Tuesday, December 1, 2009
ये तेरा घर ये मेरा घर फ़िर किस बात का डर...
पिछले ६ महीने से ब्लॉग्गिंग कि दुनिया में रह रहे हैं हम.....और इस ब्लागगिंग दुनिया में जीवन के हर रस का आनंद ले चुके...... इन ६ महीनों में....मान, सम्मान, प्रेम, अपमान, उठान, पटकान सभी कुछ वन स्टॉप शौपिंग की तरह है.....कभी किसी कहानीकार के शब्द तिलस्म से बाहर निकलना ही मुश्किल हो जाता तो कभी किसी आलेख की दुर्गम सच्चाई तक पहुंचना कठिन....कहीं दिल को छूती हुई ग़ज़ल की रूमानियत में मन डूब जाता है.....तो कहीं कटाक्ष के इतने वाण देखने तो मिलतें हैं कि बस मन डूब ही जाता है.....मतलब की हर तरह के पाठक के लिए हर तरह की सामग्री .....
इक कहावत हमेशा सुनते रहे हैं.....शादी वो लड्डू है जिसे , जो खाए वो पछतावे और जो न खावे वो भी पछतावे.....अब हम कहते हैं....ब्लॉग्गिंग वो लड्डू है जो करे वो पछतावे और जो न करे वो तो जीने के लायक ही नहीं है....
और बात जब हिंदी ब्लॉग्गिंग की हो फिर तो इसमें....बॉलीवुड का हर मसाला है......सस्पेंस, थ्रिलर, रोमांस, मार-कुटाई, सब कुछ तो है यहाँ.......और सबसे बड़ी बात है पोलिटिक्स भी है......आज तक हम समझ नहीं पाए थे कि .....बिग बी खेमा ....शाहरूख खेमा की तरह यहाँ भी कई खेमे बने हैं.....हम तो जी ठहरे निपट देहाती.....इ सब समझने के लिए भी तो दीमाग चाहिए.....और हमारे पास है नहीं.....जो दिल में आता है लिखते हैं....लोग आते हैं पढ़ते हैं ......तो देख देख कर खुश हो लेते हैं......और हम का जाने कि यहाँ भी कोई खेमा है......और खेमों का पता चलता है चिट्ठों कि चर्चा से........और हम भी अब इक खेमा में ज़बरदस्ती ठूंसे जा चुके हैं.....आपको खेमा में डालिए दिया जाएगा आप खेमे में विश्वास कीजिये कि मत कीजिये.......अरे भाई कुछ लोग हमको प्रेम से पढ़ते हैं....तो हम भी उनको प्रेम से पढने लगे .....
अरे हमको कहाँ पता चला कि कब हम उस खेमा में चले गए या फिर पहुंचा दिए गए.....न तो खेमा में रखने वाले हमसे कुछ पूछे .......न ही उहाँ पहुंचाने वाले .....उ तो अचानक ,जब देखने लगे कि ...अरे तोरी हमरे बारे में ऐसा काहे लिखा गया भाई...हम तो कभी इनसे इक चम्मच नून भी नहीं लिए हैं....न बात न चीत....न सलाम न दुआ ...बस खामे-ख्वाह ......हमरे मुखारविंद से काहे की ऐसी ज़बरदस्त नाराजगी ???? तब पता चला ...ओह्ह हम तो विरोधी पार्टी में हैं ...और हमको पता भी नहीं है.....तभे तो उ नाराजगी से पढतें हैं......हद्द है........... न उधो का लेना न माधो का देना ...तू कौन मैं ख्वाम ख्वाह ....अरे भाई.....रचना कि बात कीजिये...उ कैसी लगी ...आदमी मेहनत से लिखा है.....टाइम लगाया है...दीमाग लगाया है......तो काहे कि उ तथाकथित दूसरा पार्टी का है .......इसलिए उ अच्छा लिख ही नहीं सकता है......इसलिए या तो उ चर्चा में शामिल होने का हक़दार ही नहीं है...और अगर बहुत दिलदारी देखाते हुए ...गाहे-बगाहे सम्मिलित कर भी लिया है तो व्यंग-वाणों से सुसज्जित होकर ही शामिल हो सकता है.......अरे महराज बिना लॉबिंग का कोई चर्चा हो नहीं सकता है का...?????
अगर आपको यह पता लगाना है कि कौन व्यक्ति किस खेमे का है तो चिट्ठों की चर्चा वाली पोस्ट पढ़िए ....आपको साफ़-साफ़ पता चल जाएगा ...फलां ग्रुप में कौन-कौन है....साफ़-साफ़ लॉबिंग ही झलकती है....स्वस्थ चर्चा देखने को कहाँ मिलती है....सब अपनी डफली अपना राग सुना रहे हैं.....हम जानते हैं आज के बाद कोई हमरी चिटठा नहीं डालेगा अपने चर्चा में..... तो मत डाले.....हमको कोई फर्क नहीं पड़ता है.....लेकिन जो चिट्टा सचमुच चर्चा में आने चाहिए क्या वो सचमुच में आते हैं....नहीं न ????? तो हम भी उनके साथ ...उनके जैसे ही रह लेंगे.....लेकिन कम से कम फालतू कि पोलिटिक्स से तो बचेंगे....
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हमारी नेता कैसी हों,
ReplyDeleteअदा जी जैसी हों...
लगता है अदा जी अब राजनीति ज्वाइन कर ही ली जाए...शायद चर्चा-शास्त्र के कुछ गूढ़ रहस्य हम भी समझ जाएं...
जय हिंद...
hnm...........!!!!
ReplyDeletepahilaa comment....?
aur hamaaraa....?????????
बिल्कुल सही कहा आपने दीदी , मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूँ । ऐसी चर्चाएं मैने भी देखी है , एक ही चर्चा में एक ही लोग की कई रचनाएं शामिल की जाती है , वही कुछ लोगो की रचनाएं तो शामिल ही नही कि जाती है । आप इस सबपर ज्यादा ध्यान मत दीजिए ...... just do your work didi , do thy duty reward is not thy concern .......
ReplyDeleteमुझे तो अभी सिर्फ दो महीने हुए हैं...ब्लॉग जगत में...फिर भी ये चीज़ मैंने बड़ी शिद्दत से महसूस की है कि जबरदस्त लॉबिंग है....कुछ लोग तो मेरे पोस्ट्स पढ़ते हैं...और अपनी प्रतिक्रिया मेल भेजकर जताते हैं....पर कमेंट्स नहीं लिखते कि मेरी पोस्ट पर उनकी उपस्थिति ना दिख जाए...
ReplyDeletemain to apney blog key baare mein hi batana chahunga.
ReplyDeleteमैने अपने ब्लग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं-समय हो पढ़ें और कमेंट भी दें ।- http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
गद्य रचनाओं के लिए भी मेरा ब्लाग है। इस पर एक लेख-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं को तन और मन लिखा है-समय हो तो पढ़ें और अपनी राय भी दें ।-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
काहे परेशान हो रही हैं ...इतना सफाई देने का कोई जरुरत नहीं है ...आप बस लिखिए और गाईये ...जिनको पढना और सुनना होगा ...पढ़ेगा और सुनेगा ही ...
ReplyDeleteकोई कुछ भी कहे ...हम भी नारियां ही हैं ...मगर सबसे पहले एक इंसान है ...जिस तरह दूसरी नारियों को प्रताड़ित होते देख दिल दुखता है उसी तरह अपने भाई पिता पुत्र आदि को नारियों द्वारा पीड़ित होते देख कर भी दुःख होता ही है .....!!
अब इसमें कोई किसी खेमे में डाले तो डाले ...आप मेरी तकनीक क्यों इस्तेमाल नहीं करती ...जिसे मुंह पर कह सके ...सामने कह दे ...और जिसे मुंह पर नहीं कह सके ...मन में कह दे ...जानती हो ना क्या ..?....!!
बिग बी खेमा ....शाहरूख खेमा की तरह यहाँ भी कई खेमे बने हैं..
ReplyDelete-हम आज तक नहीं जान पाये कि खेमे भी हैं और आप तुरत फुरत जान गईं..वाह!!तबहि तो आपको प्रेम से पढ़ते हैं... :)
कुछ खेमे की जानकारी हमें भी ईमेल करें तो पता किया जाये हम किस खेमे में हैं. :)
हा हा!
ReplyDeleteआखिर आप भी समझ ही गईं यहाँ चल रही हलचलों को!!
मेरी चैट व ईमेल में ऐसे संदेश पड़े हुए हैं जिसमें ब्लॉग चर्चा वाले सद्स्य स्वयं ही स्वीकार करते हैं कि अब चर्चा में कुछ चुने हुए ब्लॉग ही शामिल किए जाते हैं।
बी एस पाबला
यथार्थ लेखन।
ReplyDeleteहम आज तक जान नहीं पाये कि खेमे भी हैं और आप तुरत फुरत जान गईं..वाह!!!!!
ReplyDeleteजल्दी से हमको भी बताइए कि हम किस खेमे में हैं ?
वैसे हम तो अपने को आपके खेमे में ही समझते हैं !!!
@ ...अरे तोरी हमरे बारे में ऐसा काहे लिखा गया भाई...हम तो कभी इनसे इक चम्मच नून भी नहीं लिए हैं....न बात न चीत....न सलाम न दुआ ...बस खामे-ख्वाह ......हमरे मुखारविंद से काहे की ऐसी ज़बरदस्त नाराजगी ???? तब पता चला ...ओह्ह हम तो विरोधी पार्टी में हैं ...और हमको पता भी नहीं है.....तभे तो उ नाराजगी से पढतें हैं......हद्द है........... न उधो का लेना न माधो का देना ...तू कौन मैं ख्वाम ख्वाह ....
ReplyDeleteहा हा हा अदा जी बहुत खूब!
नाराजगी से पढ़्ना से श्रीलाल शुक्ल का जोर जोर से सुनना याद आ गया। जो न हो वह भी पढ़ सुन लिया जाय।
अर्ज किया है(उर्दूदाँ लोगों से मुआफी सहित):
वो बात जिसका जिक्र सारे फसाने में न था
वो बात उन्हें बहुत नाग़वार गुजरी है।
हम एक ठो निर्गुट आन्दोलन प्रारम्भ करना चाह रहे थे लेकिन थम गए। वो भी एक गुट हो जाता है और अंतर्राष्ट्रीय लेबल पर ऐसे एक गुट का हाल हम देख ही चुके हैं... लिहाजा निर्गुट ही रहिए लेकिन निर्गुट होने की घोषणा न कीजिए नहीं तो ...
लोबी होती है या नह होती...
ReplyDeleteइस से किसी को क्या फर्क पड़ता है...?
जो मशहूर होना चाहता है और उसके पास वक्त है..जुगाड़ है..वो हो सकता है..
इसके लिए कहानीकार या शायर होना कोई मायने नहीं रखता...ना ही लेखक या गायक होना.....!!!!!
खूब देखा है हमने....... दो कौड़ी की कविता पर बड़े बड़े ब्लोग्गेर्स के कमेंट्स...
और ये बड़े बड़े ब्ल्लोगेर्स.....ये क्या होते हैं......????
बड़े
कथाकार....?
बड़े
शायर.....?
बड़े रुतबे वाले.....???
इस पर कहने का कोई भी फायदा नहीं है...ऐसा नहीं के हमें कुछ नुक्सान है कहने में....
हमें किस की फ़िक्र है...हमें तो कमेंट्स ही मुट्ठी भर चाहिए होते हैं...ज्यादा की जरूरत ही नहीं...
शेष
फिर
.....
यहाँ
शोहरत
परस्ती
है
हुनर
का
असल
पैमाना .........इन्ही राहों पे शर्मिन्दा रहा है मुझ से फन मेरा....
hnm...
ReplyDeleteada ji,
net sahi nahi hai....dekhiye naa...?
hamaare she'r ki hi waat lag gayi....?
aadhunik kavitaa jaisaa chhap gayaa hai......!!!!!
yahaan shohrat parastee hai hunar ka asal paimaanaa
inhi raahon pe sharmindaa rahaa hai mujh se fan meraa.......
ise is shape mein dekhein....
चिन्ता करके अपना खून क्यों जलाना?
ReplyDeleteमस्त रहो मस्ती में आग लगे बस्ती में!
कबिरा खड़ा बजार में माँगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती ना काहू से से बैर॥
"और खेमों का पता चलता है चिट्ठों कि चर्चा से........और हम भी अब इक खेमा में ज़बरदस्ती ठूंसे जा चुके हैं.....आपको खेमा में डालिए दिया जाएगा आप खेमे में विश्वास कीजिये कि मत कीजिये.......अरे भाई कुछ लोग हमको प्रेम से पढ़ते हैं....तो हम भी उनको प्रेम से पढने लगे ....."
ReplyDeleteआपकी बात में दम है, मगर फिर यही सोचते है की कोई कर तो रहा है कुछ भी सही !
लेखन मनुष्य की जरुरत है और मनुष्य को लिखे हुए की जरुरत. आज के कठिन समय में जहाँ तकनीक के जाल में रिश्ते उलझ गए हैं और मानवीय भावनाओं की जड़ें, अर्थ के यूरिया से पोषित है. ऐसे में कोई नर्म नाजुक ख़याल की बात, सुर और उसमे छिपे मिठास की बात बेहद जरूरी है. व्यक्ति की रचनात्मकता को दबाया या उपेक्षित नहीं रखा जा सकता आप अगर कविता न लिख रही होती तो कहीं इंटीरियर डेकोरेशन का काम कर रही होती या पेंटिंग बना रही होती हो सकता है कि आप जीवन के विभिन्न पहलुओं पर बच्चों को पार्क के किसी कोने अपने अनुभव सुना रही होती. आपकी इस रचनाशीलताने बीते दिनों हमें बहुत बार अनुभूतियों का घना बागीचा दिया है.
ReplyDeleteजिनकी ओर आपका इशारा है वे लोग कौन है ? मैं जानता नहीं हूँ और उन्हें जानने की मेरी कोई तमन्ना भी नहीं है . कोई निरपेक्ष मंच होता तो शायद मुझे भी ख़बर हो ही जाती. राजस्थानी में एक कहावत है " आ रे म्हारा सम्पट पाट, म्हें थने चाटूं थून म्हने चाट " अर्थात ये एक सिलबट्टे का संवाद है. वे दोनों एक दूसरे से कह रहे हैं आओ मैं तुम्हें चाटता हूँ तुम मुझे चाटो. तो आग्रह है कि चटनी बनाने वालों के प्रति कोई आग्रह न रखा जाये और उनकी जमात में इन दिनों कई नए सिलबट्टे शामिल हुए हैं वे अभी चुके नहीं है तो उनके लिखे को पढ़ते रहा जाये.
मैं भी कई बार पीछे मुड़ कर देखने लगता हूँ तो पाता हूँ कि ऊब पसर रही है फिर ऊब भी लेखन का ही हिस्सा है, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि ... इल्जाम किसी और के सर जाये तो अच्छा वाला हाल हो जाये. मैं आपके लिखे का एक प्रतिशत भी नहीं लिख पाता हूँ फिर भी ऊब कई बार हावी होने लगती है फिर सोचता हूँ कि जिंदगी समुद्री लहरों सी ही चलती है तो कभी हमें बहुत दिनों तक इंतजार में सीपियाँ चुननी पड़ती है. इन्ही सीपियों के भीतर मुझे ब्लॉग दुनिया ने कई मोती भी दिए हैं.
आप बहुत अच्छा लिखती है.
बहुत जल्द जान गयीं आप :)
ReplyDelete"मैं इस शहर का बड़ा कैसे बनूँ
ReplyDeleteइतना छोटापन मेरे बस का नहीं"
क्या आपको नहीं पता कि इस तरह की चिटठा चर्चा का उद्देश्य ही खुद को और खुद से जुड़े लोगों को चर्चा में लाने के लिए है ?
खेमा?
ReplyDeleteकौन सा खेमा?
किसका खेमा???
बस लिखते रहिये मैम...पढ़ाते रहिये!
किसी कवि ने कहा है और क्या खूब कहा है:-
किस-किस को रोइये, किस-किस को सोचिये
आराम बड़ी चीज है, मुँह ढ़ाप के सोइये
हम तो अभी भी हँसे जा रहे हैं आपकी कल की बातों पर...
हम आपको अपना नेता चुनते हैं ,सचमुच !..इंतज़ार कर ही रहे हैं एक स्पर्धा की ! जल्दी ही बतायेगें कहीं ! यह हुयी है कोई मर्दानगी वाली बात ! लाल सलाम !
ReplyDeleteकौन कहता है मर्दानगी केवल पुरुषों की बपौती है (खूब लड़ी मर्दानी वह तो.......,)
और अपने समर्थकों में मुझे (मुखारविंद!) भी शामिल करने के लिए कृत कृत्य हुआ ! आई लायिक दिस स्पिरिट ...माई फेयर लेडी(गुस्ताखी माफ़ ) !
अनामी/बेनामी जी,
ReplyDeleteआपकी बात से मैं पूर्णतः सहमत हूँ.....इसमें कोई शक नहीं कि :
@"इस तरह की चिटठा चर्चा का उद्देश्य ही खुद को और खुद से जुड़े लोगों को चर्चा में लाने के लिए है "
और यही तो हम कहते हैं कि आप या तो खुद कि चर्चा करते हैं या खुद से जुड़े लोगों कि....और जो आपसे जुड़े नहीं हैं क्या वो अच्छा नहीं लिखते...?
और इसी बार पर मुझे आपत्ति है.....फिर इसका नाम "ब्लॉग रोल चर्चा" होना चाहिए......
आपको जब खुद से जुड़े लोगों कि ही चर्चा करनी है तो फिर "चिटठा चर्चा" क्यूँ कहते हैं.?
कितने अच्छे चिट्ठों को हम पढ़ते हैं ..कभी उनका कोई जिक्र नहीं होता.....बस वही चार-पांच गिने चुने लोग ही नज़र आते हैं.....हो सकता है वो बहुत ही अच्छे हो लेखन में लेकिन सिर्फ वही तो नहीं हैं बहुत अच्छे.....मेरा सिर्फ इतना कहना है...
और हाँ....बेनामी जी,
ReplyDeleteअब हम क्या गिरेंगे नीचे हम तो खुद ज़मीन के लोग हैं
फ़िक्र वो करें जिन्हें आसमान कि ज़रुरत है
अरे अदा जी बहुत बहुत शुक्रिया भाई ....बता दिया आपने...हम भी जाकर देख लें की हम किस खेमे में ठुंसे जा चुके हैं ....हमें तो ये बात पता ही नहीं थी...सच कहा आपने अब इसके लिए भी तो दिमाग चाहिए न.
ReplyDeleteAJI CHHODIYE CHITTHA CHARCHA...AB HAMAARA BHI KUCHH KHYAAL KIJIYE..BAHUT DINO SE AAPKI KAVITAON AUR MADHUR AVAAJ SE VANCHIT HAI..BATAAIE JARA KI HAMAARI KHVAHISH KAB POORI HOGI?
ReplyDeleteVAISE AAPKE KATHY SE SAHMAT HAI,PAR IS PAR AB SAMY JAYA KARNA BUDDHIMATA NAHI HOGI.
BADHIYA LEKH KE LIYE AABHAAR!
Ada aapki to ada ki baat hi kuch niraali hai..
ReplyDeletekoi kavita ho ya koi lekh aap apni jagah bana hi leti hai
-Sheena
अरे अदा जी आप भी किस फ़ेर मै पड गई, हम बस मन कि लिखते है, अब कोई चर्चा करे या ना करे , हमे कुछ फ़र्क नही पडता, ओर ना ही इतना समय है इन सब बातो के लिये कि सोचे किसने मेरे बारे क्या लिखा, उस के बारे क्या लिखा, अजी दुनिया मै ओर भी काम है इस ब्लांगिंग के सिवा, राम राम
ReplyDeleteचिट्ठा चर्चाओं की भी खूब कही आपने...
ReplyDeleteमैं तो सब भाई लोगों को निष्काम भाव से पढ़ लेता हूं जी. उनकी मंशा कुछ भी हुआ करे ... मेरी बला से..
JHOOTH WALE KAHIN SE KAHIN BADH GAYE, AUR MAIN THA KI SACH BOLTA RAH GAYA...
ReplyDeletebas yahi apni kahani hai... par chinta mat kijiye kyonki...
AANDHIYON KE IRAADE TO ACCHE NA THE, YE DEEYA KAISE JALTA HUA RAH GAYA...
kya kijiyega, zamane aisa hai...
ReplyDeleteJHOOTH WALE KAHIN SE KAHIN BADH GAYE, AUR MAIN THA KI SACH BOLTA RAH GAYA...
lekin tension ka kauno baat nahi hai...
AANDHIYON KE IRAADE TO ACCHE NA THE,
YE DEEYA KAISE JALTA HUA RAH GAYA...