Friday, January 31, 2014

एक झण्डे का सफ़र ....



गांधी जी ने सबसे पहले 1921 में कांग्रेस के अपने झंडे की बात की थी। इस झंडे को पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था। इसमें दो रंग थे लाल रंग हिन्दुओं के लिए और हरा रंग मुस्लिमों के लिए। बीच में एक चरखा  था। बाद में इसमें अन्य धर्मो के लिए सफेद रंग जोड़ा गया। स्वतंत्रता प्राप्ति से कुछ दिन पहले संविधान सभा ने राष्ट्रध्वज को संशोधित किया। इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली। इस नए झंडे की देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने फिर से व्याख्या की। 

21 फीट गुणा 14 फीट के झंडे पूरे देश में केवल तीन क़िलों पर फहराए जाते हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में स्थित क़िला उनमें से एक है। इसके अतरिक्त कर्नाटक का नारगुंड क़िला और महाराष्ट्र का पनहाला क़िला पर भी सबसे लम्बे झंडे को फहराया जाता है।

1951 में पहली बार भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने पहली बार राष्ट्रध्वज के लिए कुछ नियम तय किए। 1968 में तिरंगा निर्माण के मानक तय किए गए। ये नियम अत्यंत कड़े हैं। केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है । कपड़ा बुनने से लेकर झंडा बनने तक की प्रक्रिया में कई बार इसकी टेस्टिंग की जाती है। झंडा बनाने के लिए दो तरह की खादी का प्रयोग किया जाता है। एक खादी जिससे कपड़ा बुना जाता है और दूसरा खादी-टाट। खादी बुनने में केवल कपास, रेशम और ऊन का ही प्रयोग किया जाता है।  इसकी बुनाई भी सामन्य बुनाई से भिन्न होती है। इस तरह की बुनाई अब दुर्लभ हो गई है। धारवाण के निकट गदग और कर्नाटक के बागलकोट में खादी की बुनाई की जाती है और '''हुबली''' एक मात्र लाइसेंस प्राप्त संस्थान है जहां से झंडा उत्पादन व आपूर्ति की जाती है। बुनाई से लेकर बाजार में पहुंचने तक कई बार बीआईएस प्रयोगशालाओं में इसका परीक्षण होता है। बुनाई के बाद सामग्री को परीक्षण के लिए भेजा जाता है। कड़े गुणवत्ता परीक्षण के बाद उसे वापस कारखाने भेज दिया जाता है। इसके बाद उसे तीन रंगो में रंगा जाता है। बीच वाली पट्टी के ठीक मध्य में अशोक चक्र को काढ़ा जाता है। उसके बाद इसे फिर परीक्षण के लिए भेजा जाता है। बीआईएस झंडे की जांच करता है इसके बाद ही इसे बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है।

तिरंगे का विकास

यह ध्वज भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम काल में ही निर्मित किया गया था। १८५७ में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय भारत राष्ट्र का ध्वज बनाने की योजना बनी थी, लेकिन वह आंदोलन असमय ही समाप्त हो गया था और उसके साथ ही वह योजना भी बीच में ही अटक गई थी। वर्तमान रूप में पहुंचने से पूर्व भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अनेक पड़ावों से गुजरा है। इस विकास में यह भारत में राजनैतिक विकास का परिचायक भी है। कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं :-
  • *प्रथम चित्रित ध्वज १९०४ में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। ७ अगस्त१९०६ को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्ककलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। इस ध्वज को लालपीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर वंदेमातरम् लिखा गया था।
  • द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और १९०७ में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह १९०५ में हुआ था। यह भी पहले ध्वज के समान था; सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
  • १९१७ में भारतीय राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान तृतीय चित्रित ध्वज को फहराया। इस ध्वज में ५ लाल और ४ हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्ततऋषि के अभिविन्यास में इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
  • कांग्रेस के सत्र बेजवाड़ा (वर्तमान विजयवाड़ा) में किया गया यहाँ आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वैंकैया ने एक झंडा बनाया (चौथा चित्र) और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्वं करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
  • वर्ष १९३१ तिरंगे के इतिहास में एक स्मरणीय वर्ष है। तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र-ध्वज के रूप में मान्यता मिली। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।
  • २२ जुलाई १९४७ को संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।
तथ्य विकीपेडिया से लिए गए हैं। 

Tuesday, January 28, 2014

हमें पेड़ बोने हैं और ढेर सारे पेड़ बोने हैं :)

बात थोड़ी पुरानी है, हमारे भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गांधी ने कहा था 'हमें पेड़ बोने हैं और ढेर सारे पेड़ बोने हैं :), लेकिन उन्होंने ये बात, पर्यायवरण की रक्षा के लिए कहा था । परन्तु उसी पेड़ से हमारी भावी प्रधानमन्त्री कुछ दूसरे तरीके से फायदा उठाने की सलाह दे रहे हैं । वो चाहते हैं कि Gendercide (यहाँ कन्या की बात करते हैं) अर्थात कन्या जेंडर को विलुप्त होने से बचाना है तो पेड़ लगाएं। अगर आपके घर में बेटी जन्म लेती है तो आप उसके लालन-पालन की चिंता ताख पर रख दीजिये, उसको क़ाबिल बनाने के बारे में तो आप कल्पना भी मत कीजिये।बस उसकी शादी की चिंता में आप दुबराना शुरू कर दीजिये । आप इतना मान के चलिए कि वो पढ़े कि न पढ़े, अपने पैरों पर खड़ी हो कि न हो, लेकिन उसकी शादी ज़रूर होनी चाहिए और आपको उसके दहेज़ की चिंता में, उसके पैदा होते साथ आकण्ठ डूब जाना चाहिए। 

आपको उसके लिए 'नर्सरी' बनाने से पहले, भाग कर किसी 'नर्सरी' में जाना चाहिए, वहाँ से आप पांच पौधे ख़रीदें, उसे घर लेकर आयें। आप इस बात की बिलकुल भी चिंता न करें कि आप कहाँ रहते हैं, काहे से कि ऊ मान कर चल रहे हैं, हर बेटी के बाप के पास अपना 'फ़ार्म' होगा, सब सैनिक फ़ार्म में रहते हैं, फ़ार्म हाऊस  लेकर। ऊ मान कर चल रहे हैं कि हर बेटी के बाप के पास, घर भले न हो दो-चार बीघा खेत ज़रूर होगा, जिसके किनारे आप ई पाँच पौधे लगा सकते हैं । चलिए, जहाँ भी आप रहते हैं, डी डी ए फ़्लैट में, झुग्गी में, एल आई जी, एम् आई जी, जनता फ़्लैट, पहला माला हो या पाँचवाँ माला, जमीन हो या न हो बस आप पांच पौधे तो लगा ही दीजिये.. और कहीं नहीं तो घर में खिड़की तो होयबे करेगी, उसीमें लटका दीजिये ।  फिर आप इत्मीनान से उनमें रोज़-रोज़ प्रेम से पानी डालिये, उनको सींचिये । अरे पानी का चिंता में मत दुबराईये, रोज दिन आपको दू-चार हज़ार लीटर पानी का ऊ व्यवस्था करवा देंगे, बिना सोचे-समझे ऊ कौनो बात नहीं करते हैं न.… आप भी जल्दीबाज़ी मत कीजियेगा, पूरे १८-२५ साल तक पानी देते रहिये। ई ऐसा-वैसा पौधा नहीं न हैं, ई सब आपके लिए कल्पतरु बनने वाले हैं । आप नहीं जानते ई पौधा सब, जो तब तक शायद पेड़ बन जाएँ, आपकी खिड़की में टंगे-टंगे, आपकी बिटिया के लिए दहेज़ का इंतज़ाम कर देंगे । देखिये तो केतना बढ़ियाँ बात बता दिए। आपको आपकी बिटिया को पढ़ाने-लिखाने की भी कोई ज़रुरत नहीं हुई, उसके उज्जवल भविष्य के बारे में आपको सोचना भी नहीं पड़ा। बस पेड़ लगा दिए और आपकी जिम्मेंदारी ख़तम हो गई। बेटी स्वरुप मुसीबत से पीछा छुड़ाने का महामंत्र हमारे भावी प्रधानमन्त्री आपको दे ही दिए । अरे हाँ ! 'आम' का पेड़ लगाईयेगा तो और अच्छा रहेगा, कम से कम आम आपको याद दिलाएगा कि आप कितने 'आम' हैं, आम भी खाईये और बेटी का बियाह भी रचाईये, यूँकि आम के आम और गुठलियों के दाम :) 

बस तो, अब देर कौन बात का कूद जाईये बेटी के लिए दहेज़-जोगाड़ के महान आंदोलन में । टिप आपको बता दिया गया है और आपकी बिटिया का भविष्य बैठ-बैठे सँवार भी दिया गया है । बस कुछ महीने में ई संसद से पारित होकर कानून भी बन जाएगा कि जिस-जिस घर में बेटी पैदा होगी उसको पाँच पौधा लगाना ही होगा और टिम्बर बेचना होगा, बेटी का शादी के लिए । अगर जगह नहीं है तो का हुआ, १८-२५ साल में कैसा भी पौधा होगा, 'दतुवन' तो दे ही देगा। वही बेच कर बेटी का शादी कर दीजिये और जो ऊ भी न हुआ तो बाराती का खाना बनाने के लिए भाड़ झोंकने का काम में तो आईये जाएगा। अब इससे बेटर इन्वेस्टमेंट के होवे है भला, तुस्सी ही दस्सो जी  !!! :):) तो जी,  इसी रस्ते चले चलिए,  कन्या को 'निपटाईये', कन्यादान कीजिये और लगे हाथों अपना इहलोक-परलोक सुधार लीजिये । ये है रोड टू प्रॉस्पेरिटी का मूल मन्त्र। काहे बेफजूल में कन्या की पढ़ाई लिखाई के खटराग में पड़ना।कन्या तो वैसे भी पराया धन है, कन्या के लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई में खर्च करना वैसे भी लगता है जैसे पडोसी के बाग़ में पानी दे रहे हैं । वैसे भी एक दिन उसको इस घर से डोली में चढ़ कर अपने घर जाना ही है, और उस घर से अर्थी पर ही निकलना है । इतनी ही तो औकात होती है कन्याओं की । अब जब कन्या पैदा हो ही गई है तो शादी करें इसकी और छुट्टी पाएँ बाकी जो इसकी किस्मत और क्या कर सकते हैं भला ???? 

इसी को कहा जाता है Good Governance Agenda… हाँ नहीं तो !!!

(तो जनाब ये पॉलिसीस होने वालीं हैं देश की आधी आबादी के लिए । अब हम पूछते हैं, दहेज़ देने की ज़रुरत ही क्यों होनी चाहिए ? हमारे भावी प्रधानमन्त्री दहेज़ की वकालत ही क्यों कर रहे हैं ? दहेज़ उन्मूलन कानून का क्या होगा ?? और अगर ये लड़की की शादी के खर्चे की बात है तो, बेटे की शादी में भी खर्च होता है, फिर बेटे के जन्म पर क्यों नहीं कहा जा रहा पेड़ लगाओ और यह सजेशन डेफिनेटली पर्यायवरण के संरक्षण के लिए भी नहीं है । फिर ये है क्या कोई बतायेगा ???? )

धन्य हो प्रभु !!!

  

Sunday, January 26, 2014

धर्मांतरण का नशा....


कल एक डॉक्युमेंटरी फ़िल्म देखे 'Silence in the House of God', देख कर मन ऐसा खौराया कि कुछ लिखने का मन कर गया । कुछ और भी फ़ैक्ट देखना था इसलिए अंतरजाल की शरण में चले गए । गूगल में डुबकी लगा कर जो निकाल कर ला पाये हैं वही परोस रहे हैं, लेकिन जो तथ्य परोस रहे हैं उसकी सत्यता पर हमको रंच मात्र भी संदेह नहीं है, आप लोग भी जान लीजिये इन सफ़ेदपोशों की काली करतूतों के बारे में और हाँ अगर मौका लगे तो डॉक्युमेंटरी फ़िल्म Silence in the House of God ज़रूर देखें। इन फादरों द्वारा यौन शोषण के भुक्त भोगी, जो न सिर्फ छोटे-छोटे अबोध बच्चे थे, वो मूक-बधिर भी थे, जो अपनी व्यथा अपने माता-पिता से भी कहने की स्थिति में नहीं थे, उनकी हृदयविदारक आपबीती देख-सुन कर मन खिन्न हो गया है । :(:(

सन् 1999 की दीपावली का पर्व था, सम्पूर्ण भारतवर्ष दीपोत्सव मनाकर असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय , मॄत्योर्माअमॄतं गमय की कामना कर रहा था वहीँ दूसरी तरफ, राजधानी दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में रोमन कैथोलिक चर्च के पोप, जान पाल द्वितीय अपने अनुयायियों को बता रहे थे कि किस तरह ईसा की पहली सहस्राब्दी में यूरोपीय महाद्वीप को कैथोलिक चर्च ने अपनी गोद में घसीट लिया, दूसरी सहस्राब्दी आते-आते उत्तर और दक्षिणी महाद्वीपों व अफ्रीका पर चर्च का वर्चस्व स्थापित हो गया और अब तीसरी सहस्राब्दी में भारत सहित, एशिया महाद्वीप की बारी आ चुकी है । इसलिए कैथोलिक चर्च में जितने भी धर्मगुरु हैं, भारत में धर्मांतरण  के कार्य में अपनी पूरी ताकत लगा दें ताकि सबका कल्याण हो जाए । पोप दावा कर रहे थे कि ईसा और चर्च की शरण में ही आकर मानव जाति को अपने पापों से मुक्ति तथा स्वर्ग का साम्राज्य मिलना संभव है। 

जब पोप साहब भारत की धरती पर खड़े होकर यह गर्वोक्ति हाँक रहे थे, उसी समय अमरीका और यूरोप में, हजार डेढ़ हजार साल पहले धर्मान्तरित कैथोलिक ईसाइयों के वंशज, पोप के दरबार में अपना माथा पटक रहे थे कि हमें अपने बिशपों-पादरियों के यौन शोषण से बचाओ। वो चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे, तुम्हारा चर्च ऊपर से नीचे तक पाप में डूबा हुआ है । लेकिन वेटिकन के कानों में जूँ तक नहीं रेंग रही थी ।

ईसाई धर्म के अंतर्गत अनेक चर्च या मिशन हैं, मसलन जर्मन मिशन, एस पी जी मिशन, सेवेंथ डे एवेन्टिस्ट, लूथेरन मिशन, ऑर्थोडॉक्स इत्यादि, जिन में रोमन कैथोलिक चर्च, संख्या, बल और प्रभाव में सबसे अग्रणी भी है, और सबसे ज्यादा पापाचार में लिप्त भी । इस चर्च के भीतर किशोरों-किशोरियों के साथ यौन-शोषण जैसा पापाचार कब से फैला हुआ है, ये निश्चित करना ज़रा कठिन है । पूरे संसार में शायद ही कोई रोमन कैथोलिक चर्च हो जहाँ यह कर्म न हो रहा हो । लेकिन पाप का घड़ा तो भरता ही है और भर कर फूटता भी है, तो इनके भी दिन पूरे हुए ।


सन् 1963 में इस पापाचार के विरुद्ध, विद्रोह के स्वर उभरने शुरू हो गए थे और  इसके पुष्ट प्रमाण भी उपलब्ध हैं। 27 अगस्त, 1963 को अमरीका में न्यू मैक्सिको स्थित "सर्वेन्ट्स आफ दि होली पोर्सलीट" नामक कैथोलिक प्रतिष्ठान के प्रमुख ने, किशोरों के यौन शोषण में लिप्त पादरियों को सुधारने में असफल होने के पश्चात,  तत्कालीन पोप जॉन पाल षष्ठम् को पत्र लिखा था और उनको अवगत कराते हुए अनुरोध भी किया था कि मासूम किशोरों के साथ यौन शोषण जैसे जघन्य कृत्य  में लिप्त पादरियों को, तुरंत उनके पदों से बर्खास्त किया जाए और चर्च से निष्कासित भी किया जाए। उस पत्र से विदित होता है कि पादरियों द्वारा यह व्याभिचार कई दशकों से चल रहा था और तारीफ की बात यह भी है कि वेटिकन को इस कुकृत्य की पूरी जानकारी भी थी ।  उस पत्र के लेखक फादर गेराल्ड फिट्ज गेराल्ड ने अपनी शिकायत के साथ, पोप से भेंट भी की थी और अगले ही दिन उन्होंने अपने शिकायती पत्र को रजिस्टर्ड भी कर दिया था ।

फादर फिट्ज गेराल्ड की इस लिखित शिकायत को वेटिकन ने न सिर्फ अनसुनी कर दी, बल्कि चर्च के हित का गाना गाते हुए सिरे से खारिज़ भी कर दिया  । तब से अब तक पोप की गद्दी पर चार नये चेहरे विराजमान हो चुके हैं-जॉन पाल षष्ठम्, जान पाल द्वितीय (26 वर्ष) और 2005 से बेनेडिक्ट सोलह और अब पोप फ्रांसिस । इस दरम्यान अमरीका और यूरोपीय देशों से कैथोलिक चर्च में व्याप्त यौन-शोषण जैसे पापाचार के विरुद्ध लगातार शिकायतें आतीं रहीं और वेटिकन तथा प्रत्येक महामहीम पोप इस बारे में  मौन साधे बैठे रहे । ये मत सोचिये, किशोर बालक-बालिकाओं के यौन शोषण का यह पापाचार एकाध देश या दो-चार पादरियों तक सीमित रहा है, पूरा रोमन कैथोलिक चर्च ही उसमें लिप्त नज़र आता है। यही एक कारण है कि चर्च के अस्तित्व की रक्षा हेतु सारे पोप इन शिकायतों को अनसुना करते रहे हैं । पादरियों के पापाचार के शिकार लोगों की संख्या इतनी बड़ी है कि अमरीका और यूरोपीय देशों  में इसके विरुद्ध अनगिनत मंच गठित हो गये हैं और उनकी सार्वजनिक अपील पर हजारों भुक्तभोगी, जो कल तक चुप थे, अब खुलकर सामने आ रहे हैं। नीदरलैंड में 1995 में ही "हेल्प एंड लॉ लाइन" बन गयी थी। अमरीका में "सर्वाइवर्स नेटवर्क फार एब्यूज्ड बाई चर्च" नामक मंच बना है। इन मंचों के बनने से पीड़ितों में साहस आया है। वे पहले अपने को अकेला समझ कर, या दूसरे दबाव के कारण चुप रहते थे, अब अपने जैसों की भारी भीड़ देख कर उसके अंग बनते चले गए । नीदरलैंड में पहले मुश्किल से 10 भुक्तभोगी सामने आये, परन्तु ऐसे मंचों की सहायता से हज़ारों पीड़ित सामने आ गए । जर्मनी में सहायता केन्द्र खुलने की घोषणा होते ही तीन दिन में 2700 शिकायतें आ गयीं। पोप बेनेडिक्ट के गाँव के ही चर्च में व्याप्त दुराचार पर 173 पृष्ठ लम्बी रपट तैयार हो गयी।

सोचनेवाली बात यह है कि पापाचार को रोकने से अधिक महत्वपूर्ण वेटिकन के हित क्या हो सकता है ? कैथोलिक ईसाई मत के अनुसार सम्भोग को ही पाप माना गया है। इस मतानुसार मनुष्य का जन्म ही पाप कर्म में से होता है अर्थात जो नवजात जन्म लेता है वो ऑलरेडी पापी होता है, वो अपने सर पर पाप की वो गठरी लेकर धरती पर आता है, जिससे उसका कोई लेना-देना नहीं है,  वो उस ऑरिजिनल सिन का मारा होता है, जो आदम और हौवा ने गार्डन ऑफ़ ईडेन में किया था  !!!!!!!   ईसाई मत का यही मानना है कि इस पाप कर्म से बाहर निकलने पर ही मनुष्य का उद्धार संभव है । यदि चर्च सचमुच इस मत पर विश्वास करता है तो चर्च को ऐसे पापाचारी पादरियों से मुक्त करना उसकी पहली चिंता होनी चाहिए। लेकिन वेटिकन का तो लक्ष्य ही कुछ और है, जिसकी फ़िक्र में वो ऐसे कुटिल और पापी पादरियों को संरक्षण दे रहा है और नये-नये क्षेत्रों में धर्मांतरण की फसल काटने में जुटा हुआ है।

वेटिकन ने इन शिकायतों के बारे में बड़ा ही सरल सा रास्ता अपनाया है कि जिस पादरी के विरुद्ध यौन दुष्कर्म करने की शिकायत मिले, उसका फ़ौरन रातों-रात तबादला कर दो, या फिर उसका दायित्व ही बदल दो। 

पापाचार के आरोपों और अपराधियों की सूची इतनी लम्बी है कि उनकी गिनती ही सम्भव नहीं है । इस पापाचार में वेटिकन की संलिप्तता इतनी स्पष्ट है कि अब निराश श्रद्धालु विद्रोह करने पर उतारू हो गए हैं। मार्च 2010 में आस्ट्रिया में बीस हजार कैथोलिकों ने चर्च छोड़ने की घोषणा कर दी ।

चारों ओर से उमड़ती आंधी के विरुद्ध वेटिकन का आरोप है कि हमारे विरुद्ध दुष्प्रचार की यह आंधी अमरीका की यहूदी लाबी और विश्व के इस्लामवाद ने खड़ी की है। वेटिकन का यह भी कहना है कि ईसाइयों का एक वर्ग पोप का इसलिए विरोध कर रहा है क्योंकि उन्होंने भ्रूणहत्या व समलैंगिक यौनाचार के विरुद्ध कड़ी भूमिका अपनायी है। किंतु कहना और करना में कितना फर्क है, यदि चर्च और पोप सचमुच समलैंगिक यौनाचार के विरुद्ध हैं तो अनेक देशों के अनेक पादरी और बिशप जो इसी दुष्कर्म में आकण्ठ लिप्त हैं और उनके विरुद्ध शिकायतों का अम्बार लग चुका है, उन शिकायतों की वेटिकन ने जांच क्यों नहीं की ? पापाचारी पादरियों की सार्वजनिक भर्तस्ना क्यों नहीं की? उन्हें चर्च से निष्कासित क्यों नहीं किया? गरीब और पिछड़े वर्गों का धर्मांतरण करने के पूर्व अपने घर का शुद्धिकरण करना आवश्यक क्यों नहीं समझा? अब जब पानी सिर से ऊपर चला गया तब वेटिकन की आँख ज़रा सी खुली है और अब वो थोडा-बहुत अपना मुंह भी खोल रहा है । 

यूरोप और अमरीका से उखड़ने के बाद, अब चर्च भारत जैसे देश में गरीब और अबोध जनजातियों व दलित वर्गों के धर्मांतरण पर पूरी शक्ति लगा रहा है। इसके लिए राज्यशक्ति का भी उपयोग कर रहा है। समुद्र तटवर्ती जिलों में धर्मांतरण का अभियान तेजी से चलाया जा रहा है। इसके लिए वो साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपना रहा है । उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या से प्रगट हुआ कि चर्च धर्मांतरण में बाधक तत्वों को हटाने के लिए माओवादी मुखौटों का भी इस्तेमाल कर रहा है।


यदि वेटिकन में थोड़ी भी आध्यात्मिक चेतना शेष है तो उसे धर्मांतरण को बंद करके पहले अपना घर सही करना चाहिए । नैतिक आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। इससे भी अधिक अच्छा होगा कि वह विश्व भर में फैले अपने विशाल संगठन तंत्र को भंग कर लोगों को अपने आध्यात्मिक विकास का मार्ग खोजने के लिए स्वतंत्र छोड़ दे । अपने पाप के निशान मिटाने के लिए हर साल ७०० मिलियन डॉलर खर्च करने वाले वैटिकन से ये सवाल लाज़मी है कि क्या वो ऐसा कर सकता है ????

दूसरी बात जो अब लोगों को खटकने लगी है, वो है वेटिकन के आस्तित्व की। ब्रिटेन में वेटिकन को एक राज्य का दर्जा दिये जाने पर भी आपत्ति उठायी जा रही है। वेटिकन को एक राज्य है या केवल एक उपासना पंथ का मुख्यालय? अब यह प्रश्न भी सिर उठाने लगा है। पोप को एक धार्मिक नेता के साथ-साथ राज्याध्यक्ष का सम्मान क्यों दिया जाता है? क्यों वेटिकन को संयुक्त राष्ट्र संघ में पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है? क्यों वेटिकन को प्रत्येक देश में अपने राजदूत नियुक्त करने का अधिकार मिला है? क्या वेटिकन किसी भी देश के कानून से ऊपर है?

Friday, January 24, 2014

महारानी एलिजाबेथ से भी अमीर हैं सोनिया गांधी.....


अंग्रेजी अखबार हफिंगटन पोस्ट वर्ल्ड ने दुनियाभर के 20 सबसे ज्यादा अमीर नेताओं की एक लिस्ट जारी की है। इस लिस्ट में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को दुनिया के 20 धनकुबेर राजनेताओं की सूची में 12वें नंबर पर रखा है।
दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका के राष्‍ट्रपति बराक ओबामा इस सूची में काफी पीछे हैं। क्‍वीन एलिजाबेथ और प्रिंस ऑफ मोनाको एल्‍बर्ट द्वितीय से भी ऊपर लिस्‍ट में सोनिया को 12वें स्थान पर रखा गया है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास कितनी संपत्ति है? चुनावों के वक्त सोनिया के हलफनामे को आधार मानें तो उनकी कूल संपत्ति सिर्फ 1.38 करोड़ रूपए है। एसोशिएसन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की वेबसाइट नेशनल इल्केशन वाच के मुताबिक सोनिया गांधी के पास न ही अपनी कार और न ही भारत में अपना घर है।
लेकिन 'हफिंगटन पोस्‍ट' द्वारा जारी की गयी लिस्‍ट में सोनिया गांधी की संपत्ति 2 अरब डॉलर (सवा खरब रुपए) बताई गई है जो हलफनामे में बताये गए संपत्ति से लगभग 8989 गुना अधिक है। सोनिया गांधी की संपत्ति ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ (द्वितीय)  से 400-500 मिलियन अमेरिकी डॉलर अधिक बतायी गयी है।
'हफिंगटन पोस्‍ट' की इस लिस्‍ट में सबसे पहला नाम रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादीमिर पुतिन का है जिनकी कुल संपत्ति 40 अरब अमेरिकी डॉलर (2,40,000 करोड रूपए) आंकी गई है। दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका के राष्‍ट्रपति बराक ओबामा इस सूची में काफी पीछे हैं।
इस अखबार ने ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ, ओमान के सुल्तान, मोनाको के राजकुमार और कुवैत के शेख के दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति बराक ओबामा की संपत्तियों को भी शामिल किया है। सोनिया गांधी इन सबसे अमीर हैं। क्‍वीन एलिजाबेथ और प्रिंस ऑफ मोनाको एल्‍बर्ट द्वितीय से भी ऊपर लिस्‍ट में सोनिया को 12वें स्थान पर  रखा गया है।

Wednesday, January 22, 2014

मोरनी बागाँ मा बोले आधी रात मा .... !!

आज अचानक ये नज़र आ गया.… प्रज्ञा (मेरी बिटिया ) और उसकी एक सहेली ने दिवाली में नृत्य  किया था :), इस नृत्य की ख़ास बात ये है कि मात्र दो घंटे की प्रैक्टिस के बाद इन दोनों को मैदान-ए-जंग में उतार दिया गया था :)

Monday, January 13, 2014

कोई माने या न माने, कुछ तो अंतर है !



प्रजा-तंत्र और राज-तंत्र में ये फर्क होता है :)

जनता के असली सेवक कुर्सी का लोभ छोड़ जमीन पर उतर आते हैं, जबकि दूसरे……………………… :)

चाँदी के बर्तनों में खाने वाले सूखी रोटी का स्वाद अब कैसे बताएँगे ?

Saturday, January 11, 2014

बचना है तो बच ही जाओ, शामत अब तुम्हारी है ......

पथरीले बिस्तर पर सोना, क़िस्मत है, लाचारी है  
पर नरम बिछौनों की भी तो अपनी ही दुश्वारी है 
कौन उतरना चाहेगा, ग़ैर के गँदले आँगन में  
जब हर आँगन की अपनी ही ऊँची चहारदीवारी है 
जीती है आवाम यहाँ, चुल्लू भर पानी पीकर 
वो लूट गए अरबों-खरबों, जैसे रेज़गारी है  

जी लेते हैं 
वो अक्सर, दमड़ी-दमड़ी गिन-गिन कर 
पिन्दार-ए-तमन्ना बचा के रखना, ख़ुदकी जिम्मेदारी है 

बिजली हो या पानी हो, जब भी हमने हक़ माँगा 

वो कहते हैं, अजी बात सुनो, ये मुआमला ज़रा सरकारी है
कुछ लोग अंधेरों में जीते हैं, और वहीँ मर जाते हैं   
ऐसे सिरफिरों के लिए तो रौशनी इक बीमारी है !

तौक़-ए-आईने की इजाज़त, कमशक्लों को नहीं होती है    
तकते रहना आधी सूरत, कहाँ की समझदारी है  ?

ललकार रहे मिलकर सारे, हम जैसे सोज़ निहत्थों को 
फिर कहते हैं तुम चाल चलो, अब अगली चाल तुम्हारी है

अब जान का सदक़ा भी लेना, जब जान पे सबकी बन आये  
इतनी जानों की किस्मों में, उम्दा जान तुम्हारी है

तेरे पैंतरे लूट के ऐसे, कुछ बच जाए तो बड़भागी  
हम नामाक़ूल शिकार के पीछे, वो माक़ूल शिकारी हैं 

हाज़िर तो हो जाते हैं 'अदा', हम उनके ख़ैरमक़्दम को  
पर उनका आना, क्या आना, यूँ लगे ज्यूँ मालगुज़ारी है 

मोड़ के ही रख देना है रुख़, वक्त के बहते धारे का   
बचना है तो बच ही जाओ, शामत अब तुम्हारी है 

(पिन्दार = गुरूर)
(तौक़ = इच्छा)
(सोज़ = आवेशपूर्ण)
(ख़ैरमक़्दम= स्वागत )






Thursday, January 9, 2014

व्यक्ति पूजा की पराकाष्ठा !!!

'व्यक्ति पूजा' की पराकाष्ठा इसे कहते हैं !!! धर्म का मज़ाक बनाना इसे कहते हैं । 
किसी को भी भगवान् बना देना ?? क्या ऐसे क़दम हमारे आराध्यों की सत्यता और आस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाते ??
एक और देवी का जन्म हुआ है, उनको देवी स्वरुप स्वीकारने का अनुमोदन भी सरकारी तंत्र ने कर दिया । ये रहीं 'देवी सोनिया'। ख़ुशबू , सचिन तेंदुलकर, रजनीकांत, एम. जी. रामचंद्रन,  अभिताभ बच्चन इत्यादि देवी-देवताओं के प्रादुर्भाव के बाद के बाद, ये रहा ब्रैंड न्यू शगूफ़ा। 

ये सब देख कर हमारे छत्तीस करोड़ देवी-देवताओं की बात पर यक़ीन करने को अब जी करता है :) 

किस-किस को पूजिये, किस-किस को गाईये 
असंख्य देवी-देव हैं, बस मुंडी घुमाइये  :):)

बकिया का बतकूचन ईहाँ देखिये :
http://www.ndtv.com/article/south/a-goddess-sonia-temple-congress-legislator-s-thank-you-for-telangana-decision-468546
Congress legislator Shankar Rao claims he has shown the prototype of the 'Goddess Sonia' idol to some Congress leaders at the Centre and got their approval.

Tuesday, January 7, 2014

हमारी प्रार्थनाएँ आपके साथ हैं....!

 दह्यमानाः सुतीत्रेण नीचा पर-यशोऽगिना।
 अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकृर्वते।।
    

‘‘दुर्जन आदमी दूसरों की कीर्ति देखकर उससे ईर्ष्या करता है और जब स्वयं उन्नति नहीं कर पाता तो प्रगतिशील आदमी की निंदा करने लगता है।’’
  


मुझे अरविन्द केजरीवाल पर नाज़ है, क्योंकि उन्होंने देश में फैली अराजकता, अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ न सिर्फ आवाज़ उठाई, बल्कि उसे जड़ से ख़त्म करने का प्रण लिया । वो अपने कर्तव्य पथ पर इसी तरह निर्भीक आगे बढ़ते रहें, हमारे जैसे लोग उनके साथ हैं । ये समस्या दूर होती है या नहीं ये अलग बात है लेकिन ऐसी पहल ही अपने आप में ऐतिहासिक है । उन्होंने जो रास्ता चुना है वो कठिन ज़रूर है और अभी उन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना है, लेकिन हम सभी को विश्वास है वो हर अड़चन पार कर लेंगे । मुख्यमंत्री जैसे उच्च पद पर होते हुए भी निर्धनता को स्वीकारना पड़ेगा उनको लेकिन वो असाधारण प्रतिभा के धनी हैं, और इस समय इस मामले में उनसे धनी इस राजनैतिक मैदान में कोई नहीं ।  

हम जैसे साधारण लोग अपने बच्चों को ईमानदार, प्रगतिशील और प्रतिभावान भारत, विरासत में देना चाहते हैं । हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे हिन्दू, मुसलमान, ईसाई होने से बहुत पहले, बहुत ही अच्छे इंसान हों और बहुत अच्छे नागरिक हों । हमें पूरा विश्वास है, अरविन्द हमारे इस सपने को साकार करके रहेंगे और इस दुरूह काम को करने के लिए हमारी आने वाली अनगिनत पीढ़ियाँ उनकी कृतज्ञ रहेंगी। वर्ना न जाने हमारी आनेवाली पीढ़ियाँ इस अराजकता, अन्याय और भ्रष्टाचार के दलदल से कभी उबर भी पातीं या नहीं । हमारी प्रार्थनाएँ अरविन्द केजरीवाल के साथ हैं । 


अच्छा लगता है देखकर कुछ गुणीजन इस मुहीम में शामिल हो गए हैं :

Some new members of AAP ....
1. मीरा सान्याल- Royal Bank of Scotland
की CEO
2. रामदास पई- मनिपाल यूनिवर्सिटी के Chairman
3. अनिल शास्त्री- लालबहादुर शास्त्रीजी के पोते,
Apple के Sales Head
4. संजीव आगा- Idea के पूर्व-CEO
5. बालासाहब पाटिल- ISRO के पूर्व-Deputy
Director
6. वी बालाकृष्णन- Infosys के पूर्व-CFO
7. अतुल शुक्ला- LIC के पूर्व-Chairman
8. कैप्टन गोपीनाथ- देश
की पहली सस्ती एयरलाइन्स Air Deccan के
Founder

Wednesday, January 1, 2014

कौन बनेगा प्रधानमंत्री ?


मेरे विचार से, हमारे देश के अगले प्रधानमन्त्री पद के लिए 'अरविन्द केजरीवाल' से बेहतर विकल्प दूसरा कोई नहीं है । 


He is born leader. He is proactive, young, bright, brilliant, bold, smart, intelligent, dedicated, strong headed, down to earth and above all he knows what he is doing. He is a man of courage who does not run away, but stands in-front of his opponents and fights for the cause. I am sure, he is  the right man for the job. 

In-fact, he is THE BEST MAN for this post.


वैसे अरविन्द को देख कर हमको एक फ़िल्म की याद आ जाती है, अनिल कपूर की फ़िल्म थी 'नायक' :):) बस एक बार ऐसे ही टाईप राईटर लेकर वो चलें और चुन-चुन कर भ्रष्ट लोगों को सस्पेंड करते जाएँ, फिर तो क्या बात होगी और हमको पूरा यक़ीन है, वो अपनी झाड़ू से पूरी सफ़ाई करके ही मानेंगे । हम तो जी अरविन्द केजरीवाल की फैन हो गई हूँ।  ये हमरे अपने विचार हैं । हमरे हसबैंड तो पूरे भा.ज.पा. हैं, ग़लती से अगर ऊ पढ़ लिए तो चिढ़ कर भूसा हो जायेंगे :) :) वैसे हम डरते-उरते नहीं हैं काहे से कि ऊ पढ़ते-उढते नहीं हैं, बहुते बीजी आदमी हैं :):) 

अब ज़रा ई बताईये आपलोग  क्या सोचते हैं ? 

अरविन्द केजरीवाल को अगर प्रधानमन्त्री बनना चाहिए तो क्यों बनना चाहिए , और अगर नहीं बनना चाहिए तो क्यों नहीं बनना चाहिए ??

नया साल है, नया माहौल है, नए लोग हैं इसलिए चलिए कुछ नए विचार ही साझा करते हैं । आप अपने विचार बेधड़क यहाँ रखिये, बस भाषा का ख़याल रखियेगा, बाकि तो देखी जायेगी :) 

नव वर्ष की असीम शुभकामनायें !!