मेरा हिंद !!
मेरे ख़यालों की वादी है
सपनों में आज़ादी है,
मैं आज भी शहीदों
के लिए रोता हूँ,
कर्जे में राष्ट्र को डूबोता हूँ,
पुरखों ने जो खून बहाया है
उसका मुआवज़ा मैंने हर
जगह से उठाया है,
शहीदों की लाशें दफनाई हैं,
लाशों पर चल कर
ही तो आज़ादी पाई है,
वो अगर न मरते
तो हम लाशों पर कैसे चलते !
और फिर मेरे पाँव रूखी सी
ज़मीन पर कितना फिसलते !
अभी मुझे जनसाधारण
को भी समझाना है,
स्विस खाता खुलवाना है
माँ-बहनों को उठवाना है
गुंडे हत्यारों को बचाना है
बाद में जेल भी जाना है
जेलर को धमकाना है
मेरे आराम की व्यवस्था कराना है
क्यूंकि मुझे ये राज भी तो
वहीं से बैठ कर चलाना है
तभी तो कहता हूँ..
मुझे आज़ादी सपनों में
ही भाती है,
अगर ये सच हो गई तो
मैं कैसे बच पाऊंगा,
कहीं न कहीं कभी न कभी
मैं तो पकड़ा जाऊँगा...
यह कविता कुछ पल ठहरकर सोचने पर विवश करती है....
ReplyDeleteसटीक व्यंग ।
ReplyDeleteआज आज़ादी के यही मायने रह गए हैं ।
सही व्यंग है...
ReplyDeleteतभी तो कहता हूँ..
मुझे आज़ादी सपनों में
ही भाती है,
बहुत भारी शब्द हैं ............
अच्छी व विचारणीय प्रस्तुती ,ऐसी आजादी से गुलामी भली थी कम से कम उसमे इतना मक्कारी और बेशर्मी तो नहीं था ...
ReplyDeleteaazaadi ko spnon me jinaa chode aao ab hqiqat men jina sikhen. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteबेहतरीन कविता!
ReplyDeleteजश्ने-आज़ादी से पहले...
ReplyDeleteएक गंभीर चिंतन.
मुझे आज़ादी सपनों में
ReplyDeleteही भाती है,
अगर ये सच हो गई तो
मैं कैसे बच पाऊंगा,
कहीं न कहीं कभी न कभी
मैं तो पकड़ा जाऊँगा...
बहुत सुन्दर कविता.
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसटीक कटाक्ष है,आज़ादी को कुतरने वालों पर।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसन्नाट!!!
ReplyDeleteअच्छा व्यंग ....
ReplyDeleteHello ji,
ReplyDeleteTime ki kammi ki wajah se I cudnt read ur blog... Socha abhi time mila toh saari padd lu...
Kya badiya likha hai hamesha ki tarah aapne...
कहीं न कहीं कभी न कभी
मैं तो पकड़ा जाऊँगा...
Aapke lekhan ke bahut chahne waale hamesha honge... yehi dua hai meri...
Regards,
Dimple
सटीक व्यंग शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहतरीन कविता!
ReplyDeleteसटीक धारदार ब्यंग्य ...
ReplyDeleteमेरा हिंद, मेरे सपनों का हिन्द। क्या से क्या हो गये?
ReplyDeleteSochane par majboor karati rachana.
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