जब प्यार से मिला वो तो गुलाब जैसा है
आँखों में जब उतर गया शराब जैसा है
खामोशियाँ उसकी मगर हसीन लग गईं
कहने पे जब वो आया तो अज़ाब जैसा है
करके नज़ारा चाँद का वो ख़ुश बहुत हुआ
ख़बर उसे कहाँ वो माहताब जैसा है
करते रहो तुम बस्तियां आबाद हर जगह
इन्सां यहाँ इक छोटा सा हबाब जैसा है
कुछ दोस्ती कुछ प्यार कुछ वफ़ा छुपा लिया
क्यों झाँकना नज़र में ये नक़ाब जैसा है
अज़ाब=ख़ुदा का क़हर या नाराज़गी
माहताब= चाँद
हबाब=बुलबुला
माहताब= चाँद
हबाब=बुलबुला
बेहद उम्दा रचना .....बधाइयाँ !
ReplyDeleteउम्दा!!
ReplyDeleteकरके नज़ारा चाँद का वो ख़ुश तो हो गया
ReplyDeleteपर ख़बर कहाँ उसे कि वो माहताब जैसा है
बड़ा सीधा और गहरा अर्थ निकला इसका तो
चित्र तो शानदार है ही ,इस बार तो टाइटल भी
गजब का कोम्बिनेशन दे रहा है
इस अच्छी रचना के बदले
मेरी ये बालकविता :))
शब्द में होती है कितनी शक्ति
अर्थ जानने से समझ आती है
क्या है सच्ची अभिव्यक्ति
रचनाएँ ही हो ऐसी आकर्षक
तो शब्द का अर्थ जानने की
जिज्ञासा हर धडकन में है धड़कती
मेरा कोई दोष नहीं है इश्वर
रचनाकार की है ये सुन्दर गलती
Waah!! bahut khoob :-)
ReplyDeleteRegards
Fani Raj
करके नज़ारा चाँद का वो ख़ुश तो हो गया
ReplyDeleteपर ख़बर कहाँ उसे कि वो माहताब जैसा है
बहुत सुन्दर रचना है अदा जी.
" करते रहो तुम बस्तियां आबाद हर जगह इन्सां यहाँ इक छोटा सा हबाब जैसा है
ReplyDeleteकुछ दोस्ती कुछ प्यार कुछ वफ़ा छुपा लिया क्यों झाँकना नज़र में ये नक़ाब जैसा है "
पढते पढते बस यहीं अटक कर रह गया हूँ ! बहुत गहरी बात !
कहाँ से मिल जाती हैं ये उपमायें आपको जो पिरो लेती हैं ऐसे ख्यालात अपने शब्दों में?
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल लगी यह गज़ल भी हमेशा की तरह, और तस्वीर अपने आप में ही किसी गज़ल से कम नहीं लग रही है।
आभार स्वीकार करें।
"क्यों झाँकना नज़र में ये नक़ाब जैसा "
ReplyDeleteपर्दा उठ गया तो हिजाब कैसा ?
करके नज़ारा चाँद का वो ख़ुश बहुत हुआ
ReplyDeleteख़बर उसे कहाँ वो माहताब जैसा है
वाह.... अच्छी गज़ल !
शानदार!
ReplyDeleteकुछ दोस्ती कुछ प्यार कुछ वफ़ा छुपा लिया
ReplyDeleteक्यों झाँकना नज़र में ये नक़ाब जैसा है
नजर भी कहाँ बता पाती है कुछ लोगों के दिल का हाल ...
सुन्दर !
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल...... बहुत खूब!
ReplyDeleteआ गया है कौनसी सदी में ऐ 'मजाल',
ReplyDeleteहोना अच्छा भी यहाँ खराब जैसा है!
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइ
ReplyDeleteकरके नज़ारा चाँद का वो ख़ुश बहुत हुआ
ReplyDeleteख़बर उसे कहाँ वो माहताब जैसा है
सुन्दर पंक्तियों के साथ सशक्त रचना ।
umda post.... bahut badiya..
ReplyDeleteA Silent Silence : tanha marne ki bhi himmat nahi
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खामोशियाँ उसकी मगर हसीन लग गईं कहने पे जब वो आया तो अज़ाब जैसा है
ReplyDeletebadhiya bdhiy badhiya
Girijesh ji kahin :
ReplyDelete@ कुछ दोस्ती कुछ प्यार कुछ वफ़ा छुपा लिया
क्यों झांकते हो नज़र में ये नकाब जैसा है
ग़जब।
arth bata diya tha Girijesh ji...
ReplyDeletemujhe Gaurav pahle hi yaad dila deta hai..:):)
कुछ अर्ज़ करते ...पर करें क्या कंप्यूटर खराब जैसा ....
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियां ...कमाल ...
करते रहो तुम बस्तियां आबाद हर जगह इन्सां यहाँ इक छोटा सा हबाब जैसा है
ReplyDeleteकुछ दोस्ती कुछ प्यार कुछ वफ़ा छुपा लियाक्यों झाँकना नज़र में ये नक़ाब जैसा है
.....बेहद उम्दा गज़ल.....बधाइयाँ !