मैं कल रात उन दीवानों में थी
मेरी नज़रें गुजरे ज़मानों में थी
ये दिल घबराया ऊँचे मकाँ में बड़ा
फिर सोयी मैं कच्चे मकानों में थी
यूँ तो दिखती हूँ मैं भी शमा की तरहां
पर गिनती मेरी परवानों में थी
उसकी बातों पे मैंने यकीं कर लिया
कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी
मेरे अपनों ने कब का किनारा किया
मुझसे ज़्यादा कशिश बेगानों में थी
क्या ढूंढें 'अदा' वो तो सब बिक गया
तेरे सपनों की डब्बी दुकानों में थी
एक गीत आपकी नज़र....
इस दर्द भरे नगमे में एक कसक है... और ये कमेन्ट मैं फालतू अंदाज़ में लिख रहा हूँ.. लेकिन बात सही है दी.. :)
ReplyDeleteमेरे अपनों ने कब का किनारा किया
ReplyDeleteमुझसे ज़्यादा कशिश बेगानों में थी
-बहुत बढ़िया...वाह!
यूँ तो दिखती हूँ मैं भी शमा की तरहां
ReplyDeleteपर गिनती मेरी परवानों में थी
क्या बात है । बिल्कुल नया अहसास ।
बढ़िया अदा जी ।
Hi..
ReplyDeleteJisko aapna samajh ke baithe...
wo sach main begaane the..
Beganon ki kashish jinhe thi...
Wo tujh se anjaane the...
Sundar gazal...
Deepak...
मेरे अपनों ने कब का किनारा किया
ReplyDeleteमुझसे ज़्यादा कशिश बेगानों में थीय़
दूसरे के बर्तन में हमेशा खीर ही नजर आती है।
उसकी बातों पे मैंने यकीं कर लिया
ReplyDeleteकितनी सच्चाई उसके बयानों में थी
बयानों की साजिश है यकीं न करना
शानदार शेर
खूबसूरत गज़ल
क्या बात है अदा जी ! सब ठीक तो है न ?:) गज़ब की कशिश है गाने के अंदाज में :)
ReplyDeleteऔर गज़ल में भी.
यूँ तो दिखती हूँ मैं भी शमा की तरहां
ReplyDeleteपर गिनती मेरी परवानों में थी
बहुत बढ़िया रचना....आभार ....
क्या ढूंढें 'अदा' वो तो सब बिक गया
ReplyDeleteतेरे सपनों की डब्बी दुकानों में थी
ह्रदय के बेहद अन्दर तक गया ये "मक्ता" .
चित्र बेहद बेहद सुन्दर है
[ गाना सुनना अभी बाकी है ]
दीदी ,
इसे मक्ता ही कहेंगे ना ?? क्योंकि इसमें शायर का नाम आया है
बहुत ही सुंदर रचना, बेजोड.
ReplyDeleteरामराम
ये दिल घबराया ऊँचे मकाँ में बड़ा
ReplyDeleteफिर सोयी मैं कच्चे मकानों में थी
बहुत गहरा। आपके चित्र भी संग्रहणीय हैं।
उसकी बातों पे मैंने यकीं कर लिया कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी
ReplyDelete--
बहुत सुन्दर रचना है!
उसकी बातों पे मैंने यकीं कर लिया कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी
ReplyDelete--
बहुत सुन्दर रचना है!
@ गौरव,
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है तुमने...
ग़ज़ल के आखरी शेर, जिसमें शायर का 'पेन नेम' होता है उसे ही 'मकता' कहते हैं ...
पिछले दो चार रोज से देख रहा हूं आप जबरदस्त फ़ार्म में हैं ! सुन्दर गीत !
ReplyDeleteक्या ढूंढें 'अदा' वो तो सब बिक गया
ReplyDeleteतेरे सपनों की डब्बी दुकानों में थी
Behad umda sher ...behatreen gazal.
चित्र बेहद खूबसूरत।
ReplyDeleteगज़ल बेहद दर्दभरी।
गीत में बेहद कशिश।
सदैव आभारी।
मेरे अपनों ने कब का किनारा किया
ReplyDeleteमुझसे ज़्यादा कशिश बेगानों में थी
जबाब नही जी....
उसकी बातों पे मैंने यकीं कर लिया
ReplyDeleteकितनी सच्चाई उसके बयानों में थी
बेहद उम्दा ग़ज़ल..बधाई
@ अली साहब,
ReplyDeleteअब आप जैसे सफल कलमकारों को पढूंगी तो यही होगा...:):)
आपका बहुत बहुत शुक्रिया ...
@ शिखा,
ReplyDeleteबात ई है कि.... जब हम गा रहे थे तो ..मुकेश साहब कुछ ज्यादा ही हावी हो गए हमपर ..
अब क्यूँ हावी हुए ई हमको नहीं मालूम ....पूछते हैं...
ज़रा दूर जाना होगा...:):)
हाँ नहीं तो..!!
थैंक्यू ..!
@ दीपक,
ReplyDeleteतुम्हारा कमेन्ट एक दम सही है...फालतू कहाँ है...:)
दी...
अदा जी बहुत प्यारी गजल है .....बधाई
ReplyDeleteऔर ...
आप की तो गायिकी भी लाजवाब है
दिल डूब जाता है आप की आवाज में तो ...
दीदी,
ReplyDeleteफाइनली आज गाना सुन लिया [technical problems solved ] , बहुत सुन्दर गाया है
अली जी की बात बिलकुल ठीक है , मेरी आदत रही है जब तक अर्थ न समझ लो तब तक कुछ न बोलो,आपकी पिछली कुछ रचनाएं पढ़ कर अर्थ तो समझ में आया पर बोलने के लिए शब्द मिलने बंद से हो गए
इस रचना पर भी कमेन्ट करने से पहले चार बार पढ़ा था :)
मुझसे ज्यादा कशिश बेगानों में थी ...
ReplyDeleteपहले भी पढ़ चुकी हूँ ये ग़ज़ल मगर हर बार इतनी ही खूबसूरत लगी है ...!
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
shabdob me itni gahraai aur samvednaa hoti hai ki waah!!! kiye binaa koi rah hi nahin saktaa
ReplyDeleteRegards
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अदा जी !
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन!......बहुत खूब!
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