Wednesday, August 11, 2010

किसी को इतना न दबाया जाए कि वो विस्फोट कर जाए....


स्त्री-पुरुष विमर्श कोई नया विषय नहीं है ब्लॉग जगत के लिए ..गाहे-बगाहे इस तरह की बातें नज़र आतीं ही रहतीं हैं ..और इस विषय पर अनगिनत बार उठा-पटक हो चुकी है....एक तरह से देखा जाए तो यह अच्छा ही रहता है...महिलायें अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहती हैं और पुरुष भी अगर कहीं भटक गए हों तो लौट आते हैं...

अपने देश से दूर दराज़ बैठी अक्सर सोचती हूँ..कि हमारे देश कि महिलाएं कितनी जागरूक हैं...अगर ऐसा नहीं होता तो क्या हम, लक्ष्मीबाई, चाँद बीवी, रज़िया सुलतान, इंदिरा गाँधी, सरोजिनी नायडू और न जाने कितनी वीरांगनायें और महान महिलाओं के वंशज हो पाते क्या...शायद नहीं...फिर भी अभी बहुत कुछ करना है...आम घरों की महिलाएं अगर ज्यादा नहीं तो कुछ तो पिसी, घुटी आज भी हैं....

दो साल पहले  मैं रांची में थी और अपनी एक ज़मीन पर बाउंडरी वाल करवा रही थी...मेरा काम contract पर था...मुझे पता चला कि पुरुष मजदूर की मजदूरी से महिला मजदूर की मजदूरी कम है...सुन कर कुछ अजीब तो लगा ....लेकिन हर किसी की  तरह मैं भी चुप ही रह गयी...
वापिस आने के बाद कहीं एक आर्टिकल पढने को मिला कि वाल मार्ट जो शायद दुनिया का सबसे बड़ा रिटेल स्टोर है...वहां भी महिलाओं और पुरुषों में wage gap है...ज़रा सोचिये ..वाल मार्ट जैसी बड़ी कंपनी इस तरह का दोहरा व्यवहार कर सकती है ..और यहाँ की तथाकथित प्रगतिशील सरकार ऐसी घटिया पालिसी वाले उनके टैक्स रिटर्न्स पर न सिर्फ़ ठप्पा लगा रही है अपितु ऐसा करके दूसरी कंपनियों के लिए भी रास्ते खोले जा रही है ....और उससे भी बड़ी बात जो ध्यान देने वाली है ..यहाँ की प्रगतिशील  महिलाएं इस बात को कबूल करके न जाने कब से, काम करती ही जा रहीं हैं ....हैरानी होती है कि ...ये देश इन मामलों में हमलोगों से कितने पिछड़े हैं.... फिर भी दुनिया इनको अग्रणी मानती है...ये मेरी समझ से परे है ....

आपसे एक बात कहना चाहूंगी...अगर हम ज़रा सा कम स्वार्थी, ज़रा सा कम भ्रष्ट, ज़रा सा कम आलसी और ज़रा सा कम अहंकारी हो जाएँ तो पूरी दुनिया के छक्के छुड़ा सकते हैं...लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते कारण बहुत ही साधारण सा है...
हम लोग एक नंबर के स्वार्थी, झगडालू ,मतलबी, सिर्फ अपना फायदा देखने वाले, और अपनों की पीठ पर छुरा घोंपने वाले लोग हैं....हम सिर्फ़ त्याग का ढकोसला करते हैं...अरे ! जब बस की सीट और ट्रेन की बर्थ या फिर पार्किंग स्पेस, या रास्ता छोड़ने में हमारी नानी मरने लगती है ...तो सोचिये जहाँ सचमुच कुछ कीमती त्यागना हो क्या हम त्याग पाते हैं...?? नहीं न ..!!


जब एक राष्ट्र की मानसिकता ही ऐसी हो 'कि मेरा काम होना चाहिए, बाक़ी लोग जाएँ चूल्हे में' फिर तो राष्ट्र का हित नहीं हो सकता, कभी मनन करेंगे तो पायेंगे कि हमारे इन्ही दुर्गुणों ने ही हमें सदियों तक गुलाम बनाये रखा...ये सारे दुर्गुण आज के नहीं हैं..ये हमें विरासत में मिले हैं....नहीं तो देश इतने टुकड़ों में न बँटा होता....छोटे छोटे राजा इस तरह एक दूसरे के खिलाफ न होते और न ही एक दूसरे से नमकहरामी करते ...और न ही मुग़ल, हूण, अंग्रेज हमारी इस कमी का फायदा उठा कर ...हमारी नस्ल ख़राब करते और २००० साल की गुलामी दे देते...इन छोटे दुर्गुणों की हमने बहुत सजा काटी है...लेकिन उससे क्या होता है .. हम क्या अभी भी सुधर पाए हैं....?

बात मैं कर रही थी स्त्री-पुरुष विमर्श की और पहुँच गई ..राष्ट्र की मानसिकता पर ..लेकिन समाज बनता ही है स्त्री और पुरुष से ..दोनों इकाइयों को सबल होना ज़रूरी है..गाड़ी में एक पहिया जेट का और दूसरा साइकिल का नहीं चलता ..हम अपना इतिहास देखेंगे तो पायेंगे स्त्रियों ने हर बार ख़ुद को साबित किया है...ये तब की बात है जब साधन कम थे और रुकावटें  ज्यादा...अब तो सब कुछ मुहैया है फिर काहे को रोकना...अगर समाज ने स्त्रियों को उनके अधिकार उन्हें सम्मान पूर्वक दिया तो ठीक है वर्ना महिलाएं भी अब छीन लेने में यकीन करने लगीं हैं...

और ये भी एक विडंबना है ..की जब वो छीनने पर आ जाती हैं तो फिर ..इज्ज़त भी पातीं है...फूलन देवी एक उदाहरण है...जब तक वो चुप रही.. झेलती रही...जब उसने ख़ुद को सक्षम बना लिया...'नोबेल पुरस्कार' तक के लिए नामित की गई...
मैं नहीं कहती की हर स्त्री फूलन देवी ही बन जाए..लेकिन किसी को इतना न दबाया जाए कि वो विस्फोट कर जाए...

हाँ नहीं तो..!!




7 comments:

  1. लेकिन किसी को इतना न दबाया जाए कि वो विस्फोट कर जाए...
    सुन्दर और सार्थक पोस्ट.

    ReplyDelete
  2. अगर समाज ने स्त्रियों को उनके अधिकार उन्हें सम्मान पूर्वक दिया तो ठीक है वर्ना महिलाएं भी अब छीन लेने में यकीन करने लगीं हैं...
    हाँ नही तो.
    सुंदर सामयिक और सटीक लेख के लिये बधाई ।

    ReplyDelete
  3. यूं तो आपने 'फीलिंग्स' को बहुत अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है पर मेरा ख्याल है कि इन 'फीलिंग्स' की अभिव्यक्ति के लिए फूलन से पावरफुल कोई और 'शब्द' ही नहीं है ! सटीक चित्र / शब्द !

    ReplyDelete
  4. फूलन देवी का 10 अगस्त को 47 वां जन्मदिन था...फूलन देवी की 25 जुलाई 2001 को हत्या हुई थी तो वो सिर्फ 38 साल की थी़ं...इतनी छोटी सी उम्र में ही फूलन ने क्या नहीं देखा...अत्याचार, डकैत का जीवन, समर्पण के बाद सांसद बनना और फिर हत्या...फूलन को जिन्होंने नेता बनाया, वो किसी नारी उत्थान की भावना से नहीं था, बल्कि जात-पांत की राजनीति उसके पीछे काम कर रही थी...और उसी जात-पांत ने पहले फूलन को डाकू बनाया और फिर अंतत: उसकी जान ले ली...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  5. अगर हम ज़रा सा कम स्वार्थी, ज़रा सा कम भ्रष्ट, ज़रा सा कम आलसी और ज़रा सा कम अहंकारी हो जाएँ तो पूरी दुनिया के छक्के छुड़ा सकते हैं...लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते कारण बहुत ही साधारण सा है...
    हम लोग एक नंबर के स्वार्थी, झगडालू ,मतलबी, सिर्फ अपना फायदा देखने वाले, और अपनों की पीठ पर छुरा घोंपने वाले लोग हैं....हम सिर्फ़ त्याग का ढकोसला करते हैं...अरे ! जब बस की सीट और ट्रेन की बर्थ या फिर पार्किंग स्पेस, या रास्ता छोड़ने में हमारी नानी मरने लगती है ...तो सोचिये जहाँ सचमुच कुछ कीमती त्यागना हो क्या हम त्याग पाते हैं...?? नहीं न ..!!


    खून में है जिसकी सफाई संभव नहीं !

    ReplyDelete
  6. आपकी बातें सोलह आने सही हैं ।
    लेकिन यहाँ सरकारी नौकरी में कोई भेद भाव नहीं होता , स्त्री पुरुष में ।
    और सभी अधिकार भी प्राप्त हैं महिलाओं को ।
    चलिए कहीं तो अच्छा है ।

    ReplyDelete
  7. विचारणीय पोस्ट। एक समाज में रहकर अलग अलग मानदण्ड नहीं बनाये जा सकते हैं।

    ReplyDelete