शुमार थे कभी उनके, रानाई-ए-ख़यालों में
अब देखते हैं ख़ुद को हम, तारीख़ के हवालों में
गुज़री बड़ी मुश्किल से, कल रात जो गुज़र गई
और टीस भी थी इंतहाँ, तेरे दिए हुए छालों में
बातों का सिलसिला था, निकली बहस की एक बात
फिर उलझते चले गए हम, कुछ बेतुके सवालों में
सागर का दोष कैसा, वो चुपचाप ही पड़ा था
डुबो दिया था उसको, चंद मौज के उछालो ने
मैं गूंगी हुई तो क्या हुआ, इल्ज़ाम गाली का है
परेशान कर दिया है, इस वकील के सवालों ने
कुछ सूखे से होंठ थे, और कुछ प्यासे से हलक
पर गुम गईं कई ज़िंदगियाँ, साक़ी तेरे हालों में
रानाई-ए-ख़यालों=कोमल अहसास
साक़ी=शराब बाँटने वाली
हाला=शराब की प्याली
अब एक गीत भी सुन लीजिये हमारी आवाज़ में ...
गुज़री बड़ी मुश्किल से, कल रात ये जो गुज़री
ReplyDeleteऔर टीस भी बहुत थी, तेरे दिए हुए छालों में ....
क्या खूब लिखती हैं आप काव्य जी
और आप का तो नाम भी काव्य है ....
बहुत अच्छी लगी आपकी अभिब्यक्ति
मैं गूंगी हुई तो क्या है, इल्ज़ाम गाली का है
ReplyDeleteपरेशान कर दिया है, इस वकील के सवालों ने
बेहतरीन। लाजवाब।
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
ReplyDeleteतुझे पढता हूं जब भी ,उलझ जाता हूं सवालों में , किसी के जेहन में नहीं आती ,वो आती है कैसे तेरे ख्यालों में ...
ReplyDeleteकुछ तो हुआ होगा हादसा उसके साथ ऐसा कि ,
अंधेरों में लिपटी लडकी , डरती है आज उजालों में ॥
अच्छी अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteबहुत दर्द भरी गज़ल लिखी है इस बार आपने, सभी शेर एक से बढ़कर एक स्वीट। स्वीटनैस और सैडनैस बहुत नजदीक के रिश्तेदार हैं।
ReplyDeleteचित्र में ये जो knot है, इसका कुछ खास नाम भी है, याद नहीं कर पा रहा हूँ।
गाना भी हमेशा की तरह बहुत अच्छा लगा, पहले भी सुनवा चुकी हैं वैसे आप ये गीत।
सदैव आभारी।
लाजवाब रचना, वादियां तेरा दामन....गीत अर्से बाद सुना, आपकी आवाज में सुनना बडा सुखद लगा, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
बातों का सिलसिला था, निकली बहस की नोकें
ReplyDeleteऔर फिर उलझ गए हम, कुछ बेतुके सवालों में
सागर का दोष कैसा, वो चुपचाप ही पड़ा था
डुबो दिया था उसको, चंद मौज के उछालो ने
Sundar, adaji.
आपके मधुर गाने को सुनने में इतना खो गया कि कविता को पढ कर भी चाह कर भी आनंद नहीं ले पाया.
ReplyDeleteआपके स्वर मे मिठास है,कोमलता का एहसास है, और पिछले दिनों की नायिकाओं के मन की सुंदरता, निश्छलता की अभिव्यक्ति है.
आपके बहुआयामी व्यक्तित्व से प्रभावित हूं.
गाते रहियेगा.
एक छोटी सी अर्ज़. अगर ये ट्रॆक हो तो भेज सकेंगी?
another mind blowing writting
ReplyDeleteइत्ती खूबसूरत गज़ल आखिर आई कहाँ से
ReplyDeleteअदा तो सब से छुपी है फिर ये अदा आई कहाँ से ?
आना जाना बंद है आज कल इनका किसी के भी घर में..
फिर ये उलझते सवाल उठाती कहाँ से ?
ग़ज़ल शानदार है, और गीत गायन उस का कोई जवाब नहीं।
ReplyDeleteआप तो फुल टाइम शायरा बन जाइए दी.. आवाज़ भी है कमाल का लेखन भी.. और क्या चाहिए..
ReplyDeleteमैं गूंगी हूँ तो क्या हुआ, इल्ज़ाम मुझपर गाली का है
ReplyDeleteपरेशान कर दिया है अब, इस वकील के सवालों ने
-क्या कहने...
गाना भी बेहतरीन.
शुमार थे कभी उनके, रानाई-ए-ख़यालों में
ReplyDeleteअब देख रहे हैं ख़ुद को हम, तारीख़ के हवालों में....
सुन्दर ...
कुछ सूखे से वो होंठ थे, और कुछ प्यासे से हलक
पर गुम हो गईं कई ज़िंदगियाँ, साक़ी तेरे हालों में...
ये भी बहुत पसंद आया ...
गीत तो हमेशा की तरह मधुर है ही ...!
बहुत अच्छी लगी आपकी अभिब्यक्ति
ReplyDelete"शुमार थे कभी उनके, रानाई-ए-ख़यालों मेंअब देखते हैं ख़ुद को हम, तारीख़ के हवालों में"
ReplyDeleteबेहद मानी खेज़ !
खूबसूरत गज़ल !
ReplyDeleteसूपर। माफी चाहूंगा कि बहुत दिनों के बाद आया, लेकिन आया, तो हमेशा की तरह आपा की बेहतरीन रचना मिली...
ReplyDeleteमैं गूंगी हूँ तो क्या हुआ, इल्ज़ाम मुझपर गाली का है
ReplyDeleteपरेशान कर दिया है अब, इस वकील के सवालों ने
इन पंक्तियों ने तो कुछ कहने की जगह नहीं छोड़ी है निशब्द
तकनीकी कारणों से गाना अभी नहीं सुन पाया हूँ
शुमार, रानाई-ए-ख़यालों, साक़ी, हालों
के अर्थ भी बताएं तो बस पूर्णता का एहसास हो जाये .... भाव तो समझ में आ गया है
दीदी,
ReplyDeleteकृपया स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष पर प्रकशित मेरी एक पोस्ट अवश्य पढ़ें [मेरे ब्लॉग पर ]और कोई कमीं नजर आये तो भी अवश्य बताएं
शुमार थे कभी उनके, रानाई-ए-ख़यालों में
ReplyDeleteअब देखते हैं ख़ुद को हम, तारीख़ के हवालों में
मैं तो पहले ही शेर पर भौंचक हूँ... मौन प्रशंसा स्वीकारें..
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है..... बहुत खूब!
ReplyDeleteसागर का दोष कैसा, वो चुपचाप ही पड़ा था
ReplyDeleteडुबो दिया था उसको, चंद मौज के उछालो ने
kya baat hai !
गौरव,
ReplyDeleteये रहे मतलब..बहुत दिनों बाद आए हो..अच्छा लगा देख कर..
रानाई-ए-ख़यालों=कोमल अहसास
साक़ी=शराब बाँटने वाली
हाला=शराब की प्याली
ख़ुश रहो...
दीदी..
सवाल तो हमेशा ही कचोटते हैं हम सबको। इल्जांम लगाये जाने से बच नहीं पाता हूँ।
ReplyDeletegehri gazal aur meethi awaaz
ReplyDelete@ नदीम,
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद तुम्हें देखा ..
इन्तेहाई ख़ुशी हुई है...
खुश रहो..
दीदी ...
ReplyDeleteसभी टिप्पणीकर्ता जब उसी लाइन को दोहरा कर प्रशंसा करते है जिसका थोडा बहुत अर्थ मुझे न आता हो तो उत्सुकता बहुत ज्यादा बढ़ ही जाती है न भी दोहरायें तो भी पूछे बिना नहीं मानूंगा :)
हर बार की तरह अर्थ जान कर पूर्णता का एहसास हो ही गया
छोटा भाई और कहाँ जायेगा , जब भी ब्लोगिंग करेगा दीदी के घर [अर्थात ब्लॉग] पर तो आएगा ही आयेगा
यहाँ विश्वास का उजाला है और एक नहीं कईं सारे दिये हैं इसलिए घर कहा है [मकाँ नहीं ] :)
[गाना सुनना अभी बाकी है ]
हाँ वैसे वेरी वेरी हैप्पी रक्षा बंधन टू माय "ब्लोगर दीदी"
feels very awkward to leave ma comment here in english....
ReplyDeleteu r an awesome matured poet.... every line heave weight and so worthful