Tuesday, December 22, 2009
जन जन के धूमिल प्राणों में...मंगल दीप जले..!!
मैं अपने सभी मित्रों से, पाठकों से और मेरे अपनों से एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ...
मैं किसी भी 'वाद' के पक्ष में नहीं हूँ...'जियो और जीने दो' जैसी बात का ही समर्थन करती हूँ...
हम बहुत भाग्यवान हैं...जो अंतरजाल जैसी सुविधा मिली है....दूर होते हुए भी आपस में निकटता बढ़ी है....कम से कम मन से तो बहुत पास हैं हम सभी....इस निजता को और निखारते हुए कुछ बहुत ही अच्छा कर जायेंगे तो आने वाली पीढ़ी कृतज्ञं रहेगी हमारी.....तो आज से ही शुरुआत करते हैं....आइये न...!!
इसी भावना को सामने रखते हुए मेरी यह कविता समर्पित है....आपको..आपको...और आपको भी...
स्वीकार कीजिये ...!!!!
जन जन के धूमिल प्राणों में
मंगल दीप जले
तन का मंगल,मन का मंगल
विकल प्राण जीवन का मंगल
आकुल जन-तन के अंतर में
जीवन ज्योत जले
मंगल दीप जले
विष का पंक ह्रदय से धो ले
मानव पहले मानव हो ले
दर्प की छाया मानवता को
और ना व्यर्थ छले
मंगल दीप जले
आज अहम् तू तज दे प्राणी
झूठा मान तेरा अभिमानी
आत्मा तेरी अमर हो जाए
काया धूल मिले
मंगल दीप जले
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जन जन के धूमिल प्राणों में
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जन जन के धूमिल प्राणों में जगमग दीप जले ...
ReplyDeleteआपकी शुभकामना होगी तो अवश्य ...
आज अहम् तू तज दे प्राणी ...मान बात अभिमानी ...
वाह अदा जी ...ऐ भी त्वाडा एक रंग है ...जो त्वाडी सोणी सी आवाज़ भी होंदी तो और भी सोणी गल हो जांदी ...
यदि आप 'जियो और जीने दो' में विश्वास रखती हैं तो अपना विश्वास भी .'पढ़ो और पढ़ने दो' में है :)
ReplyDeleteआज अहम् तू तज दे प्राणी
ReplyDeleteबस
टिप्पणी करो और करने दो
बी एस पाबला
वाह अदा जी वाह...
ReplyDeleteक्रिसमस और नववर्ष से पहले एक बार और दीवाली बना दी...आपके जलाए इस मंगलदीप से तंग नज़रिए का अंधेरा दूर होगा...शायद दुनिया को बेहतर बनाने का ज़िम्मा हम सब ब्लॉगरों को ही उठाना होगा...
अदा जी, आप संघर्ष करो, हम आपके साथ है...
(डिसक्लेमर...गर कहीं डंडे पड़ने लग गए तो सबसे पहले भजने वालों में हम ही होंगे)
जय हिंद...
मंगल दीप जले ..जी हाँ स्वप्न जी ...इस रास्ते पर चलते हैं -बहुत सुन्दर कविता
ReplyDelete"वाद" हजारों हमने देखे सब विवाद का कारण है।
ReplyDeleteजो विरोध परदे पर करता अन्दर जाकर चारण है।
भाषण और व्यवहार का अन्तर बढता जाता है भाई,
इस अन्तर को नित कम करना सचमुच यही निवारण है।।
शुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman. blogspot. com
तन का मंगल,मन का मंगल
ReplyDeleteविकल प्राण जीवन का मंगल
आकुल जन-तन के अंतर में
जीवन ज्योत जले
मंगल दीप जले
-यही ही मार्ग है सबसे उत्तम!!
रचना अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है। हम भी आप से पूर्णतया सहमत हैं।
ReplyDeleteकामना ही कितनी सुन्दर है - "जन जन के धूमिल प्राणों में /मंगल दीप जले " । सर्व-सर्वत्र के जागरण की शुभातिशुभ आकांक्षा यही तो है । मंगल-दीप का प्रकाश होगा ही तभी जब मानवता स्थान लेगी । "मानव पहले मानव हो ले" या गालिब की जबान में "आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसा होना.." - यही तो चिंता है ।
ReplyDeleteआपका आह्वान सर माथे ! चलूँगा ही इस निमित्त !
मंगल दीप जले
ReplyDeleteतथास्तु!
"आज अहम् तू तज दे प्राणी
ReplyDeleteझूठा मान तेरा अभिमानी
आत्मा तेरी अमर हो जाए
काया धूल मिले
मंगल दीप जले"
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ!!
आपका प्रवाह कुछ तेज कदम है, इधर सोचा कि संतोष जी के गीत का असर कम हो तो बधाई दूं फिर से कि मृगांक की पोस्ट आ गयी एक डेशिंग हीरो, अमेरिका में इंडियन जलवा... तो उस पर लिखने के लिए कुछ समय चाहिए. मगर कहाँ रुका है वक़्त का कारवाँ... आज हांफता हुआ सा तीन पोस्ट के लिए आपको बधाई दे दूं. एक वो लाल रंग की ड्रेस वाली परी तो पीछे छूट गयी " चले जैसे हवाएं सनन सनन... मस्त गाती है पर अपने पापा का समय चुराने का प्रयास करना जरूरी है, ऊपर के सुर और मांजने है अभी. स्वीट गर्ल नाईस फॅमिली.
ReplyDeleteकिशोर दा की बात के बाद मुझे भी अब पीछे जाना होगा। 'बुलेट ट्रेन और आलसी'- सवार ही नहीं हो पाता, जतरा का आनन्द कैसे उठाए?
ReplyDeleteटेम्पलेट की चौड़ाई बढ़ाइए, दाएँ बाएँ बहुत जगह खाली रह जाती है।
_______________
गीत को आप का स्वर चाहिए। जरा पश्चिमी संगीत में कोशिश कर देखिए। संतोष जी का गिटार और आप का स्वर ! क्या बात हो!!
फरमाइश करने वाले बड़े स्वार्थी जालिम होते हैं। अरे भाई! समय चाहिए। अभ्यास चाहिए। रियाज चाहिए। सबसे बड़ी इच्छा चाहिए।... न बाबा न...हम तो फरमैश करेंगे। आगे आप जैसा समझें। अभी एक ठो तो पेंडिंग पड़ी ही हुई है।
मानव पहले मानव हो ले
ReplyDeleteलाख रूपये की बात...
बहुत सही कहा है, अदा जी।
ReplyDeleteबेकार के वाद -विवाद में क्या रखा है।
दर्प की छाया मानवता को
और व्यर्थ छले
मंगल दीप जले
बस मंगल दीप जलते रहें, यही कामना है।
"मैं अपने सभी मित्रों से, पाठकों से और मेरे अपनों से एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ...
ReplyDeleteमैं किसी भी 'वाद' के पक्ष में नहीं हूँ..."
लेकिन मैं सभी ब्लोगर मित्रो के बीच भाई-चारा सम"वाद" के पक्ष में हूँ !:)
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteसही बात है वाद विवाद मे ऊर्ज़्ज़ का क्षय ही होता है_। इस प्रेरणदायी पोस्ट के लिये धन्यवाद। रचना बहुत सुन्दर है। बधाई
ReplyDeleteमंगल दीप जले और जलते रहे. इसी में आनद है
ReplyDeleteआपके सोच को सलाम.
ReplyDeleteरामराम.
Aapke swar me main apna bhi swar milati hun....main bhi kisi waad ka bandhan bilkul hi pasand nahi karti....
ReplyDeleteAapke rachna ki to kya kahun...sundar sandesh deti hridayhari mugdhkari hai...
विष का पंक ह्रदय से धो ले
मानव पहले मानव हो ले
दर्प की छाया मानवता को
और (na) व्यर्थ छले
मंगल दीप जले
kya baat kahi hai aapne...
( di ek nivedan hai...
uparyukt me sambhavtah "na" chhoot gaya hai...kripaya dekh len..)
bahut hi sundar bhav ........jan jan ko prerit karte.
ReplyDeleteप्रिय रंजना,
ReplyDeleteइसे कहते हैं 'नज़र' , वैसे तो इस कविता को मैंने वैसा ही छापा है जैसा लिखा था....
लेकिन तुमने इस अंतरा के अर्थ को और स्पष्ट कर दिया...एक शब्द डाल कर...
क्या कहूँ...धन्यवाद तो कहूँगी नहीं..
हाँ दुलार दे रही हूँ....
adaji
ReplyDeleteham to jab se aapko padhte hai aapke vicharo ke kayl ho jate hai aur aapke sath hi apne aap ko pate hai aur sadaiv har sur me aapke sath hai .vad aur prtivad se to door hi hai
ye do lain shayd aapne bhi suni hi hai
jyot se jyot jgate chlo
prem ki ganga bahate chlo
विष का पंक ह्रदय से धो ले
मानव पहले मानव हो ले
दर्प की छाया मानवता को
और ना व्यर्थ छले
मंगल दीप जले
bahut sundar aagaj .
abhar
AAMEEN................
ReplyDeleteaapki is post aapki soch par prakash daalti hui ye baat spasht karti hai ki aap shridya aur dusro k liye saral,dweshrahit bhaawnaye rakhti hui sab ke liye mangal chaahti hai.aur aisa soch kar mujhe bahut anand ka anubhav ho raha hai jise me bayan nahi kar sakti.
ReplyDeleteshukriya.
विष का पंक ह्रदय से धो ले
ReplyDeleteमानव पहले मानव हो ले
दर्प की छाया मानवता को
और ना व्यर्थ छले
मंगल दीप जले
बहुत प्यारे भाव लिए हुए आपकी ये रचना मनन को छू गयी....बधाई
आपकी हिंदी बहुत अच्छी है अदा जी !बहुत अच्छा लिखती हैं आप.मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया आती रहें अच्छा लगेगा.
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