Friday, August 27, 2010

मैं जोड़ रहीं हूँ धज्जियां कुछ फटे गिरेह्बानों की....


सुन लो मेरी दास्ताँ कुछ मिटे हुए अरमानों की
मैं जोड़ रहीं हूँ धज्जियां कुछ फटे गिरेह्बानों की

(कहाँ उतरा था चाँद कभी सागर में नहाने को
पर मौजों को थी हड़बड़ी तूफाँ को बात बताने की)

कहाँ उतरा था चाँद कभी सागर में नहाने को 
पर मौजों से हुई गुफ़्तगू कुछ शोहदे तूफानों की 

शमा तो बुझती ही रही हर महफ़िल में सुन 'अदा'
और राख भी उड़ती रही कुछ जले हुए परवानों की 

अब एक गीत ...आप सुन चुके हैं ..दिल करे तो फिर सुन लीजिये...कोई ज़बरदस्ती नहीं है...

23 comments:

  1. कहाँ उतरा था चाँद कभी सागर में नहाने के लिए
    पर थी मौजों को हड़बड़ी तूफाँ को बात बताने की
    अद्भुत! लाजवाब।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर
    कहाँ उतरा था चाँद कभी सागर में नहाने के लिए
    पर मौजों को थी हड़बड़ी तूफाँ को बात बताने की

    ReplyDelete
  3. पहले लगा कि आज हौसले पस्त करके ही छोडेंगी आप ! पर जी उठा इक आस लेकर "मैं जोड़ रहीं हूँ धज्जियां कुछ फटे गिरेह्बानों की"

    आपके कविता संसार में ये आस हमेशा बनी रहे ! दुआयें !

    ReplyDelete
  4. हर शमा तो बुझती ही रही हर महफ़िल में 'अदा'
    और राख भी उड़ती रही कुछ जले हुए परवानों की
    बहुत खूब , मुवारक हो

    ReplyDelete
  5. आज सबसे पहले गाने की बात

    ऐसा महसूस हो रहा है " कुछ तो नयी बात है " संभवतया आपकी आवाज में पहली बार सुना हो

    ये गीत "कानों में मिश्री घोलना " वाली बात को सार्थक कर रहा है [खास तौर से बीच और अंत में ]

    कहाँ उतरा था चाँद कभी सागर में नहाने के लिए
    पर मौजों को थी हड़बड़ी तूफाँ को बात बताने की

    आपकी कविता में सब जीवित और बात करने वाला लगता है , चाँद , मौजे , तूफाँ सारी नेचर बस एक दूसरे से बात करती नजर आती है
    बहुत उंचाई है इन भावों में , पढ़ के मन प्रसन्न हो जाता है

    "ब्लागस्पाट.कॉम" का भी धन्यवाद देने का मन करता है जो हमें आपसे बात करने देता है

    फोटो गजब है [हमेशा की तरह ]

    ReplyDelete
  6. जोडती रहे धज्जियाँ ....
    धज्जियाँ उड़ने से हर हाल में बेहतर काम है ये ...

    और जब कह दिया की कोई जबरदस्ती नहीं है सुनने की तब तो गीत सुनकर ही मानेंगे ...
    " तेरे आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है "...
    प्रेम मुहब्बत से दूर रहने वाले इतने सुंदर गीतों का चयन कैसे कर लेते हैं ...आश्चर्य ...

    गिरिजेश जी के ब्लॉग पर पढ़ा ...माँ बाबा कनाडा आ रहे हैं आपके पास ...प्रणाम कहियेगा हमारा भी ..!

    ReplyDelete
  7. adbhut shabd-srijan, bahut badhiya, shubhkaamnaayen.

    ReplyDelete
  8. सुन लो मेरी दास्ताँ कुछ मिटे हुए अरमानों की
    मैं जोड़ रहीं हूँ धज्जियां कुछ फटे गिरेह्बानों की


    लाजबाब शेर अदा जी !

    ReplyDelete
  9. गम से दिल क्यों लगाए 'मजाल',
    सुने क्यों बात दो पल के मेहमानों की.

    ReplyDelete
  10. चाँद सागर में उतरे या न उतरे, सागर को गागर में बखूबी उतार लेती हैं आप।
    शमां को तो जलकर बुझना ही है लेकिन बुझने से पहले महफ़िल तो रोशन कर ही जाती है वो । और परवाने, एक बार भक्क सी आवाज होती है जी बस्स फ़िर तो राख ही उड़ती होगी उनकी। सच में बहुत अजीब रिश्ता है शमां और परवानों का -
    कितने परवाने जल गये ये राज पाने के लिये
    शमां जलने के लिये है या जलाने के लिये।
    शानदार और जानदार पोस्ट लगी जी, हमेशा ही लगती है इसमें नया क्या है? हा हा हा।
    नया ये है कि प्लेयर नहीं चल रहा है हमारे सिस्टम पर, पुरानी पोस्ट में ढूंढकर सुन लेंगे - तारीफ़ एडवांस में रख लीजिये। बहुत अच्छा गाती हैं आप।
    सदैव आभारी।

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर भाव ...बस जोडती रहें ...सुन्दर कलाकृति बनेगी ...

    ReplyDelete
  12. खूब अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  13. बहुत ही सुन्दर कहानी अरमानों की।

    ReplyDelete
  14. कहाँ उतरा था चाँद कभी सागर में नहाने के लिए
    पर मौजों को थी हड़बड़ी तूफाँ को बात बताने की


    itni pyari panktiyon ko aaap jaise AADAkara hi gadh sakta hai.....:)

    bahut sundar!!

    ReplyDelete
  15. पर मौजों को थी हड़बड़ी तूफाँ को बात बताने की


    काफ़िया नहीं मिल रहा है... ज़रा देख लीजिए॥

    ReplyDelete
  16. @ cmpershad ji,
    आपका बहुत शुक्रिया...
    मैंने सचमुच ध्यान ही नहीं दिया था ...
    अब बदल दिया है...शायद कोई बात बने..देखिएगा ज़रा..

    नहीं उतरा था चाँद कभी सागर में नहाने के लिए
    पर मौजों से हुई गुफ़्तगू कुछ बेनाम तूफानों की

    ReplyDelete
  17. हर शमा तो बुझती ही रही हर महफ़िल में 'अदा'
    और राख भी उड़ती रही कुछ जले हुए परवानों की

    बहुत सुन्दर ...

    ReplyDelete
  18. क्या बात है अदा दी...

    ये बुझी बुझी सी सोच क्यों है.
    उडती उडती सी ये राख क्यों है ??

    खूबसूरत गज़ल...दिल का हाल बयान कर रही है.

    ReplyDelete
  19. अदा जी,
    बहुत सुन्दर कविता
    आज कल आप कुछ अलग सा तो लिख रही हैं लेकिन ये नदाज़ भी निराला है,
    बधाई !

    ReplyDelete