एक कमेन्ट आया है ईमेल से....सोचा आपलोगों के साथ साझा कर लूँ...हो सकता है इनका कहना सही हो....
tum jaise logon ne hi blogging ki Maa....kar rakhi hai , band karo blogging , raham karo blogging par, hindi par , gazalon par , insaaniyat par
इनका कहना है कि मेरे जैसे लोगों की वजह से ही, ब्लॉग जगत गड्ढे में जा रहा है...मैं ब्लॉग्गिंग बंद कर दूँ, क्योंकि मुझे लिखना ही नहीं आता है, न मैं हिंदी भाषा के लिए सही हूँ, न ब्लॉग्गिंग के लिए, न ही इंसानियत के लिए...और न ही ग़ज़लों के लिए ...
एक बात स्पष्ट कर दूँ...मैंने कभी भी दावा नहीं किया है कि मैं ग़ज़ल लिखती हूँ...जो भी ख्याल मेरे ज़ेहन में आते हैं ..बस उन्हें एक तरतीब देने की कोशिश करती हूँ..वो बेशक 'ग़ज़ल जैसे' होने का भान देते हैं...लेकिन ग़ज़ल नहीं हैं...न ही आज तक ब्लॉग जगत के माने हुए ग़ज़लकारों ने मेरी पोस्ट्स पर कमेन्ट किया है...ज़ाहिर सी बात है, उनके पास मेरी रचनाओं के लिए कुछ भी कहने को नहीं होता, हो सकता है मेरी रचनाओं को 'ग़ज़ल' संबोधन मिलने से किसी के मन को ठेस लगती हो... तो आज सारे ग़ज़लकारों से क्षमा चाहती हूँ ...और आप सबसे विनती करती हूँ, मेरी रचनाओं को 'ग़ज़ल' न कहें...
न मैं कभी ग़ज़लगो थी, न हूँ और न ही अब होने की मेरी कोई इच्छा है...
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इनका कहना है कि मेरे जैसे लोगों की वजह से ही, ब्लॉग जगत गड्ढे में जा रहा है...मैं ब्लॉग्गिंग बंद कर दूँ, क्योंकि मुझे लिखना ही नहीं आता है, न मैं हिंदी भाषा के लिए सही हूँ, न ब्लॉग्गिंग के लिए, न ही इंसानियत के लिए...और न ही ग़ज़लों के लिए ...
एक बात स्पष्ट कर दूँ...मैंने कभी भी दावा नहीं किया है कि मैं ग़ज़ल लिखती हूँ...जो भी ख्याल मेरे ज़ेहन में आते हैं ..बस उन्हें एक तरतीब देने की कोशिश करती हूँ..वो बेशक 'ग़ज़ल जैसे' होने का भान देते हैं...लेकिन ग़ज़ल नहीं हैं...न ही आज तक ब्लॉग जगत के माने हुए ग़ज़लकारों ने मेरी पोस्ट्स पर कमेन्ट किया है...ज़ाहिर सी बात है, उनके पास मेरी रचनाओं के लिए कुछ भी कहने को नहीं होता, हो सकता है मेरी रचनाओं को 'ग़ज़ल' संबोधन मिलने से किसी के मन को ठेस लगती हो... तो आज सारे ग़ज़लकारों से क्षमा चाहती हूँ ...और आप सबसे विनती करती हूँ, मेरी रचनाओं को 'ग़ज़ल' न कहें...
न मैं कभी ग़ज़लगो थी, न हूँ और न ही अब होने की मेरी कोई इच्छा है...
बाकी रही हिंदी की बात तो, आज के 'हिंदी दिवस' के दिन मैं भी सोचने पर मजबूर हो गई हूँ, कि क्या सचमुच अंशमात्र ही सही, हिंदी के ह्रास में मैं योगदान कर रही हूँ..??
यदि मेरे आलेख सचमुच हिंदी ब्लॉग जगत के स्तर को नीचे लाने में योगदान कर रहे हैं तो मुझे बताया जाए, क्योंकि हम जैसों के होने से हिंदी ब्लॉग जगत का भला अगर नहीं हो रहा परन्तु चले जाने से होगा तो मैं ख़ुशी से तैयार हूँ..
और रही बात इंसानियत की तो, मेरे पास इसके लिए कोई जवाब नहीं है, जब तक आप मुझसे मिलते नहीं हैं, यह साबित नहीं हो सकता...
मैं चाहती तो इस ईमेल को पूरी तरह इग्नोर कर सकती थी, लेकिन मैं स्वयं भी जानना चाहती हूँ, अगर किसी एक भी व्यक्ति के मन में, मेरे लेखन को लेकर कोई असहजता (मैं असहमतियों की बात नहीं कर रही हूँ, वह मेरा अधिकार है) है तो मैं सहज नहीं महसूस करती हूँ...
कहीं सचमुच मेरी लेखनी से, कोई भूल तो नहीं हो रही है...कहीं मैं अनजाने कुछ ऐसा ग़लत तो नहीं कर रही हूँ...?
और अगर ऐसा है, तो मैं स्वयं को बदलने के लिए तैयार हूँ...
आशा है, आप गुणीजन मेरा मार्ग दर्शन करेंगे...
हाँ नहीं तो...!!
मज़ा आ गया है जी पढ़कर।
ReplyDeleteलेकिन अभी आपकी पिछली पोस्ट वाली गज़ल पर, जी हाँ, गज़ल पर, अभी कमेंट नहीं किया है, पहले वो कर आयें फ़िर यहाँ अपनी बात कहेंगे।
आपने ईमेल तो हम लोगों के साथ शेयर किया लेकिन प्रेषक के बारे में कुछ नहीं बताया कि ब्लॉगिंग, हिंदी, गज़ल और इंसानियत के पैरोकार ये महाशय कौन हैं?
ReplyDelete१. ब्लॉगिंग की ठेकेदारी या नंबरदारी किस हैसियत से इनके पास है जो आपसे कह रहे हैं कि इस पर रहम किया जाये।
२. जो खुद ऐसा SOS संदेश भी हिन्दी में नहीं लिख पाये, वे ही हिन्दी पर रहम करने की दुहाई दे रहे हैं?
३. गज़ल वाले प्वायंट पर शायद आपको सबसे ज्यादा महसूस हुआ है, ऐसा लगता है कि किसी मशहूर गज़लगो के कमेंट्स न मिलने का आपको भी दुख है। वो कमेंट नहीं करते हैं, वही बता सकते हैं, हम बता सकते हैं अपनी बात। कोई भी सिनेमा, मैच, म्यूज़िक कंसर्ट या किसी भी ललित कला को देखने जाने वालों में परफ़ॉर्मर से ज्यादा जानने वाले कितने लोग होते हैं? अगर ऐसा जरूरी होता तो कोई भी सिनेमा, मैच, म्यूज़िक कंसर्ट, नाटक और यहाँ तक कि सर्कस के शो भी कभी हाऊसफ़ुल नहीं होते। ये जगह अगर गुलज़ार हैं तो बिना जानेमाने लोगों के ही कारण। अपना तो सीधा फ़ार्मूला है जिस लयबद्ध रचना में उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है, वो हमारे लिये गज़ल है और जिसमें हिन्दी शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है, वो कविता। आपका लिखा हमें अच्छा लगता है तो कमेंट भी करते हैं और पसंद भी करते हैं। आपकी मानेंगे भी तो उसे गज़ल नहीं कहेंगे लेकिन समझेंगे गज़ल ही।
४. इंसानियत वाला मुद्दा सबसे मुश्किल है। पता नहीं कहाँ से इन्हें इन्सानियत के मरने में आपका हाथ दिख गया।
रही बात आपके यह कहने कि अगर एक भी व्यक्ति को असहजता है तो......, आप हिम्मत वाली हैं आप में ये सब छोड़ने का दम होगा। अगर इसके बाद दुनिया में आपके रहने से कोई असहज महसूस करता हो तो क्या दुनिया भी छोड़ देंगी?
जहाँ तक इस मेल के पीछे इसके प्रेषक की बात है, उसका ऐड्रेस भी आपको पब्लिश करना चाहिये था, सीधे उसी से निवेदन करते कि भाई सीधे से सामने आकर विरोध करें।
रोज हमारे ईमेल आई डी पर भी और फ़ोन पर भी लाखों डालर के इनाम बरसाये जाते हैं, शुरू में तो हंसने के लिये इन्हें पढ़ भी लेते थे, अब तो सीधे डिलीट मारते हैं। ये भी यत्र तत्र घूमते कोई फ़र्जी प्रोफ़ाईलधारक होंगे, कोई गंभीर ब्लॉगर, गज़लगो, हिन्दीसेवी या इंसान होते तो सीधे से सामने आकर अपना विरोध दर्ज करते।
ऐसे मेल्स की कोई अहमियत नहीं है। कुंठित लोग ही ऐसे काम करते हैं। आप सफ़ल हैं अपनी मेहनत के कारण, अपनी प्रतिभा के कारण और सफ़लता की ऐसी कीमत चुकानी ही पड़ती है, आरोप, आक्षेप और आलोचना। जितने ज्यादा आयेंगे, आप समझिये और ऊंचे पायदान पर जाती जा रही हैं।
आपकी और अच्छी गज़लों का इंतज़ार रहेगा, और आज आपके हां नहीं तो... में मजा नहीं आया। हमारा विरोध दर्ज करें, असली नाम के साथ।
डिस्क्लेमर - हम गुणीजन नहीं हैं, आपके लेखन के प्रशंसक हैं। चाहें तो चमचा, कड़छा भी कह सकती हैं, हमें ऐतराज नहीं होगा। जिस दिन हमें लगेगा कि आप के कारण हिन्दी, गज़ल वगैरह का नुकसान हो रहा है, अपने नाम से विरोध करेंगे आपसे।
सदैव आभारी।
अरे अदा जी.......आप बिल्कुल सही काम कर रहे हो...
ReplyDeleteहिन्दी में भी योगदान दे रही है...ज़्यादा टेन्शन ना ले और बिन्दास अपने विचार और जज़्बातों को अलफ़ाज़ों का रुप देती रहे....
============
"हमारा हिन्दुस्तान"
"इस्लाम और कुरआन"
Simply Codes
Attitude | A Way To Success
हर बंदे का अपना धारणाधिकार होता है मेल वाले सज्जन का भी होगा ! लेकिन उनकी जुबां थोड़ी तुर्श लगी शायद नुक्ताचीनी की हद से आगे ! सिर्फ इतना कहूँगा कि कुछ लोग अपने फन के माहिर होते होंगें और अपनी जुबानों के बादशाह... पर दुनिया में अभिव्यक्त सभी को होना है ! अगर आपकी अभिव्यक्ति ज्यादातर लोगों तक बराबर पहुंच रही है तो बादशाहों की राय की कोई कीमत नहीं !
ReplyDeleteमसला ख्याल के सही सलामत उस पार पहुंचने का है भाषा और फन के खालिसपन की फ़िक्र बादशाहों को करने दीजिए ! आप आम इंसान हैं आम इंसानों के दरम्यान अभिव्यक्त होती रहिये !
अरे भाई आपका लिखा हमें अच्छा लग रहा है कुछ औरों को भी ... शायद एक दो को बुरा भी ! तो क्या ? हो सके तो उनका ब्लाग एड्रेस दीजिए ताकि उनकी रचनाओं का लुत्फ़ हम भी उठा पायें और आप भी उठाइये ! सहज बनी रहिये ! यही जीवन है !
गज़लों पर तो कुछ कह नहीं सकते क्योंकि अपन भी कोई गज़ल मार खाँ नहीं हैं तो छोटे मुन्ह बडी बात क्यों कहें मगर बाकी मुद्दों में से कुछ के लिये ज़रूर कुछ कहना चाहेंगे:
ReplyDelete1. आपको पत्र लिखने वाले बडे महान गज़ल्ची होंगे और शायद आपसे भी उसी महानता की उम्मीद रखे बैठे होंगे मगर वे यह भूल गये कि जिस भाषा का नमूना उन्होने पत्र में दिया है वह भाषा उन जैसे सपूत (या सपूती?) के सिवा सामान्य लोगों के लिये सम्भव नहीं है।
2. "...तो मुझे बताया जाए..."
क्यों भई? उस एक चिट्ठी की जगह कूडेदान में है या जहन्नुम में, उसके लिये न हम अपना कीमती वक़्त बर्बाद करेन्गे न आपका या अन्य ब्लॉगर्स का वक्त या मूड बर्बाद करना पसन्द करेंगे।
3. "...अगर किसी एक भी व्यक्ति के मन में, मेरे लेखन को लेकर कोई असहजता..."
उस एक ने तो खुलासा कर दिया अपने संस्कारों का और अपने ज़ुबान का। उन्हें अकेले कोपभवन में रहने दीजिये। पर्दे के पीछे से फेंके गये ऐसे सच्चे-झूठे आरोपों की कीमत दो कौडी भी नहीं आंकी जा सकती है। बाकी बचे लोगों को तो आपके ब्लॉग क प्रशंसक माना जा सकता हैं।
4. लगता है हिन्दी ब्लॉगिग में भी कोई छद्मयुद्ध चल रहा है जहाँ ज़्यादा पसन्द किये जा रहे लोगों को मानसिक चोट पहुंचाने के षडयंत्र रचे जा रहे हैं।
मस्त रहिये आबाद रहिये, रांची रहिये या कनाडाबाद रहिये! लिखती रहिये, पढने वाले बहुत हैं।
लीजिये जी, अब तो मो सम कौन भी आ गये पोइंट वाइज़ जवाब देने के लिये - अब उस चिट्ठी को जहन्नुम रसीद कर ही दीजिये!
ReplyDeletedil ki baaten sathi hongi auron ke liye .... yaa khuda hum jo kahte hain usme tumhe rakhte hain, ab gazal ho yaa geet yaa marham ... dil ka saath to hota hai
ReplyDelete@ संजय जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ..आपको चमचा-बेलचा कहूँगी मैं ..ये नहीं होगा..
आप स्वयं हिंदी ब्लॉग जगत के बहुत अच्छे लिखने वालों में से हैं...
अली साहब...
ReplyDeleteहर किसी की अपनी पसंद होती है, कोई ज़रूरी नहीं कि मैं जो भी लिखूँ हर किसी को अच्छा लगे...
आप जैसे उच्च श्रेणी के लेखक का इतना ही कहना कि 'अरे भाई आपका लिखा हमें अच्छा लग रहा है कुछ औरों को भी ...' यही काफ़ी है ..
उनका ब्लॉग एड्रेस अगर होता तो हम भी न लुत्फ़ उठाते ..:):)
अनुराग जी,
ReplyDeleteआपकी लेखनी की ताब और आपकी आवाज़ के जादू से भला कौन नहीं वाकिफ है...
मैं तो बस कोशिश करती हूँ लिखने की...कलाकार मैं भी हूँ, शायद इसलिए थोड़ी ज्यादा संवेदनशील भी..आपके विचार मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं..हृदय से आभारी हूँ..
@ रश्मि दीदी,
ReplyDeleteआप तो बस पूज्य हैं मेरे लिए....आप नहीं समझेंगे मेरे मन की बात तो कौन समझेगा भला..आपको तो समझना ही था ..
आपको यहाँ देख कर उद्विग्न मन शांत हुआ है...
बहुत अच्छा लगा दी..
@ आरिफ साहब,
ReplyDeleteआपने भी मेरा हौसला पस्त होने नहीं दिया...सच में
बहुत बहुत शुक्रिया आपका..
हम तो आपका लिखा पढ़ते हैं
ReplyDeleteअब वो गीत है , ग़ज़ल है , नज़्म है ...हमको ही कौन इतनी समझ है ...
जिन शब्दों में हम खुद को अभिव्यक्त कर सकें , वही ठीक है ...अब ये पढने वाले पर निर्भर करता है कि वह इसे कविता , ग़ज़ल या गीत क्या समझे ...
बाकी तो मैं अपनी पोस्ट " ब्लॉग की नगरी मा कुछ हमरा भी हक़ होइबे करी " में कह ही चुकी हूँ ..!
यदि आपको मेल करने वाले महाशयमहाशया को यदि आपकी पोस्ट पसन्द न आती हो तो उन्हें आपकी पोस्ट आना बंद कर देना चाहिए, आपको ब्लोगिंग करने से रोकने का उन्हें किंचित मात्र भी अधिकार नहीं है।
ReplyDeleteमेरी तो यही सलाह है कि ऐसे मेल को आप अनदेखा कर के अपने काम में जुटे रहें।
pata nahi kaun Kam*** tha..........:P
ReplyDeletemere samajh se to blogging wo jariya hai, jo ek aise diary hai, jise koi dusra bhi padh sakta hai...:)
agar kisi ko lagta hai, ki meri panktiyan, uske anuroop nahi hain, to na padhe, ya batayen, bhaiya ye galti hai........
uske aage jane ka matlab wo khud sarminda hona chah raha hai.......
aap to bas aise hi likhtee rahen.......:)
aur sabko pata hai, aap kya likhte ho, aur kitna achchha likhte ho, ek-do aise comments se sayad aapka hausla badhega hi.......:D
वो दुष्यंत कुमार की पंक्तिया है न :
ReplyDeleteमत कहो आकाश में कोहरा घना है,
ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ...
इतनी सारी सकारात्मक टिप्पणियों के साथ एक आद बे सर पैर की टिपण्णी पर शोक न कीजिये, लिखते रहिये तबीयत से ..
कम से कम नाम तो बता दीजिये किसने मेल भेजी है... बहुत फ्रस्टेटेड होगा वो... नाम पता चल जाता तो हमरा लाठी-बल्लम बहुत दिनों से ज़ंग खाया हुआ है... थोडा उनको तेल पिलाने का मौउका मिल जाता...
ReplyDeleteरिगार्ड्स...
स्वप्न ,
ReplyDeleteबहुत बार बड़ी बड़ी बातें मन को चोट नहीं पहुंचातीं और कभी कभी कोई छोटी सी बात मन को बींध जाती है ....
ब्लॉग एक माध्यम है अपनी बात सहजता से कहने का ..अपने मन के भावों को अभिव्यक्त करने का ...गीत हो गज़ल हो , कविता हो लेख हो ..सब अपने विचार और भाव ही लिखते हैं ...बहुत कम लोंग इन सब की तकनीकी जानकारी रखते हैं ..कम से कम मुझे तो नहीं ही है ...बस मन में जो आता है ज्यों का त्यों कुछ लिख देती हूँ ...और मुझे लगता है कि ऐसा ही ज्यादा तर लोंग करते हैं ..
तुम बहुत अच्छा लिखती हो ..और शुभकामनायें हैं कि निरंतर लिखती रहो ...किसी एक की बात पर मन को उद्विग्न न करो ...
यह दुनिया है ..कुछ तो कहेंगे ही न .....हां नहीं तो ..:):)
ये क्या हर बात पर "हां, नहीं तो..."
ReplyDeleteजिसका सभ्य शब्दों से परिचय नहीं है, जिसे सम्मान का अर्थ नहीं पता, जिसने असहमति जताना न सीखा, हिंदी की सीख देने से पहले हिंदी में टाइप करना तो क्या लिप्यंतरण करना नहीं सीखा उसके एक अर्थहीन अभद्र ई मेल को या टिप्पणी को आप किस कारण से इतना महत्त्व दे रही है. भविष्य में ऐसे असामयिक और अनावश्यक कष्टों को आनंद और पोस्ट का विषय ना बनायें. आपका दिल तो कमल के पत्तों से बड़ा है जिसमे सब बरदाश्त करने का सामर्थ्य है किन्तु ये भी सत्य है कि समाज रहेंगे तो शालीनता और अभद्रता दोनों समान रूप से बनी रहेगी. किस किस लानत भेजें किस किस को नसीहतें दे ? जरा बच कर और भूल कर चलिए.
किसे है चाह कि उन्हें दिग्गज समझा जाये.
ReplyDeleteहम तो बस कुछ अपनी कहते हैं ,कुछ उनकी सुनते हैं.
ख़ाक डालिए जी ऐसी मेल पर.
लिखना और अपनी भावनाओं को कहने का अधिकार सभी को है.किसी के हाथ की कलम छिनना किसी का अधिकार नहीं....किसी को अगर किसी का लिखना पसंद नहीं तो वो न जाये उनके पेज पर खुद बेहतर लिखे और बेहतरीन लिखे .. इस तरह से मना करना तो ठीक नहीं......मना वहीँ किया जा सकता है जो बात समाज की सुरक्षा के लिए खतरा हो या गलत मानशिकता को बढावा देती हो ... आपका लेख बहुत सुन्दर बना है ..इस वषय पर भी..
ReplyDeleteवाया किशोर जी यहाँ आना हुआ, मुझे लगता है आपने काफी धैर्य का परिचय दिया है जो यकीनन तारीफ के काबिल है... सवाल है अगर ऐसा है जैसा आपने लिखा है तो इन चीजों के लिए भी ब्लॉग पर ही जगह बनती है.. कुछ महीने पहले मैंने भी यह लिखने की कोशिश की थी, मैं भी नहीं जानता की मिसरा उल क्या है, मिसरा सानी क्या है ? रदीफ़ (या रफीद) क्या होता है, मुझे भी इसकी मालूमात नहीं है, मैं बस इसलिए लिखता था क्योंकि मुझे इसका कथ्य वजनी लगता था और एक हद तक इसकी तारीफ भी हुई थी... अब अपना ब्लॉग है तो इतनी आज़ादी तो बनती है की हम अपने अनुभूति या एहसास अपने शब्दों में डालें.. कई लोग ग़ज़ल के नाम पर तुकबंदी करते हैं... ऐसे में संयम हमें रखना चाहिए... कई बार लोग लिखते लिखते सुधार लेते हैं (मैं अपवाद हूँ, नहीं सुधरूंगा की लय है अपनी)
ReplyDeleteतो गरज यह की लिखते रहिये... कई बार हमने आपकी लिखने में प्रवाह देखा है और डूबकर लिखने की झलक भी ...
शुभकामनाएं
तुझे रुकना नहीं... तुझे थकना नहीं.... बढ़ता चल :)
ReplyDeleteआपने कितनी सहजता से "हाँ नही तो" लिखकर बात टाल दी
ReplyDeleteऔर हम ऊपरी लाईनें पढकर ही असहज हो रहे हैं।
क्या हो रहा है ये?
जो भी है क्यों कर रहा है वो ऐसा?
क्या कहना, बताना, जताना चाहता है?
बिन माँ के पैदा हुआ है क्या वो मेल लिखने वाला/वाली?
काश, हर ईमेल आईडी के साथ आईडी धारक की पहचान, फोटो, लोकेशन, फोन नंO और एड्रेस सत्यापित होता।
प्रणाम स्वीकार करें
ऐसे विचार और मानसिकता को अकेले ही छोडना उचित है, इनकी न तो चर्चा की जानी चाहिये और न ही इन पर ध्यान दिया जाना चाहिये!
ReplyDeleteजिसका सभ्य शब्दों से परिचय नहीं है, जिसे सम्मान का अर्थ नहीं पता, जिसने असहमति जताना न सीखा, हिंदी की सीख देने से पहले हिंदी में टाइप करना तो क्या लिप्यंतरण करना नहीं सीखा उसके एक अर्थहीन अभद्र ई मेल को या टिप्पणी को आप किस कारण से इतना महत्त्व दे रही है. भविष्य में ऐसे असामयिक और अनावश्यक कष्टों को आनंद और पोस्ट का विषय ना बनायें. आपका दिल तो कमल के पत्तों से बड़ा है जिसमे सब बरदाश्त करने का सामर्थ्य है किन्तु ये भी सत्य है कि समाज रहेंगे तो शालीनता और अभद्रता दोनों समान रूप से बनी रहेगी. किस किस लानत भेजें किस किस को नसीहतें दे ?
ReplyDeleteबढ़िया लेख लिखा है ........
मेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
कृपया विजेट पोल में अपनी राय अवश्य दे ...
.
निन्दक नियरे राखिये। अपनी गज़ल पढ़ाईये और उसे बेहतर करने को कहिये। हर बेहतर शब्द के लिये 1 रु मैं दूँगा।
ReplyDeleteये क्या है? आप भी पता नहीं किन लोगों की बातों में आ जाती हैं, हां नही तो...
ReplyDeleteअरे अदाजी
ReplyDeleteकहाँ इस पचड़े में पड़ गई |जाने भी दीजिये |
कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातो में
कहीं पीछे न रह जाये अच्छा लिखना |
हम तो आपके अच्छे पशंसक है गीत के ,कविता के ,गायन के ,लेखन के पैरोडी के हमे सजा मत दे देना |
फिर से उर्जावान हो जाइये
और अपना बेहतरीन देते जाइये
शुभकामनाये
Di maine to pahale hi kaha tha ab bhi kah rahi hun
ReplyDeleteUn samikshak maharaj ki baateon ka visarjan kijiye ...jo apane vichar(chahe asahamati ke hi ho) khud utkrashtha bhasha me vyakt nahi kah raha wo kisi aur ko bhasha ke smmman me kya updesh dega ...
100 baat ki ek baat agar ham sab ( wo sabhi log jo aapko padana pasand karate hai) aapko niyamit padate bhi hai aur sarahate bhi hai to itane sare logo ke samane us ek mail karane wale ki kya bisat jo khul kar samane aaya bhi nahi...
hargiz dhyan na de
जब से चला हूँ मेरी मंजिल पे नज़र है
ReplyDeleteआँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा...........
अदा जी बस यूँ ही चलते जाईये
और
हमारा मार्गदर्शन करते जाईये.........
किशोर चौधरी जी से शब्दशः सहमत !
ReplyDeletebe smart as snart indian.......
ReplyDeleteanami/sunami/gumnami.....bhoukalon ko sire se
kharij karen ......
inke ek lien ne ham sabon ko ek achha lekh/gajal/geet ka nuksan kiya hai .. han nahi to-sabahar aphike.
pranam
मुझे तो ये पूरा मेसेज बहुत पसंद आया ये जो भी है बिलकुल सही बात बोलते हैं
ReplyDelete@tum jaise logon ne hi blogging ki Maa.... kar rakhi hai
tum jaise logon ne hi blogging ki Maa....[की इज्जत बचा] kar rakhi hai
शायद ये वाक्य ठीक है :)
band karo blogging , raham karo blogging par,
सही है ......सस्ती ब्लोगिंग आप जैसे ब्लोगर्स की वजह से खतरे मैं आ गयी है शायद
@raham karo hindi par ,
मैं करूंगा ..... एक पोस्ट बना कर :)
@raham karo gazalon पर
ये भी सही बात है...... जिस तरह से आपकी बहुमूल्य गजलें बिना किसी कीमत के ब्लॉग पर होती है [सस्ती और महँगी दोनों ] गजल वालों का धंधा भी खतरे में आ गया है
मैं भी स्पष्ट करना चाहूँगा मेरे लिए तो यही गजलें है, क्योंकि मैंने यहाँ पर बहुत कुछ सीखा है , रही बात भाषा की...... शब्दों के अर्थ पता हो तो मैं चाहूँगा की एक गजल उर्दू , हिंदी , इंग्लिश , तेलुगु सब मिला कर लिखी जाये
@raham karo insaaniyat पर
ये चीज तो मेरे भी समझ नही आयी, यहाँ क्या अमानवीय हो रहा है ??
@ब्लॉग जगत गड्ढे में जा रहा है
फिर तो ठीक है उसे वही जाना चाहिए ......... वैसे भी खुदाई में गड्ढे में मंदिर , मूर्तियाँ आदि प्राप्त हो रहीं हैं और रही बात आसमान की उंचाई की वहां तो अजोन परत का छेद बड़ा होता जा रहा है और हानि कारक किरणे सीधे धरती पर आ रही हैं :))
@परन्तु चले जाने से होगा तो मैं ख़ुशी से तैयार हूँ..
ये तो बहुत बड़ा दुर्गुण है हम ब्लोगर्स का , बस जाने के बात मत करो दीदी , अभी मैंने भी सोचा था इस बात से कोई सुधार होगा, पर मुझे कोई आसार नजर नहीं आ रहे वापस आना पड़ेगा शायद
@किसी एक भी व्यक्ति के मन में, मेरे लेखन को लेकर कोई असहजता (मैं असहमतियों की बात नहीं कर रही हूँ, वह मेरा अधिकार है) है तो.....
ब्लोगिंग में जिस तरह के दो मुखी व्यक्तित्व आते जा रहे हैं ये भी संभव है की आप ही के प्रशंसकों में से कोई हो [क्षमा चाहता हूँ , पर अब ब्लोगिंग से मेरा भरोसा उठ गया है शायद ]
चाहता तो पोस्ट पर कमेन्ट करना इग्नोर कर सकता था पर क्या करूँ ये ई मेल सन्देश हमारे द्वारा इस ब्लॉग पर रचनाओं को दिए गए स्वार्थ रहित सम्मान की भी खिल्ली उड़ाता प्रतीत हो रहा है
@कहीं सचमुच मेरी लेखनी से, कोई भूल तो नहीं हो रही है
जब जब ऐसा होगा [जो की असंभव सा लगता है ] "हम हैं ना बताने के लिए" चाहे बाद में हमें ही माफ़ी क्यों ना मांगनी पड़े :), हम लोग चापलूस नहीं है दीदी जो बस वाह वाह करने चले आते हों , ये आपकी लेखनी की ताकत ही है जो मजबूर करती है
जल्दी जल्दी में वाक्यों में कुछ कन्फ्यूजन रह गया है
ReplyDelete*जिस तरह से आपकी बहुमूल्य गजलें बिना किसी कीमत के ब्लॉग पर होती है गजल वालों [सस्ती और महँगी दोनों] का धंधा भी खतरे में आ गया है
*अभी कुछ दिन पहले मैंने भी सोचा था इस बात से [मेरे ब्लोगिंग छोड़ देने से ] कोई सुधार होगा, पर मुझे कोई आसार नजर नहीं आ रहे इसीलिए मुझे वापस आना पड़ेगा शायद
और हाँ अब सुविधाजनक देश भक्तों या कहूँ हिंदी भक्तों पर एक पोस्ट तो बनेगी ही
दीदी,
ReplyDeleteबस एक बात और... मेरी नयी पोस्ट अवश्य पढ़ें जो अभी ब्लॉग पर है
Dear writer,
ReplyDeleteFew people are bound with specific language , they dont like others mixing multiple language. These are the people who are thoughtless almost like a machine.
Everyone has a writer within themselves , but everyone can not express the thoughts reason : rigidness to stick to a specific language.
Writing is the magic of words and words are like pearl in the ocean of thoughts.Only a writer can swim in that ocean and bring pearls to us to feel the magic.
"If you love to swim in your thought ocean then each and every writing of yours is a pearl to us"
Pearl has been lovable and precious to human beings not to machines.
Dont bother yourself with machinery complement.
"thoughts are boundless to languages"
@Pearl has been lovable and precious to human beings not to machines.
ReplyDeleteअदभुद विचार , इन उपरोक्त विचारों से पूरी तरह सहमत.....
हिंदी का [या किसी भी भाषा का ] प्रयोग दिल दुखाने से लेकर खुशियाँ लुटाने तक किसी भी काम में किया जा सकता है
फर्क इस बात का है की ये भाषा का हथियार है किस के हाथ में ??
कथित "भाषा माता" भी रोती होगी जब देखती होगी की बच्चे उसका प्रयोग किसी का दिल दुखाने के लिए कर रहे हैं
इसी एंगल से देखें ...जब आप कोई अच्छी बात कर रहे हैं तो कईं भाषाएँ मिलाने से "भाषा माता " और कितनी " भाषा मौसियाँ " खुश होती होंगी सोचने की बात है
[मौसियाँ = माँ की बहनें]
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html
ReplyDeleteहिंदी को लूट लिया मिल के हिंदी वालों ने
ReplyDelete