Tuesday, August 10, 2010

मेरा हिंद !! मेरे ख़यालों की वादी है ....


मेरा हिंद !!
मेरे ख़यालों की वादी है 
सपनों में आज़ादी है,
मैं आज भी शहीदों 
के लिए रोता हूँ,
कर्जे में राष्ट्र को डूबोता हूँ, 
पुरखों ने जो खून बहाया है 
उसका मुआवज़ा मैंने हर 
जगह से उठाया है, 
शहीदों की लाशें दफनाई हैं,
लाशों पर चल कर 
ही तो आज़ादी पाई है,
वो अगर न मरते 
तो हम लाशों पर कैसे चलते !
और फिर मेरे पाँव रूखी सी 
ज़मीन पर कितना फिसलते !
अभी मुझे जनसाधारण 
को भी समझाना है,
स्विस खाता खुलवाना है
माँ-बहनों को उठवाना है
गुंडे हत्यारों को बचाना है
बाद में जेल भी जाना है
जेलर को धमकाना है
मेरे आराम की व्यवस्था कराना है
क्यूंकि मुझे ये राज भी तो
वहीं से बैठ कर चलाना है 
तभी तो कहता  हूँ..
मुझे आज़ादी सपनों में 
ही भाती है,
अगर ये सच हो गई तो
मैं कैसे बच पाऊंगा,
कहीं न कहीं कभी न कभी 
मैं तो पकड़ा जाऊँगा...



19 comments:

  1. यह कविता कुछ पल ठहरकर सोचने पर विवश करती है....

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  2. सटीक व्यंग ।
    आज आज़ादी के यही मायने रह गए हैं ।

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  3. सही व्यंग है...
    तभी तो कहता हूँ..
    मुझे आज़ादी सपनों में
    ही भाती है,
    बहुत भारी शब्द हैं ............

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  4. अच्छी व विचारणीय प्रस्तुती ,ऐसी आजादी से गुलामी भली थी कम से कम उसमे इतना मक्कारी और बेशर्मी तो नहीं था ...

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  5. aazaadi ko spnon me jinaa chode aao ab hqiqat men jina sikhen. akhtar khan akela kota rajsthan

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  6. बेहतरीन कविता!

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  7. जश्ने-आज़ादी से पहले...
    एक गंभीर चिंतन.

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  8. मुझे आज़ादी सपनों में
    ही भाती है,
    अगर ये सच हो गई तो
    मैं कैसे बच पाऊंगा,
    कहीं न कहीं कभी न कभी
    मैं तो पकड़ा जाऊँगा...
    बहुत सुन्दर कविता.

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  9. सटीक कटाक्ष है,आज़ादी को कुतरने वालों पर।

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  11. Hello ji,

    Time ki kammi ki wajah se I cudnt read ur blog... Socha abhi time mila toh saari padd lu...

    Kya badiya likha hai hamesha ki tarah aapne...
    कहीं न कहीं कभी न कभी
    मैं तो पकड़ा जाऊँगा...

    Aapke lekhan ke bahut chahne waale hamesha honge... yehi dua hai meri...

    Regards,
    Dimple

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  12. सटीक व्यंग शुभकामनायें

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  13. सटीक धारदार ब्यंग्य ...

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  14. मेरा हिंद, मेरे सपनों का हिन्द। क्या से क्या हो गये?

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