Monday, December 28, 2009
ज़रा अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो...
पिछले कई पोस्ट्स में मैंने अपने बच्चों के साथ हुई गुफ्तगू को शामिल किया...वजह कई थे मसलन, मुझे समय नहीं मिल रहा था कुछ नया सोचने का ....उनसे बात-चीत में ही कुछ विषय निकल आते थे ...जिन्हें मैं आप सबसे बाँट कर सुख का अनुभव करती हूँ....साथ ही अपने बच्चों से आपका तार्रुफ़ कराना,
आपके समक्ष नई पीढ़ी के कुछ खयालातों को लाना, बच्चों को हिंदी ब्लॉग की दुनिया से मिलवाना, और उनकी अपनी सोच में कुछ इजाफा या फिर कुछ बदलाव लाना....बढ़ते बच्चे कच्ची मिटटी के घड़े होते हैं....अभी ही उन्हें सही दिशा मिल सकती है...इतने सारे अंकल-आंटीज कहाँ मिलेंगे उन्हें....वो भी खालिस हिन्दुस्तानी.....आप लोगों का हृदय से आभार कि आपने उनकी बातें सुनी और अपने विचार दिए.....मुझे पूरा विश्वास है आपकी बातों से मेरे बच्चे लाभान्वित होंगे....
आज एक बात फिर एक पुरानी ग़ज़ल आपको समर्पित..
मैंने धुन भी दी है इसे कामचलाऊ सा सुनियेगा..
तुम्हें रस्म-ए-उल्फत निभानी पड़ेगी,
मुझे अपने दिल से मिटा कर तो देखो
तुम्हें लौट कर फिर से आना ही होगा
मेरे दर से इक बार जाकर तो देखो ।
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
चलो आईने से ज़रा मुँह तो मोड़े ,
नज़र में मेरी तुम समा कर तो देखो
तेरे गीत पल-पल मैं गाती रही हूँ,
मेरा गीत तुम गुनगुना कर तो देखो
मैं गुज़रा हुआ इक फ़साना नहीं हूँ
मुझे तुम हकीक़त बना कर तो देखो
तू तक़दीर की जब जगह ले चुका है
मुझे अपनी क़िस्मत बना कर तो देखो
तेरे-मेरे दिल में जो मसला हुआ है,
ये मसला कभी तुम मिटा कर तो देखो
बड़ी देर से तुमपे आँखें टिकी है,
कभी अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो
भरोसा दिलाया है जी भर के तुमको
खड़ी है 'अदा' आज़मा कर तो देखो
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ReplyDeleteज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
बहुत सुन्दर गज़ल .
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ReplyDeleteज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
वाह..क्या अंदाज़ है ....
तेरे गीत पल-पल मैं गाती रही हूँ,
मेरा गीत अब गुनगुना कर तो देखो
ये हुई ना बात...
मैं गुज़रा हुआ इक फ़साना नहीं हूँ
मुझे तम हकीक़त बना कर तो देखो
सच है....
आज तो अलग ही रंग है...बहुत सुन्दर
बड़ी खूबसूरत गजल इक लिखी है
ReplyDeleteकभी लबों पे अपने सजा के तो देखो
तू तक़दीर की जब जगह ले चुका है
ReplyDeleteमुझे अपनी क़िस्मत बना कर तो देखो
यह कुछ ख़ास लगी, उल्फत में डूबी हुए ख्याल.
वाह जी सुंदर.
ReplyDeleteबड़ी देर से तुमपे आँखें टिकी है,
ReplyDeleteकभी अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो
बहुत खूब
बी एस पाबला
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ReplyDeleteज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल...सुंदर सुंदर बातें कहती हुई ग़ज़ल की हर पंक्तियाँ दिल को छू गई..बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत बेहतरीन गज़ल..और पढ़ा बहुत उम्दा है.
ReplyDeleteयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteये तो इश्क मुश्क जमाने की लगती है -हाय रे अपने पुराने जख्मों को कुरेद दिया ...
ReplyDeletenice
ReplyDeleteतुम्हें रस्म-ऐ-उल्फत निभानी पड़ेगी,
ReplyDeleteमुझे अपने दिल से मिटा कर तो देखो
तुम्हें लौट कर फिर से आना ही होगा
मेरे दर से इक बार जाकर तो देखो ।
Isiliye to baar,baar laut aate hain!
Waah! Kya gazal kahee hai..!
अंटीस नहीं आंटीज
ReplyDeleteख्यालात नहीं खयालात
मिट्टी का घडा नहीं मिट्टी के घडे
ह्रदय नहीं हृदय
यह गजल नहीं. मतला नही.
कामचलाऊ सा - ~~~~~ सी
रस्म-ऐ-उल्फत - ऐ की जगह ए
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
बहुत जमी.
वाह-वा ....
ReplyDeleteऐसी न्यारी और नायाब ग़ज़ल ...!!
हैरान हूँ कि पहले कभी पढने से चूक कैसे गया
हर शेर अपनी मिसाल आप है ...
"मैं गुज़रा हुआ इक फ़साना नहीं हूँ
मुझे तुम हकीक़त बना कर तो देखो "
"भरोसा दिलाया है जी भर के तुमको
खड़ी है 'अदा', आज़मा कर तो देखो"
अब ऐसा कोई शेर नहीं है
जिसकी तारीफ़ न की जाए
बस इतना ही कहता हूँ . . .
"हर इक लफ़्ज़ में अक्स अपना मिलेगा
'अदा' कि ग़ज़ल गुनगुना कर तो देखो"
मुबारकबाद .
benaami ji,
ReplyDeletemain aapka hriday se dhanywaad karti hun...saari galatiyon ko bataane ke liye..
lekin ye benaami kyun..???
बेहद उम्दा व लाजवाब ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteada ji,
ReplyDeletebahut hi khoobsurat gazal hai har sher lajwaab hai, aapki dhun bhi bahut madhur hai,
yahi kahenge ki :
kabhi tareeke se ga kar to dekho :)
bahut accha laga sunkar.
आपके बच्चों ने क्या सिखा पता नहीं ...हम तो रोज कुछ न कुछ सीख रहे है आपसे ...माता अदाम्बिके ...!!
ReplyDeleteसॉरी...गर्दन घुमा कर नहीं देख सकते ...बहुत दर्द हो रहा है ...नस खिंच गयी है ...घुमा घुमा कर आपकी पोस्ट पढ़ते रहे इतने महीनो से .....:)..
चलो आईने से ज़रा मुँह तो मोड़े ,
नज़र में मेरी तुम समा कर तो देखो...
भरोसे पर ऐतबार कर लिया ...आजमा भी लेंगे किसी दिन ...
बेहतरीन ग़ज़ल ....!!
sundar gazal.
ReplyDeleteshubhkamnayen.
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ReplyDeleteज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
एक बहुत ही ख़ूबसूरत गेय ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
ज्यादा नहीं घुमायेंगे
ReplyDeleteअगर ज्यादा घुमाई
और टूट गई तो
बिना घूमी से भी जायेंगे
दुनिया से न उठ जायेंगे।
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ReplyDeleteज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
चलो आईने से ज़रा मुँह तो मोड़े ,
नज़र में मेरी तुम समा कर तो देखो
बेहद सुन्दर !
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ReplyDeleteज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
गज़ब का आत्मविश्वास है.. इन पंक्तियों में..
वैसे आपके ब्लॉग के ले आउट में कमेंट्स इतने अपीलिंग नहीं है.. इसमें थोड़े सुधार की जरुरत है..
ज़माने की बातें तो सुनते रहे हो,
ReplyDeleteज़माने को अपनी सुना कर तो देखो,
वाह बहुत खूब...
अदा जी सुनी आपकी मधुर आवाज़ में ग़ज़ल ......!!
ReplyDeleteगातीं तो कमाल का हैं ही ग़ज़ल भी बहुत बढ़िया लिखी .....!!
हाँ पिछले दिनों आपकी बेटी की आवाज़ भी सुनी थी ....आशीर्वाद है उसे रब्ब और हुनरमंद बनाये .....!!
हा हा..हा ....अदा जी मनु जी ने अच्छी टांग खिची बेनामी की .....क्या जरुरत है ऐसी टिप्पणियों को स्थान देने की .....!!
ReplyDeleteभरोसा दिलाया है जी भर के तुमको
ReplyDeleteखड़ी है 'अदा' आज़मा कर तो देखो.
सुंदर पोस्ट है पाठक को अपनेपन का अहसास करती हुई, आपने जो भी बातें की वे सभी दिल के करीब ही लगी हैं. ये एक ऐसा संवाद था जो किसी अपने ही परिवार को बहुत दूर होने के बाद भी बहुत पास रखता है.
हम ही लाभान्वित हो रहे हैं फिलहाल... शैल परिवार से.
कभी यह मेरे ब्लॉग पर पोस्ट हुई थी ! आपसे कितना कुछ मिलता है ना ! -
ReplyDelete"उन्हें नब्ज अपनी थमा कर तो देखो
दवा उनकी भी आजमा कर तो देखो ।
अभीं पीठ कर अपनी बैठे जिधर तुम
उधर अपना मुख भी घुमाकर तो देखो ।
दरख्तों की छाया में है चैन कितना
कभी धूप में तमतमा कर तो देखो ।
सुघर साँवला जिसको आकर चुरा ले
कभी वह दही भी जमाकर तो देखो ।
जिसे बाँट कर खूब प्रमुदित रहो तुम
कभीं वह भी दौलत कमा कर तो देखो ।"
वाह !!
ReplyDeleteहिमांशु जी,
बड़ी अजीब सी बात हो गयी है ये तो...
ये मेरी पुरानी ग़ज़ल है....
कहते हैं न सभी बुद्धिमान लोग एक जैसा ही सोचते हैं..:):)
पर अदा जी !
ReplyDeleteसब लोग आप जैसा गाते नहीं !
पूरा सुन लिया प्रस्तुति को ! अब कौन-सी आवाज रखूँ इसके सामने ! मेरे पास तो नहीं !
तुम्हें रस्म-ए-उल्फत निभानी पड़ेगी,
ReplyDeleteमुझे अपने दिल से मिटा कर तो देखो
Pehli line ka vaada hai,
Aur doosri line Kufr hai mere liye.
:)
तुम्हें लौट कर फिर से आना ही होगा
मेरे दर से इक बार जाकर तो देखो ।
Haan laut ke waapis aane ka koi maza ho sakta hai maana, lekin kasam se mere aapke rishte main hum dono hi is maze se vanchit reh jaane wale hain.
Zindagi bhar.
jab bichdainge hi nahi to waapis???
:)
Bachwa.
हालांकि ये तो नहीं मालूम
ReplyDeleteकि ये हज़रत कौन हैं ....
लेकिन मेरी गुज़ारिश है ..
और मशविरा भी
"कभी भी, किसी से मिले तब्सिरा गर
करो कोशिशें, आज़मा के तो देखो..."
बहुत खूब। शब्द नहीं है वाह! कहने के लिए ...
ReplyDeleteबड़ी देर से तुमपे आँखें टिकी है,
ReplyDeleteकभी अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो
... बहुत खूब !!!!
ada ji bahut pyari gazel paish ki hai
ReplyDeletedil kar raha hai me bhi ise yaad kar lu aur gungunati rahu..
maza aa gaya padh kar. thanks for sharing. aur me kafi time se apka apne blog per intzaar kar rahi thi per aaj ye post padh kar baat bheje me aayi ki aap aaj-kal bahut busy ho.
ek bar fir kahugi gazel bahut acchi aur umda hai..daad kabool kare. aur nav varsh ki shubhkaamnaye apko aur apke pariwar ko.
तुम्हें रस्म-ए-उल्फत निभानी पड़ेगी,
ReplyDeleteमुझे अपने दिल से मिटा कर तो देखो
andaaz mein khuddari (bilkul meri tarah!!!)
तेरे गीत पल-पल मैं गाती रही हूँ,
मेरा गीत तुम गुनगुना कर तो देखो
aur mera geet amar kar do.. :)
तेरे-मेरे दिल में जो मसला हुआ है,
ये मसला कभी तुम मिटा कर तो देखो
quatilana andaaz...
आपकी बात कैसे मानें यही दुविधा है, गर्दन नहीं घूम सकती...स्पांडिलाइटिस के मरीज जो ठहरे...
ReplyDeleteजय हिंद...
बड़ी देर से तुमपे आँखें टिकी है,
ReplyDeleteकभी अपनी गर्दन घुमा कर तो देखो
... बहुत खूब !!!!