(आज कुछ लिखना संभव नहीं हुआ, कोशिश की लेकिन बात बनी नहीं..इसलिए आज पेश-ए-खिदमत है एक पुरानी कविता...)
तन्हाई, रात,
बिस्तर, चादर
और कुछ चेहरे,
खींच कर चादर
अपनी आँखों पर
ख़ुद को बुला लेती हूँ
ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी
और ख्यालों से
दोस्ती
जिनके हाथ थामते ही
तैर जाते हैं
कागज़ी पैरहन में
भीगे हुए से, कुछ रिश्ते
रंग उनके
बिलकुल साफ़ नज़र
आते हैं,
तब मैं औंधे मुँह
तकिये पर न जाने कितने
हर्फ़ उकेर देती हूँ
जो सुबह की
रौशनी में
धब्बे से बन जाते हैं....
और एक गीत....गाना इसे तीन लोगों को चाहिए था...लेकिन ये काम हम अकेले ही कर गए...
ज़रा सी फुर्सत होगी तो..ब्लाग के अच्छे गायकों को एक मंच पर लाने का इरादा है...संतोष जी, दिलीप साहब, राजेन्द्र जी इत्यादि को...
काव्य जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ....
ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी और ख्यालों से दोस्ती .....
तब मैं औंधे मुँह तकिये पर न जाने कितने हर्फ़ उकेर देती हूँ.....
......आप के ख्यालों की उड़ान को मेरा सलाम .....
बहुत ही अच्छी रचना है ...बधाई
कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं।
ReplyDeleteतब मैं औंधे मुँह
ReplyDeleteतकिये पर न जाने कितने
हर्फ़ उकेर देती हूँ
बहुत खूबसूरत रचना
ख्वाबों और खयालो का तालमेल होना बहुत ज़रूरी है :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
ReplyDeleteख्वाबों से कुट्टी, ख्यालों से दोस्ती, कागजी पैरहन गज़व की उपमाओं में उलझा देती हैं आप। कविता पहले भी अपने आप में अनूठी लगी थी, आज भी वैसी ही। हमारी राय मानिये तो अपनी कविताओं, गज़लों का संकलन छपवाईये और आपकी ही आवाज़ में उनका आडियो वर्ज़न भी। ये नेट की बंदिश कुछ कम हो जायेगी।
ReplyDeleteचित्र बहुत खूबसूरत।
गाना टू मच नहीं, थ्री मच है जी।
और हाँ, आपकी पिछली पोस्ट पर सलिल जी का कमेंट और आपका जवाब अपने आप में एक शानदार पोस्ट का कंटेंट लगे। मजा दुगुना हो गया।
आभार स्वीकार करें।
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ReplyDeleteबड़ी कोमल प्रस्तुति।
ReplyDeleteरात तकिये पर उकेरे गये हर्फों का रौशनी में धब्बों में तबदील हो जाना ! वाह ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteराय..जी,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी मेरी पोस्ट के लिए नहीं है..इसलिए इसे हटा रही हूँ...
दूसरी बात...आप कृपा करके मेरा नाम अपनी पोस्ट पर न लिखें....
मेरा नाम तुरंत हटाया जाए...
तब मैं औंधे मुँह
ReplyDeleteतकिये पर न जाने कितने
हर्फ़ उकेर देती हूँ
जो सुबह की
रौशनी में
धब्बे से बन जाते हैं....
क्या इस पर भी कुछ कहा जा सकता है ...
चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है ...
खूबसूरत ...!
Hello ji,
ReplyDeleteAapne toh kasam se fir se kamaal kar diya :)
itna achha likha hai... sachh mein dil ko chooh gayaa...
"ख्वाबों से कुट्टी" -- waaaah!!
U r really very talented & compositions topics are always very touchy and real...
Regards,
Dimple
अदा जी...
ReplyDeleteतन्हाई रातों की अक्सर...
दे देती है कुछ ऐसे प्रश्न...
जिनके उत्तर ढूँढने लगते....
मन के सारे अंतर्द्वंद्व....
ख्वाबों से कुट्टी हो चाहे...
पर है ख्यालों से नाता...
हर्फ़ है बनता हर रिश्ता तब...
जब वो आखों में आता....
हर कविता पहले से बेहतर...
दीपक....
achchha hua aapke shabd nahi ban pade.......issi bahane hame purane post padhne ko mil gaye.........:)
ReplyDeleteमेरी और ख्यालों से दोस्ती
जिनके हाथ थामते ही तैर जाते हैं
कागज़ी पैरहन में भीगे हुए से,
कुछ रिश्तेरंग उनके बिलकुल
साफ़ नज़र आते हैं,........bahut khub!!
सुंदर अदा।
ReplyDeleteबड़ी कोमल प्रस्तुति।
ReplyDeleteअच्छी रचना!!!!!!!!!!!!! क्या अंदाज़ है बहुत खूब
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकानाएं !
समय हो तो अवश्य पढ़ें यानी जब तक जियेंगे यहीं रहेंगे !
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html
sundar rachna
ReplyDeleteबेहत सुन्दर !
ReplyDeleteदीदी
ReplyDeleteहर्फ़, पैरहन :(
मैंने गूगल पर ढूँढा पर जो अर्थ मिले वो शायद थोड़े कम फिट बैठते हैं :(
@ गौरव,
ReplyDeleteहर्फ़ = अक्षर,
पैरहन= पहने हुए कपड़े
दीदी...
तब मैं औंधे मुँह
ReplyDeleteतकिये पर न जाने कितने
हर्फ़ उकेर देती हूँ
जो सुबह की
रौशनी में
धब्बे से बन जाते हैं....
दीदी,
ठंडक सी फ़ैल गयी दिमाग में अर्थ समझते ही
एक बात तो है अक्सर आप जो भी लिखती हैं आँखों के सामने अपने आप ही उसका विडिओ या JPG बनता चला जाता है मेरा मानना है की ये सबके दिमाग में एक जैसा ही होता होगा
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ये रचना है या
बेहद आसानी से
लगा दिया आपने
कोई चित्र सा अद्भुद
हर एक मन की दीवार पर
रंग भरे हैं भावों के जाने कितने
शब्दों से
हम तो सोचते थे
बस सात होते हैं
इन्द्रधनुष को देख कर
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चित्र चयन बेहद सटीक है
[गाना सुनना अभी बाकी है ]
aapka ukera ek_ek harf lajawaab hai
ReplyDeletebehad prabhavee likha hai aapne
ismen tasawwur, lekhan aur qabiliyat ka zabardast sangam hai
ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी
ReplyDeleteऔर ख्यालों से
दोस्ती
जिनके हाथ थामते ही
तैर जाते हैं
कागज़ी पैरहन में
भीगे हुए से, कुछ रिश्ते
uff! kya baat kahi ....jaise labz ghul gae aapki rachana ki gaharaiyon me....bahut bahut pasand aai.
Aabhar
अदा दी ! कितनी अच्छी रचना है ... आपकी रचनाओं की कोई पुस्तक प्रकाशित है क्या ?
ReplyDeleteपद्मसिंह जी,
ReplyDeleteसबसे पहले आपका आना अच्छा लगा...धन्यवाद...
जी हाँ ! मेरी एक पुस्तक छप चुकी है...
पुस्तक का नाम है 'काव्य मंजूषा'....
दूसरी छपवाने की प्रक्रिया में लगी हुई हूँ...बहुत जल्द छप जायेगी....
शुक्रिया....
सुन्दर
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