Sunday, September 26, 2010

ख़ुद को खड़ा हम पाते हैं ....


चाल लहू की नसों में, जब धीमे से पड़ जाते हैं
मन आँगन के पोर पोर में, सपने ज्यादा चिल्लाते हैं

धुंधली आँखों के ऊपर जब, मोटे ऐनक चढ़ जाते हैं
तब अपने बिगड़े भविष्य के, साफ़ दर्शन हो जाते हैं

हर सुबह झुर्रियों के झुरमुट, और अधिक गहराते हैं
हर रोज़ लटों में, श्वेत दायरे और बड़े हो जाते हैं

कुछ देर तो बेटी-बेटे जम कर शोर मचाते हैं
फिर एकापन जी भर कर, आपसे चिपट ही जाते हैं

हमसे पहले की पीढी अब, विदा लेती ही जाती है
उनके पीछे अब कतार में, ख़ुद को खड़ा हम पाते हैं

19 comments:

  1. इस कविता पर किया गया अपना कमेन्ट याद आ रहा है मुझे ...
    इस लाईन का अग्रिम योद्धा आपको ही बनायेंगे ...
    ये जीवन की सच्चाई है ...एक दिन हमें भी इसी लाईन में खड़ा होना है ...
    अच्छी कविता !

    ReplyDelete
  2. जीवन की सच्चाई बयाँ करती रचना

    ReplyDelete
  3. सबको इसी राह से गुज़रना है। मैं तो बुजुर्गों में अपना भविष्य देख लेता हूँ।

    ReplyDelete
  4. अपरिहार्य, अवश्यम्भावी !
    इसीलिए सभी को ग्रेसफुल एजिंग के बारे में सीखना चाहिए ।
    तस्वीर में भी यही दिख रहा है ।

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  6. बिलकुल सत्य। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  7. हर इन्सान को उस मोड़ पर जाना है. अच्छी रचना.

    ReplyDelete
  8. तलाशते है जब भी, पूरी कभी मिलती नहीं,
    किश्तों में जिंदगी को, यहाँ-वहाँ पातें है ..

    बहुत खूब , लिखते रहिये ...

    ReplyDelete
  9. ययाति - जरावस्था या बुढ़ापे से छुटकारा पाने के लिये अपने
    सगे पुत्र की जवानी दांव पर लगा दी, कामनाओं की
    पूर्ति फ़िर भी नहीं हुई।(एक विषयी का नजरिया)।

    जनक - दर्पण देखते समय एक सफ़ेद बाल दिखा, और
    वैराग्य हो गया।(एक तत्वज्ञानी का नजरिया)।

    शायर - ये दुनिया अजब सराय फ़ानी देखी,
    जो आके न जाये वो बुढ़ापा देखा,
    जो जाके न आये वो जवानी देखी।(जिन्दगी को
    को देखने का एक रुमानी फ़लसफ़ाना नजरिया)

    आज के समय के हिसाब से डा. दराल साहब का कमेंट बुढ़ापे को स्वीकारने का सबसे प्रैक्टिकल नजरिया।
    वैसे हमारे फ़त्तू का भी एक नजरिया है - देखी जायेगी:)
    आपकी यह रचना भी बहुत अच्छी लगी, आभार स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  10. hum to isee kagar par aabhee gaye hai jee........
    sunder prastuti........

    ReplyDelete
  11. नज़ारे जो न दिखाए क्म है.... हाय ये बुढापा :)

    ReplyDelete
  12. डरे हुओं को और भी डराना क्यों :)

    ReplyDelete
  13. दीदी,
    ओहो ... गजब .. लास्ट लाइन ने जो सबकुछ मिला के समेटा है ना...
    बस एक दम से दिल दिमाग दोनों एक साथ कह उठे
    वाह..क्या सटीक बात कही है ?? :)
    फोटो भी एकदम सही लगाया है :)

    ReplyDelete
  14. कुछ देर तो बेटी-बेटे जम कर शोर मचाते हैं
    फिर एकापन जी भर कर, आपसे चिपट ही जाते हैं

    सच कहा आपने....भविष्य की चिंता सता रही है लगता है...खैर हम भी आयेंगे इस पंक्ति में...:(


    हमसे पहले की पीढी अब, विदा लेती ही जाती है
    उनके पीछे अब कतार में, ख़ुद को खड़ा हम पाते हैं

    आप कौन से नॉ. वाली है मेरे ख्याल से ५ नॉ. पर आप ही लग रही हैं...:):):)

    सच का आईना है ये गज़ल.

    ReplyDelete
  15. @ anamika ji..
    bas aapki peeche hi khadi hun madam ji...
    aapne pahchaan liya...khushi hui ji..
    haan nahi to..!

    ReplyDelete
  16. @ Daral sahab...
    garima se apni umr ko sweekarna hi paripakwata ki nishaani hai..
    budha hona koi rog nahi hai...anubhavon ka bhadaar hai..
    aapka dhnywaad..

    ReplyDelete
  17. @ Vani ji..
    main to kisi bhi yuddh ki agrim senaani banane ko taiyaar hun..bas yuddh ka maksad sahi hona chahiye..
    aapka aabhaar..!

    ReplyDelete