Saturday, August 28, 2010

हर मौज मगर क्यूँ लगती ज्यूँ, दामन हो साहिल का...!


चल रहा काफ़िला दबे पाँव, धीरे-धीरे दिल का 
और मुझे भी होश कहाँ, रास्तों का मंज़िल का 

किस क़ातिल की छाया है, क्या गज़ब करिश्मा छाया   
गली-गली हर मोड़ पे दिखता, रक्स किसी घाईल का

प्यासे-प्यासे होंठ भी देखे, चिराग़ भी हैं बुझे-बुझे 
रंग अजब सा निकला यारा, आज तेरी महफ़िल का 

दिल थाम के बैठ गए जब घिर आया तूफ़ान,
हर मौज मगर क्यूँ लगती ज्यूँ, दामन हो साहिल का

रक्स=नाच
मौज=लहरें
साहिल=किनारा  
घाईल=घायल 



गीत तो आप सुन चुके हैं लेकिन फिर सुन लीजिये...
चंदा ओ चंदा....
आवाज़ 'अदा'

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20 comments:

  1. बहुत पहले एक शेर कहीं पढ़ा था, पूरी तरह से याद नहीं आ रहा -
    कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफ़ां का नजारा करते हैं,
    जिन्हें नींद में भी चलने की आदत हो, मत पूछो कैसे रात गुज़ारा करते हैं।
    ऐसा ही कुछ था, आपकी पोस्ट पढ़्कर एकदम से याद आ गया। nothing personal, nothing else, आपकी पोस्ट से मिलता जुलता था, इसलिये याद आ गया। कन्फ़्यूज़न हम भी नहीं चाहते हैं जी, हा हा हा, याद कीजिये आपका कमेंट। हिसाब बराबर:)
    अब जो लिख रहा हूँ, सोचता हूँ इसे कापी करके ही रख लेता हूँ। आपकी हर पोस्ट पर कमेंट बॉक्स में पेस्ट भर कर दिया करेंगे।
    चित्र, पोस्ट और गाना, तीनों में बहुत टफ़ मुकाबला है कि सबसे बेहतरीन कौन है।
    तीनों।
    सदैव आभारी।

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  2. "दिल थाम के अब हम बैठ गए, और घिर आया तूफ़ान,"

    दिल थाम के बैठे है, क्या होगा मौज़ू अगली गज़ल का :)

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  3. बहुत ही प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!

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  4. कई बार पढ़ चुका हूँ जी आज की पोस्ट, और हर बात नये रंग नये आयाम दिखाती है ये पोस्ट।
    @"चल रहा काफ़िला दबे पाँव, धीरे-धीरे दिल का
    और मुझे भी होश कहाँ, रास्तों का मंज़िल का"
    - चलना ही जिंदगी है जी। अपने को तो खुद मंजिल से ज्यादा रास्ते आकर्षित करते हैं। और रास्ते भी हसीन न हों तो भी चलना ही अच्छा लगता है। keep moving.
    बहुत अच्छी पोस्ट लगी है हमें, और गाना लाजवाब।
    आभारी।

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  5. बहुत ही बेहतरीन रचना.....

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  6. गाना नही सुन पा रहा हूं../..

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  7. आपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ....वहाँ आपका स्वागत है ..

    http://charchamanch.blogspot.com/
    .

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  8. मासूमियत भरी आवाज़ के साथ बेहद सुरीला गायन...

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  9. दिल थाम के बैठ गए जब घिर आया तूफ़ान,
    हर मौज मगर क्यूँ लगती ज्यूँ, दामन हो साहिल का...

    सफिने पर जो कश्तियाँ डूब जाया करती हैं ...
    वो भी क्या साहिल की तमन्ना रखती हैं ...!

    बहुत बढ़िया मनभावन ग़ज़ल ..
    गीत तो बढ़िया होता ही है ..!

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  10. चल रहा काफ़िला दबे पाँव, धीरे-धीरे दिल का
    और मुझे भी होश कहाँ, रास्तों का मंज़िल का
    ...बहुत ही बेहतरीन

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  11. बेहतरीन.....जितनी उम्दा ग़ज़ल उतना ही उम्दा आपका गायन भी| वाह....सुबह सुबह पहला ब्लॉग पढ़ना ही सफल हुआ|

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  12. दिल थाम के बैठ गए जब घिर आया तूफ़ान,
    हर मौज मगर क्यूँ लगती ज्यूँ, दामन हो साहिल का
    ...bahut sundar gajal

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  13. दिल थाम के बैठ गए जब घिर आया तूफ़ान,
    हर मौज मगर क्यूँ लगती ज्यूँ, दामन हो साहिल का.....
    जिस को हर लहर में किनारा दिखाई देने लगे वह जिन्दगी में कभी मुश्किलों में डोलता नहीं ....
    बहुत कुछ कह रही हैं आप की लिखी पंक्तियाँ ।
    बधाई।

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  14. बहुत सुंदर चारों..ग़ज़ल,स्वर,चित्र और...आप

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  15. तूफान की आमद का खूबसूरत चित्र.

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  16. पता नहीं कैसे ये पोस्ट मुझसे छूट गई थी ! तब तक मो सम कौन ? दो बार महफ़िल लूट चुके हैं ! बस इतना ज़रूर कहूँगा कि उन्होंने जिस शेर का ज़िक्र किया है उसके ज़ज्बात आपसे कतई अलग हैं !
    इसके अलावा उनके कमेन्ट मुझे हूबहू मंज़ूर है !

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