Friday, August 13, 2010

ब्लॉग जगत रूपी भवसागर में...



ब्लॉग जगत रूपी भवसागर में,
छद्म नाम फाड़ कर
कोई तो 
रूप गर्विता सच्चाई 
को सामने ले आओ,
कोई तो प्रेम के दर्शन कराओ !
परन्तु तुम्हें क्या !
तुम तो ...
पोस्ट को अदाओं से गरिष्ठ 
और चिटठा जगत में वरिष्ठ बनाओ,
जो कमसुख़न हों 
उन्हें सुख़नवर दिखाओ,
यहाँ बिना कृति के कीर्ति 
और बिना प्रतिभा के प्रतिष्ठा
मिलती है,
कभी-कभी तो
आयु और मेधा 
एक दूसरे से बतियाते तक नहीं,
उच्च पदासीन रहते हैं 
हंगामे और बवाल,
कुछ...
पुरखे ताज़ा-तरीन हैं,
और कुछ बस नीम जिंदा,
कुछ...
खिलाड़ी निर्विवाद हैं,
लेकिन... 
ज्यादा देदीप्यमान हैं
उन्मादी और लफंगे,
ये तो अच्छा है कि 
कनिष्ठों की बहार है,
और...
कुछ वरिष्ठ तारनहार हैं,
बस... 
एक हम जैसे 
दरमियान में आ जाते हैं ,
कहाँ समझ पाते हैं !
हवाओं के खुसुर-फुसुर,
फिलहाल जाने क्यूँ 
दिशाएं सुन्न लग रहीं हैं...!


23 comments:

  1. बढ़िया मार की है.. क्या बात है आजकल हर जगह कटाक्ष ही दिख रहे हैं...

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  2. शानदार व्यंग्य है 'अदा ज़ी'

    पोस्ट को अदाओं से गरिष्ठ
    और चिटठा जगत में वरिष्ठ बनाओ,
    जो कमसुख़न हों
    उन्हें सुख़नवर दिखाओ,
    यहाँ बिना कृति के कृति
    और बिना प्रतिभा के प्रतिष्ठा
    मिलती है,

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  3. एक हम जैसे
    दरमियान में आ जाते हैं ,
    कहाँ समझ पाते हैं !
    हवाओं के खुसुर-फुसुर
    sahi baat hai ..

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  4. हवाओं के खुसर फुसुर तो हमको भी नहीं बुझाती है।

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  5. दीपक जी ने सच कहा है, बहुत ही सुन्दर कटाक्ष !

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  6. यहाँ बिना कृति के कृति
    और बिना प्रतिभा के प्रतिष्ठा
    मिलती है,
    सही बात , कहने का ढंग अलग बधाई

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  7. "फिलहाल जाने क्यूँ दिशाएं सुन्न लग रहीं हैं...!"
    -या है किसी तूफ़ान के पहले का सन्नाटा.....
    -आ सकती है कभी भी सच्चाई अब सामने .....
    -और हो सकते हैं दर्शन प्रेम के...
    -परन्तु तुम्हें क्या !तुम तो ......

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  8. अरे अदा जी , सोलिड व्यंग है भाई .. आज आपकी कविता ऐसी लग रही है मानो अर्जुन शर संधान कर रहे हो

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  9. likhne main aaj kuch naya hi andaaj hai...

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  10. निसंदेह आप बेहद संवेदन शील हैं.और यह भी उतना ही सच है कि संवेदित मन से ही अमर रचना का प्रस्फुटन होता है.लेकिन आपकी इतना प्रभावी और सामयिक रचनाओं को भी पढने की फुरसत या चार लफ्ज़ कह देने की फुर्सत लोगों के पास नहीं है.
    ऐसा ही हुआ उस पोस्ट के साथ जिसे मैंने गत दिनों अपने ब्लॉग साझा-सरोकार पर लगाया था.
    और विभाजन पर केन्द्रित हमज़बान की इस कविता के साथ भी लोग ऐसा ही व्यव्हार कर रहे हैं.ब्लॉग जगत में लगता है अधिकाँश लोग कुड मगज हैं.और फ़िज़ूल की बहस और मनोरंजक चीज़ों में ही इन्हें मज़ा आता है.

    विभाजन की ६३ वीं बरसी पर आर्तनाद :
    कलश से यूँ गुज़रकर जब अज़ान हैं पुकारती
    शमशाद इलाही अंसारी शम्स की कविता
    तुम कब समझोगे कब जानोगे
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_12.html

    शहरोज़

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  11. आपका शिकवा जायज़ है :)

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  12. सभी लोग व्यंग्य कह रहे हैं तो व्यंग्य ही होगा जी,
    हमें तो व्यथित हृदय के उदगार लग रहे हैं।
    लोग सही हैं तो पोस्ट बहुत बढ़िया है आपकी और अगर हमें जो लगा वो सही है तो हमें पोस्ट पढ़कर अच्छा नहीं लगा।
    ’कभी-कभी’ और ’सिलसिला’ जैसी फ़िल्में बनाने वाले कैंप से जब ’धूम’ और ’बंटी और बबली’ जैसी फ़िल्में बनती हैं तो हिट तो बेशक हो जायें, अपने जैसे सिरफ़िरों को मजा नहीं आता।
    आपकी पोस्ट तो प्रेरणा देती हुई ही अच्छी लगती है।

    सदैव आभारी।

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  13. यहाँ बिना कृति के कृति
    और बिना प्रतिभा के प्रतिष्ठा
    मिलती है ...
    सिर्फ यहाँ ही नहीं ... वास्तविक जगत की भी तो यही हकीकत है ...!

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  14. हम तो दर किनार है तो हम क्‍या बताएं।

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  15. अदा जी...

    कविता सुन्दर लिखी है तुमने...
    पर कटाक्ष भी खूब कसे...
    मन पर घाव हैं कितनो के...
    ये पढ़कर सबके हरे दिखे...

    ब्लॉगजगत का सत्य विवेचन...
    अपने शब्दों द्वारा किया...
    किसी को भी न बख्शा तुमने...
    सबको आड़े हाथ लिया....

    पर तठस्थ दिखाया खुद को...
    क्या तुम तारनहार नहीं?..
    या फिर गरिमा का ये आसन...
    तुमको है स्वीकार नहीं....

    हाहाहा....

    बहुत सुन्दर.....क्या कहें....

    Deepak...

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  16. सुन्दर कटाक्ष्…………जल्दी ही ला रही हूँ इसका उपाय्…………बस गौर फ़रमाना।

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  17. सुनो गजर क्या गाए,
    समय गुज़रता जाए...
    ओ रे जीने वाले, ओ रे भोले भाले,
    सोना ना, खोना ना...
    ओ...ला...ला...ओ...ला...ला...

    बिछड़ा ज़माना कभी हाथ न आएगा,
    दोष न देना मुझे फिर पछताएगा...

    ओ रे जीने वाले, ओ रे भोले भाले,
    सोना ना, खोना ना...
    ओ...ला...ला...ओ...ला...ला...

    सुनो गजर क्या गाए,
    समय गुज़रता जाए...

    जय हिंद...

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  18. @ विवेक जी,
    आपने मेरा..हाल-चाल पूछा ... आपका शुक्रिया...
    मैं ठीक हूँ ..मुझे कुछ नहीं हुआ है...
    बस ब्लॉग जगत की तबियत कुछ नासाज़ लगी मुझे....इसीलिए लिख दिया...
    हा हा हा ...

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  19. @ Archna ji ..
    aapne meri kavita ko vistaar diya..
    aapka shukriya..

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  20. संजय जी..
    आप तो व्यंग सम्राट हैं...आप ऐसी बात कह रहे हैं...?
    सच पूछिए तो ..असली कॉमेडी में ही ट्रेजेडी होती है...
    ख़ैर मैं आपकी तरह तो लिख ही नहीं सकती...इसलिए मिस फायर हो गया हो...
    आपने अपने मनोभाव व्यक्त किये ..आभारी हूँ..
    धन्यवाद..

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