कल अजित जी की एक पोस्ट पढ़ी थी ...http://ajit09.blogspot.com/2010/07/blog-post_21.html ..जिसमें उन्होंने चिंता व्यक्त की थी कि 'अपने देश भारत से क्यों लोग नफ़रत करते हैं....' तो सबसे पहले तो मैं अजित जी से हाथ जोड़ कर माफ़ी माँग रही हूँ ...आपकी बात काटने का मेरा मंतव्य बिल्कुल नहीं है ..बस अपनी छोटी सी समझ को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ..आपसे ये कहना चाहूंगी..शीर्षक में प्रयुक्त शब्द 'नफ़रत' ज़रा तीखा है...हम 'नाराज़' कह सकते हैं...'गुस्सा' भी कह सकते हैं...लेकिन 'नफ़रत' नहीं...
कहते हैं किसी भी देश की मानसिकता का पता उस देश की ट्राफिक से चलता है...अब आप सोचिये कि हमारे देश की कैसी मानसकिता झलकती होगी जब बाहर से लोग आते हैं....जब सड़क जैसी जगह में हम एक दूसरे का साथ नहीं दे सकते तो फिर जीवन में क्या साथ देते होंगे....
फिर भी भारत हमारा देश है...माँ कितनी भी कुरूप हो माँ ही होती है ...और उसे उसका उचित सम्मान मिलना ही चाहिए....सबसे पहली बात, कोई भी भारतीय चाहे वो भारत में हो या विदेश में भारत से नफ़रत नहीं कर सकता ...कभी भी नहीं...हाँ हम चिढ जाते हैं, नाराज़ हो जाते हैं, गुस्सा हो जाते हैं, लेकिन छोड़ नहीं सकते...बिल्कुल वैसे ही जैसे..कोई इन्सान अपनी नौकरी को सुबह-शाम गाली देगा लेकिन छोड़ेगा नहीं....
इस स्थिति से निकला जा सकता है लेकिन मेहनत करनी होगी ...और बहुत मेहनत करनी होगी....सबसे ज्यादा ज़रूरी है, हमें अपनी कमियों को पहचानना, उन्हें स्वीकार करना और उन्हें सुधारने की कोशिश करना....
हम भारतीय हमेशा ..दूसरों को ख़ुद के कम ही समझते रहते हैं...और यह हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है....ऐसा करके हम अपनी कमअकली ही साबित करते हैं और कुछ नहीं....दुनिया में इतने देश हैं इतनी सभ्यताएं हैं ...जिनकी हमें जानकारी तक नहीं है...फिर भी हम यही मानते हैं कि हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति सर्वोपरि है...हो सकता है इसमें सच्चाई भी हो..लेकिन दूसरों को भी थोड़ा प्रश्रय देना भी अच्छा रहता है... यही आत्ममुग्धता हमारी हार का कारण है...
उससे भी बड़ी बात है....हमारे समाज की बड़ी से बड़ी बुराई को दरकिनार करते हुए हम अपने भूत के साथ चिपके हुए हैं...झूठ, चोरी, भ्रष्टाचार, घूस, समय का दुरूपयोग, बिना मतलब का काम्पिटिशन, अनैतिकता और न जाने किसी-किस दुर्गुणों को हम देख कर भी..या तो किनारे खड़े हो जाते हैं या फिर उसका हिस्सा बन जाते हैं...कई बार तो हमें पता भी नहीं चलता कि यह अनैतिक काम है., ..या फिर यह गैरकानूनी है...हमें इतनी ज्यादा ऐसी बातों की आदत हो गई है, कि अनजाने में हम करते ही चले जाते हैं. ...मसलन स्कूल में बच्चे के एडमिशन के लिए डोनेशन देना ....या फिर पंसारी से सामान लाना और सेल्स टैक्स नहीं देना....कहाँ सोचते हैं हम...या फिर सब्जीवाली से सब्जी खरीदना और रसीद नहीं लेना....लेकिन जब आप विदेश में रहते हैं तो आप इनसे नहीं बच सकते ...ऐसा माहौल आपको मिलेगा ही नहीं...यहाँ इसे गैरकानूनी माना जाएगा...क्या आप कभी यह सोचते हैं कि आप सुबह-शाम जो थैला लेकर सब्जी खरीद कर लाते हैं बिना रसीद के वो ग़लत है....हा हा हा ..
भारत में विदेशियों अथवा आप्रवासियों के लिए निवेश करना बहुत कठिन है...ऐसा नहीं है कि लोग भारत में पैसा नहीं लगाना चाहते हैं...लगाना चाहते हैं लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक की नीतियाँ हमेशा आड़े आतीं हैं...
फिर भी जहाँ चाह वहाँ राह...भारतीय रिजर्व बैंक की नीतियों का फायदा..हम भारतीय तो नहीं उठा सकते परन्तु विदेशों की बहुत बड़ी-बड़ी बिजिनेस कम्युनिटी जी भर कर उठाती है...और रिजर्व बैंक कभी गुरेज़ नहीं करता उनका साथ देने में...उसे तकलीफ हम जैसे छोटे लोगों से ही होती है...
भारतीय रिजर्व बैंक तभी आपको भारत में निवेश करने देती है जब आप कोई Infrastructure बनाते हैं....अब जैसे मेरी कम्पनी ...हम infrastructure नहीं ...फिल्में बनाते हैं .. जाहिर सी बात है ..फिल्में एक हाथ में आ जाती हैं...या फिर इलेक्ट्रोनिक form में होती हैं...इसे रिजर्व बैंक मान्यता नहीं देता है...लेकिन यहाँ के बड़े-बड़े चेन stores जैसे , Walmart , Bay , Zellers , Ikea इत्यादि वहाँ अपनी फैक्ट्री लगा सकते हैं...इस तरह की फैक्ट्री लगाना Infrastructure के अंतर्गत आता है...फिर इन फैक्ट्रियों में स्थानीय लोगों को काम भी दिया जाता है और उत्पादन के लिए raw material भी सस्ते दामों में वहीं से खरीदा जाता है.....आप कहेंगे ये तो बहुत अच्छी बात है....लेकिन scale of economy में ये अच्छी बात सिर्फ़ इन विदेशी कम्पनियों के लिए है....इस तरह के arrangement से इन कम्पनियों को १०००% से भी अधिक का लाभ हो जाता है...बताती हूँ कैसे...
पश्चिमी देशों में एक चीज़ बहुत महँगी है, वो है ..लेबर कॉस्ट...जब भी ये कम्पनियां भारत में अपनी लगाई गई फैक्टरी में production करतीं हैं ...उन्हें सस्ती लेबर और सस्ता raw material मिलता है... और क्योंकि यह फैक्टरी इन्ही कम्पनियों की होती हैं इसलिए कोई मझौलिया नहीं होता, उत्पादित सामान के निर्यात के लिए ...ख़ुद ही दुकानदार और ख़ुद ही खरीदार.....सारा फायदा इनका अपना होता है...इस तरह से उत्पादित सामानों की लागत बहुत कम होती है...जैसे जिस कमीज को ये कम्पनी रीटेल में $३० में बेचती है...उसकी लागत उसे RS ३० की पड़ती है....अब आप हिसाब कर लीजिये कितने प्रतिशत का फायदा है...(३०*४८=१४४०-३०= १४१० रुपये या $२९.३७ का फायदा प्रति कमीज़) और किसे है...
अब आप कहेंगे कि लेकिन इसमें विदेशों में निर्यात तो हो ही रहा है...तो हम कहेंगे ..निर्यात कर कौन रहा है...विदेशी कम्पनी ही न...तो पैसे भी उन्हें मिल रहे हैं...न कि किसी भारतीय कम्पनी को...इसलिए कुलमिला कर फायदा सिर्फ़ विदेशी कम्पनियों को ही होता है और किसी को नहीं...
पता नहीं क्यों भारत की सरकार ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया है और अब समय आ गया है कि सरकार इस तरफ ध्यान दे ...हमलोग बस विदेशियों को भला-बुरा कहने में ही समय गँवाते जा रहे हैं...सही अर्थों में भारत के उत्थान के लिए कोई प्रयत्नशील नहीं दिखता है...यहाँ तक कि सरकार भी नहीं....
भारत का भला तभी हो सकता है जब...एक क्रांति की लहर आएगी...
विदेशियों के कुछ अच्छे गुणों को अपनाया जाए...जैसे ईमानदारी, समय का सदुपयोग, नेतागन स्वयं को जनता के सही मायने में सेवक समझें और अपना काम नौकरी की तरह, तनखा पर करें ( मैं सपना देख रही हूँ) जैसे यहाँ के नेता करते हैं और सच में यही होता है....
दूसरी बात ...विदेशी सामान का बहिष्कार, विदेशी कम्पनियों को विदेशी दरों पर काम लेने की आज्ञा....और इन कम्पनियों पर अंकुश लगाया जाय जो ख़ुद ही सामान बनाती हैं और ख़ुद को ही बेचती हैं... तभी कुछ हो सकता है..वर्ना भगवान् मालिक...समय की कमी है फिर आऊँगी कुछ और बातें लेकर ..फिलहाल इसी से काम चलाइये...
हाँ नहीं तो...!!