Friday, December 11, 2009

तिल तिल मरती वो ....



भारत में स्त्रियों की दशा में अभी बहुत ज्यादा सुधार की आवश्यकता है, यह वक्तव्य उतना ही सच है जितना सूरज हर रोज निकालता है......

स्त्रियों का शरीर से निर्बल होना ही उनकी सबसे बड़ी कमी है और इस कमी का भरपूर फायदा कुछ पुरुष उठाते ही हैं..इस बात को कोई इनकार नही कर सकता...

इसका सबसे बड़ा सच है आये दिन बलात्कार की शिकार हुई लडकियां, इस तरह के हादसों की शिकार लडकियां, शहरों में तो कोट-कचहरी में अपनी चप्पल घिस कर और वकीलों की बेहूदी दलीलों सुन कर ही जीवन निकाल देतीं है...और न्याय उस लाटरी की टिकट की तरह हो जाता है जो हर डेट पर उम्मीद तो बंधाता है मगर निकलने का नाम नहीं लेता हैं.....

कुछ गाँव में जातिगत पंचायतें होती हैं जिनका अपना कानून होता है....जिसमें या तो बलात्कारी से विवाह कर लो या फिर उसे दस जूते मार दो, ऐसी ही किसी बात पर बात ख़त्म हो जाती है....स्त्री जिस नरक से गुजरती है ता-उम्र उसे न तो कभी किसी ने समझा है न ही समझेगा....

दूसरी तरफ अगर घर में कोई अपना शील या चरित्र बचा कर रख भी ले तो आत्मसम्मान बचाना मुश्किल हो जाता है...कितने ही घरों में बहुओं को सासों द्वारा ठोकर मारना, दिन भर ताने देना, घरेलू काम-काजों को लेकर मीन-मेख निकालना , बेटे को बहू के खिलाफ भड़काना, खाने-कपड़े से महरूम रखना, बात-बात में अपमानित करना जैसे बातें होती ही रहतीं हैं..

इन सारे क्रिया-कलापों से स्त्री का मन और आत्मबल क्षत-विक्षत होता ही रहता है...लेकिन अजीब बात यह है.. की इस तरह का उत्पीडन किसी कानून के शिकंजे में नहीं आ सकता क्योंकि यह क्रूरता की श्रेणी में आता ही नहीं है ...इसके आधार पर किसी को दहेज उत्पीड़न का दोषी करार नहीं दिया जा सकता..

सच तो यह है कि किसी स्त्री कि हत्या अपराध है लेकिन क्या किसी स्त्री को हर दिन तिल-तिल मारना अपराध नहीं है...??
आप क्या कहते हैं??

20 comments:

  1. adaa ji...

    stri ki kyaa....

    kisi ki bhi hatyaa apraadh hai...

    aur til til kar ke maarnaa usse bhi jyaadaa.....

    manu 'betakhllus'

    ReplyDelete
  2. कभी कभी... नेट प्रॉब्लम के चलते...रोमन में लिखना और अनाम कमेन्ट देना पड़ता है....जो मुझे पसंद नहीं है...


    कुछ गाँव में जातिगत पंचायतें होती हैं जिनका अपना कानून होता है....जिसमें या तो बलात्कारी से विवाह कर लो या फिर उसे दस जूते मार दो,

    ये पंचायत सजा दे रही है या इनाम.....?
    चलो जूते मारना तो कम से कम सजा जैसा कुछ लगता तो है.... भले ही कोई सजा नहीं है ये...
    पर शादी...............????????????
    और वो भी .....?????
    ऐसे इंसान से....????????????/
    ये किसी भी नजरिये से सजा नहीं कही जा सकती...

    और अगर ये सजा भी है ....तो औरत को है..ना की बलात्कारी को....

    ReplyDelete
  3. मनु जी,
    मेरी पोस्ट औरतों कि ही सजा कि बात कर रही है...
    अब आप समझ सकते हैं ऐसे इंसान से शादी करके कोई औरत कितनी खुश होगी...????

    ReplyDelete
  4. अदा जी यही तो दुर्भाग्य है हमारे समाज का...वैसे "बहुओं को सासों द्वारा ठोकर मारना, दिन भर ताने देना, घरेलू काम-काजों को लेकर मीन-मेख निकालना , बेटे को बहू के खिलाफ भड़काना, खाने-कपड़े से महरूम रखना, बात-बात में अपमानित करना "इस तरह के घरेलु अपराधों के लए भारतीय कानून में प्रावधान है जिसे घरेलु हिंसा ( डोमेस्टिक,वोएलेंस ) के अंतर्गत रखा गया है और रिपोर्ट होने पर तुरण गिरफ़्तारी का भी प्रावधान है ....समस्या ये है कि रिपोर्ट कितनी होती हैं और कानून लागू होते हैं या नहीं.

    ReplyDelete
  5. ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
    ब्लोग चर्चा मुन्नभाई की
    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
    अदाजी!
    नमस्कार भी और प्रणाम भी!
    आपने नारीयो की वर्तमान द्शा पर प्रकाश डाला,
    आपके हर शब्दाश का मे समर्थन करते हुऎ इस
    दयनिय स्थिति पर अपना रोष प्रकट करता हू.
    आपने एक जवलन्त मुद्दे की और समाज एवम समाज के ठेकदारो का ध्यान इस और आकर्षित किया है. धन्यवाद! साधुवाद
    महावीर बी. सेमलानी "भारती"
    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

    यह पढने के लिऎ यहा चटका लगाऎ
    भाई वो बोल रयेला है…अरे सत्यानाशी ताऊ..मैने तेरा क्या बिगाडा था

    हे प्रभु यह तेरापन्थ

    मुम्बई-टाईगर

    ReplyDelete
  6. निश्चित तौर पर इस तरह की घटनायें दुखद एवं अफसोसजनक है.

    ReplyDelete
  7. कितने ही घरों में बहुओं को सासों द्वारा ठोकर मारना, दिन भर ताने देना, घरेलू काम-काजों को लेकर मीन-मेख निकालना , बेटे को बहू के खिलाफ भड़काना, खाने-कपड़े से महरूम रखना.....

    अदाजी , मुझे सचमुच बहुत हंसी आ रही है ...आपने जिस अत्याचार का जिक्र किया है , क्या आपने देखा भी है अपनी आँखों से ....शायद आप आज के 20-25 साल पुराने भारत की बात कर रही हैं ...आजकल कोई बहू ये सब सहन नहीं करती क्यूंकि कोई सास ये कर ही नहीं सकती ....किसी भी नयी बहू को और कुछ आता हो , ना आता हो , ससुराल में अपने अधिकारों के बारे में सब पता होता है ....कर्तव्य तो सिर्फ अपने माता पिता भाई बहनों के लिए हैं ...!!
    अब तो ये हाल है कि वो सास को ठोकर मारे , देर तक सोये , उठ कर रसोई में जाए तो चाय नाश्ता तैयार मिले , वो बस खाए पिए और सज धज कर निकाल जाए .....अगर सास या घर का कोई भी सदस्य ऐतराज जताए तो दहेज़ विरोधी कानून है ना ....ये आपको किसने कहा कि मानसिक प्रताड़ना पर कोई सजा निर्धारित नहीं है ...जरूर है ...मगर सिर्फ बहू के लिए ...हाँ ...सास के लिए तो मानसिक प्रताड़ना सहना अनिवार्य है ...वो भी भले ही दूसरे घर से ही आई हो मगर सास बनने के बाद दहेज़ विरोधी कानून का सहारा उसे तो नहीं मिल सकेगा ...

    मैं तो अपनी भावी समधन को यही कहने वाली हूँ कि बहू को अपनी रिस्क पर ले कर जाए ...कल मुझसे शिकायत नहीं करे ....hahahahaha

    ReplyDelete
  8. जी हाँ बिल्कुल अपराध है।

    शुभकामना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  9. आपकी बातों का समर्थन करते हुए कहना चाहूंगा क्या नारी होना ही बोझ है..इस पुरुष प्रधान समाज में ..भावनात्मक हिंसा का शिकार .. कहीं व्यभिचार.. कहीं बलात्कार .. पति की गालियां .. पीहर के लिए अपशबंद भी पड़ते हैं सुनने .. दुश्चरित्र की संज्ञा .. अवहेलना .. अवमानना .. प्रताड़ना .. यौनाचार की घटना
    अमानवीय व्यवहार .. दोहरी भूमिका का तनाव
    सामाजिक कुसंस्कार के पिंजड़े में बंद .. पराया धन का तमगा .. अनर्गल और बर्बर परंपराएं
    इन सब से पाती हैं खुद को असुरक्षित .. अपमानित .. पीड़ादायी नारकीय जीवन ..
    बदचलन .. आवारा .. बिगड़ी .. कुल्टा
    इन विशेषणों का अभिशाप .. पुरुष प्रधान समाज की .. दुमुंही नीति़ .. दोहरा मापदंड .. हां दोहरा मापदंड
    एक ओर नारी श्रद्धा का पात्र है
    दूसरी ओर विकास में अवरोधक है
    एक ओर बालिका पूजा
    दूसरी ओर कन्या भ्रूण हत्या
    एक ओर घर की लक्ष्मी कहते
    दूसरी ओर सम्पत्ति में अधिकार ही नहीं है
    इस सामंजस्य के अभाव से
    घर में अशान्ति
    अव्यवस्था
    कलह-कलेश
    परिवार टूटना
    तालाक़ मे वृद्धि
    और फिर भी चाहिए
    समर्पणशील, पतिव्रता पत्नी।

    ReplyDelete
  10. मैं जो कहना चाहता था उसे वाणी गीत जी ने लिख दिया।

    सच तो यह है कि ताली दोनों हाथ से ही बजती है। यदि सास के द्वारा बहू को प्रताड़ित करने के प्रकरण मिलते हैं तो बहू के द्वारा भी सास के दमन के भी प्रकरण कम नहीं हैं। आखिर नारी ही नारी की दुश्मन क्यों है?

    ReplyDelete
  11. "...कितने ही घरों में बहुओं को सासों द्वारा ठोकर मारना, दिन भर ताने देना, घरेलू काम-काजों को लेकर मीन-मेख निकालना , बेटे को बहू के खिलाफ भड़काना, खाने-कपड़े से महरूम रखना, बात-बात में अपमानित करना जैसे बातें होती ही रहतीं हैं.."

    आपके कथनानुसार इस तरह की समस्याओं में मैं समझता हूँ की अधिकाँश मामलों में घर की वरिष्ठ नारी ही जिम्मेदार है.

    पुरुष द्वारा बच्ची, लड़कियों या महिलायें पर अत्याचार करना सबसे जघन्य अपराध है. न्याय और उपयुक्त सजा अभी भी प्रक्रियाओं की जटिलता, लोक-लाज और समानता के अन्वेषण में उलझा हुआ है. युवाओं का उछ्श्रीन्खल होना, समाज में उंच नीच, अमीरी अरीबी, बदले की भावना, नारी को दोयम दर्जे का और कमजोर या बेसहारा समझना इस तरह की अपराध को सदियों से पोषण से दे रहा है.

    - सुलभ

    ReplyDelete
  12. बिलकुल सही बात है मगर बलात्कार केअतिरिक्त मुझे लगता है औरत , औरत दुआरा अधिक प्रताडित होती है। वाणी और शिखा जी की बात से सहमत हूँ। धन्यवाद्

    ReplyDelete
  13. कितने ही घरों में बहुओं को सासों द्वारा ठोकर मारना, दिन भर ताने देना, घरेलू काम-काजों को लेकर मीन-मेख निकालना , बेटे को बहू के खिलाफ भड़काना, खाने-कपड़े से महरूम रखना, बात-बात में अपमानित करना जैसे बातें होती ही रहतीं हैं..

    आप शायद १९६० के समय की बात कर रही हैं।
    वाणी जी की बात से सहमत हूँ, आजकल की नारी सचेत है।
    अपने अधिकारों को जानती है।
    लेकिन इन रूढ़िवादी बातों के लिए तो पुरूष ही जिम्मेदार हैं।
    बलात्कार जैसे जघन्य कुकर्त्य के लिए तो कड़ी से कड़ी सज़ा होनी चाहिए।

    ReplyDelete
  14. बहुत सटीक अभिव्यक्ति.... आपके विचारो से सहमत हूँ ....

    ReplyDelete
  15. कर्णम मल्लेश्वरी होना ही एकमात्र उपाय है.

    ReplyDelete
  16. vaniji ki tippni hi aaj sarthak hai .
    vo jmana beet gya .jab bahoo ko ye sb shna hota tha ab to har ghar me sans aansoo peekar aur hotho par muskan lekar ye sab sahn karti hai .
    na hi jeete banata hai na hi marte banta hai |han kdke ki sans ko ye sab sahn nahi karna pdta .use to kmata hua agyakari damad mil jata hai .

    ReplyDelete
  17. अदा जी,

    पहली बात मैं देर करता नहीं, देर हो जाती है...

    रही बात स्त्रियों की दशा की...हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है...घरों में ही देखा जाता है स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है...वाणी जी की बात भी अपनी जगह सही है...ये भी देखा गया है कि घरों में दो भाइयों में बड़ा प्यार होता है लेकिन
    शादियां होते ही ये तनाव में बदल जाता है...हां अपवाद ज़रूर हर जगह होते हैं...मैं
    अपवादों की नहीं बड़े परिवेश की बात कर रहा हूं...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  18. यह इल्जाम किस पर है ? मैं तो डरा की कही मुझ पर ही तो नहीं ?? गंभीर मुद्दे पर इस लाईट टिप्पणी के लिए मुआफी चाहता हूँ ! और लोगों की टिप्पणियाँ तो हैंहीं !

    ReplyDelete