Wednesday, June 30, 2010

लेखनी को आज ही कुदाल कीजिये....


फ़िज़ूल के न कोई अब सवाल कीजिये
कीजिये तो आज कोई कमाल कीजिये

बह गया सड़क पे देखिये वो लाल-लाल 
कुछ सफ़े अब खून से भी लाल कीजिये

छुप गई उम्मीद क्यों, डरे हुए बदन
अब रूह चीखने लगी बवाल कीजिये


जग गई है हर गली जग गया वतन
तीसरी आँख खोलिए मशाल कीजिये
 

थामिए हाथ में अब बागडोर हुज़ूर
प्रान्तवाद को यहीं  हलाल कीजिये 

कोई 'राज' छू न पाए आस्तीन को
उसी की ज़मीन में भूचाल कीजिये

चुप न अब बैठिये अजी कह रही 'अदा'
लेखनी को आज ही कुदाल कीजिये

Tuesday, June 29, 2010

तुम्हारा नाम लिखूँ...!


कभी सोचा !
तुम्हारा नाम लिखूँ
नहीं भेजा कभी जिसको  
वो पैगाम लिखूँ  !
क्यूँ यादें आकर के 
इन्हें रुला जाती हैं 
कहो तो इन आँखों को
छलकता जाम लिखूँ  !
लिए फिरते हैं हाथों में
हम कोरा सा इक ख़त
अगर लिखूँ तो क्या लिखूँ 
और किसके नाम लिखूँ.....!!

Monday, June 28, 2010

आते-जाते कहीं उसे कोई ठोकर न लग जाए .....


एक कली आशा की इस बगिया में खिल जाए 
मन आँगन में प्रीत का पंछी जाने क्या क्या गाये 
यादों की बयार चली और यादें झूमतीं जाय 
इक साया सा नयनों में क्यों आये और लहराए 
लिखते-लिखते क्यों रूकती हूँ कोई तो बतलाये 
सपनों में जब खो जाती हूँ वो नींद से मुझे जगाये
मेरे हृदय मूरत बसी है वो मुझे निज हृदय बसाए 
बिन उसके जो हाल है मेरा कोई तो दे समझाए 
बहुत कठोर निष्ठुर है वो फिर भी मुझको भाए 
मुझे देखते जाने क्यों वो पत्थर ही हो जाए 
हर शाम राहों में उसकी दीया रखूँ मैं जलाए 
आते-जाते कहीं उसे कोई ठोकर न लग जाए  

Sunday, June 27, 2010

ज़बरन चले आये तुम भी यहाँ कहाँ ...!

वो जश्न वो रतजगे वो रंगीनियाँ कहाँ 
आये निकल वतन से हम भी यहाँ कहाँ

महबूब मेरा चाँद मेरा हमनवां कहाँ 
इस बेहुनर शहर में कोई कद्रदां कहाँ 

कोई बुतखाना,परीखाना कोई मैक़दा नहीं 
ढूँढें इन्हें कहाँ और अब जाएँ कहाँ कहाँ 

बस रहे खेमों में हम जैसे हैं जो लोग 
फिर सोचेंगे जाएगा ये कारवाँ कहाँ 

जाना था तुमको भी उस दूसरी गली
ज़बरन चले आये तुम भी यहाँ कहाँ !

Saturday, June 26, 2010

टटोल के देखा था अन्दर कोई ज़िगर कोई गुर्दा हिला नहीं .....


ख़यालों का आना-जाना था, किसी से किसी का सिला नहीं
ख़ुद पर ही कभी रंज हुए और कभी किसी से गिला नहीं

पत्तों का जब आग़ोश मिला, शबनमी नूर बस दमक उठा   
बदली में चाँद वो छुपा रहा, रौशन अब कोई काफ़िला नहीं 

तस्सवुर में उनका आना भी क्या, आना है अब तुम ही कहो ?
पशे हिज़ाब है माहताब और नज़रों में वो गुल खिला नहीं 

दिल चीर के हमने ग़ज़ल कही जज़्बात उफ़न कर चौंक गए
टटोल के देखा था अन्दर कोई ज़िगर कोई गुर्दा हिला नहीं

दिल बन जाए निग़ाह मेरा और निग़ाह बने है दिल की जुबाँ 
दोनों ही लिपट कर बैठ गए, दोनों का कोई मुकाबिला नहीं

Friday, June 25, 2010

झूठ का इक सूर्य बन कर ढल रहा है आदमी ....


ज़मीर का एक सलीब ढोए चल रहा है आदमी
ताबूत में हैवानियत के पल रहा है आदमी  

मौत से पीछा छुड़ाना कब कभी मुमकिन हुआ 
सीने से उसको लगाये बस जल रहा है आदमी

हुस्न से यारी कभी, और कभी दौलत पर फ़िदा  
और कभी ठोकर में इनकी, पल रहा है आदमी

क्या रखा ग़ैरत में बोलो क्या बचा उसूल में
हर घड़ी परमात्मा को छल रहा है आदमी  

ख्वाहिशों ख़्वाबों का साग़र इक छलावा बन गया 
झूठ का इक सूर्य बन कर ढल रहा है आदमी 

Thursday, June 24, 2010

ओट्टावा हिल गया.....!!


कल ऑफिस में हमारी मीटिंग चल रही थी, मीटिंग ग्राउंड फ्लोर में हो रही थी....बोर्ड रूम में एक बहुत बड़ा स्क्रीन लगा हुआ है....एक बड़ा प्लाज्मा टी.वी, white बोर्ड और table पर सारे communication के equipment .... साइड में coffee pot कुछ कप और coffee बनाने के सारे सामान, हम अपने schedule की बात कर रहे थे, अचानक coffee का pot गिर गया.....हम सारे चौकें ...इससे पहले की हम कुछ भी समझ पाते ...पूरा कमरा ऐसे हिलने लगा जैसे कमरों की दीवारों ने अपनी जगह पर नहीं रहने का फैसला कर लिया हो, सामने पड़ा टी.वी. अब गिरे की तब गिरे की हालत में आ गया, अब हम लोग समझ चुके थे की यह भूकंप है, सब कुछ छोड़ कर ...हम बाहर की ओर भाग चले.....साथ ही शोरे मचाने लगे ....everybody out of the building ..please !!   everybody out of the building ..please !! क्योंकि हम ग्राउंड फ्लोर में थे, हमलोग सबसे पहले बाहर आ गए...बाहर आकर सबसे पहले मैंने घर फ़ोन किया...बच्चों की कल से ही गर्मी छुट्टियां शुरू हुई हैं, जिस तरह से बिल्डिंग हिल रही थीं...मैं परेशान थी दोनों बच्चे...मयंक और प्रज्ञा कैसे हैं, लेकिन फ़ोन तो मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था, सारे नेटवर्क बंद हो चुके थे....घबड़ाहट बढ़ती  जा रही थी, चहरों तरफ भागते हुए लोग और फ़ोन करने की कोशिश में जुटे हुए थे....कुछ लोग लिफ्ट में फँस चुके थे, फायर ब्रिगेड और पुलिस पहुँच  चुकी थी, लेकिन हम सभी दोबारा बिल्डिंग के अन्दर नहीं जाना चाहते थे, लिफ्ट में फंसे हुए लोगों को बाहर निकालने के लिए सोचा जा रहा था,  लोग जुट गए थे इस दिशा में काम करने के लिए, उस समय मैं पूरी तरह समझ पा रही थी,  उन फंसे हुए लोगों के मन की दशा, इस पूरे प्रकरण में सबसे अच्छी बात यह हुई कि, जान की क्षति नहीं हुई , हाँ  !  माल का नुक्सान हुआ है...लेकिन उसकी चिंता नहीं है ...!


यह भूकम ५.५ के mangnitude का था और तकरीबन २० सेकेंड तक रहा ....इसका असर टोरोंटो और Newyork तक महसूस किया गया है....

काफी देर के बाद के बाद मैं बच्चों से बात कर पाई....वो ठीक थे...दोनों घर से बाहर भाग लिए थे, लेकिन छूटते साथ प्रज्ञा ने कहा था....o mummy it was so cool , हम बाहर बैठ कर shake कर रहे थे, लेकिन मज़ा आया, मम्मी हम बिल्कुल नहीं डरे....मैं सोचने लगी..बच्चे कितनी आसानी से मुसीबतों को हंसी-खेल में टाल जाते हैं...फिलहाल कनाडा में भूकंप का आना एक rare घटना है ....और अभी टॉक ऑफ़ द टाउन बना हुआ है....

This is 'ada', reporting from Ottawa, the capital of Canada ...over and out...:):)

Wednesday, June 23, 2010

ब्लॉग समाचार ....ब्लागों की कहानी ...अदा की ज़ुबानी ....

पुनःप्रसारण .......



तो लीजिये हाज़िर हूँ मैं लेकर ..ब्लॉग समाचार..

शायद ९ पोस्ट्स का ज़िक्र है इसमें..मैं कोशिश कर रही हूँ हर बार नए ब्लोग्स का ज़िक्र करूँ...जहाँ तक हो सके नवीनता लेकर आऊं...

आप सबसे भी अनुरोध है..अगर आप कहीं कोई अच्छा सा ब्लॉग देखते हैं और आपको लगता है कि इसे शामिल होना चाहिए तो मुझे लिंक भेज दिया करें....क्योंकि मैं सारे ब्लोग्स तो पढ़ नहीं सकती....आपके सहयोग के लिए सदैव आभारी रहूँगी....वादा तो नहीं लेकिन कोशिश ज़रूर करुँगी ...उन्हें शामिल करने की....


लीजिये ब्लॉग समाचार का आनंद उठाइए और ज़रूर बताइए आपको यह प्रस्तुति कैसी लगी.... 




http://mithileshdubey.blogspot.com/2010/05/blog-post_12.html

http://gurugodiyal.blogspot.com/2010/05/blog-post_9148.html

http://ghazal-geet.blogspot.com/2010/05/blog-post_12.html

http://udantashtari.blogspot.com/2010/05/blog-post_13.html

http://vipakshkasvar.blogspot.com/2010/05/blog-post_10.html

http://darpansah.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

http://shikhakriti.blogspot.com/2010/05/blog-post_11.html

http://singhsdm.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

http://sanrana.blogspot.com/2010/05/blog-post_09.html

Tuesday, June 22, 2010

गर्व है हमें हम हिन्दुस्तानी हैं.....

ख़्वाब मेरे उठे थे, तूने क्यूँ सुला दिया
नाम के ताने बाने में क्यूँ उलझा दिया

रुक्न की हद तक हम पहुंच ही गए थे
क्यूँ  बे-वक्त का ये मक्ता रचा दिया

दिल है मेरा ये तू वज़न क्यों देखता है
धड़कन को मेरी क्यूँ बहर बना दिया

गिरफ्त-ए-मतला में तो परेशाँ है 'अदा'
अश्क से ही सही क़ाफिया अता किया

गर्व  है हमें हम  हिन्दुस्तानी हैं.....

Monday, June 21, 2010

प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया.....

ग़ज़ब !
आपको पसंद आएगा.....

Sunday, June 20, 2010

प्रार्थना उर अंकुर हुआ....


मन मयूर मुदित हुआ
हृदयंगम कोई सुर हुआ
गात पात सम लहराया
उषामय आनन उर हुआ
ऊबरा मन मंदिर तम से
देह प्रकाशित पुर हुआ
हे हृदयेश तकूँ निर्निमेष 
प्रार्थना उर अंकुर हुआ
तव प्रभा से प्रदीप्त जीवन  
विकल प्रेमातुर हुआ.....

मयंक कि चित्रकारी....कुछ लोगों ने कई बार कहा ..तो आज डांट लगाईं..और ये बना है...


तपस्वी राम


Saturday, June 19, 2010

इन्डली .....ब्लॉग वाणी ....

Indli Hindi - India News, Cinema, Cricket, Lifestyle

कल से ब्लॉग वाणी को बंद देख कर राहत भी हुई है और चिंता भी ...लेकिन एक बार मन ने ज़रूर कहा बहुत अच्छा हुआ ब्लॉग वाणी बंद है...ब्लॉग का माहौल ख़राब करने में नापसंद के चटकों ने बहुत बड़ा योगदान किया था....ब्लॉग वाणी को देख कर ही वितृष्णा सी होती है....अब यही सही समय होगा ब्लॉग-वाणी नापसंद के चटकों से ख़ुद को निजात दिला ले...अपनी असहमति दिखाने के लिए टिप्पणियाँ ही काफी हैं....ब्लाग वाणी को देख कर ऐसा लगता है जैसे ब्लॉग्गिंग नहीं युद्ध हो रहा हो....जो लोग ये कहते हैं कि पसंद-नापसंद के चटके मायने नहीं रखते हैं वो इसकी उपयोगिता को नज़र अंदाज़ करते हैं....जो लोकप्रिय ब्लोग्गर्स हैं, उन्हें तो लोग पढ़ ही लेते हैं फिर चाहे उनको चटके  कैसे भी और कितने भी मिले हों...लेकिन इस होड़ में नए ब्लोग्गर्स बिल्कुल दरकिनार हो जाते हैं....उनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता....और फिर उन ब्लोग्गर्स पर हताशा हावी होने लगती है....

परन्तु मैं नए ब्लोग्गर्स से भी कुछ कहना चाहूंगी....बिना मांगे तो माँ भी दूध नहीं देती बच्चों को...उन्हें भी ख़ुद को प्रस्तुत करना चाहिए...संकोच नहीं करना चाहिए....शालीनता से अपनी उपस्थिति को महसूस कराना चाहिए.....याद रखिये किसी को अपने ब्लॉग तक ले जाना और उसे की बोर्ड पर उंगलियाँ फिरवा कर कमेन्ट देने के लिए प्रेरित करना आसन नहीं है....लेकिन आप लोग कर सकते हैं....अगर आप को स्वयं पर विश्वास है तो..आप यह काम कर सकते हैं....

इन्डली का ऐसे समय में अवतरित होना एक सुखद अनुभूति है ..इन्डली ने एक स्वस्थ वातावरण दिया है....सही मायने में अच्छी प्रविष्ठियां अब देखने को मिल रहीं हैं....इन्डली ने नए लोगों के लिए god father का काम किया है...अभी सभी लोग नहीं जुड़ पाए हैं ...लेकिन बहुत जल्द इससे लोग जुड़ेंगे...मेरे ब्लॉग पर इससे जुड़ने का icon भी है...खुद को इससे जोड़िये, तथा अपनी पोस्ट अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाइए.....मुझे यह प्लेटफोर्म अच्छा लगा...नापसंद करने के दो तरीके होंगे यहाँ ...आप पसंद ही मत कीजिये, दूसरा आप टिप्पणी कीजिये...और सबसे अच्छी बात किसने पसंद किया है यह भी देखा जा सकता है....इन्डली के रास्ते सिर्फ़ ब्लोग्गर्स ही नहीं ग़ैर-ब्लोग्गर्स भी आपकी पोस्ट तक पहुँच रहे हैं जो...अतिरिक्त उपलब्धि है....इसलिए निवेदन है ..आप लोग ज़रूर जुड़िये इससे...फायदे में रहेंगे....


और तेरा नाम मैं कहाँ-कहाँ लिखूँ ....एक गीत हो जाए... तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे....


क्यूँ न आज मेरे सफ़र की दास्ताँ लिखूँ 
सूनी सी गली का नाम कहकशां लिखूँ 

ग़म से सुलगते रहे मेरे शाम-ओ-सहर 
ख़ुद को एक जलता हुआ मकाँ लिखूँ 

मेरा वजूद ढँक गया पशे तेरा नाम
और तेरा नाम मैं कहाँ-कहाँ लिखूँ 

अब एक गीत हो जाए... 
तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे....

Friday, June 18, 2010

गुज़री है आज मेरे पाँव छूकर.......


मेरी शोख़ी, मेरी नाज़ुकी,
मैं बेपरवाह, मेरा अंदाज़ बेख़बर,
हैं मुट्ठी में मेरे,
क़ैद आफ़ताब फलक का,
खोल दूँ जो हाथ,
वो बिखर जाएगा मोती बनकर ,
मेरा वजूद है क़ाबू में मेरे,
करती हूँ दावा, 
क़ायनात का मगर,
सदियों से थी जो, 
वो प्यासी सी नदी,
गुज़री है आज मेरे पाँव  छूकर....... 





Thursday, June 17, 2010

सब मसालेदार है जी...


सुबह के नाश्ते में 
मसालेदार पराठा,  
मसालेवाली चाय,
हाथ में मसालेदार अख़बार में 
मसालेदार ख़बरों की चुस्की,
मसालेदार लंच का डब्बा,   
स्कूटर को,
मसालेदार किक लगा कर,
मसालेदार ट्राफिक में,
मसालेदार झड़प में ख़ुद को झोंकता,
मसालेदार ऑफिस 
में मसालेदार नौकरी,
बॉस 
और मसालेदार सेक्रेटरी,
और कई मसालेदार प्रेम-प्रसंगों की चटकार लेता,  
मसालेदार सेक्सुअल हरासमेंट (यौन उत्पीड़न)
की बातों में उलझता,
देश की मसालेदार राजनीति की 
मसालेदार उठा-पटक,
मसालेदार प्रांतवाद, जातिवाद
में डूबता-उतराता,
दिन में कई बार फोन पर बीवी की मसालेदार झिड़की 
और अपने माँ-बाप के मसालेदार उलाहने झेलता,
बच्चों की मसालेदार फ़रमाईश  
पूरी करने के लिए,
मालों की सीढियां फलांगता,
फिर हांफता भागता घर आता,
और शाम को टी.वी. पर
हिंदी मसाला फिल्म, 
एकता कपूर के मसालेदार सिरिअल, 
की मसालेदार सास-बहुओं में 
अपनी माँ-बीवी तलाशता, 
डांस इंडिया डांस के मसालेदार बच्चों में 
अपना बचपन ढूंढता,
और मसालेदार एंकरों की मसालेदार ख़बरों 
में सिर खपाता,
सुबह से शाम तक 
मसालों में लिथड़ी ज़िन्दगी
और मसालों से गमकते बदन
से बाहर झाँकता,
एक आम हिन्दुस्तानी 
अपने अन्दर,
मसालों के कितने सुगंध लिए रहता है 
तभी तो जीवन इतना spicy हो जाता है...




Wednesday, June 16, 2010

सुनी थी रात उसकी हिचकियाँ ....


Banff  नॅशनल पार्क ..मोरेन लेक...


लहू में कौंध रहीं हैं बिजलियाँ
साँसों में चलने लगीं आँधियां 
यादों का आँचल अब उड़ने लगा
नज़रों में तैर गई परछाईयाँ 
थके थके से मेरे ख़्वाब जागते रहे 
सितारे लेते रहे अंगडाईयाँ 
जाने कौन गुज़रा दीवार के पीछे 
सुनी थी रात उसकी हिचकियाँ 
 

Tuesday, June 15, 2010

सब्ज़ीवाले की व्यथा कथा.....'अदा' की जुबानी....एक लोकगीत (शायद )

सोचा इस दुखियारे की बात आप तक पहुँचा दूँ.....
पोदीने की महिमा भारी ...
मेरी पड़ोसन और मेरी अपनी तो वाणी ही है...हा हा हा हा   :):):)

कैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा...

ये तस्वीर कनाडा में Banff नेशनल पार्क की है...

ये ज़मीं नहीं मेरी, वो आसमाँ नहीं मेरा
ठहरी हूँ जहाँ मैं आज, वो जहाँ नहीं मेरा

होगा क्या जुड़ कर भी, उस अनजाने हुज़ूम से 
वो लोग नहीं अपने, वो कारवाँ नहीं मेरा 

बच कर लौट आती हूँ, गज़ब सागर की लहरों से
कल का क्या भरोसा है, वो तूफाँ नहीं मेरा 

कोई है जो मुझको भी, बचा लेता है हर ग़म से
कैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा

शमा हूँ, मेरी अपनी वही जलती हुई लौ है 
बुझकर काम क्या आऊँगी, वो धुवाँ नहीं मेरा

पासबाँ=रक्षक 

और अब एक गीत ...इसे गाया है किशोर कुमार ने...लेकिन फिलहाल मैं गा रही हूँ...हाँ नहीं तो...!!
अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो (थोड़ा सा अलग करने की कोशिश की है...लगता है मिस फायर हो गया है )

Monday, June 14, 2010

पहुँचेंगे शिखर पर वो जिन्हें विश्वास होता है .....



जब मन उदास होता है
ख़याल के पास होता है

जो दिल में दर्द उठता है
लब पे उच्छ्वास होता है

पहुँचेंगे शिखर पर वो
जिन्हें विश्वास होता है

सच्चा प्रेम मिल जाए
फिर मधुमास होता है

सुधि सा जो साथी हो
जीवन ख़ास होता है

कलह प्रेमी मनुज का तो
बस विनाश होता है

कुटिलता का अंतिम लक्ष्य
बस भड़ास होता है

जिस जीवन में नहीं उत्साह
मृत्यु के पास होता है

और अब एक गीत... पुराना ही है लेकिन ......

Sunday, June 13, 2010

बिखरे हैं मसले हुए इंसानियत के फूल, जो पास ही तहज़ीब के बिस्तर पर पड़े हैं .......


मत पूछो हम कौन हैं
किस ओर चले हैं,
समझो कि मुसाफिर हैं
और सराय में पड़े हैं,
राह रोक लेते हैं  
कुछ पहचाने से लोग,
काम जिनके हैं छोटे
पर नाम बड़े हैं,
हर लम्हा हम मौत की
सरहद पर खड़े हैं,
तूफ़ान से खेल लेते
कभी बवंडर से लड़े हैं,
बिखरे हैं, मसले हुए
इंसानियत के फूल,
जो पास ही तहज़ीब
के बिस्तर पर पड़े हैं .......

Saturday, June 12, 2010

कर भी लो अब ज़रा मुझसे खुल कर बातें.....


यूँ हीं होतीं हैं
कभी बेहुनर बातें
दिल करता है
कभी नगमाग़र बातें
पलकें झुक जातीं है 
और बन जातीं है ज़बान
फिर कर ही जातीं हैं 
कभी अश्के-तर बातें
तेरी ख़ामोशी अब 
जानलेवा होती जाती है 
कुछ तो करो मुझसे भी 
हमसफ़र बातें
दिल की बात कहीं
दिल में न रह जाए
कर भी लो अब ज़रा
मुझसे खुल कर बातें.....


अश्के-तर=आँसूओं से तर 

Friday, June 11, 2010

नापसन्दी का जो चटका है हमारा ....(पैरोडी...ये जो चिलमन है दुश्मन है हमारी )

 
नापसन्दी का जो चटका है हमारा    
इतना तगड़ा ये फटका है हमारा 

दूसरा और कोई यहाँ क्यूँ रहे 
मेरी ही पोस्ट के दरमियां क्यूँ रहे
हाँ यहाँ क्यूँ रहे
ये यहाँ क्यूँ रहे
हां जी हां क्यूँ रहे
ये जो हाट लिस्ट है, बाप का है हमारा
नहीं दिख सकता, कभी पोस्ट तुम्हारा
नापसन्दी का जो चटका है हमारा

कैसे दीदार ब्लोग्गर तुम्हारा करे
रूखे पोस्ट का कोई कैसे नज़ारा करे
हां नज़ारा करे 
क्या बेचारा करे
बस पुकारा करे 
नापसन्दी का चटका है दे मारा  
नहीं आने दूंगा तुमको मैं दोबारा
नापसन्दी का जो चटका है हमारा

रुख से परदा कभी तो सरक जाएगा 
तब वो कम्बख्त चेहरा नज़र आएगा
हाँ नज़र आएगा
फिर किधर जाएगा 
हां जी मर जाएगा
तेरे चटके से बड़े हैं मेरे पाठक
संग मेरे तो खड़े मेरे पाठक 
हो. हो..हो..
नापसन्दी का जो चटका है हमारा    
इतना तगड़ा ये फटका है हमारा   

Thursday, June 10, 2010

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ...'अदा' की आवाज़...





छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं
प्यार सब कुछ नहीं ज़िंदगी के लिए

तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या -२
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं
खुशबू आती रहे दूर से ही सही
सामने हो चमन कोई कम तो नहीं
चाँद मिलता नहीं सबको सँसार में
है दिया ही बहुत रोशनी के लिए

कितनी हसरत से तकती हैं कलियाँ तुम्हें
इन बहारों को फिर क्यूँ  बुलाते नहीं
एक दुनिया उजड़ ही गई है तो क्या
दूसरा तुम जहाँ क्यूँ बसाते नहीं
दिल ने चाहा भी तो, साथ सँसार के
चलना पड़ता है सब की खुशी के लिए
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए


फिर भी बनाऊँगी मैं, एक नशेमन हवाओं में........



मेरे इश्क का जुनूँ,
रक्स करता है फिजाओं में,
तेरे फ़रेब मसलते हैं मुझे
मेरे ही ग़म की छाँव में,
हर साँस से उलझती है
हर लम्हा ज़िन्दगी की, 
लिपटती जाती है देखो
उम्र की ज़ंजीर पाँव में,
ये पागलपन मेरा,
बरामद करवाएगा मुझे,
कब तक छुपूँगी कहो 
सदियों की गुफाओं में,
आंधियाँ मुझसे अब भी 
दुश्मनी निभातीं हैं,
फिर भी बनाऊँगी मैं
एक नशेमन हवाओं में...!

रक्स=नृत्य
नशेमन=घोंसला



Wednesday, June 9, 2010

मैं लड़की होने की सज़ा पा रही हूँ .....


'इज्ज़त' 'आबरू'
ये महज शब्द नहीं हैं
नकेल हैं,
जिनसे बंधा है मेरा वजूद
ये कील हैं,
जिनसे टंगा है मेरा मन
ये रस्सी है जिससे
बंधा है मेरा पेट
और ये हथकड़ी हैं
जिससे बंधे रहते हैं
मेरे हाथ-पाँव.... ता-उम्र
फिर भी मैं इन्हें बचा रही हूँ....
मैं लड़की होने की सज़ा पा रही हूँ .....


आप की नज़रों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे......आवाज़ 'अदा' की.....

धड़कन भी कुछ काबू में हो साँस भी अब ज़रा संभले
मेरी जाँ मेरी उम्र भी इस तूफाँ के मुक़ाबिल ठहरे

जिस दम देखा था उसने पहली बार नज़र भर के
वो लम्हा मेरी ज़ीस्त का इकलौता हासिल ठहरे

ज़ीस्त=जीवन



आवाज़ 'अदा' की.....



आप की नज़रों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे
दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गई मंज़िल मुझे
आप की नज़रों ने समझा

जी हमें मंज़ूर है, आपका ये फ़ैसला \- २
कह रही है हर नज़र, बंदा\-परवर शुकरिया
हँसके अपनी ज़िंदगी में, कर लिया शामिल मुझे
आप की नज़रों ने समझा ...

पड़ गई दिल पर मेरी, आप की पर्छाइयाँ \- २
हर तरफ़ बजने लगीं सैकड़ों शहनाइयाँ
दो जहाँ की आज खुशियाँ हो गईं हासिल मुझे
आप की नज़रों ने समझा ...

आप की मंज़िल हूँ मैं मेरी मंज़िल आप हैं \- २
क्यूँ मैं तूफ़ान से डरूँ मेरे साहिल आप हैं
कोई तूफ़ानों से कह दे, मिल गया साहिल मुझे
आप की नज़रों ने समझा ...



Tuesday, June 8, 2010

इमेज.....सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती.....आवाज़ 'अदा' की है ...


हमेशा की तरह इस बार भी कछुवे और खरगोश की दौड़ प्रतियोगिता में, खरगोश हार गया...सबको बहुत हैरानी हुई, सबने सोचा कि अब तक तो खरगोश को सबक सीख ही लेना चाहिए था ...आख़िर क्या वजह है कि ये फिर हार गया ...!  लिहाजा सारे मिडिया वाले पहुँच गए खरगोश से उसकी हार का कारण जानने, 
पेड़ के नीचे लेटा खगोश ने बड़े ही इत्मीनान से जम्हाई लेते हुए कहा ....भाई ! सदियों से हमारे पूर्वजों  ने हारने की परिपाटी बनाई हुई है, मैं क्यूँ इसे बदलूँ....आख़िर मेरे पुरखों की इमेज का भी तो सवाल है.....
हाँ नहीं तो..!!


और अब ये गीत....
आवाज़ 'अदा' की है ...



सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती
सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती
तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देती

तुम्हारे रेशमी ज़ुल्फ़ों में दिल के फूल खिलते थे
कहीं फूलों के मौसम में कभी हम तुम भी मिलते थे
पुरानी वो मुलाकातें हमें सोने नहीं देती

कहीं एसा न हो लग जाए दिल में आग पानी से
बदल लें रासता अपना घटाएं मेहरबानी से
कि यादों की वो बरसातें हमें सोने नहीं देती

जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई आप क्यों रोये.....आवाज़ 'अदा' की....


आवाज़ 'अदा' की....



जो हमने दास्तां अपनी सुनाई, आप क्यों रोए
तबाही तो हमारे दिल पे आई, आप क्यों रोए

हमारा दर्द\-ए\-ग़म है ये, इसे क्यों आप सहते हैं
ये क्यों आँसू हमारे, आपकी आँखों से बहते हैं
ग़मों की आग हमने खुद लगाई, आप क्यों रोए

बहुत रोए मगर अब आपकी खातिर न रोएंगे
न अपना चैन खोकर आपका हम चैन खोएंगे
कयामत आपके अश्कों ने ढाई, आप क्यों रोए

न ये आँसू रुके तो देखिये, हम भी रो देंगे
हम अपने आँसुओं में चाँद तारों को डुबो देंगे
फ़ना हो जाएगी सारी खुदाई, आप क्यों रोए


Monday, June 7, 2010

इस तरह के affairs मान्य नहीं होते हुए भी जीवन में कितने रंग भर देते हैं...


आज कल पूर्णिमा में बहुत बदलाव देख रही हूँ...
पूर्णिमा एक खूबसूरत सी लड़की जो मेरी कलीग है, आज तक उसे अपने काम से काम रखते हुए, चुपचाप काम करते हुए और सच पूछा जाए तो कुछ उदास सा ही देखा था....उसके पति  हैं और उसके दो बेटे हैं...

हमारे ऑफिस में कई हिन्दुस्तानी हैं...सबको आदत थी, अंग्रेजी में ही गिटिर-पिटिर करने की, मैंने एक दिन सबको एक जगह इकठ्ठा किया और साफ़-साफ़ कह दिया ...कि देखो भईया कितना भी अंग्रेजी माहौल है ...आपस में हम हिंदी में ही बात करेंगे...वो दिन और आज का दिन हम हिंदी में ही बात करते हैं....हाँ यहाँ के अंग्रेजों को 'विश्वनाथ' (ये भी कलिग है) का मुझे 'सर' कहना ज़रूर अटपटा लगता है, कई लोगों ने टोक भी दिया...'Why you call her sir ?' और वो हंस कर कह देता है 'Because she is my sar'..मैं भी मुस्कुरा कर रह जाती हूँ...लेकिन विश्वनाथ का मुझे 'सर' कहना मुझे भी अच्छा ही लगता है, विश्वनाथ लम्बे कद का खूबसूरत सा लड़का है, साउथ इंडियन है, अकसर हम साथ बैठ कर लंच करते हैं, और हर दिन वो अपनी रेसिपी बताता है कि आज उसने कैसे लंच बनाया ...अक्सर वो ख़ुद ही लंच बना कर लाता है , वो भी माइक्रोवेव में...उसकी भी शादी हो चुकी है, उसकी पत्नी से मिली हूँ, बहुत ही मोडर्न और स्ट्रोंग हेडेड लड़की है ...लंच के समय हमलोग आपस में खाना शेयर कर लेते हैं...और हमेशा देखती हूँ पूर्णिमा ज्यादा खाना लाती है....विश्वनाथ को पहले ऑफर करती है, विश्वनाथ अपना खाना किनारे रख देता है और पूर्णीमा का ही खाना खा लेता है...पहले वो झिझकता था लेकिन अब नहीं...
जबसे हमलोगों ने इकट्ठे लंच करना शुरू किया है....पूर्णिमा और विश्वनाथ में काफी बदलाव देख रही हूँ...

पूर्णिमा के चेहरे पर अजीब सी ख़ुशी दिखती है...उसके बनाव सिंगार से ही लगता है कि उसे ऑफिस आना अच्छा लगता है...अब वो टाइम से ऑफिस में होती है...चेहरे पर रौनक है और होठों पर मुस्कुराहट...विश्वनाथ में भी एक तरह का बदलाव देखा है...हंसमुख तो है ही वो,  अब ज्यादा चंचल हो गया है...आँखों में अजीब से लाल डोरे नज़र आने लगे हैं..और एक रहस्यमयी मुस्कराहट भी...
अक्सर देखती हूँ..पूर्णिमा और विश्वनाथ को एक दूसरे की आँखों में झांकते हुए....कहते हैं न 'इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते'...ऐसा ही कुछ यहाँ भी हो रहा है....
ये सबकुछ देख कर मन में एक ख़याल आया कि....इस तरह के affairs मान्य नहीं होते हुए भी जीवन में कितने रंग भर देते हैं...इन्सान फिर जीना चाहता है,  ख़ुद से एक बार फिर प्यार करने लगता है....नवजवान महसूस करने लगता है....
पूर्णिमा अब आईना देखने लगी है...वो जीने लगी है..वो पूर्णिमा जो कभी मुस्कुराती नहीं थी अब मुस्कुराने लगी है, ख़ुश है.....मैं पूर्णिमा को ख़ुश देख कर बहुत ख़ुश हूँ....परन्तु जीवन की विडंबना पर हैरान हूँ ...पूर्णिमा बहुत ख़ुश तो है, 
लेकिन कब तक ! मन में कहीं एक भय है ...क्या यह सबकुछ सही है ?
आप से पूछती हूँ, क्या इस रिश्ते को ग़लत माना जाएगा ......??
अगर माना जाएगा तो क्यों माना जाएगा ??????
कोई जवाब दीजिये प्लीज ....


Sunday, June 6, 2010

हम तो शेरों को कुछ नहीं समझते फिर गीदड़ों की क्या बिसात....

 
ज्यादातर ब्लोग्गर्स का मानना है कि ब्लॉग जगत में गुटबाजी है...और हो भी क्यों नहीं यह मानवीय गुण है  एक तरह की पसंद रखने वाले लोग एक साथ रहना पसंद करते हैं...अपने शहर में ही देखिये..हिन्दुओं का मोहल्ला और मुसलमानों का मोहल्ला जैसी जगहें देखने को मिलती ही हैं...यह तो अपने-अपने कम्फर्ट की बात होती है ....
लेकिन ब्लॉग जगत में, इन सबके बावजूद भी जो अच्छा लिखते हैं उन्हें लोग अवश्य पढ़ते हैं बेशक टिप्पणी न करें, पढ़ने वाले पढ़ते हीं हैं...जैसे मैं http://hathkadh.blogspot.com/...ज़रूर पढ़ती हूँ, हालाँकि वहाँ कमेन्ट करने का प्रोविजन नहीं है.....मैं http://mosamkaun.blogspot.com/ भी ज़रूर पढ़ती हूँ....मैं अपनी बात जानती हूँ मुझे बहुत सारे लोग प्रतिदिन पढ़ते हैं लेकिन ...सभी टिप्पणी नहीं करते हैं....और इसमें कोई हर्ज नहीं है...

मैं ख़ुद बहुत सारे पोस्ट्स पढ़ती हूँ..लेकिन हर जगह टिप्पणी नहीं कर पाती.... अगर आप अच्छा लिखते हैं तो लोग आपको पढेंगे ही...हाँ ग्रुप में रहने का फायदा यह ज़रूर है कि आपने कुछ भी लिखा हो आपको टिप्पणी मिल जाती है...और जैसा कि ब्लॉग जगत की मानसिकता है..जिसे जितनी ज्यादा टिप्पणी मिलती है वो उतना ही सफल ब्लोग्गर माना जाता है..टिप्पणी  की महत्ता इतनी ज्यादा कर दी गई है कि अब लोग अच्छे लेखन  की तरफ कम अधिक टिप्पणी पाने के तिकड़म में ज्यादा उलझे हुए नज़र आ रहे हैं....और इस तरह की प्रवृति से सबका ह्रास ही हो रहा है....

मुझे याद है जब मैंने अपने ब्लॉग की शुरुआत की थी तो एक उल्लास था, एक उत्साह था...बहुत सारी अच्छी पोस्ट्स पढ़ कर एक प्रेरणा मिलती थी और उससे प्रेरित होकर मैं और अच्छा लिखने की कोशिश करती थी...एक सृजन का माहौल था...सभी रचनात्मक योगदान कर रहे थे....लेकिन अब वैसी बात नहीं है...कितना भी अच्छा अभिनेता क्यों न हो अगर सामने वाला सही अभिनय नहीं कर रहा है तो उसके भी अभिनय में गिरावट आ ही जाती है...यही हाल आज हिंदी ब्लॉग जगत का हो रहा है...सभी अपने-अपने अहम् की तुष्टि में इस तरह लिप्त हैं कि ये नहीं देख पा रहे हैं यह प्रवृति हिंदी ब्लॉग जगत का कितना नुक्सान कर रही है,  हालांकि  हिंदी ब्लॉग जगत है..और आगे भी रहेगा..बस इसकी प्रगति धीमी ही रहेगी...सृजनात्मकता बाधित रहेगी और ज्यादा कुछ नहीं होगा.....सही लोगों को पहचान मिलने में देर होगी.....इसकारण कुछ लोग हताश होकर छोड़ जायेंगे.....नए लोगों का मनोबल टूटेगा.....और यह एक बड़ी कमी रहेगी ....

कहते हैं प्रसिद्धि और पैसा हर कोई हैंडल नहीं कर सकता है ...यह मत भूलें कि अगर ब्लॉग जगत नहीं होता तो बहुत से लोग हैं जिनकी कोई पहचान नहीं होती...कम से कम इस वजह से एक पहचान बन रही है लोगों की...जहाँ तक हो सके इस पहचान को एक अच्छी पहचान बना कर रक्खा जाए तो फायदे की बात होगी...वर्ना ये मौका निकल जाए तो सिर्फ़ पछतावा ही हाथ में रहेगा...

अश्लील लिखना कोई बड़ी बात नहीं है...न ही इसमें कोई बहादुरी की बात है...ये काम कोई भी कर सकता है...बल्कि ये काम सभी कर सकते हैं..एक कूली, एक मजदूर ..एक चपरासी, एक शराबी एक जुआरी..कहने का अर्थ है कोई भी....बहादुरी तब है जब वैसा लिख कर दिखायें जैसा बिरले ही कोई लिख गया हो...फिर तो बात बनती हैं...और यह होगी बहादुरी की बात...अभी हाल में किसी पोस्ट पर बहुत ही ग़लत भाषा का प्रयोग देखा...लोग भूल जाते हैं कि यहाँ जो भी लिखा जाता है वह 'ब्रह्म वाक्य' बन जाता है...आने वाली पीढियां वही देखेंगी...और जब देखेंगी कि उनके पिता ने अपनी अभिव्यक्ति कैसी भाषा में की है तब आपको कैसा लगेगा ये आप सोच लीजिये...

अंत में यही कहूँगी ..एक बार फिर वैसा ही सृजनात्मक माहौल बनाने कि चेष्टा सभी मिल कर करें ताकि सभी अच्छा लिख सकें...

एक बात याद रखें , जो अच्छा लिखता है वह किसी भी ग्रुप का मोहताज़ नहीं है....झुंड गीदड़ बनाते हैं शेर नहीं ....और हम तो शेरों को कुछ नहीं समझते फिर गीदड़ों की क्या बिसात....
अजी अकेले ही काफी हैं...हाँ नहीं तो...!!

और अब ये गाना सुनिए....
सुनने से पहले आँख बंद कीजिये...और अपनी पत्नी, प्रेयसी, सहचरी जो भी हों अपने मन में लाइए...ये सोचिये कि वो गा रहीं हैं आपके लिए....
और खबरदार :):):)  जो आँख खोला तो...हाँ नहीं तो..

हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गायेगा.....आवाज़ 'अदा' की....

आवाज़ 'अदा' की....



हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गायेगा
दीवाना सैंकड़ों में पहचाना जायेगा
दीवाना ...

आप हमारे दिल को चुरा के आँख चुराये जाते हैं
ये इक तरफ़ा रसम\-ए\-वफ़ा हम फिर भी निभाये जाते हैं
चाहत का दस्तूर है लेकिन, आप को ही मालूम नहीं, ओ~ ओ~ ओ~
जिस महफ़िल में शमा हो, परवाना जायेगा
दीवाना सैंकड़ों में ...

भूली बिसरी यादें मेरी हँसते गाते बचपन की
रात बिरात चली आतीं हैं, नींद चुराने नैनन की
अब कह दूँगी, कहते-कहते, कितने सावन बीत गये
जाने कब इन आँखों का शरमाना जायेगा
दीवाना सैंकड़ों में ...

अपनी अपनी सब ने कह ली, लेकिन हम चुप चाप रहे
दर्द पराया जिसको प्यारा वो क्या अपनी बात कहे
ख़ामोशी का ये अफ़साना रह जायेगा बाद मेरे
अपना के हर किसी को बेगाना जायेगा
दीवाना सैंकड़ों में ...

दीवाना!
दीवाना!
दीवाना! 

Saturday, June 5, 2010

मैं बहुत सेलेक्टिव हूँ....


मैं बहुत सेलेक्टिव हूँ
अपने पिता को अपनी माँ
से ज्यादा प्यार करती हूँ
लेकिन मैं माँ पर भी मरती हूँ
मुझे सफ़ेद साड़ी ज्यादा पसंद है
क्योंकि वो मुझपर फब्ती है
फिर भी कोई-कोई काली साड़ी
भी मुझ पर जंचती है
मुझे मीठा पसंद है
मैं खट्टा नहीं खाती हूँ
लेकिन आम का अचार
चट कर जाती हूँ 
मुझे लता से ज्यादा आशा
भाती है
जबकि मैं जानती हूँ
लता कितना अच्छा गाती है
मैं बात सबसे करती हूँ
पर दिल में एक को बसाती हूँ
शायद ये कमियाँ हैं मुझमें
लेकिन मुझे इनपर नाज़ है
ये दुर्गुण ही सही मेरे मनुष्य
होने का प्रमाण तो देते हैं
यहाँ अवतारों की बड़ी भीड़ है
ये मुझे अलग खड़ा कर देते हैं
मैं यहाँ कुछ और
वहाँ कुछ कह जाती हूँ
कभी कभी तो मौन ही रह जाती हूँ
क्योंकि मैं उत्तम बनने का कोई
उपक्रम नहीं करती हूँ
मैं जो हूँ वही दिखती हूँ
स्वीकारना है स्वीकारो मुझे
माना तुम अवतार हो 
पर मुझे प्रमाण पत्र 
देने की हैसियत 
अभी तुम्हारे पास नहीं 
आज सुन लो तुम्हें बताती हूँ
मैं देवी बनने से कतराती हूँ.....