Thursday, August 5, 2010

मिलूँगी मैं वहीं तुम्हें, जिधर जाओगे तुम ...


ये ग़म का है दरिया सही, पर तर जाओगे तुम
बन तस्वीर-ए-जाना दिल में, उतर आओगे तुम 

भँवर साज़िश रचते रहे डूबोने की तुम्हें 
सागर की तहों से पर, अब उभर आओगे तुम

देखा नहीं कभी तुम्हें, पर अहसास किया है 
कभी, कहीं, किसी जगह, नज़र आओगे तुम 

बिछ गईं हज़ार आँखें, तेरी रहगुज़र में 
मिलूँगी मैं वहीं तुम्हें, जिधर जाओगे तुम 

पहलू में लिए फ़िरते हो रक़ीब हर जगह 
कहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम 

16 comments:

  1. देखा नहीं कभी तुम्हें, पर अहसास किया है
    कभी, कहीं, किसी जगह, नज़र आओगे तुम

    -वाह, बहुत गहरे!!

    बेहतरीन!!

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  2. बिछ गईं हज़ार आँखें, इक तेरी रहगुज़र में
    मिलूँगी मैं वहीं तुम्हें, जिधर जाओगे तुम
    बहुत अच्छी ग़ज़ल!

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  3. देखा नहीं कभी तुम्हें, पर अहसास किया है
    कभी, कहीं, किसी जगह, नज़र आओगे तुम

    वाह ...ये सुन्दर एहसास ...
    अच्छी लगी ग़ज़ल ...!

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  4. to gaaiye n ada ji - tu jo mudke dekh lega , mera saaya saath hoga

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  5. पार हुआ वो रहा जो सफ़र में,
    जो भी रुका फिर गया वो भंवर में,
    नाव तो क्या बह जाए किनारा,
    बड़ी ही तेज़ समय की ये धारा,
    तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा...

    जय हिंद...

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  6. बहुत सुंदर कविता धन्यवाद

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  7. पहलू में लिए फ़िरते हो रक़ीब हर जगह
    कहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम

    वाह अदा जी वाह...बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने...दाद कबूल करें..
    नीरज

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  8. पहलू में लिए फ़िरते हो रक़ीब हर जगह कहो न कब अकेले, मेरे घर आओगे तुम

    bhawpurn rachna.......:)
    padhkar achchha laga.......

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  9. हमारी आज की शिकायत:
    आखिरी पंक्ति के बाद ? नहीं लगा है। हा हा हा।

    बहुत सुंदर गज़ल लगी। शुभकामना,आश्वस्ति भाव, पोज़िटिव एटीट्यूड सब कुछ तो है।

    सदैव आभारी।

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  10. आपकी दुआयें हों, जीवन के समन्दर में,
    खींच ले भंवरें, लहरों से निकल आयेंगे,

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  11. आज की चर्चा कुछ विशेष है...आइये देखिये..

    आप की रचना 06 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
    http://charchamanch.blogspot.com

    आभार

    अनामिका

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