हर ईंट,
मूक साक्षी है,
मूक साक्षी है,
प्यार, तिरस्कार
लगाव, अलगाव
करुणा, क्रूरता
सम्मान, अपमान
विश्वास, अविश्वास
जैसी अनगिनत
जैसी अनगिनत
संवेदनाओं की,
दर्ज हो जाते हैं
प्रत्यक्ष, परोक्ष
रिश्तों के अनगिनत रंग
और
प्रत्यक्ष, परोक्ष
रिश्तों के अनगिनत रंग
और
बाशिंदों के मनोभाव
इन्हीं पत्थरों में
इन्हीं पत्थरों में
जो काल में उतरने लगते हैं,
अफ़सोस !
बेमौसम...
जगमग होते मकानों में
विश्वास के दीये
कितने बुझे होते हैं,
जब तक...
विश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!!
अब एक गीत ...अरे सुन भी लीजिये...इतना भी बुरा नहीं है...!
जब तक...
ReplyDeleteविश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!
ये पंक्तियाँ पढ़ते हुए चेहरे पर एक निर्मल मुस्कराहट आ गयी और मुख से निकला "वाह , क्या भाव हैं "
[गाना सुनना अभी बाकी है]
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
ReplyDeleteजगमग होते मकानों में
ReplyDeleteविश्वास के दीये
कितने बुझे होते हैं,
जब तक...
विश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!!
बेहतरीन भाव लिए आपकी रचना अच्छी लगी
जब तक...
ReplyDeleteविश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!
यकीनन .. मकाँ को घर बनाने के लिये विश्वास का दीया तो जरूरी है ही ...
बेहद खूबसूरत भाव
आप की रचना 20 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
जब तक...
ReplyDeleteविश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!!
सच्चाई को वयां करती अच्छी रचना ,बधाई
इस भौतिक जगत में यह कविता समय चक्र के तेज़ घूमते पहिए का चित्रण है। कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं।
ReplyDeleteविश्वास का
ReplyDeleteएक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!!
Subhaanallah!!! kahe bina nahin rah sake
सहमत हूं मैं आपकी बात से.
ReplyDeleteबहुत ही खूब सूरत रचना है ....
ReplyDeleteमकान से घर तक का शफर रिश्तों की बुनियाद पर ही तय होता है
विश्वास के दियों का प्रकाश ही ईटों में भाव भरता है।
ReplyDeleteBilkul sahi baat kahi aapane is sundar rachana ke madhyam se ....dhanywaad.
ReplyDeleteसुन्दर कविता है अदा जी.
ReplyDeleteकामना करते हैं कि हर मकाँ में विश्वास के दीये जगमगायें और घरों की सँख्या बढ़े।
ReplyDeleteवैसे चित्र तो एकदम जगमग-जगमग है और गाना हमेशा की तरह शानदार। हमारी पसंद की आवाज के बारे में बुरा, इतना भी बुरा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने पर आप पर अवमानना का मुकदमा दायर किया जा सकता है, सोच लीजियेगा। फ़िर बेशक आप कहती रहें कि हम तो मज़ाक कर रहे थे,हां नहीं तो......।
कविता पढ़ी.. पढ़ी.. पढ़ी और बढ़िया लगी..
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDelete--
गीत भी अच्छा है!
जब तक...
ReplyDeleteविश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!!
कितनी सही बात कही है ।
जब तक विश्वास का दिया नहीं जलेगा ...
ReplyDeleteमकान घर नहीं बनेगा ...
बिलकुल सही बात ....
मकानों में अक्सर घर को ढूंढते रहे हैं लोंग ...अपनी एक पुरानी कविता याद आ गयी ...देखूं पलट कर डायरी में शायद मिल जाए ..!
सही कहा आपनें ईंटें केवल साक्षी हो सकती हैं,शॆष सभी कुछ इंसानों से तय होना है ,प्रेम,
ReplyDeleteस्नेह,करुणा,विश्वास से घर या फिर नफरत,
क्रूरता, हिंसा से क़त्लगाह ,मकबरा !
बहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteजब तक...
ReplyDeleteविश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....
-बहुत जबरदस्त!
जब तक...
ReplyDeleteविश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!!
yakeenan
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबेमौसम...
ReplyDeleteजगमग होते मकानों में
विश्वास के दीये
कितने बुझे होते हैं,
जब तक...
विश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा..
बहुत सटीक और सार्थक रचना ....
sundar
ReplyDeleteघर के लिये यह ज़रूरी शर्त है
ReplyDeletenice one
ReplyDeleteजब तक...
ReplyDeleteविश्वास का
एक दीया नहीं जगेगा
'मकाँ', 'घर' नहीं बनेगा....!!
Sahee kahaa aapne !
जबतक
ReplyDeleteविश्वास का एक दिया नहीं जेगेगा
"मकाँ" घर नहीं बनेगा.....
क्या बात कह दी है आपने....आपके और आपके कलम के आगे नतमस्तक हूँ...
बेहतरीन गाया है, ये सच है की पहले पुराने गीतों को सुनते ही मुझे चेनल बदलने की में ही "फील गुड फेक्टर " नजर आता था
ReplyDeleteआजकल परिस्थितिया बिलकुल उलट हैं, मुझे जानने वालों के लिए ये एक आश्चर्य है और तो और तमिल और तेलुगु सोंग्स पर भी मेरी खोज जारी है :)