माँ का फ़ोन आया.....
हेल्लो, हाँ माँ .....आज कैसे फ़ोन कर रही हो?? आज तो बुधवार है....सब ठीक तो है न ...?
हाँ ....अब क्या ठीक होना है...बुढ़ापा है...कभी ठीक हैं तो कभी ना ठीक....
माँ क्या हुआ तुम ठीक तो हो न ??? और बाबा कैसे हैं ?? बहुत ज्यादा चिंता रहती है तुमलोगों की ...अब ठंडा आ गया है अपना ध्यान रखना ...
हाँ वो भी ठीक हैं बस खाँसी अब बढ़ गयी है.... ठण्ड जो बढ़ रही है...
अच्छा वो दवा मंगवा ली जो हम लाये थे और बाबा एकदम ठीक हो गए थे ....
नहीं कहाँ मंगवा पाए हैं....
माँ हमको इसी बात से गुस्सा आता है ....हर बार तुमसे कहते हैं और तुम सुनती नहीं हो.....हम जानते थे तुम दवा नहीं मंगवाई होगी ......एक साल हो गया अभी तक तुम नहीं मंगवाई हो.....सच में माँ तुम भी न ...सिर्फ जगदीश (ड्राईवर) से कहना ही तो होता है.... वो भी नही करती हो...
अरे बाबा कल जगदीश आएगा तो मंगवा लेंगे.....
खैर ये तो हम पिछले एक साल से सुनते आ रहे हैं..और हर बार मेरा मूड ऑफ़ हो जाता है.....इ जगदीश के पास भी एक फोन नहीं है.....दुनिया रखती है फोन इ क्यूँ नहीं रखता है....खैर अब बताओ फ़ोन कुछ बोलने के लिए की ....की ऐसे ही की हो ???
बेटा तुम चिंता मत करो कल ज़रूर मंगवा लेंगे दवा......हाँ इ बताना था कि तुम्हारे सचिन चाचा अब नहीं रहे ....
कौन सचिन चाचा ??
वही तुम्हारे बाबा के चचेरे भाई.....जो वकील थे....
अच्छा वो जो बहुत अंग्रेजी बोलते थे...
हाँ हाँ वही.....
अच्छा इ तो बहुत बुरा हुआ....क्या हुआ था...?
शायद हार्ट फेल हुआ है ...हमलोग ठीक से नहीं जानते हैं....पता नहीं शायद ५-६ साल से तो मुलाक़ात भी नहीं थी....
अच्छा...फिर कैसे पता चला कि ऐसा हुआ है.....?
गाँव से जया (मेरी चचेरी बहन) का फोन आया कि ऐसा दुःख का खबर है....सो घर में छुतका हो गया है...
घर में छुतका का माने ?
अरे अब दस दिन तक हल्दी-तेल नहीं बनेगा न....
अरे उ काहे....? काहे नहीं बनेगा ??? माँ तुम भी न इतनी पढ़ी लिखी होकर ऐसी बात करती हो.....उनलोगों से न कभी मिलना न जुलना...न बात ना चीत फिर आप रांची में काहे छुतका मानेंगी....?
अरे तुमको नहीं करना है इ सब....सलिल (भाई) करेगा..उसको भी बोल दिए हैं.....तुमसे पाहिले उसी से बात किये कनाडा में...
अरे माँ......सलिल काहे करेगा दस दिन इसका पारण बताओ तो....उ तो सचिन चाचा से २ बार से ज्यादा मिला भी नहीं होगा... और कनाडा में इसका पारण करने का माने...इ तो बेवकूफी हैं ?? हम
रांची में इसका पारण बेवकूफी सोचते हैं और तुम कनाडा में करवा रही हो.....??
उ लोग गोतिया हैं अपना खून हैं.....तो मानना तो पड़ेगा न....और तुम काहे परेशान हो तुमको नहीं न करना है....
हाँ ..जानते हैं....अगर करना भी होता तो नहीं करते...
हम फिर से कहते हैं...जीते जी तो कभी भर मुंह बात नहीं कि हो और अब छुतका मान रही हो......इ बात हम नहीं समझे......चलो तुमलोगों की जैसी मर्जी....
अच्छा माँ इ बताओ...अगर हमको कुछ हो गया..... हम नहीं रहे तो तुम इ दस दिन का हल्दी-तेल बर्जोगी कि नहीं ..??
....................
माँ !!!
माँ !!!
अरे सुन रही हो की नहीं ??? हम का पूछ रहे हैं ...अगर हमको कुछ हो गया तो तुम दस दिन का इ तेल-हल्दी बर्जोगी कि नहीं.....कि खैईते रहोगी......बोलो न ???
इ का बेहूदा सवाल है...ऐसे कोई बात करता है.....
माँ जवाब दो.....
हम फालतू बात का जवाब नहीं देते हैं...तुम हमेशा उल्टा-पुल्टा बात करती हो....लो
अपने बाबा से बात करो....
माँ बोलो न माँ ...बताओ ना... हम सिर्फ़ जानना चाहते हैं...कुछ हो थोड़े ही रहा है...
हाँ हल्लो.....मुन्ना (मैं लड़की हूँ लेकिन
,मेरा घर में पुकारू नाम)....
हल्लो..!!
मुन्ना....???
मुन्ना....???
हां बाबा प्रणाम....कैसे हैं.?.......
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ठीक है बाबा अब रखते हैं.....अच्छा बाबा प्रणाम....
टिन...
मैं कौन हूँ ??????
ये तो फिलासफर टाइप वाला प्रश्न है...हालांकि यह प्रश्न सांस्कृति धरोहर के टूटते धागे को कथाकार के वजूद से लपेटन को दिखा रहा है...रक्त संबंध के आधार को निर्धारति करने वाली सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाएँ दूरी की वजह से चरमरा रही हैं...कथाकार इस कहानी मे खुद के वजूद की टोह ले रहा है...या खुद के वजूद की तलाश के जरिये उन टुटते हुये तंतुओं का मूल्यांकन कर रहा है जिसका भावनात्मक महत्व कहीं पर पर काफी गहरा है लेकिन कहीं पर दूसरे छोर पर पूरी तरह से सपाट हो चला है...वैसे खुद की तलाश एक चेतन अवस्था की मांग करता है...
ReplyDeleteEk saans me padh gayi...lag raha tha h jaise sab kuchh saamne ghat raha..baat cheet sunayi de rahi hai..!
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteमैं कौन हूँ ??????
ReplyDeleteACHCHAA SAWAL KIYAA HAI AAPNE.ADA JI
MAIN KAUN HUN ?????
ऐसे बहुत से प्रश्न उमड़ते घुमड़ते रहते हैं मन में
ReplyDeleteबी एस पाबला
मैम को प्रणाम {!} है।
ReplyDeleteमाँ-पुत्री संवाद कुछ हिलकोरें मचा गया...
अब कुछ पुराने पोस्टों को पढ़ने जा रहा हूँ। जब देखो सेंटी कर देती हैं आप। आफिस में बैठी हैं?
BAHUT SAHI......PAR IS PRASHN KA UTTAR SHAYAD HI KOI DE....
ReplyDeleteshuruaat mein ham kuch aur soch rahe the aur khatam hote hote achanak ek twist aa gaya... kaise batayein ki aapke prashn ka uttar nahi de payenge...
ReplyDeleteओ मां...मां...मां...
ReplyDeleteमेरी दुनिया है मां तेरे आंचल में
शीतल छाया तू दुख के जंगल में
जय हिंद....
"मैं कौन हूँ?"
ReplyDeleteमैं एक अज्ञानी हूँ जो स्वयं को ज्ञानी समझता हूँ। अपनी पुरातन संस्कृति तथा आधुनिक सभ्यता रूपी दोनों नाव में सवार रहना चाहता हूँ। मैं वह हूँ जिसे दोनों नावों को जोड़ कर एक कर देना नहीं आता। मैं वह हूँ जो निश्चित नहीं कर पाता कि मुझे समय-काल-परिस्थिति के अनुसार क्या करना चाहिये। इसीलिये मैं हमेशा परेशान और उलझा हुआ रहता हूँ।
मैं ---कौन हूँ ?
ReplyDeleteमैं --इसके बारे में तो सब जानते हैं।
बस--मैं-- के रहते सोचने की शक्ति कुंठित रहती है।
जैसे रावण की हो गई थी।
aapka prashn aisa hai jiska jawaab sambhav nahi hai
ReplyDeletelekin prashn bahut marmik hai.
ऐसा सवाल पूंछा ही क्यों जाय ? जो किसी को असहज कर दे ??
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