फिर सोचेंगे लोग के किधर जायेंगे
ये शहर बस गया है सहर से पहले
ये शहर बस गया है सहर से पहले
ये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
कगार पर पहुँच गए पर उम्मीद है बाक़ी
यकीं है ये दिन भी अब सुधर जायेंगे
शिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं मेरे गेसू
ग़र आईना मिल जाए, ये संवर जायेंगे
यकीं है ये दिन भी अब सुधर जायेंगे
शिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं मेरे गेसू
ग़र आईना मिल जाए, ये संवर जायेंगे
तन्हाई के हंगामों में शामिल है 'अदा'
नज़र भर देख लो हम निखर जायेंगे
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteये शहर बस गया है सहर से पहले
ReplyDeleteये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
बहुत सुन्दर
बस्तियाँ उजाड़कर शहर बसेंगे
bhnji aadaab aapne shehr or gaanv ki zingi ka frq kuch alfaazon men smet kr rkh diyaa he bhut khub likhaa he . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteशिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं मेरे गेसू
ReplyDeleteग़र आईना मिल जाए, ये संवर जायेंगे
आइना हमारे पास ही तो है..., बस धूल जम गई है...धूल हटा दीजिए,जीवन संवर जाएगा ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
ये शहर बस गया है सहर से पहले
ReplyDeleteये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
आपने बदलते समय की क्रूरता को सही पहचाना है.
समय हो तो अवश्य पढ़ें .ब्लॉग जगत में मची घमासान के विरुद्ध.
शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
आज सुबह आपकी पोस्ट नहीं दिखी तो समझे थे कि आज आपके लिये भी संडे इज़ द हॉलीडे होने लगा है।
ReplyDeleteउम्मीद जगाती हैं आपकी रचनायें, ये भी हमेशा की तरह आशावाद की तरह प्रेरित करती लगी।
फ़ोटो भी फ़र्स्ट क्लास।
आभार स्वीकार करें।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletehttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
शिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं मेरे गेसू
ReplyDeleteग़र आईना मिल जाए, ये संवर जायेंगे
अरे वाह गम से गेसुओं को परेशान होते तो पहली बार देखा...नया प्रयोग.
तन्हाई के हंगामों में शामिल है 'अदा'
नज़र भर देख लो हम निखर जायेंगे
सच ??????????????
OK LET ME SEEEEEEEEEEEEE
अति सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteइन उम्र से लंबी सड़कों को,
ReplyDeleteमंज़िल पे पहुंचते देखा नहीं,
बस दौड़ती फिरती रहती हैं,
हमने तो ठहरते देखा नहीं,
इस अजनबी से शहर में जाना पहचाना ढूंढता है...
एक अकेला इस शहर में...
जय हिंद...
ये शहर बस गया है सहर से पहले
ReplyDeleteये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
बहुत ही बढ़िया लगा ये ..
कगार पर पहुँच गए पर उम्मीद है बाक़ी
ReplyDeleteयकीं है ये दिन भी अब सुधर जायेंगे
bahut ache se lafzon ko saheja hai apne..
mere news blog par bhi aap aamantrit hai..
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ये शहर बस गया है सहर से पहले
ReplyDeleteये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
-बहुत गज़ब!! वाह!
क्या खूब...अभिनव.
ReplyDeleteरामराम
बहुत खूबसूरत गज़ल..
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल है. हर शेर लाज़वाब.
ReplyDeleteये शहर बस गया है सहर से पहले
ये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
..इस शेर से पर्यावरण के प्रति चिंता झलकती है.
नज़र भर देख लेना ग़र नसीबों लिखा होता,
ReplyDeleteहमारी चाह को राह का आलम दिखा होता।
वैसे तो पूरी गज़ल ही बहु खूब है, पर ये शेर खासतौर पर पसंद आया--
ReplyDeleteये शहर बस गया है सहर से पहले
ये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
ये शहर बस गया है सहर से पहले
ReplyDeleteये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
बहुत सुन्दर
waaaaaaaaaaaah gmbhir smasya aur lekh shandar
ये शहर बस गया है सहर से पहले
ReplyDeleteये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे !!!
वाह...क्या बात कही...मुग्ध कर लिया आपकी इस रचना ने...हर शेर रास्ता रोक कर खड़े हो जा रहे हैं...आगे बढ़ने ही नहीं देते...
बस आनंद आ गया...