Tuesday, December 22, 2009
महिलाओं में गाली, शराब और सिगरेट....!!!
आज बस यूँ ही कुछ लिख दिया है...
कहीं पढ़ा था... कि नारी, पुरुष के साथ नीचे गिरने में कितना competition करेगी.....तो यही कहूँगी ...नारी हो या नर गिरने में भला क्या competition कोई इंची-टेप लेकर तो गिरता नहीं है....जिसे भी गिरना हो नर या नारी बस गिर जाता है....
आज यहाँ वही लिख रही हूँ ...जो मैंने पहले कभी देखा था और अब जो देख रही हूँ.....
'गाली' शब्द से परिचय सबको है.....मन में जब भी गुस्से का धुआं भर जाता है तो वह 'गाली' के रूप में बाहर निकलता है.....कुछ लोग इस frustration को 'बेवकूफ' 'गधा' बोल कर निकाल देते हैं और कुछ लोग अपनी इस कला में शब्द कोष के अनेकोअनेक शब्दों के अलावा, उपमा-उपमेय, छंद, अलंकार, अन्योक्ति, यहाँ तक कि भौतिकी और जीव-विज्ञानं का भी भरपूर उपयोग करते हैं..... किसी भी तरह की गाली देना...बिलकुल व्यक्तिगत बात है.....व्यक्ति के व्यक्तित्व की बात है....वह इस बात पर पूर्णतः निर्भर करता है कि उसका पालन पोषण कैसा हुआ है...या फिर वो कैसे लोगों के साथ रहता है..अगर परिवार में गाली देना आम बात है ...बच्चे ने माता-पिता को गाली देते हुआ सुना है तो वह भी कभी न कभी दे ही देगा....बच्चों को नक़ल करने कि आदत जो है....(मेरे भाई मुझे दीदी कहते थे...तो मेरे बच्चे भी मुझे दीदी ही कहने लगे.....बड़ी मुश्किल से 'मम्मी' कह पाए थे).....हमारे घर में मैंने आज तक अपने पिता को एक भी अपशब्द कहते नहीं सुना....इसलिए हमने कभी भी गाली नहीं दी...न ही मेरे भाइयों ने...ठीक वैसे ही मेरे बच्चों ने कभी हमें नहीं सुना तो वो भी इससे दूर हैं.....
महिलाएं भी गालियाँ देतीं हैं...लेकिन ज्यादातर....या तो वो बहुत हाई क्लास औरतें होतीं हैं जो हाई क्लास गलियाँ देतीं हैं....अंग्रेजी में......या फिर नीचे तबके कि महिलाओं को सुना है चीख-पुकार मचाते....मध्यमवर्ग कि महिलाएं यहाँ भी मार खा जातीं हैं....न तो वो उगल पातीं हैं न हीं निगल पातीं हैं फलस्वरुप...idiot , गधे से काम चला लेतीं हैं....हाँ idiot , गधे का प्रयोग ही हम भी करते हैं....और बाकि जो भी 'अभीष्ट' गालियाँ हैं....उनमें कोई रूचि नहीं है...
महिलाओं का शराब पीना, सिगरेट पीना ...चरित्रहीनता के लक्षण बताये गए हैं .....
यहाँ इसपर कुछ कहना चाहूंगी...
महिलाओं का मदिरापान और धुम्रपान...समय, परिस्थिति और परिवेश कर निर्भर करता है.....
यहाँ कनाडा में वाइन (मैं हार्ड ड्रिंक्स कि बात नहीं कर रही हूँ ) बच्चे तक पीते है और बुरा नहीं माना जाता है...आप चर्च में जाएँ तो वहां वाइन प्रसाद के रूप में दिया जाता है....कोई आपके घर आये तो वो उपहार में वाइन ही लेकर आता है...फलस्वरूप हिन्दुस्तानी घरों में भी इसका उपयोग होने लगा है....औरतें भी अब इसका स्वाद लेती हैं...इसका अर्थ यह नहीं की वो चरित्रहीन हैं...in rome do as the romans do
मैं रांची की रहने वाली हूँ...यहाँ का आदिवासी समुदाय हर ख़ुशी या गम में, अर्थात हर मौके पर 'हंडिया' (चावल से बना पेय) बनाता है और छक कर इसे आदमी, औरतें बच्चे सभी पीते हैं....तो आप उन औरतों को क्या कहेंगे ?? चरित्रहीन ..?? यह तो इनकी संस्कृति का हिस्सा है....एक रिवाज़ है ..
यहाँ मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं इस आदत का समर्थन नहीं कर रही हूँ ...यह बहुत बुरी आदत है.....परन्तु चरित्रहीनता नहीं....
जब मैं मरिशिअस में थी तो वहां भारतीय मूल के हिन्दू हर महीने की पहली तारिख को अपने पूर्वजो को कुछ अर्पित रहते हैं... इस अर्पण में ..सार्डीन मछली सिगरेट और वाइन होती है ..यह अर्पण पूर्वजों के लिए होता है और पूर्वजों में तो दादी, माँ, या चाची की आत्मा भी शामिल होती है ....अब आप बताइए उनके पुरखों ने कब वाइन पी थी या सार्डीन खाया था......लेकिन यहाँ यही उबलब्ध है ...और इसे ही वो अपना अर्पण मानते हैं.....और श्रद्धा से समर्पित करते हैं....और मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती है...
आज समय बदल रहा है....महिलाएं multinational companies में काम करती हैं...और नौकरी का परिवेश भी बदल रहा है...कभी अगर हाथ में ग्लास ले भी लिया तो उससे उसके चरित्र को आंकना गलत बात होगी....
अब बात कीजिये सिगरेट-बीडी की ...
कुछ समय पहले मैं एक फिल्म बना रही थी.....'नूर-ए-जहां', यह फिल्म हिन्दुस्तानी मुस्लिम महिलाओं की उपलब्धियों पर थी...इसी फिल्म के research के सिलसिले में ..कई म्यूजियम्स में जाना हुआ...वहाँ कुछ miniature तस्वीरों को भी देखने का मौका मिला.....मुझे याद है कुछ मुग़ल कालीन पेंटिंग में महिलाओं को हुक्का पीते हुए दिखाया गया है....इसका अर्थ यह हुआ की धुम्रपान महिलायें बहुत पहले से कर रहीं है....यह एक आदत हो सकती है...जिसे आप बुरी आदत कह सकते हैं लेकिन चरित्र का certificate नहीं....
मैंने अपनी नानी सास को बीडी पीते देखा है...वो सिगरेट भी पीती थी और हमलोग बहुत मज़े लेते थे....मैं खुद खरीद कर लाती थी, उनके लिए...क्यूंकि बीडी सिगरेट हमारे घर में कोई नहीं पीता था.....अब नानी सास को ये आदत कहाँ से लगी ये मत पूछियेगा...क्यूंकि मुझे नहीं मालूम...
मैंने अपनी नानी को हुक्का पीते देखा है...मेरी नानी के घर कई बार दूसरी नानियाँ आतीं (नानी की सहेलियां ) मिलने....तो हुक्का जलाया जाता था....नानी और उनकी सहेलियां...बारी बारी से हुक्का पीती थी....यहाँ तक की जब गाँव में कोई पंचायत होती थी तब भी वहां हुक्का चलता था....तो क्या मेरी नानी चरित्रहीन थी...???
हाँ... मेरी माँ ने कभी भी हुक्का बीडी सिगरेट नहीं पिया.....
मेरी दादी को मैंने पान, तम्बाखू खाते हुए भी देखा है....उनके पास तो पान-दान ही हुआ करता था...हर वक्त कचर-कचर पान ही खाती थी......और विश्वास कीजिये ..इन सभी महिलाओं के चरित्र की ऊँचाइयों तक पहुँच पाने के बारे में आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं....
आज जब अपने आस पास देखती हूँ तो पाती हूँ...पहले कि अपेक्षा बहुत कम महिलाएं पान, बीडी, सिगरेट का उपयोग करती हैं....महिलाएं अब अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा जागरूक हैं....
फिर भी, किसी महिला का सिगरेट पीना, शराब पीना या गाली देना बहुत बुरी आदत मानी जायेगी लेकिन इस कारण से उसे चरित्रहीन नहीं कहा सकता .....इन आदतों और चरित्र में कोई सम्बन्ध नहीं है....हाँ, इन आदतों से उसके मनोबल/आत्मबल को आँका जा सकता है....लेकिन सम्मान को नहीं.....
Labels:
महिलाओं में गाली,
शराब और सिगरेट....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
...हाँ idiot , गधे का प्रयोग ही हम भी करते हैं....और बाकि जो भी अभीष्ट गालियाँ हैं....उनमें कोई रूचि नहीं है...
ReplyDeleteचलो गालियाँ भी अभीष्ट होने लगी.
सुन्दर और सार्थक आलेख. परम्परा और संस्कृति बहुत कुछ उसकी भी मान्यता देती है जो दूसरी संस्कृति में वर्ज्य है.
पूरी तरह सहमत -मेरा माहौल भी ऐसा बीता -पिता जी के कभी मुंह से गाली का कभी एक शब्द भी नहीं निकला -माता जी ग्राम्य औरतों के बीच कुछ संवाद अवश्य करती रही हैं मगर वह दुनिया मेरी नहीं है -मुझे जानबूझकर भी गालियाँ देने में कठिनाई होती है जबकि कुछ पेशेगत मजबूरियाँ लोगों को गाली देने का अभ्यास करा देती हैं -ऐसा बहन मुझे तब हुआ था जब बारहवीं क्लास में पढ़ते हुए मेरा एक बहुत सुन्दर सुघड़ व्यक्तित्व का धनी दोस्त किसी मामले में किसी को अचानक बहुत भद्दी गाली दे बैठा ..मैं स्तब्ध ,काटो तो खून नहीं ! ऐसा धक्का लगा की दोस्ती सहसा किनारे आ लगी -उसी ने फिर बताया उन भद्दी गालियों को उसने अपने दारोगा पिता जी से सीखी -अब दारोगा साहब भी क्या करें ,हार्ड कोर क्रिमिनल गाली की भाषा हीसमझते हैं !
ReplyDeleteबाकी महिलाओं का पीना पिलाना यह पेशे ,परिवेश और प्रथा पर निर्भर है और वैसे भी यह व्यक्ति की निजता का मामला है जिसका मैं पूरा सम्मान करता हूँ ! मगर कोई ऐसे परिवेश में जहाँ पीना पिलाना आम बात है नहीं पीता तो आड मैन /वूमैन बनता है जो सभी के लिए असहज स्थिति होती है ! लगता है इस पर एक पूरी पोस्ट ही लिखनी होगी .
व्यसन , दुर्व्यसन , पाप , पुण्य , श्लील , अश्लील ...इन सबकी परिभाषा देश काल समय और परिस्थितियों पर निर्भर करता है ....इनका कोई आदर्श मापदंड नहीं बनाया जा सकता ...हाँ सज्जनता और सौम्यता ऐसे गुण है जो हर काल हर परिस्थिति में एकसमान ही रहते हैं ...
ReplyDeleteयूं तो किसी की हत्या करना भी एक जघन्य अपराध है मगर युद्ध काल में सैनिकों के लिए यही सर्वोत्तम कर्तव्य है ....
सटीक सार्थक विचारणीय आलेख ..
धन्य हो माते ...!!
अच्छा क्या है क्या बुरा काल पात्र अनुसार।
ReplyDeleteविश्लेषण अच्छा लगा अच्छे लगे विचार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
in rome do as the romans do , इसके साथ इस बात पर भी ध्यान देंना चाहिए कि वहाँ की मान्यतायें क्या है ? वहाँ की संस्कृति क्या है , इन परिस्थितियों को देखभाल कर ही जैसा देश वैसा वेश के नक्शे कदम पर चलना चाहिए । अगर यह वहाँ के सभ्यता और संस्कृति के विपरीत है तो इसके परिणाम घातक साबित होते हैं , जैसा कि हम देख ही रहे है ।
ReplyDeleteक्या बात है अदा जी,
ReplyDeleteआज गधे पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान लगती हैं आप...ठहरिए एक बार फिर शीशा देखकर आता हूं...
जय हिंद...
अदा जी , आपकी सारी बातें सही हैं। ये संस्कारों पर निर्भर करता है की आपके बच्चे कैसी जीवन शैली अपनाएंगे।
ReplyDeleteये भी सही है की मिडल क्लास सिग्रेट , शराब आदि से बचा रहता है।
लेकिन जहाँ तक सिग्रेट की बात है, मैंने टोरोंटो में पुरुषों की अपेक्षाकृत महिलाओं को धूम्रपान करते हुए ज्यादा देखा।
ये सही नहीं है ,क्योंकि इससे जो नुक्सान होता है, वो बहुत देर बाद पता चलता है।
लेख अच्छा लगा और साथ ही साथ कई नई बातें जानने को मिलीं!
ReplyDeleteगाली देना न देना मनुष्य, चाहे वह नर हो या नारी, की शिक्षा पर निर्भर करता है और मदिरा एवं धूम्रपान प्रायः सामाजिक परम्पराओं, रीति रिवाजों, मान्यताओं यहाँ तक कि वातावरण पर निर्भर करता है। छत्तीसगढ़ में कई जनजातियाँ हैं जिनमें शराब पीने की सामाजिक परम्परा है। आन्ध्रप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में महिलाओं में बीड़ी पीने का रिवाज है।
जैसा देश वैसा भेष ! जो गाली अमेरिका में गाली न समझी जाती हो शायद इंडिया में बुरी मानी जाते हो और इसी तरह ... लेकिन यह सही कहा कि सिर्फ चरित्र इन बातो से निर्धारित नहीं किया जा सकता किसी का भी !
ReplyDeleteआज तो आपने बिल्कुल सटीक और सुंदर लेख लिखा है. यह तमाम आदते मेरे मत से देश काल और परिस्थिति जन्य होती हैं और इनका चरित्र से कुछ लेना देना नही होता. अगर इन्ही चीजों से चरित्र परिभाषित होने लगा तो वो चरित्र दो कौडी का ही होगा. बहुत धन्यवाद और शुभकामनाए, इतनी स्पष्टता से लिखने के लिये.
ReplyDeleteरामराम.
बुरी आदत कभी बुरा चरित्र नहीं होती.. ये सार समझ लिया जाए तो सब अपने आप ही ठीक हो जाएगा.. ऐसा ही कुछ मैं अपने ब्लॉग पर भी लिख चुका हूँ..
ReplyDeleteआपने सही समय पर सही बात उठाई है..
मेरी नानी भी जर्दा पान खाती थी .. बहुत बूढी महिलाओं को गंदी गालियां बकते देखा है .. चिडचिडाहट भी इसकी वजह हो सकती है .. पढाई लिखाई के बाद या जीवन सुधरने के बाद महिलाओं में यह प्रवृत्ति नहीं पायी जा रही .. होनी भी नहीं चाहिए .. मुझे तो काफी बुरा लगता है .. पर दुनिया में सारे लोगों का एक ही प्रवृत्ति का होना मुश्किल है .. सारे लोग अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख् पाते .. ऐसी स्थिति में उनकी इस प्रवृत्ति को स्वीकार करना चाहिए .. आपने बहुत बढिया आलेख लिखा है .. बहुत बहुत बधाई !!
ReplyDeleteये पोस्ट किसी संदर्भ में उठा है क्या?
ReplyDeleteखैर, गालियों से याद आया कि मैं जिस प्रोफेशन से ताल्लुक रखता हूँ वहाँ कहा जाता है कि बगैर गालियों के मातहतों से काम निकलवाना संभव ही नहीं। लेकिन ग्यारह साल तो होने को आये मुझे अपने प्रोफेशन में, कभी ’बदमाश’ या इडियट से ज्यादा कुछ नहीं निकला और ऐसा भी नहीं है कि मेरे मातहत मेरे आदेश को नहीं सुनते।
पान-सुपारी जर्दा तो हमारे मिथला में सब खाते हैं...
इस पोस्ट का शीर्षक देख, लगा माननीय मिथिलेश दुबे जी ने लिखा है :)...जब क्लिक किया और तुम्हारा ब्लॉग खुला तो वापस चेक किया..फिर आश्वस्त हुई, ये तुमने ही लिखा है...
ReplyDeleteगालियों का तो क्या कहूँ...ज्यादातर मध्यम वर्गीय महिलाओं की डिक्शनरी ..गधा,उल्लू,जंगली,stupid ,idiot तक ही है...लेकिन मुझे लगता है...कुछ प्रदेशों की मध्यमवर्गीय महिलायें भी बड़ी कलरफुल शब्दावली में गालियाँ देती हैं....कुछ रिअलिटी शो में मध्यमवर्गीय घरों की लड़कियों के मुहँ से ऐसी ऐसी गालियाँ सुनी की आँखें झपकना तक भूल गयीं...पर इसकी वजह से उनके चरित्र पर तो ऊँगली उठायी ही नहीं जा सकती.
विदेशों में ही नहीं...भारत में भी जो क्रिश्चियंस हैं...उनके यहाँ भी यही प्रथा है...क्रिसमस,शादी और जन्मोत्सव समारोह में 'वाईन' ऑफर की जाती है...और उनके अधिकाँश मित्र हिन्दू ही होते हैं...मैंने बड़ी उम्र की महिलाओं को जो मुहँ अँधेरे उठ कर मंदिर जाती हैं,पूजा करती हैं...व्रत रखती हैं...उन्हें भी मेजबान का मन रखने के लिए 'वाइन' ग्रहण करते हुए देखा है...होम मेड वाईन का भी खूब प्रचलन है.
पान की दुकान पर खड़े युवकों को सिगरेट पीते देख या ऑटो से उतर कर किसी लड़की को सिगरेट खरीदते देख... दुःख तो बराबर का होता है.
AalekH achchha laga.
ReplyDeleteसटीक लेख...सच है कि बहुत सी बातें परिस्थितिजन्य होती हैं...और आदतें चरित्र को परिभाषित नहीं करतीं..
ReplyDeleteसुन्दर लेख के लिए बधाई
"कोई इंची-टेप लेकर तो गिरता नहीं है....जिसे भी गिरना हो नर या नारी बस गिर जाता है...."
ReplyDeleteआपकी विश्लेषण अच्छे लगे |
महात्मा कबीर का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब भारतीय समाज और धर्म का स्वरुप अधंकारमय हो रहा था। भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक अवस्थाएँ सोचनीय हो गयी थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धमार्ंधता से जनता त्राहि- त्राहि कर रही थी और दूसरी तरफ हिंदूओं के कर्मकांडों, विधानों एवं पाखंडों से धर्म- बल का ह्रास हो रहा था। जनता के भीतर भक्ति- भावनाओं का सम्यक प्रचार नहीं हो रहा था। सिद्धों के पाखंडपूर्ण वचन, समाज में वासना को प्रश्रय दे रहे थे।
नाथपंथियों के अलखनिरंजन में लोगों का ऋदय रम नहीं रहा था। ज्ञान और भक्ति दोनों तत्व केवल ऊपर के कुछ धनी- मनी, पढ़े- लिखे की बपौती के रुप में दिखाई दे रहा था। ऐसे नाजुक समय में एक बड़े एवं भारी समन्वयकारी महात्मा की आवश्यकता समाज को थी, जो राम और रहीम के नाम पर आज्ञानतावश लड़ने वाले लोगों को सच्चा रास्ता दिखा सके। ऐसे ही संघर्ष के समय में, मस्तमौला कबीर का प्रार्दुभाव हुआ।
महात्मा कबीर जी का एक दोहा है ,
कबीरा खरा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर .......
आमोद कुमार ...
WWWWWAAAAAHHHH di !!! aapne to dil khush kar diya...itni sundar aur sateek vivechna ki ki kya kahun....bas lajawaab...simpaly great !!!
ReplyDeleteमैं रांची की रहने वाली हूँ...यहाँ का आदिवासी समुदाय हर ख़ुशी या गम में, अर्थात हर मौके पर 'हंडिया' (चावल से बना पेय) बनाता है और छक कर इसे आदमी, औरतें बच्चे सभी पीते हैं....तो आप उन औरतों को क्या कहेंगे ?? चरित्रहीन ..?? यह तो इनकी संस्कृति का हिस्सा है....एक रिवाज़ है ..
यहाँ मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं इस आदत का समर्थन नहीं कर रही हूँ ...यह बहुत बुरी आदत है.....परन्तु चरित्रहीनता नहीं....
Bilkul sahi...
Aapke is aalekh ke ek ek shabd se sahmat hun,lag raha hai jaise aapne mere hi man ki baat kah di.....
सटीक लेख.आदतें किसी की भी हों गलत या सही हो सकती हैं ..परन्तु इनकी वजह से चरित्र प्रमाणपत्र कतई नहीं दिया जा सकता.
ReplyDeleteADAJI,
ReplyDeletebahut badhiyaa likhaa he ji, गिरने में भला क्या competition? par aapko bataau.aajkal esa hi ho rahaa he,
vese CHARITRAHEEN jesa kuchh hota kyaa he? me hamesha manan kartaa hu..samaaj jo banaa de kyaa vo? yaa ham jo soche vo? lihaza ..charitrheen vahi jise khud isakaa bhaan ho ki vo jo kar rahaa he galat he yaa sahi. shesh.." kuchh to log kahenge..logo ka kaam he kahana..." jesa hi geet sukoon detaa he/
एक सारगर्भित लेख
ReplyDeleteबी एस पाबला
हाँ, इन आदतों से उसके मनोबल/आत्मबल को आँका जा सकता है....लेकिन सम्मान को नहीं.....
ReplyDeleteada ji pure article me is last ki line ne pura nichod kar diya. aaj ek taraf ham ye drink aur smoke ko bura na bhi maane india me lekin fir bhi ye khatakta to hai..lekin apki antim baat sateek lagi. aur is per meri puri shmati bhi.
....मध्यमवर्ग कि महिलाएं यहाँ भी मार खा जातीं हैं....न तो वो उगल पातीं हैं न हीं निगल पातीं हैं
kitni vivashta hai na hamare varg k liye.ek dam sahi baat.
मैंने अपनी नानी सास को बीडी पीते देखा है...वो सिगरेट भी पीती थी और हमलोग बहुत मज़े लेते थे....
sach batau maine apna bachpan gaavo me gujara hai aur aam ladies ko hukka pite dekha hai jisme maine bhi ek do kash kheeche to bahut acchha lagta tha jab pani ki gudr dudr sunayi deti thi. ha.ha.ha.
......और विश्वास कीजिये ..इन सभी महिलाओं के चरित्र की ऊँचाइयों तक पहुँच पाने के बारे में आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं....
bilkul satye baat ham unki barabari nahi kar sakti.
कुछ समय पहले मैं एक फिल्म बना रही थी.....'नूर-ए-जहां', यह फिल्म हिन्दुस्तानी मुस्लिम महिलाओं की उपलब्धियों पर थी...
aap film maker hai...jaan kar bahut acchha laga.
thanks for all these sharing.
मेरी भी रिश्ते की मौसी लगातार सिगरेट पीती थी और गालियां ......... मर्द भी शरमा जाये
ReplyDeleteअदा जी,,,
ReplyDeleteअभी अभी आपका ब्लॉग खोलने से पहले सोचा था के अच्छा सा कमेन्ट करूंगा...
पर एक जरूरी फोन आ गया...
और उसके बाद गधे से लेकर उल्लू के पठ्ठे से होती हुई जाने क्या क्या गालियाँ जबान पे आती चली गयीं...
अभीष्ट वाली नहीं...
अब मूड दोबारा सही हुआ तो करूंगा कमेन्ट..
बहुत ही संतुलित एवं सार्थक विश्लेषण के लिए बधाई।
ReplyDeleteबिंदास अंदाज
ReplyDeleteआप ने सही लिखा। मेरी नानी तम्बाकू खाती थी। मेरी माँ भी पिछले दस पंद्रह वर्षों से खाने लगी हैं। नानी तो तंबाकू, चूना, सरौती, सुपारी और कत्था साथ रखती थीं और अस्सी की उम्र में जब दांत एक भी मुंह में नहीं रहा और बाद में दिखाई देना भी पूरी तरह बंद हो गया तब भी ये सब चलता रहा 90 की उम्र में मरते दम तक।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा ये तो केवल आदत हैं या इनको शौक भी कह सकते हैं और इससे किसी के चरित्र को नहीं आँका जा सकता है, सब देशकाल पर निर्भर होता है।
ReplyDeleteजब हम अपने शहर में थे तो वहाँ की गालियाँ देते थे, फ़िर भोपालियों की संगत में आये तो वहाँ की गालियों में बड़ा रस आया और यकीन मानिये इतनी रस लेकर लोग गालियां बकते हैं कि बस आदमी तन्मयता से सुनता रह जाये। अब गाली देना व्यावहारिक नजरिये बिल्कुल उचित नहीं लगता इसलिये नहीं देते और हमें भी अच्छा नहीं लगता। वैसे कई जगह बहुत सी गालियाँ आम जीवन में घुलमिल गई हैं। पर हाँ अब हमें वह सब अच्छा नहीं लगता, सब देशकाल पर निर्भर है और अपनी परिपक्वता पर भी।
बहुत बढ़िया लगा आपका यह ईमानदार, तथ्यपरक लेख !शुभकामनायें !
ReplyDeleteअदाजी
ReplyDeleteमैंने आपका आलेख पढ़ा और टिप्पणी देते हुए कोई काम आ गया तो लिख नहीं पाइ पर आज वापिस आई तो काफी टिप्पणी आ गई उसमे अमिताभजी जी कि टिप्पणी जैसे ही कुछ मेरे विचार भी है |
आपका आलेख बहुत अच्छा है |इसे पढ़कर मुझे अपना पुराना समय याद आ गया जब मै शहर से गाँव बहू बनकर गई तो मैंने अपनी कई मामी साँस तै साँस को तमाखू खाते बीडी पीते देखा तो तब मै आश्चर्य चकित थी क्योकि मैंने अपने घर में सुपारी पान खाने पर सदा प्रतिबंध ही पाया था |
क्या बात है अदा जी,
ReplyDeleteआज गधे पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान लगती हैं आप...ठहरिए एक बार फिर शीशा देखकर आता हूं...
सुन्दर और सार्थक आलेख. परम्परा और संस्कृति बहुत कुछ उसकी भी मान्यता देती है जो दूसरी संस्कृति में वर्ज्य है.
ReplyDeleteye sab aadten sambandhit parivesh per nirbhar karti hain. Agar Hamare yanha madhyamwargiya pariwar ki girls wine lene wineshop per jayengi jahir hai accha nahi lagega. Lekin wahi girls bombey ya banglore jayegi to pab main jakar drink karegi to wanha acceptable hai. Kuch cheeze hain jo hamare parivesh main mahilaon ke liye warjit hain aur kuch purushon ke liye. Above all drink karna buri baat hai. Drink se ek kuch bhi karne ki aajadi ka ehsaas hota hai. Agar hame drink ko mahilaon ke liye acceptable banana hai to iske liye kaam karna chahiye na ki Purushon aur hamare samaj ki soch ko dosh dena chahiye. Agar yah wastav mai ye samaj ke liye acchi baat hai to Samaj isko accept karega.
ReplyDelete