रुख को कभी फूल कहा आँखों को कमल कह देते हैं
जब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
वो परवाना लगता है कभी और कभी दीवाना सा
जल कर जब भी ख़ाक हुआ शम्मा की चुहल कह देते हैं
वो आके खड़े हो जाते हैं जब सादगी लिए उन आँखों में
वो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं हम ताजमहल कह देते हैं
लगता तो था कि आज कहीं हम शायद नहीं उठ पायेंगे
सीने में वो जो दर्द उठा चलो उसको अजल कह देते हैं
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
मंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
अजल=मौत
बेकरार दिल तू गाये जा खुशियों से भरे वो तराने
आवाज़ ....स्वप्न मंजूषा 'अदा'
बहुत सुन्दर दीदी गीत भी और गज़ल भी :)
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल और गायन के साथ हमारी फरमाईश पूरी करने का आभार.
ReplyDeleteक्या जाने कितने पत्थर हमपर सबने बरसाए आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं उसे वो रंग महल कह देते हैं
बेहतरीन गज़ल. आपकी गायकी के क्या कहने
गजल और गायकी दोनों ही सुभान अल्लाह -मिल कर एक रूहानी सरूर का अहसास करा देते हैं !
ReplyDeleteवो आकर खड़े हो जाते हैं जब सादगी लिए उन आँखों में
ReplyDeleteवो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं हम ताजमहल कह देते हैं
बहुत लाजवाब शे'र लगा.....
और मक्ते की आखिरी लाईन ....!!!!!!!!
मंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं.....( कमाल ..कमाल... है...)
बहुत touch करती है...
गीत ...बाहुबली की सबसे पहली बार प्रकाशित अंतिम कड़ी के बाद आपने गाया था...
छः महीने होने को आये...तब से अक्सर रोज ही सुन लेते हैं...
aur haan,
मतले में कवँल को कमल कर लीजिये....
अच्छी रचना। बधाई।
ReplyDeleteवो आकर खड़े हो जाते हैं जब सादगी लिए उन आँखों में
ReplyDeleteवो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं हम ताजमहल कह देते हैं
ताजमहल की ऐसे पाक व्याख्या पहले किसी ने नहीं की होगी ...
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
मंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
जो मंदिर को समझेंगे नहीं ...रंगमहल ही तो कहेंगे ....!!
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
दूर का राही... बहुत अच्छा.
आपकी आवाज़ के दीवाने बेक़रार दिल का ऐसी ही बेकरारी से इन्तजार किया करते हैं ....बहुत मधुर गीत ...!!
ReplyDeleteआपकी महकी हुई ज़ुल्फ़ को कहते हैं घटा.
ReplyDeleteआपकी मदभरी आंखों को कंवल कहते हैं...
मैं तो कुछ भी नहीं तुमको हसीं लगती हूं
इसको चाहत भरी नज़रों का अमल कहते हैं...
जय हिंद...
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल , बधाई !!
ReplyDelete"क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'"
ReplyDeleteसफल आदमी वह होता है जो अपने पर फेंके गये पत्थरों से एक ठोस नींव बना डाले!
- डेविड ब्रिंकले
(A successful man is one who can lay a firm foundation with the bricks others have thrown at him. - David Brinkley)
:-)
गाना भी हमेशा की तरह मधुर व कर्णप्रिय!
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं अच्छी रचना। बधाई।
लगता तो था कि आज कहीं हम शायद नहीं उठ पायेंगे
ReplyDeleteसीने में वो जो दर्द उठा चलो उसको अजल कह देते हैं
Bahut khoob !
वो परवाना ही लगता है और कभी दीवाना सा फिरता है
ReplyDeleteजल कर जब भी ख़ाक हुआ शम्मा की चुहल कह देते हैं
बहुत खूब!
बी एस पाबला
हम तो बस इस बेकरार दिल मे खो गये.. और इसे फुल वॉल्यूम पर बजाकर सुना ..पूरे घर मे गूंज रही है आपकी आवाज़... ।
ReplyDeleteगज़ल के लिये भी कह देते हैं .. नहीं... कहते हैं..बढ़िया है ।
रुख को कभी फूल कहा आँखों को कवँल कह देते हैं
ReplyDeleteजब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
मुक्कमल और बेहतरीन ग़ज़ल.
बहुत सुन्दर गजल भी और आपकी मधुर आवाज़ भी ..शुक्रिया
ReplyDeleteलगता तो था कि आज कहीं हम शायद नहीं उठ पायेंगे
ReplyDeleteसीने में वो जो दर्द उठा चलो उसको अजल कह देते हैं
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
मंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
वाह वाह गज़ल भी और गीत भी शुभकामनायें
आज तो बस deadly combination था...इतनी सादगी से कही ग़ज़ल...और सुरीली आवाज़ में गीत....बस लुत्फ़ आ गया.
ReplyDeleteBahut sundar gazal! Alfozon kee mohtaji hai,ki, isse alag kuchh kah nahee pate!
ReplyDeleteथक गया हूँ कह-कह के , कुछ और भी कहने का मौका तो दिजीए माई डियर दीदी ।
ReplyDeleteक्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
gazal or gayeki dono behtareen hain Adaji!
बहुत सुंदर रचना!
ReplyDeleteक्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
--वाह पूरी गज़ल खूबसूरत है।
रुख को कभी फूल कहा आँखों को कवँल कह देते हैं
ReplyDeleteजब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
जबाब नही , बहुत सुंदर
"वो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं हम ताजमहल कह देते हैं"
ReplyDeleteअरे वाह वाह!
कल की गुफ़्तगु और अब इन बेमिसाल मिस्रों का जादू....हायssssssssss!
शिर्षक वाला मिस्रा तो बस कयामत है...कयामत!
अभी जा रहा हूँ विवादों को परखने...
"क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं"
क्या कहूँ ? आजकल इस भ्रम का निवारण ही नहीं सूझता । मंदिर कई बार रंगमहल हुआ जा रहा है । आप की दृष्टि ने बाँध लिया । एक एक शेर तराशा हुआ, पूरी कलाकारी के साथ ।
बस पढ़ता गया ।
geet to hamesha ki tarah lajwaab hai hi.
ReplyDeletebadhaii !!
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
aapki yah ghazal lagi to bahut hi behtareen, lekin baat kuch samajh mein nahi aayi ??
रुख को कभी फूल कहा आँखों को कवँल कह देते हैं
ReplyDeleteजब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
बढ़िया गजल है!
रुख को कभी फूल कहा आँखों को कवँल कह देते हैं
ReplyDeleteजब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
pahile du line par flat ho gaye ham to...
aur ye wala gana bhi hai mere paas aapki aawaaz mein (kaise ye aap batayein!!!)
मेरा बहोत ही पसन्दीदा गाना. कई सालों से सून रहा हू.
ReplyDeleteआपकी गायकी भी बहोत पसंद आई.