भारत के पूर्वी भाग में बंगाल की खाड़ी से लगा हुआ, भारतीय संस्कृति की दीपशिखा सामान प्रज्वलित, प्रदेश उड़ीसा...यहीं से अत्यंत लुभावनी और गीतमय नृत्य शैली 'ओडिसी' का अविर्भाव हुआ ...
इस नृत्य शैली को देख कर कवि श्री सुमित्रानंदन पन्त जी की पंक्तियाँ याद आती हैं :
अंगों में हो भरी उमंग,
नयनों में मदिरालस रंग,
तरुण हृदय में प्रणय तरंग!
रोम रोम से उन्मद गंध
छूटे, टूटें जग के बंध,
रहे न सुख दुख से सम्बन्ध
इस नृत्य को देवताओं को रिझाने के लिए तथा पूजा अर्चना के लिए मंदिरों में किये जाने की परंपरा थी, भरतनाट्यम और ओडसी में काफ़ी समानताएं भी देखने को मिलतीं हैं, इस नृत्य में भी प्रबल, भाव, गीत एवं अभिनय का समन्वय होता है , ये नृत्य भंगिमाएं ज्यादातर भगवान् श्री कृष्ण के लिए गाये गए भक्तिगीतों पर आधारित होती हैं ..१२ वीं शताब्दी में श्री जयदेव रचित गीत-गोविन्द ज्यादा प्रचलित हुए हैं...
ओडसी नृत्य में मूर्तिकारी शैली की प्रबलता है, भाव-भंगिमाएं बहुत सौम्यता लिए हुए होती हैं..मुख्यतः श्री कृष्ण और प्रेयसी राधा के प्रेम और श्रृंगार पर आधारित होती हैं ...मंदिरों में किये गए नक्काशियों से प्रेरित मुद्राएं देखने वालों के हृदय में जीवंत और स्थायी छाप छोड़ती हैं...
ऐसी ही कुछ मुद्राएं आप भी देखिये....
ओडिसी पर आपका लेखन , सौम्य सहज नृत्य शैली सा ...! सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDelete[ अरब सागर की जगह बंगाल की खाडी कर सकें तो उचित होगा ]
@ अली साहब ..आपको किन शब्दों से धन्यवाद करूँ....
ReplyDeleteसच में...नतमस्तक हूँ....
ओडिसी नृत्य मैने बहुत प्रोफेशनल प्रस्तुति देखी...आपने उम्दा चित्रण किया.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteमुझे तो सारे नृत्यों में ओडिसी ही सबसे अच्छा और श्रेष्ठ लगता है। मैं तो इसकी फेन हूँ।
ReplyDeleteआज इसके लिए शुक्रिया कहने का मन हो रहा है...बहुत बहुत शुक्रिया कुछ बहुत ही मीठा याद दिलाने के लिए.. :)
ReplyDeleteओडिसी नृत्य पर अच्छी रिसर्च...
ReplyDeleteप्रोतिमा बेदी भी शायद ओडिसी की ही नृत्यांगना थीं...
ऊपर वाली फोटो बेहद आकर्षक है...मुश्किल से नज़र हटा कर पोस्ट पढ़ सका...
जय हिंद...
सच कहें तो नृत्य वगैरह के मामले में हमारी जानकारी उंगलियों पर नाचने तक ही सीमित रही है। हाँ, फ़िर भी वो जो मुखौटे लगाकर नृत्य किया जाता है, कत्थकली या कुचिपुड़ी में से एक है, वो ज्यादा भाता है देखने में। इस पोस्ट पर कमेंट करने की वजह आपकी पोस्ट में जयदेव के ’गीत-गोविन्द’ का जिक्र है। बहुत थोड़े से अंश पढ़े हैं इसके, उदय प्रकाश जी की कहानी ’वारेन हेस्टिग्ज़ का सांड’ में से और पढ़्कर मजा आ गया था। अगर कभी गीत गोविन्द के कुछ अंश भी अपनी पोस्ट पर डाल सकें तो आभारी रहेंगे।
ReplyDeleteवाह वाह हम भी झूम उठे--सुन्दर प्रस्तुति । बधाई
ReplyDeleteउपयोगी पोस्ट!
ReplyDelete--
हमारा भी ज्ञानार्जन हो गया!
गीत गोविन्द का वृहत योगदान है,
ReplyDeleteजय जगदीश हरे।