौलिक .
ReplyDeleteइस करुना कलित ह्रदय में अब विकल रागिनी बजती ,
.क्यू हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती
मानस सागर के तट पर , क्यू लोल लहर के घाते
कल क़ल ध्वनि से है कहती, कुछ विस्मृत बीती बाते
क्यों उलझ रहा सुख मेरा निशा की घन अलको में
हा , छलक रहा दुःख मेरा उषा की मृदु पलकों में.
साभार आपसे---- हा नहीं तो
@ आशीष जी...
ReplyDeleteबहुत सही पहचाना....
वैसे मैं @ अविनाश जी se भी उम्मीद कर रही थी ...:):)
महाकवि श्री जयशंकर प्रकाश की कविता चुनने का मकसद भी यही था....देखना चाहती थी, इतने बड़े कवि की इतनी प्रख्यात कविता, लोगों को याद भी है या नहीं....
आपका आभार.....
:)
ReplyDeleteji yaad tha, shukriya usi ke liye tha :)
आपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा, “मनोज” पर, मनोज कुमार की प्रस्तुति पढिए!
@ महाकवि श्री जयशंकर प्रसाद
ReplyDeleteसुन्दर कविता पर ...पर ... उलझनें के लिए 'अली' नहीं 'अलि' सम होना होगा :)
ReplyDeleteदेखिये जी, कविता अब तक हमने सिर्फ़ वही पढ़ी थीं जो पाठ्यक्र्म में रहीं। आपके ब्लॉग से ही अच्छी लगनी शुरू हुईं और दिलीप और अविनाश जी तक पहुंचे। हमने प्रसाद जी की संदर्भित कविता नहीं पढ़ी थी, हमें तो आपकी यह कविता ऐसी लगी कि बस बता नहीं सकते।
ReplyDeleteआज तीज, गणेश चतुर्थी और ईद एक साथ हैं, आपको इन सभी पर्वों पर हार्दिक शुभकामनायें।
अली साहब....आपका भी धन्यवाद
ReplyDeleteआज तो सब कुछ ही गड़बड़ हो रही है...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
अम्मा बाबू जी आये हैं..उनकी सेवा छोड़ ब्लॉग?? गलत बात..हा हा!
ReplyDeleteआप भी प्रसाद की दीवानी हैं ...हमको तो पता ही नहीं था ...:)
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