बन तस्वीर-ए-जाना दिल में, उतर आओगे तुम
भँवर साज़िश रचते रहे डूबोने की तुम्हें
सागर की तहों से पर, अब उभर आओगे तुम
देखा नहीं कभी तुम्हें, पर अहसास किया है
कभी, कहीं, किसी जगह, नज़र आओगे तुम
बिछ गईं हज़ार आँखें, तेरी रहगुज़र में
मिलूँगी मैं वहीं तुम्हें, जिधर जाओगे तुम
पहलू में लिए फ़िरते हो रक़ीब हर जगह
कहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम
देखा नहीं कभी तुम्हें, पर अहसास किया है
ReplyDeleteकभी, कहीं, किसी जगह, नज़र आओगे तुम
-वाह, बहुत गहरे!!
बेहतरीन!!
बिछ गईं हज़ार आँखें, इक तेरी रहगुज़र में
ReplyDeleteमिलूँगी मैं वहीं तुम्हें, जिधर जाओगे तुम
बहुत अच्छी ग़ज़ल!
देखा नहीं कभी तुम्हें, पर अहसास किया है
ReplyDeleteकभी, कहीं, किसी जगह, नज़र आओगे तुम
वाह ...ये सुन्दर एहसास ...
अच्छी लगी ग़ज़ल ...!
to gaaiye n ada ji - tu jo mudke dekh lega , mera saaya saath hoga
ReplyDeleteWaah waah! ;)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावभरी रचना!
ReplyDeleteपार हुआ वो रहा जो सफ़र में,
ReplyDeleteजो भी रुका फिर गया वो भंवर में,
नाव तो क्या बह जाए किनारा,
बड़ी ही तेज़ समय की ये धारा,
तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा...
जय हिंद...
बहुत सुंदर कविता धन्यवाद
ReplyDeleteपहलू में लिए फ़िरते हो रक़ीब हर जगह
ReplyDeleteकहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम
वाह अदा जी वाह...बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने...दाद कबूल करें..
नीरज
ReplyDeleteसुंदर भाव।
…………..
अंधेरे का राही...
किस तरह अश्लील है कविता...
behad khubsurat :)
ReplyDeleteपहलू में लिए फ़िरते हो रक़ीब हर जगह कहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम
ReplyDeletebhawpurn rachna.......:)
padhkar achchha laga.......
हमारी आज की शिकायत:
ReplyDeleteआखिरी पंक्ति के बाद ? नहीं लगा है। हा हा हा।
बहुत सुंदर गज़ल लगी। शुभकामना,आश्वस्ति भाव, पोज़िटिव एटीट्यूड सब कुछ तो है।
सदैव आभारी।
आपकी दुआयें हों, जीवन के समन्दर में,
ReplyDeleteखींच ले भंवरें, लहरों से निकल आयेंगे,
आज की चर्चा कुछ विशेष है...आइये देखिये..
ReplyDeleteआप की रचना 06 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
sundar rachna bahut bahut khubsurat
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