बात वो दिल की ज़ुबां पे कभी लाई न गई
चाह कर भी उनको ये बात बताई न गई
नीम-बाज़ आँखें लगा जातीं हैं सेक हमें
आब में डूबे रहे पर आग बुझाई न गई
कौन हैं हम, हैं कहाँ,क्यों हैं ये पूछा तुमने
थी खबर हमको मगर तुमसे बताई न गई
दर्द का दिल पे असर बड़ा है मुश्किल गुज़रा
बात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बँट गई पर दूरी मिटाई न गई
राह में उनकी नज़र हम हैं बिछाए बैठे
अब शरर ढूंढें कहाँ, रौशनी पाई न गई
कुछ तो है बात के चेहरे पे कई सोग दिखे
हंसती है कैसे 'अदा' रुख से रुलाई न गई
नीम-बाज़ आँखें लगा जातीं हैं सेक हमें
ReplyDeleteआब में डूबे रहे पर आग बुझाई न गई
-वाह! बहुत बेहतरीन!
वाह बढ़िया ग़ज़ल.
ReplyDeleteदर्द का दिल पे असर बड़ा है मुश्किल गुज़रा
ReplyDeleteबात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
लाजवाब
लाजवाब रचना ......
ReplyDeletevery nice blog~~..................................................................
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गजल है!
ReplyDeleteकौन हैं हम, हैं कहाँ,क्यों हैं ये पूछा तुमने
ReplyDeleteथी खबर हमको मगर तुमसे बताई न गई
बहुत बढ़िया है !!
हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया,
ReplyDeleteयाद रह जाती है और वक्त गुज़र जाता है,
फूल खिलता ही है, और खिल के बिखर जाता है,
सब चले जाते हैं, कब दर्द-ए-जिगर जाता है,
दाग जो तूने दिया, दिल से मिटाया न गया,
हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया,
फासला प्यार में दोनों से मिटाया न गया...
जय हिंद...
aah nikli hai jo yoon daad ke badle uski..
ReplyDeletekuchh to samjhaa hai mere she'r se matlab meraa...
सुना डाले थे तुम्हे किस्से जहाँ के,
ReplyDeleteजो बात कहनी थी सुनाई न गई।
दर्द का दिल पे असर बड़ा है मुश्किल गुज़रा
ReplyDeleteबात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई...
कितना मुश्किल हो जाता है ना कई बार बिगड़ी बात का बनना ...
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बँट गई पर दूरी मिटाई न गई...
आज इतना दर्द कहाँ से भर लाई हो ग़ज़ल में ...
हमें तो हंसती मुस्कुराती और ताने कसती अदा ही अच्छी लगती है ...
लबों पर जिसके उदास मुस्कराहट तक हमें मंजूर नहीं
सिसकियाँ लेकर जार -जार रुलाता है वही ...!
नीम-बाज़ आँखें लगा जातीं हैं सेक हमें
ReplyDeleteआब में डूबे रहे पर आग बुझाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
बहुत खूबसूरत गज़ल...
बहुत सुन्दर रचना, बेहद प्रभावशाली!
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ReplyDeleteसचमुच प्यारी ग़ज़ल बन आई, लीजिए स्वीकारिए बधाई।
…………..
स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थर।
क्या यह एक मुश्किल पहेली है?
नीम-बाज़ आँखें लगा जातीं हैं सेक हमें
ReplyDeleteआब में डूबे रहे पर आग बुझाई न गई
-वाह! बहुत बेहतरीन!
बहुत जज़्बाती गज़ल लिखी है आपने।
ReplyDeleteएक एक शेर तारीफ़ के काबिल है।
आभार स्वीकार करे।
अरे दी क्या हुआ आज ये उदासी की चादर , ये माथे पर सिलवट .. ए दिल-अ-नादाँ तुझे हुआ क्या है?
ReplyDeleteआशार गज़लों के बहुत शोर कर रहे हैं.
दर्द के तरानों में जज़्बात ढल रहे हैं.
awesome! especially this line
ReplyDeleteनीम-बाज़ आँखें लगा जातीं हैं सेक हमें
आब में डूबे रहे पर आग बुझाई न गई