रात का मंजर हो सितारों की कोई बात हो
जिक्र हो फूलों का बहारों की कोई बात हो
रेत पर चल कर गए जो पाँव कुछ हलके से थे
गुम निशानी है तो इशारों की कोई बात हो
नाखुदा गर भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
मोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो
आ ही जाते हैं कभी बदनाम से साए यूँ हीं
बच ही जायेंगे जो दिवारों की कोई बात हो
बुझ रही शरर मेरी आँखों की सुन ले 'अदा'
देखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो
आ ही जाते हैं कभी बदनाम से साए यूँ हीं
ReplyDeleteबच ही जायेंगे जो दिवारों की कोई बात हो ..
खूबसूरत ग़ज़ल है ........ गुंचे की तरह खिलते हुए शेर हैं ........
बुझ रही शरर मेरी आँखों की सुन ले 'अदा'
ReplyDeleteदेखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो
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ब्लोगचर्चा मुन्ना भाई की
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अदाजी! बेहतरिन अन्दाजे गजल, आपकी लिखाई की अदाओ के तो हम
मुरीद हो गऎ है. अति सुन्दर! वाह! वाह! याहू!
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निचे चटका लगाऎ
ब्लोगचर्चा मुन्ना भाई की
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
अजीब पेड
इस महिला ब्लोगर को पहचाने
सुंदर ग़ज़ल!
ReplyDeletebahut sundar.
ReplyDeleteumda gazal........
ReplyDeletebadhaai !
बुझ रही शरर मेरी आँखों की सुन ले 'अदा'
ReplyDeleteदेखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो
--सुन्दर शेर निकाले हैं, बहुत बढ़िया.
नाखुदा गर भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
ReplyDeleteमोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो
आशावादिता से भरपूर स्वर इस ग़ज़ल में मुखरित हुए हैं ।
देखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो
ReplyDeleteसुभान अल्लाह.
फिर छिड़ी रात बात फूलों की,
ReplyDeleteरात है या बारात फूलों की
फूल के हैं फूल के गजरे
शाम फूलों की, रात फूलों की
आपका साथ साथ फूलों का
आपकी बात बात फूलों की...
जय हिंद...
charansparsh di...
ReplyDeleteshandaar gajal hai...
ye panktiyan to churane ko jee karta hai!!!
नाखुदा गर भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
मोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो
GOOD ONE
ReplyDeleteदीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteबहुत दिंनो तक ब्लोगिंग से दूर रहा है , और आते ही आपके ब्लोग पर आ धमका , और क्या बात है , बेहतरिन रचना लगी । बधाई
दीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteबहुत दिंनो तक ब्लोगिंग से दूर रहा है , और आते ही आपके ब्लोग पर आ धमका , और क्या बात है , बेहतरिन रचना लगी । बधाई
नाखुदा गर भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
ReplyDeleteमोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ....बहुत अच्छा लगा ग़ज़ल का यह सकारात्मक भाव..
बुझ रही शरर मेरी आँखों की सुन ले 'अदा'
ReplyDeleteदेखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ...मगर इसमें क्या छिपा है जो मुझे परेशां कर रहा है ....
कभी ना बुझे शरर इन आँखों की .....नज़ारे जो दिखे इन आँखों में ...उन्ही की बात हो ....!!
इशारों की बात खूब कही !
ReplyDeleteशब्दों और अलविदा की बात में आप निमंत्रित हैं। खूब ध्यान से आगे पीछे का पढने के लिए।
"रात का मंजर हो सितारों की कोई बात हो"
ReplyDeleteचारु चन्द्र की चंचल किरणें
खेल रही हैं जल थल में
स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है
अवनि और अम्बर तल में
नाखुदा गर भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
ReplyDeleteमोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो
बुझ रही शरर मेरी आँखों की सुन ले 'अदा'
देखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो,
khoobsurat ghazal kahi hai..aur ye sher bahut pasand aaye.....badhai
नाखुदा गर भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
ReplyDeleteमोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो
बुझ रही शरर मेरी आँखों की सुन ले 'अदा'
देखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो,
khoobsurat ghazal kahi hai..aur ye sher bahut pasand aaye.....badhai
रेत पर चल कर गए जो पाँव कुछ हलके से थे
ReplyDeleteगुम निशानी है तो इशारों की कोई बात हो
नाखुदा गर भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
मोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो
लाजवाब...
खासकर पहले वाला तो ज्यादा ही गहरा है...
sunder prastuti. bahut achchi gazal.
ReplyDeletenirbhay jaatav.
khoobasoorat gazal aur chitra
ReplyDeleteदेखूं तेरी आँखों से उन नजारों की कोई बात हो!
ReplyDeleteवाह बलि जाऊं इस अदा /अंदाजे बयां पर !
vakai.. shandar prastuti.. :)
ReplyDeleteनाखुदा गर भूल जाये.....बहुत सुन्दर गज़ल.
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