कितनी ही बार मैंने ख़्वाब जलाये हैं
हाल-ए-दिल पूछने वो लौट आये हैं
उन फिजाओं की रौनक अब क्या कहिये
जहाँ प्यार के नगमें हमने गुनगुनाये हैं
सदियों की थी दूरियाँ हम नाप आये हैं
नजदीकियों के भी वहाँ पर चंद साए हैं
ज़ख़्म की उम्मीद थी गुलों से उलझ गए
इन फूलों ने फिर मेरे हौसले बढ़ाये हैं
दिल टूटा था और नुमाइश लग गयी
आँखों ने फ़िर वही कहकहे लगाये हैं
नज़रें झुकीं 'अदा' की हया से भरीं हुईं
दिल आज फिर भूला कि वो पराये हैं
दिल टूटा था और बस नुमाइश लग गयी
ReplyDeleteआँखों ने फ़िर वही कहकहे लगाये हैं
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है। दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं
ReplyDeleteदबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं...
जय हिंद...
मन कहता, है ये अन्दाजे बयाँ और
ReplyDeleteक्या और कहूँ?.. शब्द हुए पराये हैं।
ज़ख्म की उम्मीद में गुलों से टकरा गए
ReplyDeleteइन फूलों ने फिर मेरे हौसले बढ़ाये हैं
अच्छे भाव को प्रस्तुत करती पंक्तियाँ बहन मंजूषा। एक कोशिश मेरी तरफ से भी-
गुलों से जख्म मिल जाये यही गुल की परेशानी
गले मिलकर गुलों ने जोर से आँसू बहाये हैं
शुभकामना
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
दूसरी पंक्ति को ऐसे भी कर के देखिए
ReplyDeleteऔर क्या कहूँ, शब्द हुए पराये हैं।
नज़रें झुकीं 'अदा' की हया से भरीं हुईं
ReplyDeleteदिल आज फिर भूला कि वो पराये हैं
maktaa sabse shaandaar hai ada ji....
baaki ghazal ki baat baad mein karte hain....
manu' betakhllus'
"दिल आज फिर भूला कि वो पराये हैं"
ReplyDeleteइतने अच्छे क्यों लगते हो किन सोचों में गुम रहते हो ...
bahut sundar abhivyakti.
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
सुंदर ग़ज़ल!
ReplyDeleteसदियों की थी वो दूरी हम नाप आये हैं
ReplyDeleteवहाँ नजदीकियों के भी मगर चंद साए हैं
ज़ख्म की उम्मीद में गुलों से टकरा गए
इन फूलों ने फिर मेरे हौसले बढ़ाये हैं
बहुत खूब, चित्र भी अति सुन्दर संलग्न किया है !
आपकी आँखों के कहकहे सलामत रहे
ReplyDeleteफिजाओं की रौनक मुबारक रहे
फूलों के हौसले , प्यार के नगमे
हर दिन हर पल साथ रहे ....
बहुत शुभकामनायें ....!!
बहुत बढिया गजल है।बधाई।
ReplyDeleteनज़रें झुकीं 'अदा' की हया से भरीं हुईं
ReplyDeleteदिल आज फिर भूला कि वो पराये हैं
IN PANKTIYON KI KYA KAHUN....WAAH !! PREM ME SWABHAVIK HI YAH AWASTHA HUA KARTI HAI KI SAAMNE AANE PAR SAARE GILE SHIKVE APNE AAP DHUL JAYA KARTE HAIN....IS AWASTHA KA AAPNE ITNA MOHAK AUR SUNDAR CHITRAN KIYA HAI KI BAS.....
कितनी ही बार मैंने ख़्वाब जलाये हैं
ReplyDeleteहाल-ए-दिल पूछने वो वापस आये हैं
वाह! क्या बात कही है अदा जी ! बहुत खूब.
बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
दिल टूटा था और नुमाइश लग गयी
ReplyDeleteआँखों ने फ़िर वही कहकहे लगाये हैं
sundar gazal kahi hai...hamesha ki tarah
etna badhiya gajal kaise likh letin hain aap ki bas sochte rah jaate hain kya bolein...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति--
ReplyDelete’प्रियतम से जब हुआ सामना,
मन पिघला नवनीत होगया.
झूले बाहों के झूले जब,
उपालम्भ सन्गीत होगया ॥’
अजीब दास्ताँ है ये
ReplyDeleteकहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंजिलें हैं कौन सी
न वो समझ सके न हम...
sundar gazal ...
Sundar ghazal hai 'ada' ji.
ReplyDeletebadhai !!
ज़ख़्म की उम्मीद थी गुलों से उलझ गए
ReplyDeleteइन फूलों ने फिर मेरे हौसले बढ़ाये हैं
दिल टूटा था और नुमाइश लग गयी
आँखों ने फ़िर वही कहकहे लगाये हैं
wah, bahut khoob ghazal kahi hai...badhai
नज़रें झुकीं 'अदा' की हया से भरीं हुईं
ReplyDeleteदिल आज फिर भूला कि वो पराये हैं..
बस बस और कुछ बताने की जरुरत नहीं है.
कमाल करते हैं ये शे'र भी न...मानो पूरी दास्ताँ कह दी.
हालाँकि गजल पुरानी है, पर जब पढा, तो बिना तारीफ के रह न सके।
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें।
------------------
सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
आपकी कुछ कवितायेँ श्रिगारिकता के नए कल्ले -कोपलें उगा देती हैं -अब इसी कविता को ही देखिये न !
ReplyDelete