आज ६ दिसम्बर है.....हर जगह ब्लॉग पर बड़ी सरगर्मी सी नज़र आरही है...कोई इसे 'काला दिवस' कहता है कोई 'शौर्य दिवस' ...अपना-अपना नजरिया है...
मेरे लिए भी इस दिवस की अपार महत्ता है...मेरे लिए ये 'शौर्य दिवस' है और मेरे 'उनके' लिए 'काला दिवस'....हमारी शादी जो हुई थी.....!!:):)
खैर....इस तरह की बातें सिर्फ इस लिए उठ रहीं हैं ...क्यूंकि आज के दिन एक विवादित 'ढांचा' गिराया गया था.....उसको गिराने के पीछे एक ही मंशा रही होगी, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी......
लेकिन हम भारतीय बाल की खाल निकालने में माहिर हैं और इसी बात पर आज कई पोस्ट का अम्बार लग गया और ना जाने कितने पोस्ट पढ़ गए हैं इसी घटना पर....पढने के बाद मन में कुछ ख्याल आया और जैसा कि आप जानते हैं...आज हम भी बीजी होंगे...ज्यादा कुछ कह नहीं पायेगे...तो सोचा जहाँ 'मुर्दे पर नौ मन उहाँ दस मन' का फर्क पड़ता हैं ...एक छोटी सी पोस्ट लिख ही देते हैं....कल हाज़िर होंगे अपने कुछ और संस्मरण के साथ.....
हाँ तो हम कह रहे थे कि उन पोस्ट्स को पढ़ कर मन में कुछ विचार आये ...कि आखिर हम भारतीय औरों से अलग क्यूँ है.....और विश्वास कीजिये हम बहुत अलग हैं.....इसके लिए भी मेरे पास संस्मरण है....जो आपसे हम ज़रूर बाटेंगे.....हाँ तो हम कैसे अलग हैं आखिर वो क्या बात है...??? तो कुछ गुणों का ख्याल आया मेरे मन में सोचा आपसे भी कह दें....आपलोग फ्री हैं मुझसे इत्तेफाक नहीं रखने के लिए....
मेरे हिसाब से हमलोगों में कुछ विशिष्ठ गुण हैं, जो हमें औरों से बिलकुल अलग करता है.....और ये कुछ गुण (सभी नहीं) निम्नलिखित हैं.... :
१. हम भूतकाल में जीना पसंद करते हैं.....अकसर आप सुनेंगे ...अरे हमारे दादा जी की कोठी इतनी बड़ी थी और उसमें वो इतना बड़ा बांस रखते थे...की जब भी बारिश नहीं होती...बादलों को डंडे से हिला देते और बारिश हो जाती....बेशक आज उनके घर के नलके की टोंटी ही काम न करती हो...
२. हम दुश्मनी को हमेशा पाल कर रखते हैं....उसकी पूरी देख भाल करते हैं....दोस्ती रहे कि न रहे ..दुश्मनी को हमेशा ही तंदरुस्त रहना चाहिए....अपने जीवन का अधिकाँश हिस्सा दुश्मनी को याद करने और उसको अच्छी तरह निभाने में बिताते हैं......
३. हम हमेशा अपनी जड़ काटने में विश्वास रखते हैं....आपने 'कालिदास' कवि के बारे में पढ़ा ही होगा....कि वो जिस डाल पर बैठे थे उसे ही काट रहे थे.....लेकिन 'कालिदास' बाद में बेवकूफ हो गए और 'मेघदूत' लिख गए...परन्तु हमारे यहाँ अधिकाँश अपनी होशियारी ता-उम्र बचा कर रखने में विश्वास करते हैं....लिहाज़ा अपनी जड़ खोदते ही रहते हैं....
हम दूसरों की जड़ काटने में भी विश्वास रखते हैं....और आरी हमेशा तैयार रखते हैं...ताज़ा-तरीन उदहारण हैं 'सलीम मियां और एक और साहब हैं मुझे नाम याद नहीं क्यूंकि....फालतू की बातों में समय नष्ट करने से क्या फायदा...
४. हमलोग बात की तह तक जाने की ज़रुरत ही नहीं समझते हैं.....क्यूँ ?? क्यूंकि उसमें टाइम ख़राब होगा ....हमें तो बस फटा-फट अपनी बात कहनी है....नहीं तो कोई और कह देगा.....फिर चाहे उसका मतलब ही क्यूँ न बदल जाए.....
जहाँ जरूरत है कहने की......'रोको, मत जाने दो ...' तो हमें तो बस बात कहनी है इस लिए हम .....'रोको मत, जाने दो' ...कह कर खुश हो जाते हैं.....क्या फर्क है भला.....बात तो एक ही है...
५. हम कभी भी किसी को भी दांव पर लगा सकते हैं...फिर चाहे वो देश हो या धर्म या फिर बीवी हो....देश को तो सबसे पहले दाँव पर लगाते हैं, की फर्क पैंदा है, देश कौन सी हमारे जेब में रखा हुआ है हमने, कि निकाल के देने में तकलीफ हो जायेगी। अब देखिये क़साब , पाकिस्तानी है, कितना उत्पात मचाया, लेकिन उससे क्या, हम हिन्दुस्तानी हैं न, घर आये दुश्मन का भी सत्कार करते हैं, तो जी लगे हुए हैं सत्कार में, अभी तक न सिर्फ वो जिंदा है....हम से आपसे ज्यादा ऐश कर रहा है...
६. हम कभी भी चुप-चाप नहीं बैठ सकते.....'कुछ न कुछ किया कर काम न मिले तो पायजामा फाड़ कर सिया कर' इसे हम सभी पूरी तरह अमल में लाते हैं....और कुछ नहीं तो.....बिन मांगे अपनी सलाह ही दे देते हैं...
७. हम सभी और किसी बात में सक्रीय हों कि न हों राजनीति में बहुत सक्रीय हैं......चाहे वो घर की राजनीति हो, गाँव की , शहर की या फिर देश की.....हम सभी उसमें हिस्सा लेते हैं.....एक मिनट में किसी भी पार्टी किसी भी नेता को, किसी भी अभिनेता , खिलाड़ी को आसमान में बिठा देते हैं और एक मिनट में उसको उसकी जगह दिखा देते हैं.....मंदिर तक बना दिए हमने कितनों के....देवी जय ललिता, देवी खुशबू, प्रभु रजनीकांत, देवाधिपति अभिताभ ...???? और न जाने कौन कौन....
हम अपने दिमागी दीवालियेपन के लिए कोई भी सीमा निर्धारण में यकीन ही नहीं रखते हैं.....वो असीमित हो सकती है....
८. हमारा देश एक विशाल देश है....बचपन से सुनते आये हैं.....भारत 'अनेकता में एकता का देश है'....बस अब बात ज़रा सी ही बदली है....भारत 'अनेकता में अनेकता' का देश है....अब जब सब डफली बजाने में माहिर हैं....और सब बजाते हैं....अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग...
९. हम हमेशा इस बात से परेशान हो जाते हैं.....उसकी साडी मेरी साडी से सफ़ेद कैसे??' फिर उस सफेदी को पाने के लिए हम 'साम दाम दंड भेद' कुछ भी अपना सकते हैं...
१०. वाद-विवाद हमारा पसंदीदा टाइम पास है .....फिर चाहे वो घर पर हो, दफ्तर में हो, सड़क पर हो या फिर ब्लॉग जगत हो ....
११. हम बेईमानी भी बहुत इमानदारी से करते हाँ...जैसे बिजली का मीटर स्लो करना हो तो टाइम से करते हैं....कोई कोताही नहीं करते...
ये कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण गुण है ...और भी हैं .....फिलहाल ये हैं .....जिनसे हम सभी विभूषित हैं....और हमारे
इसी गुण के कारण...हम कहीं के नहीं हैं... फिर भी .....गर्दन ऊँची ही है.....पूरा देश गताल खाता में चला जा रहा है...तो मेरी बला से कह कर कंधे उचकाने में यकीन रखते हैं.....
आज मैंने भी एक सच्चे भारतीय का फ़र्ज़ निभाते हुए ये पोस्ट लिख दी है....पढ़ लीजिये तो ठीक है, नहीं तो कोई और पढ़ लेगा..:):)