अब कब तक उधेडूं लफ़्ज़ों को
कौन जाने क्या माने निकले
गली गाँव की बुला रही है
अब शहर गला दबाने निकले
बिछड़ेंगे ही जब एक दिन हम
आखिरी मोड़ तक जाने निकले
थक कर ज़िन्दगी आज सो गई
हम दस्तक दे जगाने निकले कौन सुनेगा अब मेरी गुनगुन
बाज़ीगर बड़े सयाने निकले
ज़माने आए और चले भी गए
तुम दौर का मातम मनाने निकले ?
गली गाँव की बुला रही है
ReplyDeleteअब शहर गला दबाने निकले
सहज अंदाज़ लेकिन बात गंभीर.और इस शेर ने तो मोह लिया.
समय हो तो पढ़ें
हिरोशीमा की बरसी पर एक रिक्शा चालक
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_06.html
थक कर ज़िन्दगी आज सो गई
ReplyDeleteहम दस्तक दे जगाने निकले
-बहुत गहरे.
खूबसूरत अल्फ़ाज़,
ReplyDeleteसोचने पर मज़बूर कर देती है आपकी रचना।
तस्वीर भी बहुत अच्छी लगी आजकी।
सदैव आभारी।
थक कर ज़िन्दगी आज सो गई
ReplyDeleteहम दस्तक दे जगाने निकले
ग़ज़ब है ।
तस्वीर भी बहुत सुन्दर लगाई है ।
थक कर ज़िन्दगी आज सो गई
ReplyDeleteहम दस्तक दे जगाने निकले...
कौन सुनेगा अब मेरी गुनगुन
बाज़ीगर बड़े सयाने निकले ...
दोनों शेर बहुत पसंद आये ...!
हमने जब भी बात उठायी,
ReplyDeleteकिस्से बहुत पुराने निकले।
कितने दिन तरसेंगी आंखें,
ReplyDeleteकभी तो महकेगी ख्वाबों की महफ़िल...
ज़िंदगी पर सबका एक सा हक है,
ये सब तसलीम करेंगे,
सारी खुशियां हम तकसीम करेंगे,
नया ज़माना आएगा, नया ज़माना आएगा...
जय हिंद...
अब कब तक उधेडूं लफ़्ज़ों को
ReplyDeleteकौन जाने क्या माने निकले
सही है ...कोई कुछ भी मतलब निकाल सकता है ....अच्छी गज़ल...
बहुत ही सुन्दर गज़ल्……………।दर्द का आभास कराती हुयी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...............
ReplyDeleteकौन सुनेगा अब मेरी गुनगुन
ReplyDeleteबाज़ीगर बड़े सयाने निकले
बहुत सशक्त रचना.
रामराम.
Girijesh ji ne kaha :
ReplyDelete@ ज़माने आए और चले भी गए
तुम दौर का मातम मनाने निकले ?
बढ़िया। हम तो गए दौर का मातम नहीं, उत्सव मना रहे हैं।
हमने जब भी बात उठायी,
ReplyDeleteकिस्से बहुत पुराने निकले।
ये बहुत अच्छा है...और ऊपर का चित्र बहुत ही अच्छा
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteज़माने आए और चले भी गए
ReplyDeleteतुम दौर का मातम मनाने निकले ?
.... अति सुंदर