खैर....हम सभी गाड़ी में लदे हुए चले जा रहे थे...रात हम सबने 'कुर्बान' फिल्म देखी थी और उसी की विवेचना भी करते जा रहे थे....'कुर्बान' फिल्म अपने आप में technicaly बहुत ही अच्छी फिल्म लगी हम सबको.....हमलोग फिल्म के शाट्स और कैमरा मूवमेंट्स, सेट्स इत्यादि से बहुत प्रभावित हुए थे....कुछ शूटिंग्स पब्लिक जगहों पर भी हुई थी और बहुत अच्छी हुई....कुल मिला कर पूरी फिल्म काबिल-ए-तारीफ है...
क्योंकि यह फिल्म आतंकवाद और आतंकवादियों पर बनी है ..बातों का रुख मुंबई हादसे की तरफ मुड़ गया और आतंकवादी 'कसाब' पर आकर बात ठहर गयी.....कसाब का ज़िक्र होते ही....मेरा मन आंदोलित होगया गुस्से के अतिरेक में मैंने कहा कि 'कसाब' को तुरंत फांसी दे दी जानी चाहिए.... परन्तु मेरे बच्चों की सोच बिलकुल ही अलग है.....दोनों लड़के.....मयंक और मृगांक फाँसी जैसी सजा के बिलकुल विरुद्ध हैं....
मृगांक का कहना है....अगर कसाब ने लोगों की हत्या की और आप उस गुनाह की सजा उसे, उसकी हत्या करके दे रहे हैं तो आप भी वही गलती कर रहे हैं, फिर आपका गुनाह कैसे कम हो जाता है....हत्या के बदले हत्या ?? किसी भी दृष्टि से यह न्याय नहीं हो सकता है....
न्यायपालिका का काम है अनुशासन बनाए रखना ना कि दहशत फैलाना....अगर कानून को अपना काम सही तरीके से करने दिया जाए और कानून का सही मायने में पालन हो तो....तो समाज को अनुशासित होने में बिलकुल भी समय नहीं लगेगा ..हां लेकिन शर्त यह है की कानून का पालन सभी करें....मसलन.....सड़क पर अगर सभी गाड़ियां ट्राफिक के नियम का पालन करतीं हुई चलें तो क्या आपको लगता है कि लाल बत्ती की भी ज़रुरत है ??? उसका सवाल सही था......और मेरा जवाब.....नहीं अगर सचमुच सभी ट्राफिक के नियमों का पालन करेंगे तो भला लाल बत्ती कि क्या जरूरत !!!! बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है...जैसे यहाँ कनाडा में...कभी-कभी कहीं ट्राफिक लाईट ख़राब हो जाती है तो ट्राफिक खुद-ब-खुद automatic अनुशासित हो जाती है और सभी गाड़ियां नियम का पालन करती हुई चलने लगतीं हैं...
बात भटक कर ट्राफिक पर चक्कर काट रही थी...मैंने बात का रुख फिर से कसाब की ओर और 'फांसी' की सजा की ओर किया ...मयंक का कहना था अगर कसाब को फांसी दे दी गयी तो बात एक ही झटके में ख़तम ही हो जायेगी....और ऐसा नहीं होना चाहिए.....दरअसल अगर हम उसे फांसी देते हैं तो हम उसपर अहसान कर रहे हैं, हम उसकी मदद कर रहे हैं....उसे कभी भी महसूस नहीं हो पायेगा कि उसने क्या गलती की है.....वो कभी भी इंसानी जीवन का मूल्य समझ नहीं पायेगा.....इसलिए फांसी की सजा उसके इतने बड़े गुनाह के लिए बहुत कम है....
कसाब ने जघन्य कृत्य किया है...और वो कठोर से कठोर सजा का हक़दार है.....ऐसी सजा जो अमानवीय ना हो लेकिन कठोरतम हो.... मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी कौन सी सजा होगी जो इतनी कठोर होगी ...और कसाब के घोर पाप के लायक होगी.....आखिर मैंने पूछ ही लिया तो तुम्हें क्या लगता है कैसी सजा होने चाहिए.....मृगांक का कहना था 'उम्र' क़ैद'.....मैंने मुस्कुरा कर उसे देखा और कहा ये तो कुछ भी नहीं है.....उम्र क़ैद कि सज़ा १४ साल होती है.....जेल में हर सुविधा के साथ १४ साल आराम से रहेगा...और फिर १४ साल बाद बाहर आ जाएगा ...और अपने देश लौट जाइएगा ...या तो बात ख़त्म हो जायेगी या फिर उसे इंडिया का terrorism specialist बना कर फिर किसी हमले में लगा दिया जाएगा......ये कोई सज़ा नहीं हुई ...
मृगांक ने कहा नहीं ये उम्र क़ैद वैसी नहीं होने चाहिए...उसे पूरे solitary में रखा जाए पूरे १४ साल...नितांत अकेला....इतना अकेला कि अकेलेपन को भी घबडाहट हो.....इन १४ सालों में उसे किसी एक इंसान से मिलने की आज्ञा नहीं मिलनी चाहिये.....बस वो और ८ x ८ का कमरा ....यहाँ तक कि उसे जेल के कार्यकर्ताओं के भी बस दूर से ही झलक दिखे......तब उसे इंसान और इंसानी रिश्तों का मूल्य समझ में आएगा......इंसान की क्या कीमत है इसको समझाने के लिए इससे अच्छी सजा कोई नहीं हो सकती और मम्मी एक गुमराह नौजवान के लिए ये सजा फांसी से बहुत बड़ी होगी.....और यही सज़ा उसे मिलनी चाहिए......उसके बाद जब वो बाहर आएगा......तो एक मक्खी भी मारने के लायक नहीं रहेगा....मैं सच कहता हूँ....!!!
आप क्या सोचते हैं....मृगांक क्या सही कहता है ????
बच्चों को एक शे'र सुनाइएगा...
ReplyDeleteकहीं ईजाद ना कर ले नए सामां तबाही के
के अब शैतान फुर्सत में है, है भी कारखाने में.....
मनु..'बे-तख्खल्लुस'
capital punishment--इसके For and Against में इतने तर्क हैं और इतनी बहस से गुजर चुकी बात है कि फिर से नये सिरे से शुरु करने वाली बात बची नहीं है...
ReplyDeleteफांसी तो अब ऑप्शन है वरना तो उसे ऑन द स्पॉट मार देना था..जिन परिवारों पर गुजरी है, उनसे पूछिये...तर्क कुतर्क बाहर बेहतर लगते हैं...वरन तो १४ साल ऐश काट कर वो फिर खुला घूमेगा..
मैने कई मर्डर के अपराधी सजा काट बाहर निकल बाहुबलि घूमते देखे हैं...तनिक नहीं सुधरते बल्कि और कठिन मानसिकता लेकर जेल से निकलते हैं
nice
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteघृणा अपराध से करो, अपराधी से नहीं...ये वाक्य भारत की किसी भी जेल में चले जाओ,
लिखा मिल जाएगा...मृंगाक और मयंक ने
भारतीय संस्कार कूट-कूट कर भरे होने के बावजूद
पश्चिमी माहौल में ही पढ़ाई की है...वहां फांसी की सज़ा को ही मानवता के ख़िलाफ़ अपराध
माना जाता है...आंख के बदले आंख जैसी सज़ा मध्ययुगीन या तालिबानी इंसाफ़ का तरीका
है...फिर कसाब जैसे जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों से कैसे निपटा जाए...कहने को
ये अच्छा लग सकता है कि कसाब को ताउम्र अपने किए का अहसास होता रहे इसके लिए कठोर आजीवन कारावास दिया जाए...ये बात वही सही हो सकती है जहां क़ानून का बिना भेदभाव पालन किया जाता हो...पैसे के बल पर कानून-कायदे का मखौल न बनाया जाता हो...कौन नहीं जानता कि अगर आपके पास पैसा है या राजनीतिक बैक है तो भारत की जेल में भी सभी ऐशो-आराम की सुविधाएं मिल जाती हैं...और भारत में ये एक मिथ बन गया है कि उम्र कैद चौदह साल की होती है....ऐसा कोई कानून नहीं है जो उम्र कैद चौदह साल की बताता हो...उम्र कैद का मतलब उम्र कैद ही होता है...हां चाल-चलन या दूसरे पहलुओं
पर विचार करने के बाद सरकार या शासन उम्र कैद पाए दोषी को चौदह साल बाद रिहा करने पर विचार कर सकता है...अगर मैं मृगांक और मयंक को बताऊं कि भारत में जेल ही अपराध के स्कूल और यूनिवर्सिटी बने हुए हैं तो शायद उन्हें यकीन नहीं होगा...अगर अपराध के मामले में कोई कच्चा खिलाड़ी जेल पहुंचता है तो उसे जेल में ऐसे ऐसे गुरुघंटाल मिलते हैं कि कच्चे अपराधी को भी हार्डकोर क्रिमिनल बना देते हैं...इसलिए साक्षरता की सौ फीसदी दर वाले पश्चिम से भारत की परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं...यहां तो अपराधियों से ठेठ देसी इलाज से निपटना ही ज़्यादा व्यावहारिक है...
चलिए छोड़िए आजकल मेरे दांत भी संतोष जी की तरह बहुत चमकने लगे हैं...नहीं यकीन आता तो देखिए...हा...हा...हा...
और हां बॉक्सिंग डे का मतलब समझाने के लिए आभार...
.इन १४ सालों में उसे किसी एक इंसान से मिलने की आज्ञा नहीं मिलनी चाहिये.....बस वो और ८ x ८ का कमरा ....यहाँ तक कि उसे जेल के कार्यकर्ताओं के भी बस दूर से ही झलक दिखे......तब उसे इंसान और इंसानी रिश्तों का मूल्य समझ में आएगा...
ReplyDeleteहर किसी के अपने मंतव्य और विचार हो सकते हैं. और बात तर्क की ही है तो किसी भी बात के पक्ष विपक्ष मे तर्क स्वाभाविक रुप से मौजूद होते ही हैं.
पर मैं निजी रुप से मृगांक से सहमत हूं. मेरे मनमाफ़िक तर्क उसने पहले ही दे दिये हैं.
रामराम.
खुशदीप जी से सहमत हूँ। और Anonymous kaa sher bilakul khushadeep jee kee baat kaa anumodan kar rahaa hai fansee hee sahee saja hai dhanyavaad
ReplyDeleteफांसी न देकर , उम्र कैद --यानि जिंदगी का इनाम ।
ReplyDeleteफिर किसी विमान अपहरण में कसाब आज़ाद।
मनुष्य अगर किसी चीज़ से डरता है तो वो है, मौत की सज़ा।
और यहाँ तो अनुशाशन नहीं, डर ही काम आ सकता है।
पहले ही हम उस पर एक साल में करोड़ों रूपये खर्च कर चुके हैं।
बस अब और नहीं।
उम्र क़ैद (14 साल ही नहीं ) ही सही है, क्योंकि अक्सर फांसी पर वही चढ़ते हैं जिनके केस जेठमलानी जैसे लोग नहीं लड़ते.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteनया साल मुबारक हो।
ek drishti se to ye sahi lagta hai aur shayd isse badi sazaa aur kya hogi...........insaan sabse lad sakta hai magar akelepan se nhi.........magar ye hamara desh hai yahan manvadhikar aayog aage aa jayega use chudane aur ise bhi amanviya yatna kah dega isliye aise mein agar kuch aatankvadiyon ko fansi de di jaye to sabke dilon mein ek dahshat baith jayegi ki agar pakde gaye to hashra kya hona hai aur tab shayad koi aisa karne ki jaldi se nhi sochega varna to pata hi hai ki zinda to rahenge hi na aur bharat ke kuch khas kism ke prani unke liye kuch na kuch to karenge hi aur wo phir aazad ho jayenge isliye faisla to wo hona chahiye jisse aatanvadiyon ke rongte kanpne lagein.
ReplyDeleteकहीं ईजाद ना कर ले नए सामां तबाही के
ReplyDeleteके अब शैतान फुर्सत में है, है भी कारखाने में.....
मनु बेनामी से सहमत। मानवीय दृष्टि से सॉलीटरी कनफाइनमेंट भी फाँसी से कम क्रूर नहीं है। बल्कि तिल तिल कर घुलाते हुए जिन्दा रखना अधिक क्रूर कर्म है। भारत जैसे 'रामभरोसे' देश में कसबवा को टाँग देना ही अच्छा है।
अब देखिए एक एक्स मुख्यमंत्री और वर्तमान राज्यपाल जी की कारगुजारी। पब्लिक है कि सब पहले से जानते हुए भी मुँह सिले थी। भंडा फूट गया तो उनके समर्थन में ब्लॉग जगत में भी पोस्ट रचे जा रहे हैं। दूसरी तरफ चटकारे लिए जा रहे हैं।
व्यवस्था और मानसिकता पर उठते प्रश्नों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
रुचिका और राठौर प्रकरण से आप अवगत ही होंगी। ऐसे भेड़ियाधसान वाले देश में जघन्य कर्म के दोषी अपराधी जितनी जल्दी खाक-ए-सुपुर्द हों उतना ही अच्छा।
मैं शायद प्रतिक्रियावादी लग रहा होऊँगा । मनु जी से सहमति जताने का एक अलग पक्ष है जिसे अभी शायद मैं स्पष्ट भी न कर पाऊँ।
....
उफ यह तो पोस्ट होती जा रही है। चलता हूँ - बाउ मरे हुए सिध्धर से कैसे निपटें, इसी गुंताड़ में मन उलझनी हो गया है।
gooooooooooood
ReplyDeleteअगर आप के बेटे मृगांक के कहने के अनुसार उम्र केद हो तो? लेकिन भारत मै ऎसा नही हो सकता, इसे तो सुना है हलाल का गोस्त, ओर पाकिस्तानी अख्बारे, ओर सेंट मिलते है.
ReplyDeleteमुस्लिम देशो का कानून कहता है कि आंक के बदले आंख, कान के बदले कान, बस इसे फ़ांसी ना दो बस इस के हाथ पेर काट कर, आंखे निकाल कर, कान कट कर, ओर जुवान निकाल कर इस के देश मै फ़ेंक दो. अगर इस से भी बडी सजा कोई ओर हो तो वो भी दी जाये, जिन के ब्च्चे जिन के सर का सहारा उन का बाप, जिन की मां मरी उन से पुछॊ इस को क्या सजा दी जाये, मै ओर आप कोन होते है इस की सजा निरधारित करने वाले, अगर मुझे हक मिले इसे सजा देने का तो मै यही सजा दुंगा जो मेने लिखी है,शेतान के लिये द्या भाव बिलकुल नही, क्योकि इंसान कभी बदल नही सकता
me bhi mrigank mayank ki baato se sehmat hu..aisa hi hona chahiye.
ReplyDeleteमैं तो बोक्सिंग के बारे मैं कुछ और जानना चाहता था -मसलन आपने क्या क्या खरीददारी की ..आदि... आदि ..!
ReplyDeleteचलिए उम्र कैद की सही वो भी solitary canfinement वाली.............. लेकिन इस बात की गारंटी कौन लेगा कि उसे छुड़ाने के लिए फिर एक हवाई जहाज अगवा नहीं होगा. क्या एक गुनाहगार को जिन्दा रखकर हम फिर सैकड़ों या हजारों बेगुनाहों के लिए मौत और राष्ट्रीय शर्मिंदगी को दावत नहीं दे रहे होंगे??????
ReplyDeleteअदा जी ,
ReplyDeleteआपने अच्छी चर्चा शुरू की है..पर यहाँ वाद विवाद से कुछ होने वाला तो है नहीं..बस अपना नजरिया रखना है तो..इतना ही कहना चाहूंगी की मृगांक की सोच बहुत अच्छी है ...पर केवल ये सोच तक ही सीमित है ..
आपने (ज़मीन ) पिक्चर तो देखी ही होगी...उसका अंत मुझे बहुत अच्छा लगा था की आतंकवादियों को ख़त्म ही कर देना चाहिए...उन पर सरकार इतना पैसा खर्च करती है और उनके आका कोई और वारदात करके उन्हें छुड़ाने की कोशिश में और ना जाने कितने बेगुनाहों को मार डालते हैं..ऐसे लोगों में भय पैदा करने के लिए ना कोई सुनवाई हो और ना कोई मुकदमा...
nirmalaa ji...
ReplyDeleteanonymous to mat kahiye...
:(
naam likhaa hai baakaaydaa...
subah mail nahi khul rahi thi..isiliye anaam comment diyaa...
:(
बच्चे कितने बड़े हो गए हैं,ना...इतनी गंभीर बातें करने लगे हैं...और अपना मंतव्य भी रखने लगे हैं...मृगांक काफी आदर्शवादी लगता है...और इतनी अच्छी तरह अपनी बातें रखी है...मैं तो सच बहुत कन्फ्यूस्ड हूँ...मुझे भी फांसी की सजा सही नहीं लगती...पर इसके पीछे के तर्क मृगांक से अलग हैं...मुझे तो लगता है मर कर तो वह आज़ाद हो गया...सजा तो जिल्लत की ज़िन्दगी गुजारने में है...पर मृगांक को 'जेल' फिल्म भी दिखा दो...फिल्म बहुत अच्छी है और सच के करीब ...जेल की असलियत देख,शायद उसका इरादा बदल जायेगा.
ReplyDeleteअदाजी, आपका यह लेख बहुत अच्छा लगा. आपका कहना सही है सजा हो पर कठोर हो.
ReplyDeleteab vo jmana nahi rha ki do ankhe barh hana jaise kaidiyo ka dil badl de .ksab jaise log jo insano ko marna hi jinka mksad hai unhe to maot ki sja milni chhiye aur jadi se jaldi .unke jaise logo ke cas me sarkar pablik ka paisa jaya kar rahi hai.
ReplyDeleteवैसे तो मनु जी के शेर के बाद इस पोस्ट पर कुछ और कहने को शेष नहीं रह जाता...लेकिन यूं ही एक बात याद आ गयी कि अपने ही पड़ओसी देश चीन में दूध मिलवाट करने पर भी अपराधी को गोली से उड़ा दिया जाता है....
ReplyDeleteमनु बे तखल्लुस के शे’र के बाद वास्तव में कुछ कहने को नहीं,
ReplyDelete---एसे लोग ब्लडी अर्थत जेनेतिक चेन्ज वाले होते हैं और एसे लोगों के लिये दन्ड का अन्तिम उपाय, उस लाइलाज़ मशीन को समाप्त करन ही है.
Shashi tharoor ka ek editorial yaad ho aaiya...
ReplyDelete..Jismein Do saawal the:
1) 'Captial Punishment' sahi ya galat?
2) Afzal ko 'Capital Punishment' sahi ya galat.
agar aapne padha hai to theek nahi to bahut lamba hai aDaDi. Bus yahi kahoogna ki ye behas saartha hai.
Waise meri niji rai hai ki 'Capital Punishment' should be not there. Karan kai hain paksh main bhi virodh main bhi par paksh main zayada hain.
"अगर कसाब ने लोगों की हत्या की और आप उस गुनाह की सजा उसे, उसकी हत्या करके दे रहे हैं तो आप भी वही गलती कर रहे हैं, फिर आपका गुनाह कैसे कम हो जाता है....हत्या के बदले हत्या ?? "
Good Dude (Mrigaank) !!
jahan dhananjay ko capital punishment diya jata ho aur shibu soren ko janta dubara mukhyamantri bana de, wahan ye bahas nirarthak hai...
ReplyDeleteमृगांक और मयंक की बात पढ़ के एक बात तो एकदम साफ़ है, की ये आईडिया उनको होल्लीवूद की सिनेमा देख के आया है.
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