कह दिया तो कह दिया ... अच्छी दादागिरी है .... वैसे इस तरह से किसे समझाया जा रहा है ...! कोई जो तन-मन दोनों से श्याम है ..?? शंका निवारण करें देवी ...:):)
अदा जी , कविता की अंतिम लाइनें जबरदस्त प्रभाव छोड्ती हैं उनकी वज़ह से मुकम्मल होती है एक ज़िन्दगी ,एक अपेक्षा ,एक कहानी ,एक साफगोई और एक रिश्ता भी !
कल जब आपनें एक सुन्दर भावपूर्ण कविता रचते हुए भाषाई विशुद्धतावाद का आसरा लिया तो मैं एक क्षण के लिये चिंतित हो गया था कि हमारी कविता आखिर किसके लिये है ? खैर...ये एक अलग विषय है जिसपर कभी फुरसत से बात करेंगे के मंतव्य से कल की टिप्पणी परिहास के अन्दाज़ में लिख डाली थी !
अब आज की बात ...स्याह रंग एक सत्य है पर अवांछित ! यह एक गहरा सवाल है जो मुझे हमेशा तंग करता रहा है ! ब्रम्हांड में उजले से एक पैसा कम महत्व नहीं है इसका ! बल्कि इसकी मौजूदगी की वज़ह से उजाला अर्थ पाता है तो फिर ये रंग हमें जीवन के निगेटिव शेड्स , शायद भय ,अविश्वास और धोखे का प्रतीक क्यों लगता है ?
आपकी कविता प्रचलित बिम्ब के साथ बहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण लगी पर इसनें फिर से मेरे अन्दर सो जानें की कोशिश कर रहे एक शाश्वत सवाल जगा दिया ! अन्धेरे और उजाले की गढी जा चुकी छवियों का सवाल ! क्या वनस्पतियों / खेतों / फसलों वगैरह के जीवन पर ऊष्मा का प्रभाव इसके लिये पर्याप्त कारण है ?
अरे मैं कंफ्यूज्ड होता जा रहा हूं ...इसलिये अभी केवल इतना कह् कर जा रहा हूँ कि आपकी कविता बहुत अच्छी और गहरे अर्थों वाली है !
दिल्ली में सरमद नाम का एक सूफ़ी फ़कीर था, जिसे संगसार करके मारने का बादशाह ने हुक्म दिया था। लोगों के पत्थर हंसकर झेलने वाला सरमद भी, एक दोस्त के द्वारा(राजाज्ञा के डर से ही शायद) फ़ूल मारे जाने से कराह उठा था। अपनों के दिये छोटे दुख भी बहुत असर करते हैं।
आपका जिद करना भी(for a cause) प्रभावित करता है। पंक्तियां बहुत दमदार और सभी चित्र पोस्टानुकूल।
दर्शन के नजरिये से अली साहब जो कह गये, कह गये बस। कुछ नहीं बचा हम जैसों के कहने के लिये।
कह दिया तो कह दिया ...
ReplyDeleteअच्छी दादागिरी है ....
वैसे इस तरह से किसे समझाया जा रहा है ...!
कोई जो तन-मन दोनों से श्याम है ..??
शंका निवारण करें देवी ...:):)
उत्कृष्ट रचना और चित्र। पर अपने मन का स्याह भी कचोटता है हम सबको।
ReplyDeleteबस कह दिया तो कह दिया ...!जिद!!
ReplyDeleteचित्र एक से एक चुन कर लगाये हैं.
अदा जी ,
ReplyDeleteकविता की अंतिम लाइनें जबरदस्त प्रभाव छोड्ती हैं उनकी वज़ह से मुकम्मल होती है एक ज़िन्दगी ,एक अपेक्षा ,एक कहानी ,एक साफगोई और एक रिश्ता भी !
कल जब आपनें एक सुन्दर भावपूर्ण कविता रचते हुए भाषाई विशुद्धतावाद का आसरा लिया तो मैं एक क्षण के लिये चिंतित हो गया था कि हमारी कविता आखिर किसके लिये है ? खैर...ये एक अलग विषय है जिसपर कभी फुरसत से बात करेंगे के मंतव्य से कल की टिप्पणी परिहास के अन्दाज़ में लिख डाली थी !
अब आज की बात ...स्याह रंग एक सत्य है पर अवांछित ! यह एक गहरा सवाल है जो मुझे हमेशा तंग करता रहा है ! ब्रम्हांड में उजले से एक पैसा कम महत्व नहीं है इसका ! बल्कि इसकी मौजूदगी की वज़ह से उजाला अर्थ पाता है तो फिर ये रंग हमें जीवन के निगेटिव शेड्स , शायद भय ,अविश्वास और धोखे का प्रतीक क्यों लगता है ?
आपकी कविता प्रचलित बिम्ब के साथ बहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण लगी पर इसनें फिर से मेरे अन्दर सो जानें की कोशिश कर रहे एक शाश्वत सवाल जगा दिया ! अन्धेरे और उजाले की गढी जा चुकी छवियों का सवाल ! क्या वनस्पतियों / खेतों / फसलों वगैरह के जीवन पर ऊष्मा का प्रभाव इसके लिये पर्याप्त कारण है ?
अरे मैं कंफ्यूज्ड होता जा रहा हूं ...इसलिये अभी केवल इतना कह् कर जा रहा हूँ कि आपकी कविता बहुत अच्छी और गहरे अर्थों वाली है !
अद्भुत !
ReplyDeleteबहुत मेहनत की है अदा जी , इस छोटी सी पोस्ट के लिए ।
लेकिन असरदार । दिल काला नहीं होना चाहिए ।
अद्भुत शब्द योजना!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
कहानी ऐसे बनीं–, राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
दीदी,
ReplyDeleteवाह... ये तो बड़ी अलग तरह की रचना है
सही है किसी के दांत में कीड़ा भी हो तो कोई परेशानी नहीं होती
दिल या दिमाग में हो तो परेशानी बन सकता है
बाकी ये बढ़िया लगा
@बस कह दिया तो कह दिया ...!
इस सुन्दर, सरल, सचित्र, दादागिरी से भरी रचना के लिए आभार :))
क्या बात है!
ReplyDeleteदिल्ली में सरमद नाम का एक सूफ़ी फ़कीर था, जिसे संगसार करके मारने का बादशाह ने हुक्म दिया था। लोगों के पत्थर हंसकर झेलने वाला सरमद भी, एक दोस्त के द्वारा(राजाज्ञा के डर से ही शायद) फ़ूल मारे जाने से कराह उठा था। अपनों के दिये छोटे दुख भी बहुत असर करते हैं।
ReplyDeleteआपका जिद करना भी(for a cause) प्रभावित करता है। पंक्तियां बहुत दमदार और सभी चित्र पोस्टानुकूल।
दर्शन के नजरिये से अली साहब जो कह गये, कह गये बस। कुछ नहीं बचा हम जैसों के कहने के लिये।
आभार।
श्याम का स्याह रंग भी और दिल भी :)
ReplyDeleteयशोमति मैया से बोले नंदलाला,
ReplyDeleteराधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला...
जय हिंद...
पर नहीं झेल सकती तुम्हारे दिल में...
ReplyDeleteबस कह दिया तो कह दिया .
सारा सार इन पंक्तियों में ...अच्छी प्रस्तुति ..चित्र सटीक हैं ..
सुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteचित्रों के साथ एक बेहतरीन रचना का कमाल!!! वाह!
ReplyDeleteअनेक संवेदनशील व्यक्तियों की मनःस्थिति को अच्छे शब्द दिए हैं आपने।
ReplyDeleteक्या बात है वाह .....आज की पोस्ट ऐसी है जिसको सिर्फ़ पढना और दोबारा पढने का ही मन करता है ।
ReplyDeleteवाह शब्द शब्द कविता है और चित्र चित्र भी ।
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