दिल्ली ने !
अतीत के
अनगिनत उत्सव देखे हैं,
चक्रवर्ती सम्राटों के राजतिलक देखे हैं,
शत्रुओं की पराजय देखी,
विजय का विलास देखा,
अपूर्व उल्लास देखा,
परन्तु...
ऐसी एक घड़ी आई
जब...
सूर्योदय और सूर्यास्त का
अंतर मिटते देखा,
बड़े-बड़े महोत्सवों
और महान पर्वों को
फीका पड़ते देखा,
उस रात...
मतवारे, दिल्ली की सड़कों पर झूम रहे थे,
कितने ही सपने,
लाखों रंग लिए
बूढी आँखों में घूम रहे थे,
दिल्ली की धमनियों में
स्वतंत्रता
यूँ अवतरित हुई थी,
जैसे...
धरती पर
स्वर्ग से गंगोत्री उतर आई हो,
स्वर्ग से गंगोत्री उतर आई हो,
आधी रात को तीन लाख ने
सुर मिलाया था,
'जन-गण-मन', 'वन्दे मातरम्'
का जयघोष लगाया था,
पहली बार...
'शस्य-श्यामला'
'बहुबल-धारिणी'
'रिपुदल-वारिणी'
शब्दों ने...
स्वयं ही पुकार कर
अपना सही अर्थ
इस दुनिया को बताया था,
ललित लय में
हिलते हुए वो अनगिनत सिर,
क्या सोच रहे थे
ये इतिहास में नहीं लिखा गया,
मगर वो तारीख़
दर्ज हो गयी आने वाली
अनगिनत शताब्दियों के लिए,
अनगिनत शताब्दियों के लिए,
जब...
आधी रात के सवेरे ने
१५ अगस्त १९४७ को,
आँख खुलते ही
सलामी दी थी
नवीन, अभूतपूर्व
तिरंगे को,
जयघोष के नाद से
जनसमूह की नाड़ियाँ,
युद्धगान से धमक उठीं,
माँ भारती ने अपनी बाहें फैला दी
अपने बच्चों के लिए,
क्योंकि अब !
कोई बंधन नहीं था...!
जय हिंद...!!
सभी चित्र गूगल से साभार...
क्योंकि अब !
ReplyDeleteकोई बंधन नहीं था...!
जय हिंद...!!
बधाई ! शुभकामनाएं।
मौके पर झकझोरती रचना!! बहुत बढ़िया!!
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के प्रथम क्षणों का भावपूर्ण वर्णन !
ReplyDeleteपरतंत्र राजधानियां / परतंत्र देश और परतंत्र आबादियां ,जहां हम जन्में ही नहीं,कैसी होती होंगी ? क्या पता ?
पर जो इंसान इस क्षण से पहले और बाद के संधिकाल को भोग रहे थे उनके चित्र अपनी कथा स्वयं कहते हैं !
सार्थक और सामयिक रचना
ReplyDeleteपूरी दास्तान है ये तो
क्यूंकि अब कोई बंधन नहीं था ...
ReplyDeleteउस समय तो यही लगा था ...
क्या अब भी हम ये कह सकते हैं ...?
Waah, yun to aapki har kavita niraali hoti hai, par aazaadi ka ye varnan behtareen hai. man mugdh ho gayaa
ReplyDeleteJay Hind!!!
ऐतहासिक चित्रों के बीच मन को जगाती प्रस्तुति।
ReplyDeleteश्रेष्ठ अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteचित्रों के द्वारा प्रस्तुत सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteअदा जी, बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी इस आज़ादी कि, क्या हमें याद है? क्या हम उन शहादतों को भूल नहीं गए हैं!
ReplyDeleteजय हिंद।
ReplyDelete………….
सपनों का भी मतलब होता है?
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा.....
Hi...
ReplyDeleteJo paayi hai gawan kar...
Kitne hi veer apne..
usko sambhale rakhne...
main ho rahi hai mushkil...
Kashmir kabhi jalta...
hai Asam aur Manipur...
Aapas main lad Ke jaane..
kya ho raha hai hasil...
Aapne bahut hi sundar kavita likhi hai...wah...
Deepak..
क्योंकि अब !
ReplyDeleteकोई बंधन नहीं था...
अभी बंधन बहुत से तोड़ने बाकी है :)
जय हिंद !
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के प्रथम क्षणों का भावपूर्ण वर्णन !
ReplyDeleteअब आपके बीच आ चूका है ब्लॉग जगत का नया अवतार www.apnivani.com
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स्वतंत्रता दिवस के प्रथम क्षणों का भावपूर्ण वर्णन ! साथ ही ऐतहासिक चित्रों के बीच मन को जगाती प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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