Thursday, September 2, 2010

प्रेम..... !!


प्रेम.... !!
हम जानते तो हैं नहीं ,
परन्तु 
जानना चाहते हैं
कि क्या है ये ?
दर्द या दवा  ?
कुदरत का करिश्मा ?
आस्था या विश्वास ?
लौटते रास्ते का मुसाफिर ?
या फिर चढ़ते रास्ते का तीर्थयात्री ?
ख़यालों की तितली ?
या कायनात का सबसे उम्दा रंग ?
बंद मुट्ठी का रहस्य या कि 
खुले आँगन की महक ?
अथवा....
आत्मदाह या आत्मदान ?
या फिर ...
सभी संवेदनाओं की 
एक बेताब सी प्रतीक्षा...!

24 comments:

  1. शायद कायनात का सबसे बेहतरीन रंग ! इससे आगे रंगरेज की औकात पर निर्भर करता है !

    ReplyDelete
  2. दीदी,
    ये गलत बात है सारे सवाल मुश्किल पूछे हैं :)) और ऑप्शन भी बहुत पेचीदा हैं :))
    फिर भी जो पवित्र और सच्चा है वो प्रेम है [ये जवाब जल्दबाजी में दे रहा हूँ ]
    हाँ.. हाँ रचना बढ़िया है
    फोटो भी बढ़िया है

    ReplyDelete
  3. सुन्दर काव्याभिव्यक्ति

    कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  4. ब्लॉग जगत के असार अच्छे नजर नहीं आ रहे ...
    प्रेम को ना मानने वाले लोंग प्रेम की बातें करने लगे हैं ..
    राम ही राखे ...:)
    अरे नहीं ...अभी तो कृष्ण को याद करना चाहिए ...जय श्री कृष्ण ..

    जन्माष्टमी की बहुत शुभकामनायें ...!

    ReplyDelete
  5. प्रेम इतनी सरलता से व्यक्त हो सकता तो सब ही कर बैठते।

    ReplyDelete
  6. तकरीबन ९० % कवि भाई लोग इसी पे research कर के जिंदगी निकल देते है और फिर भी उनको PhD नसीब नहीं होती. अपना तो सीधा सा funda है की इन पचड़ो में ज्यादा मत पदों , बहुत tough competition है यहाँ आखिर!
    फूल में, श्रृंगार में, बचपन में, बहार में,
    बसता एक अहसास 'मजाल', तेरे ही ख़याल में.

    ReplyDelete
  7. प्रेम वो भी है जो राधा कृष्ण के बीच था । और वो भी जो मीरा का था ।
    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें अदा जी ।

    ReplyDelete
  8. @ब्लॉग जगत के असार अच्छे नजर नहीं आ रहे ...
    प्रेम को ना मानने वाले लोंग प्रेम की बातें करने लगे हैं .

    ????


    बात कुछ कम समझ में आयी मेरे बालमन को
    मेरे समझने लायक बात है क्या ???

    ReplyDelete
  9. @ब्लॉग जगत के असार अच्छे नजर नहीं आ रहे ...
    प्रेम को ना मानने वाले लोंग प्रेम की बातें करने लगे हैं .

    ????


    बात कुछ कम समझ में आयी मेरे बालमन को
    मेरे समझने लायक बात है क्या ???

    ReplyDelete
  10. मैं मेरे देश से ""प्रेम"" करता हूँ

    ReplyDelete
  11. मैं मेरे देश से ""प्रेम"" करता हूँ

    ReplyDelete
  12. बहुत अच्छी प्रस्तुति।श्री कृष्ण-जन्माष्टमी पर ढेर सारी बधाइयाँ !!

    ReplyDelete
  13. प्रेम न समझने की चीज़ है न समझाने की...बस होने की सुवास है...या तो होता है या नहीं होता । प्रेम में पार्थक्य की भावना नहीं होती...प्रेम में सीमाएँ नहीं होती...अच्छे या बुरे के विभाजन नहीं होते बस एक स्वीकार भाव होता है।

    ReplyDelete
  14. बहुत पेचीदा मुद्दा छेड़ दिया है आज आपने।
    एक शेर याद आ गया,
    "इश्क से तबीअत ने, ज़ीस्त का मजा पाया
    दर्दे दिल की दवा पाई, औ दर्द-ए बेदवा पाया।"
    1. प्रेम हर दर्द की दवा है लेकिन खुद ऐसा दर्द है जिसकी कोई दवा नहीं।
    2. कुदरत का करिश्मा बिल्कुल है, पता नहीं कब, किससे और कैसे हो जाए।
    3. विश्वास नहीं, अंधा विश्वास होता है ये।
    4. एक मुसलसल सफ़र।
    5. मिल जाये तो सबसे उम्दा और न मिले तो और भी उम्दा रंग।
    6. जब तक सिर्फ़ प्रेमियों के बीच रहे तो सबसे मीठी महक और जब गोपन से ओपन हो जाये तो दुनिया को नाबदान से भी ज्यादा सड़ाँध इसी से आती है।
    7. @ आत्मदाह या आत्मदान? आत्मदान।
    8. एक बेताब और अनंत प्रतीक्षा।
    इत्ते प्वायंटवाईज़ रिप्लाई तो आडिट रिपोर्ट के भी नहीं दिये जी कभी। हा हा हा।

    ये तो था कवियों, शायरों वगैरह वगैरह का नज़रिया, हमारे खालिस नजरिये में "’प्रेम’ राजश्री प्रोडक्शन की फ़िल्मों के हीरो का परमानेंट नाम होता है जी।
    बोत वदिया पोस्ट लग्गी जी, धनवाद।

    ReplyDelete
  15. @ गौरव....
    ये हमारे लिए है..
    क्योंकि हम सोचते हैं...
    किताबों में छपते हैं चाहत के किस्से
    हकीक़त की दुनिया में चाहत नहीं है
    ज़माने के बाज़ार में ये वो शय है
    कि जिसकी किसी को ज़रुरत नहीं है
    ये बस नाम ही नाम की चीज़ है....हा हा हा हा

    ReplyDelete
  16. @ओ जी मो सम कोन जी....
    मन्ने तो लागे सै....तुसी PhD हो जी...इत्ती सारी प्वायंटवाईज़ रिप्लाई त कोई एक्स्पिरिएन्स्द बंदा ही देगा जी....
    हा हा हा..
    धन्वाद जी...

    ReplyDelete
  17. श्री कृष्ण जन्माष्ठमी की बहुत-बहुत बधाई, ढेरों शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  18. ajee prem pe phd ham nahee kar paaye ek fakat diploma liye ghoom rahe hai. aur haa prem bre hamho karat hai sab blogars se aur u kaa hai, jo bhe karat danke kee chot pe karat, ab u romaance fomaance hamaar bas kaa nahee hai jee.

    ReplyDelete
  19. दीदी,
    ...... रचना बढ़िया है
    फोटो भी बढ़िया है

    आपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  20. बहुत लाजवाब, जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  21. prem ko define nahi kar sakata hai prem ko mahsus kiya jata hai jaisa ki hawa -----

    ReplyDelete
  22. Girijesh ji kahin :

    सभी संवेदनाओं की
    एक बेताब सी प्रतीक्षा...!

    यही है प्रेम। नहीं यह भी नहीं है :) जाने क्या है?

    ReplyDelete