Monday, August 30, 2010

फिर याद तेरी किरकिरी बन बिंदास चुभती रही....


जोड़ कर टुकड़े कई, उस आईने में आज तक
अक्स हाथों में लिए, मैं दरारें भरती रही 

हो सामने ताबूत जैसे, ज़िन्दगी है यूँ खड़ी  
शोर कर रहा ये जिस्म, और रूह उतरती रही 

दोस्ती है हौसले से, है यारी बे-बाकपन से
हर घड़ी हैं साथ मेरे, जाने क्यूँ डरती रही

बह गए सपने हमारे फ़र्ज़ के सैलाब में 
मैं अकेली जाल लेकर इंतज़ार करती रही 

अश्क कुम्हलाये 'अदा' दीद की कोटर में ही 
और याद तेरी किरकिरी सी बिंदास चुभती रही

अब एक गीत ..आपकी नज़र....