हे भगवान् !..आज फिर देर हो जायेगी ..ओ भईया ज़रा जल्दी करना ...मैंने रिक्शे वाले से कहा ..वो भी बुदबुदाया ..रिक्शा है मैडम हवाई जहाज नहीं...और मैं मन ही मन सोचे जा रही थी...ये भी न ! एक कप चाय भी नहीं बना सकते सुबह, रोज मुझे देर हो जाती है और डॉ.चन्द्र प्रकाश ठाकुर की विद्रूप हंसी के बारे में सोचती जाती...ठाकुर साहब को तो बस मौका चाहिए, मेरी तरफ ऐसे देखते हैं जैसे अगर आँख में जीभ होती तो निगल ही जाते, फिर बुलायेंगे मुझे अपने ऑफिस में और देंगे भाषण...हे भगवान् ! ये मेरे साथ ही क्यूँ होता है....
अब एक इत्मीनान मुझ पर हावी होने लगा था ...शुक्र है पहुँच गई ..मैंने पर्स से बीस का नोट निकाला, रिक्शे वाले के हाथ में ठूंसा और लगभग छलांग मारती हूँ ऑफिस की सीढियां चढ़ने लगी., ओ माला ...! माला ..! मुझे उस वक्त अपना नाम दुनिया में सबसे बेकार लगा था, अब ये कौन है...कमसे कम रजिस्टर में साईन तो कर लेने दो यार, ये बोलते हुए मैं मुड़ी...सामने थी एक बड़ी दीन-हीन सी महिला, मेरे चेहरे पर हजारों भाव ऐसे आए, जो उसे बता गए ...तुम कौन हो मैडम ? मुझे ऐसे आँखें सिकोड़ते देख उसने कहा अरे मैं हूँ रीना...हम एक साथ थे सेंट जेविएर्स में...मेरा मुँह ऐसे खुल गया जैसे ए.टी.एम्. का होल हो, वह मेरे आश्चर्य को पहचान गई ..और कहा..तू कैसे पहचानेगी..जब मैं ही ख़ुद को नहीं पहचानती...
लेकिन तब तक मेरी याददाश्त ने मेरा साथ दे दिया , अरे रीना ! तू SSSSSSS ! मैंने झट से उसे गले लगा लिया, और झेपते हुए कहा ..अरे नहीं री !...इतने सालों बाद तुम्हें देखा न...इसलिए., लेकिन देख ५ सेकेंड से ज्यादा नहीं लगाया...और बता तू कैसी है.? तू तो बिल्कुल ही ॰गायब हो गई...मैं बोलती जाती और उसको ऊपर से नीचे तक देखती भी जाती....हमदोनों वहीं बैठ गई , बाहर बेंच पर, अब जो होगा देखा जाएगा...सुन लेंगे ठाकुर सर का भाषण और झेल लेंगे उनकी ऐसी वैसी नज़रें ..हाँ नहीं तो...:)
मैं उसका मुआयना करती जाती थी और सोचती जाती थी क्या इन्सान इतना बदल सकता है...इतनानानाना ????
रीना हमारे कॉलेज की बेहद्द खूबसूरत लड़कियों में से एक थी...जितनी खूबसूरत थी वो , उतनी ही घमंडी भी थी, नाक पर मक्खी भी बैठने नहीं देती थी, किसी का भी अपमान कर देना उसके लिए बायें हाथ का खेल था...मैं उससे थोड़ी कम खूबसूरत थी शायद, लेकिन गाना बहुत अच्छा गाती थी..इसलिए उससे ज्यादा पोपुलर थी...और रीना को यह बिल्कुल भी गंवारा नहीं था...उसने मुझसे कभी भी सीधे मुँह बात नहीं की थी...हमारे कॉलेज में सौन्दर्य प्रतियोगिता हुई ..मुझे तो ख़ैर घर से ही आज्ञा नहीं थी ऐसी प्रतियोगिता में भाग लेने का...लेती भी तो हार जाती ..रीना बाज़ी मार ले गई ...और उसके बाद वो बस सातवें आसमान में पहुँच गई....इसी प्रतियोगिता में किसी बहुत अमीर लड़के ने उसे देखा था...और फर्स्ट इयर में ही उसकी शादी हो गई...उसके बाद, वो एक दिन आई थी कॉलिज अपने पति के साथ और फिर हमारी कभी उससे मुलाक़ात नहीं हुई ...
एक ज़माने के बाद, मैं आज देख रही हूँ रीना को...मुझे याद है शादी के बाद, जिस दिन वो आई थी कॉलेज अपने पति के साथ ..कितनी सुन्दर जोड़ी लग रही थी...कार के उतरी थी वो, उसका हसबैंड स्मार्ट , खूबसूरत, ऊंचा...रीना तो बस रीना राय ही लग रही थी..मेंहदी भरे हाथ, चूड़ा , गहने, कीमती साड़ी और गर्वीली चाल, ऊँची एडी में,
कॉलेज में कितनों के दिल पर साँप लोट गया था उस दिन, मैं भी कहीं से जल ही गई थी, लेकिन इस समय मेरी नज़र उसके हाथों से नहीं हट पा रही थी, हाथ कुछ टेढ़े से लग रहे थे मुझे, उसने भी मेरी नज़र का पीछा किया और अपने हाथ साडी में छुपा गई...
मेरी चोरी पकड़ी गई थी, उसके हाथों को देखते हुए, झेंप मिटाने के लिए, मैंने पूछ लिया, कैसा चल रहा है सब कुछ ? बोलते हुए मेरी नज़र उसकी माँग पर गई, माँग में कोई सिन्दूर नहीं था, लेकिन आज कल किसी के बारे में इससे कहाँ पता चलता है...कि वो शादी-शुदा है या नहीं, मैं नज़रों से उसे टटोलते हुए बोल रही थी...बोलो न, कितने बच्चे हैं ? वो फुसफुसाई....एक बेटा है ..मानू! और फिर तो जैसे अल्फाजों, भावों का बाँध टूट गया हो....माला..शादी के दो साल बाद ही मैं विधवा हो गई, जीवन के सारे रंग मिट गए...मैं कितनी ख़ुश थी माला...भगवान् ने मुझे क्या नहीं दिया था, खूबसूरत पति, बड़ा घर, गाड़ी, रुपैया-पैसा, नौकर-चाकर, एक बेटा...लेकिन एक ही झटके में सब कुछ चला गया... वो थोड़ा रुकी...फिर कहने लगी...
मैं, मेरे पति और मेरा बेटा हम तीनों शिमला गए थे घूमने, वापसी में एक्सीडेंट हो गया, इस एक्सीडेंट में मेरे पति चल बसे, मुझे बहुत चोट आई..मेरे हाथ पाँव,रिब्स टूट गए थे...बच्चा सुरक्षित था ...मुझे ठीक होने में महीनों लग गए अस्पताल में...जब मैं वापिस ससुराल आई तो मेरा सब कुछ जा चुका था ..मेरे ससुराल वालों ने मुझे घर से निकाल दिया, अपने बच्चे के साथ मैं सड़क पर ही आ गई थी, इतना कहते-कहते उसका गला रुंध गया था ..मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरना शुरू कर दिया था, वो बोलती जा रही थी...माँ-बाप भी रिटायर्ड हैं, तुझे पता ही है मैंने पढाई पूरी नहीं की थी, उन्होंने ही मुझे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, अब नर्स बन गई हूँ, यहीं जो सदर हॉस्पिटल है ,वहाँ दो दिन पहले ही ट्रान्सफर लेकर आई हूँ, अचानक तुझे देखा तो कितनी ख़ुशी हुई मुझे, बता नहीं सकती माला , तू तो बिल्कुल नहीं बदली रे, बिल्कुल वैसी ही लगती है तू...सच.!
अरे नहीं रे ...देख न मेरे भी दो-चार बाल अब सफ़ेद हो रहे हैं...हा हा हा, चल, ये तो बहुत अच्छा है..तू यहाँ पास में ही है ..अब तो रोज़ मिला करेंगे लंच में ...सुन तेरे को देर हो रही होगी, उसने जैसे मुझे सोते से जगाया हो, मेरी आँखों के सामने फट से ठाकुर साहब आ गए , और उनकी वही कुटिल मुस्कान ! मैंने झट से उनके ख्याल को झटक दिया , चल फिर कल मिलते हैं लंच में ...तू यहीं आ जाना मैंने उसे हिदायत दी, पक्का आ जाऊँगी बोल कर वो फिर मुझसे लिपट गई , आँखें मेरी भी नम हो गईं, और वो ख़ुद को समेटती अपना पर्स सम्हालती चल पड़ी..
मैं खड़ी होकर पीछे से उसे जाती देखती रही ...नर्स !! अपने अभिमान के चूर-चूर होने का तमाशा देखने के बाद ..इससे बेहतर पेशा और क्या हो सकता था उसके लिए ..!
हाँ नहीं तो...!!
हाँ नहीं तो...!!
जीवन के दो रंग दिखाती कहानी ...अच्छी लगी ।
ReplyDeleteसमय का फेर है |एक पहलू और है मिस इण्डिया या सौंदर्य प्रतियोगिता में जीतने वाले हमेशा समाज सेवा की ही बात करते है ?
ReplyDeleteसंवेदनशील कथा।
ReplyDeleteSamay kisase kab kya karae ....kaoi nahi kah sakata...isiliye abhimaan se jitana dur raha jaae shi hai.
ReplyDeletekahani bahut acchi lagi lekin usase bhi jyada dil ko bhaya aapaka andaze bayan.....ha nahi to :)
आखिर इंसान के गुण ही सर चढ़ कर बोलते हैं ...खूबसूरती नहीं ..
ReplyDeleteसमय क्या नहीं करवा लेता है ...!
सामाजिक परिवेश की एक सुन्दर और मार्मिक कथा!
ReplyDeleteवाह !! आप तो कथाकार भी हैं ! बेहद प्रभावी रचना !!चरित ही हमेशा काम आया है..
ReplyDeleteहमज़बान यानी समय के सच का साझीदार
पर ज़रूर पढ़ें:
काशी दिखाई दे कभी काबा दिखाई दे
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
acha laga pad kar ... thanks for sharing...
ReplyDeleteMeri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Ye Kya Hua...
Banned Area News : Haylie Says The Wedding of Pop star and actress Hilary Duff Was Beautiful
@ अदा जी ,
ReplyDeleteसह नायिका सुन्दर थी ,नियति !
सहनायिका का उत्तम विवाह हुआ , नियति !
सहनायिका विवाह के चलते पढ़ नहीं सकी ,नियति !
सहनायिका का पारिवारिक एक्सीडेंट हुआ, नियति !
पर अब वो नये सिरे से जीवन गढ़ रही है यह नियति नहीं है कर्मवाद है ! मुझे ऐसा क्यों लगता है कि कथा नियतिवाद से कर्मवाद की ओर प्रस्थित होने की सार्थकता का सन्देश देती चल रही है !
याकि मेरा सोचना सही ना भी हो !
नोट : वैसे ज्यादातर टिप्पणीकार नियति को समय कह कर काम चला रहे हैं !
अली साहब,
ReplyDeleteआपने मेरी बात समझ ली,...मैं कर्मवाद की ही बात कर रही हूँ...मेरी नायिका (सह नायिका) अपने अभिमान को तोड़ कर एक ऐसे पेशे को इख्तियार करती है...जिसमें दया, सहिष्णुता, प्रेम के लिए स्थान होता है, दंभ अभिमान का कोई स्थान नहीं होता....
आपका शुक्रिया...मैं तो सोचने लगी थी कि..कुछ मिस फायर हो गया क्या...
कौन जाने किस घडी वक्त का बदले मिजाज
ReplyDeleteप्रारब्ध पर बढिया कथा, आभार
प्रणाम स्वीकार करें
namste D .............15 august mubark.............abhi .........kahani padh raha hun ..
ReplyDeleteअदा जी...
ReplyDeleteकहानी बहुत ही सुन्दर लगी और उस से ज्यादा अच्छी लगी भाषा.....मुहं में जीभ तो सुनी थी पर आज आँखों में जीभ भी सुनी है....हाहाहा....हाँ नहीं तो....
दीपक....
kehani..kirdar...sab khoobsurti se gadhe gaye hain..!
ReplyDeleteज़िन्दगी कब क्या रंग दिखा दे पता नही चलता मगर जो उसका मुकाबला हिम्मत से करता है अपने लिये रास्ते बना ही लेता है…।
ReplyDeletebahut achha laga..
ReplyDeletevisit also www.gaurtalab.blogspot.com
आपकी लेखनी का एक और नायाब रंग - जीवन के रंग। संक्षिप्त शब्दों में एक जीवन के उतार चढ़ाव का खूबसूरत वर्णन।
ReplyDeleteहमें तो आपकी कथा की(सह)नायिका से सहानुभूति हो गई है। खूबसूरती या कोई और खासियत को पचा पाना विरलों का ही काम होता है।
इस कहानी को दुखांतक माना जाये या सुखांतक, मुझे दोनों ही लगे। रीना के साथ ऐसा हुआ, दुखद लेकिन उसने जिन्दगी के साथ कदम से सकम मिलाकर चलने की हिम्मत दिखाई, सुखद।
आभारी।
दीदी,
ReplyDeleteअब क्या कहूँ , अपनी तो इस कथा का विश्लेषण करने की हिम्मत भी नहीं है
सच में पहले लगा था इतनी बड़ी रचना नहीं पढ़ पाउँगा और अभी थोड़ी देर पहले पूरी रचना को देख कर आ रहा हूँ लगता है, बेहद इंटरेक्टिव है ये रचना
कमेन्ट के लिए डिक्शनरी छोटी पड़ रही है (आपके ब्लॉग पर अक्सर ऐसा होता है ) .. आँखें बंद करके नमन करता हूँ इस रचना को और आपकी लेखनी को
Girijesh ji kahin :
ReplyDeleteसीधी सी सचाई भरी लघु अभिव्यक्ति! कुछ बातें बस ऐसे ही मन को अच्छी लग जाती हैं। उनकी व्याख्या क्या करना ?
हाँ, ये रीना राय मुझे कभी नहीं जमी :) किसी और का नाम ले लेतीं, हाँ नहीं तो !